संविधान के 100वें संशोधन अधिनियम, 2015 ने 1974 के भूमि सीमा समझौते और 2011 के इसके प्रोटोकॉल के अनुसरण में भारत द्वारा कुछ क्षेत्रों के अधिग्रहण और बांग्लादेश को कुछ अन्य क्षेत्रों के हस्तांतरण (परिक्षेत्रों के आदान-प्रदान और प्रतिकूल कब्जे के प्रतिधारण के माध्यम से) को प्रभावी बनाया ।
इस प्रयोजन के लिए, इस संशोधन अधिनियम ने संविधान की पहली अनुसूची में चार राज्यों (असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय और त्रिपुरा) के क्षेत्रों से संबंधित प्रावधानों में संशोधन किया ।
संविधान संशोधन की प्रक्रिया
संविधान के भाग -20 के अनुच्छेद-368 में भारत के संसद को संविधान में संशोधन की शक्ति प्रदान की गई है । इस अनुच्छेद में प्रावधान है कि संसद अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए संविधान के किसी भी उपबंध का परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन कर सकती है । इस अनुच्छेद में संशोधन की निम्नांकित प्रक्रियाओं का वर्णन किया गया है :- 1. संविधान के संशोधन का आरंभ संसद के 2 में से किसी 1 सदन में (अर्थात लोक सभा या राज्य सभा) संशोधन विधेयक पेश कर किया जा सकता है , न कि किसी राज्य विधान मण्डल (अर्थात विधान सभा या विधान परिषद) में । 2. संशोधन विधेयक को किसी मंत्री या किसी भी सांसद द्वारा पेश किया जा सकता है और इसके लिए राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति आवश्यक नहीं है । 3. विधेयक को दोनों सदनों में विशेष बहुमत (दो-तिहाई अथवा 66%) से पारित कराना अनिवार्य है । 4. प्रत्येक सदन में विधेयक को अलग-अलग पारित कराना अनिवार्य है । दोनों सदनों के बीच असहमति होने पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक (joint sitting) का प्रावधान संविधान के संशोधन के सन्दर्भ में नहीं है । 5. यदि विधेयक संविधान की संघीय व्यवस्था के संशोधन के मुद्दे पर हो तो इसे न्यूनतम 50% राज्यों के विधानमंडलों से भी सामान्य बहुमत (50%) से पारित कराना अनिवार्य है । 6. संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद , एवं जहां आवश्यक हो, राज्य विधानमंडलों की संस्तुति के बाद, इस संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति के पास सहमति के लिए भेजा जाता है । 7. संशोधन विधेयक के मामले में भारत के राष्ट्रपति न तो अपने वीटो पॉवर का प्रयोग कर सकते हैं और न ही इसे संसद के पास पुनर्विचार के लिए भेज सकते हैं। अर्थात, राष्ट्रपति के लिए स्वीकृति देना बाध्यकारी है । |
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