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जब रौलेट एक्ट लागू हुआ (1919) तब भारत के वाइसराय फ़्रेडरिक जॉन नैपिएर थेसिगर थे जिन्हें लॉर्ड चेम्सफोर्ड के नाम से भी जाना जाता है । वह 1916 से 1921 तक भारत के वाइसराय रहे ।

रौलेट एक्ट : 1919 का ‘अराजक एवं क्रांतिकारी अपराध कानून’ (Anarchical and revolutionary crimes act), जिसे हम “रौलेट एक्ट” के नाम से जानते हैं (क्योंकि इसे सिडनी रौलेट ने बनाया था) भारत के इतिहास में एक काला कानून था । इस कानून ने न्यायालय को ऐसी शक्ति प्रदान कर दी कि यह ऐसे साक्ष्यों को भी मान्यता प्रदान कर सकता था, जो कानून के अनुसार मान्य नहीं होते थे । इसके तहत एक विशेष न्यायालय की स्थापना की गई जिसके निर्णयों के विरुद्ध अन्य किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती थी । रौलेट एक्ट के तहत, प्रांतीय सरकारों को असीमित शक्तियाँ प्रदान कर दी गई थीं । इन शक्तियों का उद्देश्य भारतीयों द्वारा औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध संचालित किए जा रहे आंदोलन को पूरी तरह से कुचलना था । इस एक्ट के अंतर्गत प्रांतीय सरकारों को किसी के भी विरुद्ध बिना वारंट जारी किए या केवल संदेह के आधार पर तलाशी लेने तथा किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार प्रदान कर दिया गया । रौलेट एक्ट के माध्यम से ‘बंदी प्रत्यक्षीकरण’ का अधिकार रद्द कर दिया गया था । इसका अर्थ यह था कि सरकार किसी को भी बंदी बनाकर रख सकती थी और इसके लिए सरकार को किसी को भी कोई कारण बताने आवश्यकता नहीं थी । इसे भारतियों ने “नो वकील, नो दलील, नो अपील” की संज्ञा दी ।

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