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निपुण भारत कार्यक्रम

नई शिक्षा  नीति -2020 के सफलतापूर्वक कार्यान्वयन के लिए 5 जुलाई 2021 को भारत के शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के द्वारा “निपुण भारत कार्यक्रम” की शुरुआत  की गई | निपुण (NIPUN) का अर्थ है National Initiative for Proficiency in Reading with Understanding and Numeracy अर्थात ‘संख्यात्मक ज्ञान के साथ, पठन में निपुणता  के लिये राष्ट्रीय पहल’ | यह भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसका उद्देश्य है 3 से 9 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों की सीखने की आवश्यकताओं को पूरा करना । 

इस योजना के माध्यम से आधारभूत साक्षरता एवं संख्यात्मकता (अंकगणित ) के ज्ञान को छात्रों तक पहुंचाये जाने का लक्ष्य है | निपुण योजना के माध्यम से सन 2026-27 तक प्रत्येक बच्चे को तीसरी कक्षा के अंत तक पढ़ने, लिखने एवं बुनियादी अंकगणित (Basic Numeracy) को सीखने की क्षमता प्रदान की जाएगी। इस योजना का कार्यान्वयन स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग द्वारा किया जाएगा। उल्लेखनीय है  कि इस योजना को केंद्र प्रायोजित योजना ‘समग्र शिक्षा अभियान’ के तत्वावधान में शुरू किया गया  है | इस लेख में आप निपुण भारत कार्यक्रम की जानकारी पा सकते हैं | 

 

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निपुण भारत कार्यक्रम का कार्यान्वयन

  • निपुण भारत कार्यक्रम को स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता  विभाग के द्वारा 5 चरणों में  लागू किया जाएगा | ये 5 स्तर हैं – राष्ट्र, राज्य, जिला, ब्लॉक और स्कूल स्तर । 
  • चूँकि इस अभियान की सफलता मुख्यतः शिक्षकों पर निर्भर होगी अतः शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए  इसमें विशेष प्रावधान किये गये हैं |
  • इस योजना में बच्चों के समग्र विकास पर जोर दिया जाएगा |
  • उन्हें प्रतियोगिता के लिए तैयार करना और उनमे सृजनात्मकता का पोषण करना इस योजना का लक्ष्य है |

नई शिक्षा नीति 2020 क्या है ?

शिक्षा क्षेत्र में गुणात्मक सुधार और शिक्षा को चारदीवारी से बाहर निकाल कर  बच्चों के समग्र विकास के उद्देश्य से 2020 में नई शिक्षा नीति लागू की गई है | इस योजना में बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने तथा शिक्षा को उनके लिए रुचिकर बनाने का लक्ष्य रखा गया है |

नई शिक्षा नीति में 5+3+3+4 पद्धित पर  शैक्षणिक संरचना को निर्धारित  किया गया है जिसमे  3 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शामिल किया गया  है। 5+3+3+4 पद्धित का अर्थ है :

  • 5 वर्ष की बुनियादी शिक्षा (3 वर्ष की प्री-प्राथमिक शिक्षा और वर्ग 1 व  2 )
  • 3 वर्ष का प्रीपेट्रेरी स्तर (वर्ग 3 से 5)
  • 3 वर्ष का मध्य (या उच्च प्राथमिक) स्तर (वर्ग  6 से  8 ) और,
  • 4 वर्ष का उच (सेकेंडरी ) स्तर (वर्ग  9 से  12 ).

कक्षा-5 तक की शिक्षा में मातृभाषा/स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को ही  अध्ययन के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है | साथ ही  सूचना तकनीक (IT) के माध्यम से बच्चों को डिजिटल शिक्षा भी दी जाएगी  | इसके लिए  स्कूलों में आधारभूत संरचना के निर्माण के लिए वित्त्पोषण का भी  प्रावधान है | विद्यालयों में सभी स्तरों पर छात्रों को बागवानी, नियमित रूप से खेल-कूद, योग, नृत्य व कलाओं  का ज्ञान  प्रदान करने का प्रयत्न किया जाएगा ताकि बच्चे शिक्षित के साथ साथ स्वस्थ भी रह  सकें। NCERT के  द्वारा स्कूली शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा  तैयार की जाएगी । इस नीति की एक अहम विशेषता यह है कि वर्ष 2030 तक अध्यापन के लिये न्यूनतम डिग्री योग्यता 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड. डिग्री का होना अनिवार्य कर दिया  जाएगा । ध्यातव्य है कि नई शिक्षा नीति 2020 के तहत  एम.फिल. (Master of Philosophy) के कोर्स  को समाप्त कर दिया गया है

नोट : उल्लेखनीय है कि नई शिक्षा नीति की रुपरेखा कस्तूरीरंगन समिति ने तैयार की थी और श्री के.कस्तूरीरंगन को ही राष्ट्रीय  पाठ्यक्रम की रुपरेखा, NCF, तैयार करने वाली समिति का भी अध्यक्ष बनाया गया है | (के . कस्तूरीरंगन ISRO से सम्बद्ध प्रसिद्द भारतीय वैज्ञानिक व शिक्षाविद हैं ) |

समग्र शिक्षा अभियान क्या है ?

भारत सरकार के द्वारा पहले से चलाई जा रही  3 शैक्षणिक  योजनाओं  : ‘सर्व शिक्षा अभियान’ (SSA), ‘राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान’ (RMSA) और ‘शिक्षक शिक्षा योजना ’ (TE) को एक में समाहित कर समग्र शिक्षा योजना की शुरुआत की गई  है। इस योजना को समग्र शिक्षा अभियान 2.0 भी कहा जाता है |

2018 में प्रारम्भ यह  योजना  एक एकीकृत योजना है, जिसमें प्री-स्कूल  से लेकर 12वीं कक्षा तक की शिक्षा  को शामिल किया गया है। इसका उद्देश्य समावेशी, न्यायसंगत और सुगम स्कूली शिक्षा प्रदान करना है। इस योजना में लगभग 11 लाख  स्कूल, 15 करोड़  से अधिक छात्र और सरकारी तथा सहायता प्राप्त स्कूलों के लगभग  60 लाख  शिक्षक  शामिल हैं। यह एक  केंद्र प्रायोजित योजना है जिसमे केंद्र सरकार व राज्य सरकार के बीच 60:40 के अनुपात में वित्तपोषण का प्रावधान है । ( पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए यह अनुपात 90:10 का होगा जबकि ऐसे केंद्रशासित प्रदेश जहाँ विधायिका नहीं है , यह 100% केंद्र सरकार द्वारा पोषित होगा )

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