राज्यसभा को स्थायी सदन इसलिए कहते हैं क्योंकि इसका विघटन कभी नहीं होता । हालाँकि, इसके एक -तिहाई सदस्य हर दूसरे वर्ष सेवानिवृत्त हो जाते हैं । लेकिन ये एक साथ निवृत नहीं होते, अतः यह सदन हमेशा अस्तित्व में रहता है । खाली हुई सीटें चुनाव के द्वारा फिर भरी जाती हैं और राष्ट्रपति द्वारा हर तीसरे वर्ष के शुरुआत में मनोचयन (nomination) होता है । इस प्रकार राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल तो 6 वर्ष का होता है , लेकिन यह सदन निरंतर चलता है । सेवा निवृत्त होने वाले सदस्य कितनी बार भी चुनाव लड़ सकते हैं और नामित हो सकते हैं । इसके विपरीत लोकसभा का कार्यकाल सीमित है और यह 5 वर्ष का ही होता है ।
संविधान निर्माताओं ने राज्यसभा के सदस्यों के लिए पदावधि निर्धारित नहीं की थी और इसे संसद पर छोड़ दिया गया था । जन -प्रतिनिधित्व अधिनियम (1951) के आधार पर संसद ने कहा कि राज्यसभा के सदस्यों की पदावधि छह साल की होनी चाहिए । इस अधिनियम ने भारत के राष्ट्रपति को पहली राज्यसभा में चुने गए सदस्यों की पदावधि कम करने का अधिकार दिया । इसके अलावा, इस अधिनियम द्वारा राष्ट्रपति को राज्यसभा के सदस्यों की सेवानिवृत्ति के आदेश को शासित करने वाले उपबंध बनाने का अधिकार भी दिया गया । राज्यसभा हमारी संसद का उच्च सदन है ।
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