राजमन्नार समिति (Rajamannar committee) केंद्र-राज्य सम्बन्धों (center -state relations) से सम्बंधित है । भारत में केंद्र व राज्य सरकारों के बीच उपजे टकराव की स्थितियों के समाधान के लिए 1969 में DMK के नेतृत्व वाली तमिलनाडु की राज्य सरकार द्वारा इस 3 सदस्यीय समिति का गठन किया गया था । डॉ. वी. पी. राजमन्नार इसके अध्यक्ष थे।
राजमन्नार समिति : मुख्य सिफारिशें
इस समिति की मुख्य सिफारिशें इस प्रकार थीं :
- एक अंतर- राज्यीय परिषद का गठन किया जाये ।
- योजना आयोग का स्थान एक सांविधि निकाय ले ।
- वित्त आयोग को एक स्थायी निकाय बना दिया जाये ।
- राज्यपाल के प्रसादपर्यंत राज्य मंत्रिपरिषद के पद धारित करने का जो प्रावधान है, उसे समाप्त कर दिया जाये ।
- संघ सूची एवं समवर्ती सूची के कुछ विषयों को राज्य सूची में हस्तांतरित कर दिया जाये ।
- राज्यों को अवशेषीय शक्तियां प्रदान की जायें ।
- किंतु इस समिति की जो 2 सबसे महत्वपूर्ण सिफारिशें थीं वे थीं – 1.अखिल भारतीय सेवाओं (I.A.S, I.P.S ,I.F.S) को समाप्त कर दिया जाये; तथा 2. अनुच्छेद 356, 357 एवं 365 (राष्ट्रपति शासन से संबंधित) को पूर्णतया समाप्त कर दिया जाये । सरकार ने इस समिति की सिफारिशों को नहीं स्वीकार किया।
केंद्र व राज्य सरकारों के बीच विवाद के क्या कारण हैं ?
कानून निर्माण की शक्तियां : केंद्र व राज्य सरकारों के बीच टकराव का सबसे बड़ा कारण है कानून निर्माण की शक्ति । हालाँकि इस विवाद को कम करने के उद्देश्य से इन शक्तियों का स्पष्ट विभाजन संघ सूचि ,राज्य सूचि व समवर्ती सूचि में किया गया है, तथापि ये विषय अक्सर विवाद का कारण बनते हैं क्योंकि कुछ विशेष परिस्थितियों में केंद्र सरकार राज्य सूचि के विषय पर भी कानून बना सकती है ।
राज्यपाल की भूमिका तथा राष्ट्रपति शासन : केंद्र और राज्यों के बीच विवाद का दूसरा सबसे प्रमुख कारण शायद राज्यपाल की भूमिका है । देश में जितने भी संवैधानिक पद हैं उनमे केवल राज्यपाल ही एक ऐसा पद है जिसके निर्वाचन ,स्थानान्तरण ,कार्यकाल या निलंबन किसी से भी सम्बंधित स्पष्ट प्रावधान हमारे संविधान में नहीं दिए गये हैं । राज्यपाल सामान्यतः कोई सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी, लोक सेवक या राजनीतिज्ञ ही होता है । उनकी नियुक्ति केंद्र सरकार के द्वारा , राज्यों में केंद्र सरकार के एक एजेंट के रूप में की जाती है । अतः राज्यपाल के फ़ैसलों को अकसर राज्य सरकार के कार्यों में केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के रूप में देखा जाता है, (तब जब केंद्र और राज्य में अलग -अलग राजनैतिक दल सत्तारूढ़ हों) ।
राज्यपाल के पद से ही जुड़ा विवाद का एक अन्य कारण है संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राज्य आपात (राष्ट्रपति शासन) का प्रावधान । राज्यपाल को ही यह अधिकार है कि वह राज्य सरकार को बर्खास्त करने तथा राज्य विधान सभा को निलंबित या विघटित करने की अनुशंसा राष्ट्रपति से कर सके । कई बार ऐसा भी देखा गया है कि बहुमत के आधार पर गठित राज्य सरकारों को भी राजनैतिक द्वेष के कारण बर्खास्त कर दिया गया या इसकी अनुशंसा की गई ।
इन सब के अलावे अखिल भारतीय सेवा (All India Services) , कराधान व्यवस्था (taxation) , अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपात उपबंध (emergency provisions) , राज्यों के वित्तीय आवंटन में असमानता इत्यादि मुद्दे भी कई बार केंद्र -राज्य संबंधों की कटुता का कारण बनते हैं ।
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