बिहार में स्वराज दल का गठन श्री कृष्ण सिंह ने किया था । आगे चल कर वह बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री बने । जबकि राष्ट्र स्तर पर स्वराज दल का गठन मोतीलाल नेहरु एवं चितरंजन दास ने किया था । स्वराज दल को कांग्रेस- खिलाफत दल के नाम से भी जानते थे।
स्वराज दल
जब गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन का आह्वान किया तो लोग हर उस चीज का त्याग करने लगे जो ब्रिटिश साम्राज्य का प्रतीक था । इसके तहत केन्द्रीय विधायिका की सदस्यता भी आती थी । लेकिन कांग्रेस पार्टी के अंदर ही एक मत यह भी था कि “हमें विधायिका की सदस्यता का बहिस्कार नहीं करना चाहिए, बल्कि विधायिका का सदस्य बन कर देश के हित में कानून बनाने चाहिए या उसकी वकालत करनी चाहिए” । मोतीलाल नेहरु एवं चितरंजन दास इसी विचार के थे और इसी उद्देश्य से उन्होंने 1923 में स्वराज दल की स्थापना की । एन.सी. केलकर (जिन्हें साहित्य सम्राट तात्यासाह्ब केलकर के नाम से भी जाना जाता है) भी इस दल के महत्वपूर्ण सदस्य थे । इस पार्टी के मुख्य उद्देश्य निम्नवत थे :-
- डोमिनियन स्टेटस प्राप्त करना ।
- संविधान बनाने का अधिकार प्राप्त करना ।
- नौकरशाही पर नियंत्रण स्थापित करना ।
- पूर्ण प्रांतीय स्वायत्तता प्राप्त करना ।
- स्वराज्य (स्वशासन) प्राप्त करना ।
- लोगों को सरकारी तंत्र को नियंत्रित करने का अधिकार दिलाना ।
- औद्योगिक और कृषि श्रम का आयोजन करना ।
- स्थानीय और नगरपालिका निकायों को नियंत्रित करना ।
- व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देने के लिए एशियाई देशों के एक संघ की स्थापना करना ।
- कांग्रेस के रचनात्मक कार्यक्रमों में भाग लेना ।
हालाँकि 1925 में चितरंजन दास की मृत्यु के बाद यह दल कमजोर पड़ गया और जल्द ही समाप्त हो गया, लेकिन इसके महत्व को निम्नलिखित तरीके से समझा जा सकता है :-
- गांधीजी और परिवर्तन समर्थक (pro- changers) तथा परिवर्तन न चाहने वाले (no- changers) दोनों ने सरकार से सुधार प्राप्त करने के लिए एक संयुक्त मोर्चा बनाने के महत्व को महसूस किया। इसलिए, यह निर्णय लिया गया कि स्वराजवादी कांग्रेस पार्टी के भीतर एक अलग ‘समूह’ के रूप में चुनाव लड़ेंगे ।
- स्वराज पार्टी ने 1923 में केंद्रीय विधानमंडल की 104 में से 42 सीटें जीतीं ।
- पार्टी का कार्यक्रम सरकार में बाधा डालना था । वे देश विरोधी हर नीति पर गतिरोध पैदा करना चाहते थे ।
- उन्होंने सरकार द्वारा आयोजित सभी आधिकारिक कार्यों और स्वागत समारोहों का बहिष्कार किया ।
- उन्होंने विधान सभा में अपनी शिकायतों और आकांक्षाओं को आवाज दी ।
- स्वराजवादी विट्ठल भाई पटेल 1925 में केंद्रीय विधान सभा के अध्यक्ष बने ।
- उन्होंने बजटीय अनुदानों से संबंधित मामलों में भी कई बार सरकार को मात दी ।
- वे 1928 में जन सुरक्षा विधेयक को पराजित करने में सफल रहे ।
- उन्होंने मोंटाग्यु -चेम्सफोर्ड सुधारों की कमजोरियों को उजागर किया ।
- उन्होंने विधानसभा में स्वशासन और नागरिक स्वतंत्रता पर उग्र भाषण दिए ।
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