भारतीय संविधान के जितने भी अनुच्छेद मूल अधिकारों से संबंधित हैं उनमें शायद अनुच्छेद 20-21 सबसे अधिक महत्त्व रखते हैं । इनका संबंध “अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण (अनुच्छेद 20)”, “प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण (अनुच्छेद 21)”, तथा “प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21)” से है । (प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार 86वें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा स्थापित किया गया है)
1. अनुच्छेद- 20 – यह अनुच्छेद किसी भी अभियुक्त या दोषी करार व्यक्ति, चाहे वह नागरिक हो या विदेशी या कंपनी व परिषद का कानूनी व्यक्ति हो, उसके विरुद्ध मनमाने और अतिरिक्त दण्ड से संरक्षण प्रदान करता है । इस अनुच्छेद के अनुसार –
(i) किसी व्यक्ति को अपराध के लिए तब तक दोषी सिद्ध नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि उसने ऐसा कोई कार्य करने के समय, जो अपराध के रूप में आरोपित है, किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया है,
(ii) किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित और दंडित नहीं किया जाएगा,
(iii) किसी अपराध के लिए अभियुक्त किसी व्यक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध साक्षी होने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
2. अनुच्छेद -21 – इस अनुच्छेद में घोषणा की गई है कि किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं । अनुच्छेद 21 के तहत सिर्फ मनमानी कार्यकारी प्रक्रिया के विरुद्ध सुरक्षा उपलब्ध है न कि विधानमंडलीय प्रक्रिया के विरुद्ध । इसका मतलब यह है कि राज्य प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार को कानूनी आधार पर रोक सकता है । अर्थात कानून की वैधता एवं उसकी व्यवस्था पर अकारण, अन्यायपूर्ण आधार पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता । अनुच्छेद 21 के तहत ही प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार 86वें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा स्थापित किया गया है ।
मूल अधिकारों से संबंधित संविधान के अन्य अनुच्छेद :-
1.समता (equality) का अधिकार- (a) विधि के समक्ष समता एवं विधियों का समान संरक्षण (अनुच्छेद 14 ) । (b) धर्म, मूल वंश, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध (अनुच्छेद 15) I (c) लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता (अनुच्छेद 16 ) । (d) अस्पृश्यता (untouchability) का अंत और उसका आचरण निषिद्ध (अनुच्छेद 17 ) । (e) सेना या विद्या संबंधी सम्मान के सिवाए सभी उपाधियों पर रोक (अनुच्छेद 18 ) । 2. स्वतंत्रता (liberty) का अधिकार- (a) इसके अंतर्गत निम्नलिखित 6 अधिकारों की सुरक्षा आती है : (I) वाक् एवं अभिव्यक्ति, (II) सम्मेलन, (III) संघ, (IV) संचरण, (V) निवास, (VI) वृत्ति (अनुच्छेद 19 ) । (b) अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण (अनुच्छेद 20) । (c) प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण (अनुच्छेद 21 ) । (d) प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21 ) (86वें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा स्थापित) । (e) कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण (अनुच्छेद 22)। 3. शोषण के विरुद्ध अधिकार- (a) बलात् श्रम (bonded labour) का प्रतिषेध (अनुच्छेद 23 ) । (b) कारखानों आदि में बच्चों के नियोजन (child labour) का प्रतिषेध (अनुच्छेद 24) । 4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार- (a) अंतःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25 ) । (b) धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26 ) । (c) किसी धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता (अनुच्छेद 27) । (d) कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता (अनुच्छेद 28 ) । 5. संस्कृति एवं शिक्षा सम्बंधी अधिकार- (a) अल्पसंख्यकों की भाषा, लिपि और संस्कृति की सुरक्षा (अनुच्छेद 29 ) । (b) शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार (अनुच्छेद 30) । 6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार- इसके अंतर्गत मूल अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उच्चतम न्यायालय जाने का अधिकार है । इसमें शामिल याचिकाएं हैं- (1) बंदी प्रत्यक्षीकरण, (ii) परमादेश, (iii) प्रतिषेध, (iv) उत्प्रेषण, (v) अधिकार पृच्छा (अनुच्छेद 32 ) । नोट: मूलतः संविधान में संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 31) भी मूल अधिकार में शामिल था लेकिन इसे 44वें संविधान अधिनियम, 1978 द्वारा मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया । इसे संविधान के भाग -XII में अनुच्छेद 300 (A) के तहत एक कानूनी अधिकार बना दिया गया है । |
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