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आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923

आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (the official secrets act) 1923 ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से भारत का जासूसी विरोधी अधिनियम है। इसमें स्पष्ट रूप से भारत के खिलाफ दुश्मन राज्य की मदद करने वाली कार्रवाइयों की कड़ी निंदा की गई है और इसे आपराधिक कृत्य बताया गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति अत्यंत संवेदनशील सरकारी क्षैत्र का निरीक्षण या उसमें प्रवेश नहीं कर सकता।

आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (OSA), भी ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में लागू किए गए कई अन्य विधानों की तरह, स्वाभाविक रूप से औपनिवेशिक प्रकृति का ही है और समकालीन भारतीय समाज में इसका कोई स्थान नहीं है।

अभी हाल ही में यह बात सामने आई थी कि राफेल सौदे से जुड़े अहम दस्तावेज गायब हो गए हैं। इस मामले में आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम का हवाला देते हुए, अटॉर्नी जनरल ने कोई भी जानकारी प्रदान करने से इनकार कर दिया क्योंकि यह ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का विषय है।

नोट – यूपीएससी प्रीलिम्स परीक्षा 2023 में आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के बारे में प्रश्न  पूछे जाने की बहुत अधिक संभावना है।

इस लेख में हम आपको आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के बारे में संक्षिप्त में जानकारी दे रहे हैं। इससे उम्मीदवारों को आईएएस परीक्षा 2023 के साथ-साथ अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में भी मदद मिलेगी।

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आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम 1923 क्या है?

आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 भारत का जासूसी विरोधी कानून है। इसमें कहा गया है कि जिन कार्रवाइयों में भारत के खिलाफ एक दुश्मन राज्य की मदद करना शामिल है, उसकी कड़ी निंदा की जाती है। इसमें यह भी कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति निषिद्ध सरकारी क्षेत्र में प्रवेश या निरीक्षण नहीं कर सकता है या यहां तक ​​कि उसे पार भी नहीं कर सकता है। 

इस अधिनियम के अनुसार, दुश्मन राज्य की मदद करने के लिए कोई स्केच, योजना,  आधिकारिक गोपनीय दस्तावेज, मॉडल, आधिकारिक कोड या पासवर्ड दुश्मन को संप्रेषित करना इसके दायरे में आता है।

आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 में जुर्माना और सजा

अधिनियम के तहत दंड तीन साल से लेकर आजीवन कारावास (यदि भारत के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने का इरादा है – धारा 5) तक की सजा दी जा सकती है। इसके तहत ऐसे व्यक्ति पर भी अपराध मुकदमा चलाया जा सकता है, जिसने भले ही वो काम अनजाने में किया हो और उसका राज्य की सुरक्षा को खतरे में डालने का इरादा न हो।

यह अधिनियम केवल अधिकारिक पदों पर आसीन व्यक्तियों को आधिकारिक रहस्यों को संभालने का अधिकार देता है, और अन्य को इससे निषिद्ध करता है। अगर कोई अन्य व्यक्ति ऐसा करते हुए पाया जाता है तो उसके लिए सजा और जुर्माना दोनो का प्रावधान है।

पत्रकारों को उप-निरीक्षक के पद से ऊपर के पुलिस बल के सदस्यों और सेना के सदस्यों को एक अपराध के संबंध में जांच के साथ-साथ उसकी सूचना के स्रोतों का खुलासा करने में मदद करनी होती है।

यदि मजिस्ट्रेट यह निर्धारित करता है कि साक्ष्य के आधार पर राज्य की सुरक्षा के लिए पर्याप्त खतरा है, तो आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के तहत, किसी भी समय तलाशी वारंट जारी किया जा सकता है। 

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आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के पीछे की मंशा

इस अधिनियम को लागू करने के पीछे ब्रिटिश शासन की मूल मंशा अपने साम्राज्य को उसके शत्रुओं की गुप्त गतिविधियों से बचाना था। इस अधिनियम की जड़ें ब्रिटिश औपनिवेशिक युग की हैं। शासकीय गोपनीयता अधिनियम (अधिनियम XIV) को साल 1889 में लाया गया था। इसका मूल उद्देश्य उस समय ब्रिटिश नीतियों का विरोध करने के लिए कई भाषाओं में बड़ी संख्या में निकलने वाले अखबारों की आवाज को दबाना था।

भारत के उस समय के वायसराय लॉर्ड कर्जन के समय इसमें (अधिनियम XIV) संशोधन किया गया। इस अधिनियम को द इंडियन ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट, 1904 के रूप में अधिक कठोर बनाया गया था।

लेकिन साल 1923 में शासकीय गोपनीयता अधिनियम (1923 का अधिनियम XIX) को नए संस्करण के रूप में अधिसूचित किया गया था।

इसी साल इस अधिनियम के प्रभाव को शासकीय गोपनीयता से संबंधित सभी मामलों पर लागू किया गया था।

इस अधिनियम को राजनीतिक दल की परवाह किए बिना सरकार के हाथों में अधिक ताकत दी गई थी। इसमें राज्य और उसके विषयों के बीच अभिभावक और बच्चों के जैसा रिश्ते दर्शाया गया है।

इस अधिनियम के मुताबिक सरकार, राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कुछ सूचनाओं को सार्वजनिक डोमेन से दूर रखती है, हालांकि यह लोकतंत्र के विचारों में एक विरोधाभास प्रतित होता है। इस अधिनियम में संविधान के अनुच्छेद 19 (1) को लेकर भी विरोधाभास है जो प्रत्येक नागरिक को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार देता है।

आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923  के संभावित दुरुपयोग

आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 स्पष्ट करता है कि किन दस्तावेजों या सूचनाओं को ‘गुप्त’ माना जा सकता है, इस प्रकार सरकारी अधिकारियों द्वारा जानकारी या दस्तावेजों को आधिकारिक गोपनीय दस्तावेजों के रूप दर्शाते हुए उनका दुरुपयोग किया जा सकता है, जहां इसकी आवश्यकता होती है।

इस अधिनियम का उपयोग अक्सर मीडिया घरानों और पत्रकारों के खिलाफ मनमाने ढंग से किया जाता सकता है, जो सरकार की कार्रवाई का विरोध करते हैं और उसकी नीतियों पर सवाल उठाते पाए जाते हैं।

यह अधिनियम, सूचना का अधिकार (Right To Information) कानून का भी खंडन करता है जो 2005 में लागू हुआ था और भ्रष्टाचार के लिए पर्याप्त आधार बनाता है।

आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम में सुधार

ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट, 1923 की कठोर प्रकृति के कारण इसमें सुधार के कई प्रयास शुरू किए गए हैं।

विधि आयोग 1971 में OSA के संबंध में अवलोकन करने वाला पहला आधिकारिक निकाय बन गया। इस आयोग ने कहा था कि ‘मात्र इसलिए कि परिपत्र या दस्तावेज को गुप्त या वर्गीकृत चिह्नित किया गया है, इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू नहीं करना चाहिए।’ हालांकि आयोग द्वारा अधिनियम में किसी भी परिवर्तन की सलाह नहीं दी गई थी।

2006 में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने सिफारिश की कि ओएसए को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम में एक अध्याय के साथ बदल दिया जाए जिसमें आधिकारिक रहस्य से संबंधित प्रावधान हों। आयोग ने ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट, 1923 को ’लोकतांत्रिक समाज में पारदर्शिता के शासन के साथ असंगत’ बताया था।

ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट, 1923 (OSA) के प्रावधानों को देखने के लिए 2015 में गठित एक समिति ने 16 जून, 2017 को सचिवालय को अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपी। इसमें सिफारिश की गई थी कि OSA को RTI अधिनियम के अनुरूप और अधिक पारदर्शी बनाया जाना चाहिए।

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आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के संबंध में अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

आधिकारिक रहस्य अधिनियम में किन-किन चीजों को समाहित किया गया है?

आधिकारिक रहस्य अधिनियम 1923 में निम्नलिखित से संबंधित प्रावधान शामिल किए गए हैं –

 जासूसी के लिए दंड

कुछ अपराधों के किए जाने का सबूत होने के लिए विदेशी एजेंटों के साथ संचार

सूचना का गलत संचार, आदि

वर्दी का अनधिकृत उपयोग, रिपोर्ट का मिथ्याकरण, जालसाजी, प्रतिरूपण और झूठे दस्तावेज

पुलिस के अधिकारियों या संघ के सशस्त्र बलों के सदस्यों के साथ हस्तक्षेप करना

अपराध किए जाने के बारे में जानकारी देने का कर्तव्य

प्रयास, उकसावे आदि

गुप्तचरों को शरण देने के लिए दंड

तलाशी वारंट

धारा 3, 5 और 7 के तहत अपराधों पर लागू होने के लिए 1898 के अधिनियम 5 की धारा 337 के प्रावधान

अपराधों के विचारण पर निर्बंधन

कार्रवाई से जनता का बहिष्करण

कंपनियों द्वारा अपराध

क्या आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम समाप्त हो गया है?

नहीं, OSA 2013 आधिकारिक अधिनियम है जिसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम में OSA को एक अध्याय द्वारा प्रतिस्थापित करने के लिए दूसरी ARC रिपोर्ट में एक सुझाव है क्योंकि आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 सूचना के अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन के बाद खबरों में रहा था।

भारत में आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम किसने पेश किया था ?

इंडियन ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट 1904 लॉर्ड कर्जन द्वारा पेश किया गया था। बाद में, इसे OSA 1923 से बदल दिया गया।

यूपीएससी प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा दोनों के लिए आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 एक महत्वपूर्ण विषय है। यूपीएससी के संदर्भ में करेंट अफेयर्स से संबंधित अन्य विषयों के बारे में पढ़ने के लिए BYJU’S को फॉलो करें।   

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