लोक सभा उपाध्यक्ष का पद भारत के प्रमुख संवैधानिक पदों में से एक है | संसद के निचले सदन ,अर्थात लोक सभा में अध्यक्ष के अनुपस्थित रहने पर सदन के कार्यवाही की जिम्मेदारी लोक सभा के उपाध्यक्ष पर ही होती है | इस पद के इतिहास को 1919 के भारत सरकार अधिनियम (जिसे मोंटागु-चेम्सफोर्ड सुधार अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है) में देखे जा सकते हैं जिसके आधार पर 1921 में इस पद का सृजन हुआ | 1921 से पहले भारत का गवर्नर जनरल केंद्रीय विधानपरिषद की बैठक का पीठासीन अधिकारी होता था । 1921 में सच्चिदानंद सिन्हा को केंद्रीय विधानपरिषद का प्रथम उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया । उस समय अध्यक्ष व उपाध्यक्ष क्रमश: “प्रेसीडेंट” व “डिप्टी प्रेसीडेंट” कहलाते थे | भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत प्रेसीडेंट व डिप्टी प्रेसीडेंट को क्रमशः अध्यक्ष व उपाध्यक्ष कहा गया। आज़ादी के बाद एम.ए.आयंगर लोक सभा के प्रथम उपाध्यक्ष बने |
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लोक सभा के उपाध्यक्ष का चुनाव लोक सभा के सदस्यों द्वारा ही किया जाता है । सदन में अध्यक्ष के चुने जाने के बाद अध्यक्ष उपाध्यक्ष के चुनाव की एक तारीख निर्धारित करता है। इस तारीख पर सदन के सदस्य आपस में से ही किसी एक सदस्य को उपाध्यक्ष चुनते हैं | जब उपाध्यक्ष का स्थान रिक्त होता है तो लोकसभा दूसरे सदस्य को इस स्थान के लिए चुनती है। चुनाव के बाद अध्यक्ष की ही तरह, उपाध्यक्ष भी सदन के कार्यकाल तक (अर्थात साधारणतः 5 साल तक ) अपना पद धारण करता है। वह निम्नलिखित 3 परीस्थितियों में लोक सभा का उपाध्यक्ष नहीं रहता है:
- जब उसके सदन की सदस्यता चली जाए ,
- जब वह अध्यक्ष को संबोधित कर अपना त्यागपत्र सौंप दे , अथवा
- यदि उसे लोकसभा के सदस्यों द्वारा बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा हटा दिया जाए (किंतु ऐसा प्रस्ताव उपाध्यक्ष को 14 दिन की अग्रिम सूचना देने के बाद ही पेश किया जा सकता है )
- लोक सभा के अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर उपाध्यक्ष के उपर ही उसके कार्यों की जिम्मेदारी होती है। सदन की बैठक में अध्यक्ष की अनुपस्थिति की स्थिति में उपाध्यक्ष, अध्यक्ष के तौर पर काम करता है। दोनों ही स्थितियों में वह अध्यक्ष की शक्ति का निर्वहन करता है। संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में भी अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष पीठासीन अधिकारी के तौर पर कार्य करता है।
- यहाँ यह ध्यातव्य है कि उपाध्यक्ष, अध्यक्ष का अधीन नहीं होता । वह प्रत्यक्ष रूप से केवल संसद के प्रति उत्तरदायी होता है।
- जब भी उपाध्यक्ष को किसी संसदीय समिति का सदस्य बनाया जाता है तो वह उस समिति का पदेन सभापति होता है। यह भारतीय संविधान द्वारा लोक सभा उपाध्यक्ष को दिया गया एक विशेषाधिकार है।
- अध्यक्ष की ही तरह, उपाध्यक्ष भी जब पीठासीन होता है, तब वह सदन में मतदान नहीं कर सकता। केवल 2 पक्षों के बीच मत (वोट) बराबर होने की स्थिति में ही उसे मतदान के प्रयोग का अधिकार है।
- जब उपाध्यक्ष को हटाने का प्रस्ताव सदन के विचाराधीन हो तब वह पीठासीन नहीं हो सकता ( हालांकि उसे सदन की बैठक में उपस्थित रहने का अधिकार है ) |
- जब अध्यक्ष सदन में पीठासीन होता है तो उपाध्यक्ष सदन के अन्य दूसरे सदस्यों की तरह होता है । उसे सदन में बोलने, कार्यवाही में भाग लेने और किसी प्रश्न पर मत देने का अधिकार है।
- उपाध्यक्ष संसद द्वारा निर्धारित किए गए वेतन व भत्ते का हकदार है जो भारत की संचित निधि (Consolidated fund) द्वारा देय होता है ।
- परम्परानुसार यह प्रथा थी की लोक सभा के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष सत्ताधारी दल के ही होंगे | किंतु वर्तमान में अध्यक्ष
- सत्ताधारी दल से जबकि उपाध्यक्ष आमतौर पर मुख्य विपक्षी दल से चुना जाता है |
- लोक सभा का उपाध्यक्ष पद धारण करते समय कोई शपथ या प्रतिज्ञा नहीं लेता है ।
उपाध्यक्ष | कार्यकाल | राजनैतिक दल |
1.एम.ए.अयंगर | 1952-56 | भा.रा.कोंग्रेस |
2.हुकुम सिंह | 1956-62 | भा.रा.कोंग्रेस |
3.एस.वी.के.राव | 1962-67 | भा.रा.कोंग्रेस |
4.रघुनाथ केसव खाडिलकर | 1967-69 | भा.रा.कोंग्रेस |
5.जी.जी.स्वेल्ल | 1971-77 | गठबंधन |
6.जी.मुर्हरी | 1977-79 | भा.रा.कोंग्रेस |
7.जी.लाक्स्मंनन | 1980-84 | डी.एम.के. |
8.एम.थम्बिदुरै | 1985-89 | ए,आई.डी.एम.के. |
9.शिवराज पाटिल | 1990-91 | भा.रा.कोंग्रेस |
10.एस.मल्लिकार्जुनइयाह | 1991-96 | भा.ज.पा |
11.सूरज भान | 1996-97 | भा.ज.पा |
12.पी.एम.सईद | 1999-2004 | भा.रा.कोंग्रेस |
13.चरण जीत सिंह अटवाल | 2004-2009 | सिरोमणि अकाली दल |
14.करिया मुंडा | 2009-2014 | भा.ज.पा |
15.एम.थम्बिदुरै | 2014-2019 | ए,आई.डी.एम.के |
नोट: वर्तमान में यह पद रिक्त है | |
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