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ऑपरेशन ओलिविया

“ऑपरेशन ओलिविया” (Operation Olivia) भारतीय तट रक्षक बल (Indian Coast Guard- I.C.G) द्वारा शुरू की गई एक परियोजना है जिसका उद्देश्य दिसंबर से मई तक के प्रजनन के मौसम के दौरान ओलिव रिडले कछुओं (Olive Ridley turtles) की आबादी की रक्षा करना है  । यह अभियान देश में कछुओं के प्राथमिक निवास स्थान ओडिशा के तट से चलाया जाता है । यह अभियान पहली बार 1980 में शुरू किया गया था और दिसंबर 2020 से निरंतर चलाया जा रहा है । 2020 से 2021 के बीच, इस अभियान के तहत भारतीय तट रक्षक बल ने ओडिशा तट पर घोसला बना कर अंडे देने वाले 3.49 लाख ओलिव रिडले कछुओं की रक्षा के लिए कुल 225 जहाज दिवस (ship days) और 388 विमान घंटे (aircraft hours) समर्पित किए । यह लेख आपको सिविल सेवा परीक्षा के संदर्भ में ऑपरेशन ओलिविया के बारे में अधिक जानकारी देगा । हिंदी माध्यम में UPSC से जुड़े मार्गदर्शन के लिए अवश्य देखें हमारा हिंदी पेज  आईएएस हिंदी

नोट : यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू करने से पहले अभ्यर्थियों को सलाह दी जाती है कि वे  UPSC Prelims Syllabus in Hindi का अच्छी तरह से अध्ययन कर लें, और इसके बाद ही  अपनी तैयारी की योजना बनाएं।

ऑपरेशन ओलिविया

जैसा कि उपर वर्णित है, ओलिव रिडले कछुओं को उनके प्रजनन प्रवास के दौरान सुरक्षित रखने और उनके आवासों की सुरक्षा के लिए हर साल ऑपरेशन ओलिविया चलाया जाता है । इसे ओडिशा राज्य के वन विभाग और भारतीय तटरक्षक बल के सहयोग से लॉन्च किया गया था । इस संयुक्त प्रयास के लिए दो तट रक्षक जहाजों और कुछ विमानों को तैनात किया गया है । तट रक्षक पोत यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई भी मछली पकड़ने वाला जहाज देवी, धमार नदी और ऋशिकुल्य समुद्र तट जैसे प्रजनन स्थलों में प्रवेश न करे । इन साइटों के पास मछली पकड़ने पर ओडिशा राज्य सरकार द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया है । यह रोक इन नदियों के 20 कि.मी. के आस -पास के क्षेत्र में लगाई गई है । इन नदियों के पास मछली पकड़ने वाले किसी भी व्यक्ति पर उड़ीसा समुद्री मत्स्य पालन नियमन अधिनियम, 1982 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के उल्लंघन का आरोप लगाया जाता है । इसके अलावा भारतीय तट रक्षक बल ओलिव रिडले कछुओं के संरक्षण में स्थानीय समुदाय को शामिल करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम भी चलाता है । 

उल्लेखनीय है कि ओलिव रिडले (Olive Ridley) कछुए दुनिया के सबसे छोटे समुद्री कछुए हैं । ओलिव रिडले समुद्री कछुए को इसका सामान्य नाम इसके जैतून के रंग के कवच से मिलता है, जो दिल के आकार का और गोल होता है । इन कछुओं की प्रजातियों के बच्चे गहरे भूरे रंग के होते हैं । हैचलिंग के कवच की लंबाई 37 से 50 मि.मी. तक होती है । जबकि व्यस्क होने पर ये 60 से.मी. तक हो सकते हैं । ओलिव रिडले कछुए दुनिया भर में अपेक्षाकृत उथले समुद्री जल में पाए जाते हैं । ये कछुए हर वर्ष नियमित रूप से  उड़ीसा  के समुद्री तट पर अंडे देने आते हैं । केंद्रपाड़ा जिले में स्थित  गहिरमाथा तट  पर ओलिव रिडले का आगमन प्रति वर्ष नवंबर-दिसंबर के बीच होता है तथा अप्रैल-मई तक ये यहाँ प्रजनन करते हैं । गहिरमाथा तट ओलिव रिडले कछुओं के लिए न केवल भारत बल्कि  दुनिया भर में  प्रजनन का  सबसे बड़ा स्थान है । यही कारण है कि इसे  एक समुद्री वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया है । ओलिव रिडले कछुए  IUCN के द्वारा असुरक्षित (‘Vulnerable’) घोषित किये गये हैं । अतः इनका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है ।

ओलिव रिडले समुद्री कछुए की आबादी को बनाए रखने के लिए ऑपरेशन ओलिविया के अलावा भी कई योजनाएं शुरू की गई हैं । इसका एक उदाहरण मेक्सिको में एक कार्यक्रम है जहां तट पर आने वाले कछुओं द्वारा रखे गए अंडों को हैचरी में ले जाया जाता है । यह अंडों को बाहरी खतरों से बचाता है जैसे कि जंगली कुत्ते, कायोटि या अनियमित ज्वार (tides) । हैचिंग के बाद, कछुओं को समुद्र तट पर ले जाया जाता है और छोड़ दिया जाता है । इसी तरह का एक कार्यक्रम चेन्नई में किया गया था, जहां एक वन्यजीव समूह ने लगभग 10,000 अंडे एकत्र किए, जिनमें से 8,834 बच्चों को सफलतापूर्वक समुद्र में छोड़ दिया गया ।

‘ऑपरेशन ओलिविया’ की आवश्यकता

कछुए बहुत लम्बे समय से धरती पर रहते आए हैं । ये लगभग 200 मिलियन वर्ष  पुरानी प्रजाति  है और  चिड़ियों, सांपों और छिपकलियों से भी पहले धरती पर अस्तित्व में आ चुकी थी । पारितंत्र में कछुओं का अस्तित्व इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ये एक स्वस्थ्य पर्यावरण के संकेतक माने जाते हैं । खाद्द्य श्रृंखला में इनका अहम स्थान है और पौधों व मछलियों की कई ऐसी प्रजातियाँ हैं जिनके नियंत्रण के लिए कछुओं का अस्तित्व अत्यंत महत्वपूर्ण है ।

आज विश्व में कछुओं की 300 से भी अधिक प्रजातियाँ हैं जिनमें से लगभग 130 IUCN के द्वारा  संकटापन्न घोषित की गई  हैं । भारत में कछुओं की 29 प्रजातियां पाई जाती हैं  जिनमें 24 प्रजाति  कच्छप अर्थात स्थलीय कछुए (tortoise) के  एवं 5 प्रजाति  कुर्म अर्थात समुद्री कछुओं (turtle) के  हैं ।  इनमें से अधिकांश कछुए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की विभिन्न अनुसूचियों के अन्तर्गत संरक्षित हैं ।

भारत में पाए  जाने वाले समुद्री कछुओं की 5 प्रजातियाँ हैं :- ओलिव रिडले , लेदरबैक, लोगरहेड, हरित कछुए एवं हौक्सबिल । सभी 5 प्रजातियाँ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूचि- 1 के अन्तर्गत संरक्षित हैं । इनमें से प्रथम 3 IUCN के द्वारा असुरक्षित (‘Vulnerable’) घोषित किये गये हैं ।  हरित कछुए को विलुप्तप्राय (‘Endangered’)  जबकि हौक्सबिल को गंभीर रूप से विलुप्तप्राय (‘Critically Endangered’)  की श्रेणी में रखा गया है । ओलिव रिडले कछुए दुनिया में सबसे असाधारण घोंसले बनाने के लिए जाने जाते हैं । ये बड़े पैमाने पर घोंसले बनाते हैं, जिन्हें “अरीबडा” (जिसका अर्थ होता है arrival by the sea) कहा जाता है । 480 कि.मी. लंबे ओडिशा तट में देवी नदी के मुहाने, गहिरमाथा और रुशिकुल्या में ऐसे तीन अरीबडा समुद्र तट हैं, जहाँ सालाना लगभग 1 लाख घोंसले पाए जाते हैं। यदि इनके संरक्षण का प्रयास  नहीं किया गया तो जल्द ही ये प्रजातियाँ विलुप्त हो जाएंगी । भारत में कछुओं  को सबसे बड़ा नुकसान मछली पकड़ने वाली नौकाओं  से होता है। बड़े आकार के कछुए अक्सर मछली के जाल में फंस जाते हैं और घायल होकर दम तोड़ देते हैं । कछुओं को  दूसरा खतरा तस्करी से है । कई बार अंधविश्वास के कारण भी इनका व्यापार अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में किया जाता है क्योंकि लोग कछुओं को घर में रखना शुभ मानते हैं  । तीसरा, प्लास्टिक प्रदूषण ऐसी हालिया समस्या है जो न केवल जलीय जीवों  बल्कि समस्त पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा है । खाद्य श्रृंखला के जरीय प्लास्टिक के सूक्ष्म कण जलीय जीवों के शरीर में पहुँच कर उनके विनाश का कारण बनते हैं । जलीय क्षेत्रों के निरंतर बढ़ते अतिक्रमण और तथाकथित विकास की प्रक्रिया (जैसे बड़े बांधों का निर्माण) ने भी कछुओं के  आवास का विनाश (habitat loss)  किया है । रेत खनन (sand mining) एक अन्य समस्या है जो कछुओं के लिए घातक है । कछुए जलीय क्षेत्रों के किनारे रेत में अपने अंडे देते हैं और रेत खनन के कारण कई बार  इन अण्डों का नाश हो जाता है । यह अभियान इसमें विशेष रूप से कारगर होगा क्योंकि इसके तहत धमार नदी और ऋशिकुल्य समुद्र तट जैसे कछुओं के प्रजनन स्थलों के पास मछली पकड़ने पर ओडिशा राज्य सरकार द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया है । इन सब के अलावा जलवायु परिवर्तन के कारण भी कछुओं की कई प्रजातियाँ अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्षरत हैं ।

ओलिव रिडले कछुओं की अगर बात की जाये तो ओलिव रिडले कछुओं  के बच्चों का शिकार जंगली कुत्ते, सूअर, घोस्ट केकड़ों और उनके मूल आवासों में पाए जाने वाले अन्य परभक्षी प्रजातियों द्वारा किया जाता है । जब वे वयस्कता में बढ़ते हैं, तो इन कछुओं की प्रजातियों के बहुत कम शिकारी होते हैं । शार्क, व्हेल और किलर व्हेल जैसी बड़ी प्रजातियां कभी-कभी कछुओं पर हमला करती हैं । भूमि पर, जगुआर एकमात्र ज्ञात बिल्ली प्रजाति है जो समुद्री कछुओं के कवच को नष्ट करने के लिए पर्याप्त मजबूत है । प्राकृतिक आवास के नुकसान के कारण इस प्रजाति पर जगुआर के हमले बढ़ रहे हैं और कम वैकल्पिक खाद्य स्रोत उपलब्ध हैं । मनुष्यों द्वारा अंडों के लिए अवैध शिकार और कछुए के मांस के लिए उन्हें मारना भी कछुओं की आबादी के लिए खतरा हैं ।

 

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  • IUCN (International Union for Conservation of Nature and Natural Resources) 1948 में स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जो विश्व स्तर पर प्राकृतिक संसाधनों एवं वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में क्रियाशील है । इसका मुख्यालय ग्लैंड,स्विट्ज़रलैंड में है ।

 

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