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राज्य मानवाधिकार आयोग

मानवाधिकार (human rights) क्या हैं? ऐसे अधिकार जो किसी व्यक्ति को केवल इनसान होने के नाते मिलने चाहिए ! इनके लिए किसी और विशेष पात्रता या परिस्थिति की जरूरत न हो । उदाहरण  के लिए, कारागार में बंद किसी कैदी को भी उसके बुनियादी मानव अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता । ऐसे ही अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए भारत में मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत केंद्र के साथ- साथ सभी  राज्यों में भी मानव अधिकार आयोगों (SHRC) की स्थापना की गई है । अब तक भारत के 26 राज्यों ने राज्य मानवाधिकार आयोग गठित किये हैं । राज्य मानव अधिकार आयोग केवल उन्हीं मामलों में मानव अधिकारों के उल्लंघन की जांच कर सकता है, जो संविधान की राज्य सूची  एवं समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं । संघ सूचि में शामिल विषयों से संबंधित अधिकारों के उल्लंघन की जाँच राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) द्वारा की जाती है । लेकिन यहाँ यह उल्लेखनीय है कि यदि इस प्रकार के किसी मामले की जांच पहले से ही राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग या किसी अन्य विधिक निकाय द्वारा की जा रही है तब राज्य मानव अधिकार आयोग ऐसे मामलों की जांच नहीं कर सकता है । इस लेख में हम राज्य मानवाधिकार आयोग की संरचना, उसकी शक्तियों एवं संगठन से जुड़े विभिन्न पहलुओं की चर्चा करेंगे ।

यह लेख आई.ए.एस प्रारंभिक परीक्षा के साथ साथ मुख्य परीक्षा में GS पेपर- 2 की दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है, जिसमें राजनीति विज्ञान (Political Science) से प्रश्न पूछे जाते हैं ।
अंग्रेजी माध्यम में इस विषय पर जानकारी के लिए देखें  State Human Rights Commission

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राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC) की संरचना

राज्य मानवाधिकार आयोग एक 3 सदस्यीय निकाय है, जिसमें एक अध्यक्ष तथा दो अन्य सदस्य होते हैं । एक सदस्य न्यायिक (judicial) तथा दूसरा सदस्य गैर-न्यायिक (non- judicial) होता है । आयोग का अध्यक्ष उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश तथा सदस्य उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त या कार्यरत न्यायाधीश होता है । राज्य के जिला न्यायालय का कोई न्यायाधीश, जिसे कम से कम 7 वर्ष का अनुभव हो, अथवा कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसे मानवाधिकारों के बारे में विशेष अनुभव हो, इस आयोग का सदस्य बन सकता है । इस आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति संबंधित राज्य के राज्यपाल द्वारा एक 6- सदस्यीय समिति की अनुशंसा पर की जाती है । राज्य का मुख्यमंत्री इस समिति का अध्यक्ष होता है । राज्य विधानसभा अध्यक्ष, राज्य का गृहमंत्री तथा राज्य विधानसभा में विपक्ष का नेता इस समिति के अन्य सदस्य होते हैं । ऐसे राज्यों में जहाँ विधानमंडल द्वि- सदनीय होता है, विधान परिषद का अध्यक्ष एवं विधान परिषद में विपक्ष के नेता भी इस समिति के सदस्य होते हैं । 

आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु  (दोनों में से जो भी पहले हो) तक होता है । आयोग से कार्यकाल पूरा होने के बाद अध्यक्ष एवं अन्य सदस्य न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकार के अधीन कोई सरकारी पद ग्रहण कर सकते हैं । उल्लेखनीय है कि मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) प्रस्ताव, 2019 के तहत सेवानिवृत्त होने की समय सीमा (tenure) 5 वर्ष से घटा कर 3 वर्ष कर दी गई है । साथ ही आयोग से कार्यकाल पूरा होने के बाद अध्यक्ष एवं अन्य सदस्य पुनर्नियुक्ति के भी पात्र होंगे ।

राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं, लेकिन उन्हें उनके पद से केवल राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है । राष्ट्रपति इन्हें उसी आधार एवं उसी तरह पद से हटा सकते हैं, जिस प्रकार वे राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को हटाते हैं । वे अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को निम्न परिस्थितियों में पद से हटा सकते हैं :

  1. यदि वह दिवालिया हो गया हो;
  2. यदि आयोग में अपने कार्यकाल के दौरान उसने कोई लाभ का सरकारी पद धारण कर लिया हो;
  3. यदि वह दिमागी या शारीरिक तौर पर अपने दायित्वों के निवर्हन के अयोग्य हो गया हो;
  4. यदि वह मानसिक रूप अस्वस्थ हो तथा सक्षम न्यायालय द्वारा उसे अक्षम घोषित कर दिया गया हो; तथा
  5. यदि किसी अपराध के संबंध में उसे दोषी सिद्ध किया गया हो तथा उसे कारावास की सजा दी गयी हो;
  6. इसके अलावा, राष्ट्रपति आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर भी पद से हटा सकते हैं । ऐसे मामलों को जांच के लिये उच्चतम न्यायालय के पास भेजा जाता है और यदि उच्चतम न्यायालय जांच के उपरांत मामले को सही पाता है तो वह राष्ट्रपति को इस बारे में सलाह देता है, जिसके उपरांत राष्ट्रपति अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को पद से हटा देते हैं ।

राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों के वेतन एवं भत्तों का निर्धारण : राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों के वेतन एवं भत्तों एवं अन्य सेवा शर्तों का निर्धारण राज्य सरकार ही करती है । लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान इसमें किसी प्रकार का अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता – जैसे वेतन या सुविधा में कमी अथवा कार्यकाल की सीमा में कमी इत्यादि ।

राज्य मानवाधिकार आयोग के कार्य

राज्य मानवाधिकार आयोग के कार्य निम्नलिखित हैं :

  1. संविधान की राज्य सूची  एवं समवर्ती सूची के अंतर्गत आने वाले विषयों से संबंधित मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करना अथवा किसी लोक सेवक के समक्ष प्रस्तुत मानवाधिकार उल्लंघन की प्रार्थना, जिसकी कि वह अवहेलना करता हो, की जांच स्व-प्ररेणा या न्यायालय के आदेश से करना ।
  2. न्यायालय में लंबित किसी मानवाधिकार से संबंधित कार्यवाही में हस्तक्षेप करना ।
  3. विभिन्न कारावासों की स्थिति का आकलन करना व इस बारे में सिफारिशें करना ।
  4. मानवाधिकार की रक्षा हेतु बनाए गए संवैधानिक व विधिक उपबंधों की समीक्षा करना तथा इनके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु उपायों की सिफारिशें करना ।
  5. आतंकवाद सहित उन सभी कारणों की समीक्षा करना, जिनसे मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है तथा इनसे बचाव के उपायों की सिफारिश करना ।
  6. मानवाधिकारों के क्षेत्र में शोध कार्य करना एवं इसे प्रोत्साहित करना ।
  7. मानवाधिकारों के प्रति लोगों की चेतना को जागृत करना तथा लोगों को इन अधिकारों के संरक्षण हेतु प्रोत्साहित करना ।
  8. मानवाधिकारों के क्षेत्र में कार्य करने वाले गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को सहयोग एवं प्रोत्साहन देना ।
  9. मानवाधिकारों को प्रोत्साहित करने के लिये यदि कोई अन्य कार्य आवश्यक हो, तो उसे संपन्न करना ।

अपने उपरोक्त कर्तव्यों के वहन को सुनिश्चित करने के लिए राज्य मानवाधिकार आयोग निम्नलिखित कदम उठा सकता है : 

राज्य मानव अधिकार आयोग एक वर्ष की अवधि के भीतर के ऐसे मामलों की सुनवाई कर सकता है जिनमे मानवाधिकार का उल्लंघन हुआ हो । दूसरे शब्दों में, आयोग किसी ऐसे मामले की सुनवाई नहीं कर सकता है, जो मानव अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित हो तथा जिस मामले को एक वर्ष से अधिक का समय हो गया हो । आयोग अपनी वार्षिक या विशेष रिपोर्ट राज्य सरकार को प्रस्तुत करता है । इन रिपोर्टों को आयोग की सिफारिशों पर की गई कार्रवाई के ज्ञापन और ऐसी किसी भी सिफारिश को अस्वीकार करने के कारणों के साथ राज्य विधान मंडल के समक्ष रखा जाता है । मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (1993), मानवाधिकारों के उल्लंघन के त्वरित परीक्षण के लिए हर जिले में एक मानवाधिकार न्यायालय की स्थापना भी प्रदान करता है । ये अदालतें राज्य सरकार द्वारा उस राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की उपस्थिति के साथ ही स्थापित की जा सकती हैं । प्रत्येक मानवाधिकार न्यायालय के लिए , राज्य सरकार एक सरकारी वकील निर्दिष्ट करती है या एक वकील नियुक्त करती है (जिसने एक विशेष अभियोजक के रूप में वकालत किया है) । 

आयोग किसी मामले की जांच के दौरान उपरांत निम्न कदम उठा सकता है :

  1. यह पीड़ित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति या नुकसान के भुगतान के लिए संबंधित सरकार या प्राधिकरण से सिफारिश कर सकता है या दोषी लोक सेवक के विरुद्ध बंदीकरण हेतु कार्यवाही प्रारंभ करने के लिए संबंधित सरकार या प्राधिकरण से सिफारिश कर सकता है । किंतु यह उल्लेखनीय है कि आयोग का कार्य विशुद्ध रूप से सलाहकारी प्रकृति का है । इसे मानव अधिकारों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को सजा देने का कोई अधिकार नहीं है तथा यह पीड़ित व्यक्ति को अपनी ओर से कोई सहायता या मुआवजा भी नहीं दे सकता है । यह भी ध्यातव्य है कि आयोग की सलाह को मानने के लिये राज्य सरकार या कोई अन्य प्राधिकारी बाध्य नही हैं । लेकिन आयोग द्वारा दी गयी किसी सलाह के बारे में क्या कदम उठाया गया है, इस बारे में आयोग को एक माह के भीतर सूचना देना अनिवार्य है ।
  2. यह संबंधित सरकार या प्राधिकरण को पीड़ित को तत्काल अंतरिम सहायता प्रदान करने की सिफारिश कर सकता है और इस संबंध में आवश्यक निर्देश, आदेश अथवा रिट के लिए उच्चतम अथवा उच्च न्यायालय में जा सकता है ।
अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग 

पिछले कुछ दशकों में मानवाधिकार की अवधारणा विश्व में केन्द्रीय भूमिका अदा करने लगी है । अंतर्राष्ट्रीय और देश स्तर पर इसे सुनिश्चित करने वाली संस्थाओं का भी मुखर होना स्वाभाविक है । अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसी मकसद से संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् (United Nations Human Rights Council) का गठन वर्ष 2006 में किया गया । इसने पूर्ववर्ती संस्था  संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (United Nations Human Rights Commission) का स्थान लिया । इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है । इसी प्रकार भारत में  राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) एक केन्द्रीय मानवाधिकार संस्था है । इसमें एक अध्यक्ष व चार सदस्य होते हैं । आयोग का अध्यक्ष भारत का कोई सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए । एक सदस्य उच्चतम न्यायालय में कार्यरत अथवा सेवानिवृत्त न्यायाधीश एक, उच्च न्यायालय का कार्यरत या सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए । दो अन्य व्यक्तियों को मानवाधिकार से संबंधित जानकारी अथवा कार्यानुभव होना चाहिए । आयोग में एक महिला सदस्य भी होनी चाहिए । इन सदस्यों के अतिरिक्त आयोग में चार अन्य पदेन सदस्य होते हैं । ये हैं – राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति व राष्ट्रीय अनुसूचित जन- जाति आयोग व राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष । आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री के नेतृत्व में गठित छह सदस्यीय समिति की सिफारिश पर की जाती है । समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के उप-सभापति, संसद के दोनों सदनों के मुख्य विपक्षी दल के नेता व केंद्रीय गृहमंत्री होते हैं । आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल पांच वर्ष अथवा 70 वर्ष की उम्र (जो भी पहले हो), का होता है ।

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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अब तक के अध्यक्षों/सदस्यों की सूचि
क्र.सं. नाम पद कार्यकाल पृष्ठभूमि
1 न्याय मूर्ति श्री रंगनाथ मिश्रा अध्यक्ष 12.10.1993 से 24.11.1996 तक  भारत के मुख्य न्यायाधीश
2 न्याय मूर्ति श्री एम एन वेंकटचलैया अध्यक्ष 26.11.1996 से 24.10.1999 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश
3 न्याय मूर्ति श्री जे एस वर्मा अध्यक्ष 04.11.1999 से 17.1.2003 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश
4 डॉ न्याय मूर्ति ए एस आनंद अध्यक्ष 17.2.2003 से 31.10.2006 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश
5 न्याय मूर्ति डॉ शिव राज वी. पाटिल कार्यवाहक अध्यक्ष 01.11.2006 से 01.04.2007 तक न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय
6 श्री न्याय मूर्ति एस राजेन्द्र बाबू अध्यक्ष 02.04.2007 से 31.05.2009 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश
7 श्री न्याय मूर्ति गोविन्द प्रसाद माथुर कार्यवाहक अध्यक्ष 01.06.2009 से 06.06.2010 तक न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय
8 न्याय मूर्ति श्री के जी बालाकृष्णन अध्यक्ष 07.06.2010  से 11/05/2015 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश
9 न्याय मूर्ति एम फातिमा बीवी सदस्य 03.11.1993 से 24.01.1997 तक न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय
10 न्याय मूर्ति श्री एस एस कंग सदस्य 12.10.1993 से 24.01.1997 तक जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
11 न्याय मूर्ति श्री वीरेंद्र दयाल सदस्य 16.11.98  से 11.10.1998  तक अवर सचिव संयुक्त राष्ट्र और शेफ डी कैबिनेट
12 न्याय मूर्ति श्री वी एस मालिमत सदस्य 14.09.1994 से 11.06.1999 तक केरल और कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
13 न्याय मूर्ति डॉ के रामास्वामी सदस्य 16.11.1998 से 12.07.2002 तक न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय
14 न्याय मूर्ति श्री सुदर्शन अग्रवाल सदस्य 30.10.1998 से 18.06.2001 तक महासचिव, राज्य सभा
15 न्याय मूर्ति श्रीमती सुजाता वी मनोहर सदस्य 21 .02.2000 से 27.08.2004 तक न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय और केरल उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश
16 न्याय मूर्ति डॉ शिवराज वी. पाटिल सदस्य 02.04.2007 से 04.02.2008 तक न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय
17 न्याय मूर्ति याराबती भास्कर राव सदस्य 10.10.2003 से 25.06.2008 तक अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश राज्य मानव अधिकार आयोग
18 श्री आर एस कलहा सदस्य 12.9.2003 से 11.9.2008 तक सचिव (पश्चिम), विदेश मंत्रालय
19 श्री पी सी शर्मा सदस्य 25.03.2009 से 27.06.2012 तक निदेशक, सीबीआई
20 श्री न्याय मूर्ति गोविन्द प्रसाद माथुर सदस्य 15.04.2008  से 18.01.2013 तक न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय
21 श्री न्याय मूर्ति बाबू लाल चंदूलाल पटेल सदस्य 23.07.2008  से 22.07.2013 तक दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
22 न्याय मूर्ति श्री सत्यब्रत पाल सदस्य 02.03.2009  से 01 .03.2014 तक पाकिस्तान में भारत के उच्च आयुक्त
23 श्री न्याय मूर्ति सीरिअस जोसफ सदस्य 27.05.2013 से 27.01.2017 तक न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय
24 न्याय मूर्ति श्री शरद चंद्र सिन्हा सदस्य 08.04.2013 से 07.04.2018 तक महानिदेशक, राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण
25 श्री न्याय मूर्ति ध. मुरुगेसन सदस्य 21.09.2013 से 20.09.2018 तक दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
26 श्री न्याय मूर्ति एच एल दत्तू अध्यक्ष 29.02.2016 से 02.12.2020 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश
27 श्री न्याय मूर्ति पिनाकी चन्द्र घोष सदस्य 29.06.2017 से 22.03.2019 तक न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय
28 श्री न्याय मूर्ति प्रफुल्ल चंद्र पंत सदस्य 22.04.2019 से 11.09.2021 तक न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय
29 न्याय मूर्ति श्रीमती ज्योतिका कालरा सदस्य 05.04.2017 से 04.04.2022 तक एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड, उच्चतम न्यायालय
30 न्याय मूर्ति महेश मित्तल कुमार सदस्य 02/06/2021 से 04.01.2023 तक मुख्य न्यायाधीश, जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय

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