04 जनवरी 2023 : समाचार विश्लेषण
A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध:
शासन:
C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E. संपादकीय: पर्यावरण:
राजव्यवस्था एवं शासन:
F. प्रीलिम्स तथ्य: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। G. महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: |
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इजरायल के कब्जे की वैधता के सम्बन्ध में:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
अंतर्राष्ट्रीय संबंध:
विषय: विकसित और विकासशील देशों की नीतियां एवं राजनीति का प्रभाव।
मुख्य परीक्षा: इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष।
संदर्भ:
- संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly (UNGA) ) ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) से फिलिस्तीनी भूमि पर इजरायल के विस्तारित कब्जे के कानूनी परिणामों पर अपनी राय देने की मांग की गई है।
विवरण:
- यह प्रस्ताव इसलिए पारित किया गया क्योंकि 87 सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि 26 सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया।
- संकल्प के खिलाफ मतदान करने वाले देशों में यू.एस. और इज़राइल शामिल हैं।
- हालाँकि, भारत उन 53 अन्य देशों में से एक था, जो इस मतदान से दूर रहे।
“इज़राइल फ़िलिस्तीन संघर्ष” के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Israel Palestine Conflict
UNGA संकल्प:
- UNGA द्वारा 30 दिसंबर 2022 को एक प्रस्ताव पारित किया गया था, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice (ICJ) ) से इज़रायल द्वारा फिलिस्तीनी भूमि पर “कब्जे, निपटान और राज्य हरण के कानूनी परिणामों पर अपनी सलाहकार राय देने का आग्रह किया था, जिसमें पवित्र शहर यरूशलेम की स्थिति, जनसांख्यिकीय संरचना, चरित्र को बदलने और संबंधित भेदभावपूर्ण कानून और उपायों को अपनाने के उद्देश्य से किये जाने वाले उपाय शामिल हैं।
- अमेरिका ने इस संकल्प के खिलाफ मतदान किया लेकिन प्रमुख यूरोपीय देशों ने इसमें भाग नहीं लिया, लेकिन संबंधित प्रस्ताव को अरब देशों का एकमत समर्थन मिला।
- जब भी ICJ, जो संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च अदालत है, को कोई मामला रेफर (भेजा जाता) किया जाता है:
- इसका परिणाम यह हो सकता है कि किसी पक्ष द्वारा अपना मामला वापस लेने के साथ समझौता किया जा सकता है। या,
- मुकदमे के बाद इसका फैसला हो सकता है।
- हालाँकि यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि ICJ के फैसले बाध्यकारी हैं, लेकिन ICJ के पास उन्हें लागू करने की शक्तियाँ नहीं हैं।
- UNGA का यह नवीनतम प्रस्ताव इज़रायल के प्रधान मंत्री के रूप में बेंजामिन नेतन्याहू की सत्ता में वापसी के साथ संरेखित होता है, और इस समय इज़राइल के इतिहास का सर्वाधिक दक्षिणपंथी गठबंधन इज़राइल में प्रशासन की कमान संभाल रहा है।
भावी कदम:
- वर्तमान में इज़राइल के छः-दलीय दक्षिणपंथी गठबंधन में पाँच अति-रूढ़िवादी और अति दक्षिणपंथी यहूदी राष्ट्रवादी दल शामिल हैं।
- फ़िलिस्तीनियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाले नए कठोर शासन के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं क्योंकि कई सहयोगी अतिराष्ट्रवादी वेस्ट बैंक उपनिवेशक हैं।
- एक नीति दस्तावेज जिसमें नई सरकार के गठबंधन के एजेंडे का उल्लेख है, कहता है कि सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता वेस्ट बैंक में इजरायली बस्तियों का विस्तार करना और अवैध रूप से निर्मित चौकियों का वैधीकरण करना होगा।
- नई सरकार के गठबंधन समझौते का उद्देश्य इज़राइल के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए उचित समय पर वेस्ट बैंक को जोड़ना है।
सारांश:
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ऑनलाइन गेमिंग को विनियमित करने के लिए भारत किस राह पर है?
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
शासन:
विषय: सरकार की नीतियां और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप एवं उनके डिजाइन तथा इनके अभिकल्पन से उत्पन्न होने वाले विषय।
मुख्य परीक्षा: भारत में ऑनलाइन गेमिंग का विनियमन।
संदर्भ:
- इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ऑनलाइन गेमिंग को विनियमित करने के लिए एक मसौदा संशोधन लेकर आया है।
विवरण:
- हाल ही में MeitY ने सार्वजनिक परामर्श के लिए ऑनलाइन गेमिंग से संबंधित IT (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 में मसौदा संशोधन जारी किया है।
- इन संशोधनों का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऑनलाइन गेम भारतीय कानून के अनुरूप हों और उपयोगकर्ताओं को इसके संभावित नुकसान से बचाया जा सके।
“भारत में ऑनलाइन गेमिंग पर” विस्तृत पृष्ठभूमि जानकारी के लिए निम्नलिखित लिंक पर क्लिक कीजिए: Sansad TV Perspective: Regulating Online Gaming Industry
प्रस्तावित संशोधन:
- इन प्रस्तावों में सत्यापन और उपयोगकर्ता से जुड़ाव के लिए निर्धारित प्रक्रियाओं और मानदंडों को स्थापित करके उपयोगकर्ताओं के हितों की रक्षा के प्रावधान शामिल हैं।
- यह मसौदा प्रस्ताव आगे परिभाषित करता है कि “ऑनलाइन गेम” क्या है।
- जिसके अनुसार एक ऑनलाइन गेम “एक ऐसा गेम है जो इंटरनेट पर प्रस्तुत किया जाता है और एक उपयोगकर्ता द्वारा उस तक कंप्यूटर संसाधन के माध्यम से पहुँचा जा सकता है, उपयोगकर्ता इसमें जीत हासिल करने की उम्मीद के साथ डिपॉजिट करता है”।
- यहां “जीतना” का अर्थ किसी भी पुरस्कार से है जो नकद या वस्तु के रूप में होता है, जो इस तरह के ऑनलाइन गेम के नियमों के अनुसार एक प्रतिभागी को उसके प्रदर्शन के आधार पर दिया जाता है।
- इन मसौदा प्रस्तावों का उद्देश्य “गेम ऑफ़ स्किल” और “गेम ऑफ़ चांस” की परिभाषाओं के क्षेत्र के बारे में बहस का समाधान करना है।
- मसौदा संशोधन भी अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं।
- इन प्रस्तावों के अनुसार गेम ऑपरेटरों को इस प्लेटफॉर्म पर उपयोगकर्ताओं को सत्यापित करने के लिए अनिवार्य/बाध्य किया जाएगा और उपयोगकर्ताओं को सेवाओं की शर्तों, निकासी या उनकी वित्तीय जमा की वापसी और लत से संबंधित नीतियों, सुरक्षा के लिए किए गए उपायों और वित्तीय नुकसान के संभावित जोखिम के बारे में भी सूचित किया जाएगा।
- इसके अलावा यदि कोई उपयोगकर्ता ऑनलाइन गेम खेलने के लिए निर्धारित समय से अधिक समय लेता है तो लत के मुद्दे को बार-बार चेतावनी संदेशों का उपयोग करके संबोधित किया जाना चाहिए ।
- इसके अतिरिक्त, ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म के लिए निम्न बातों का अनुसरण करना आवश्यक होगा:
- एक स्व-नियामक निकाय स्थापित करना जो गेम को होस्ट करने से पहले सत्यापित करें।
- इसके सभी मान्यता प्राप्त ऑनलाइन खेलों का एक पंजीकरण चिह्न हो।
- एक मुख्य अनुपालन अधिकारी की नियुक्ति, जो देश की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ समन्वय करेगा और अनुपालन सुनिश्चित करेगा।
- एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना।
उद्योग की प्रतिक्रिया:
- उद्योग के विशेषज्ञों ने ऑनलाइन गेमिंग को विनियमित करने के सरकार के कदम की सराहना की है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से देश-विरोधी और अवैध ऑफशोर गैंबलिंग (जुआ) प्लेटफार्मों के मुद्दों से निपटने में मदद मिलेगी।
- इसके अलावा, सरकार द्वारा स्थापित एक समान रूपरेखा से निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा और इस क्षेत्र में निवेश आकर्षित होगा।
प्रस्तावों से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ:
- कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि संशोधित नियम अभी भी सभी गेमिंग मध्यस्थों को उनके आकार या जोखिम को पहचाने बिना एक व्यापक श्रेणी के अंतर्गत मानते हैं।
- सभी गेमिंग बिचौलियों के लिए समान अनुपालन अनिवार्य है जैसे कि उनके लिए भारतीय अधिकारी रखना अनिवार्य किया गया है।
- यह शीर्ष वैश्विक कंपनियों को देश में अपनी सेवाएं शुरू करने के लिए हतोत्साहित कर सकता है।
सारांश:
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संपादकीय-द हिन्दू
संपादकीय:
पशु क्रूरता को रोकना राज्य का कर्तव्य है:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
पर्यावरण:
विषय: पर्यावरण और जैव विविधता संरक्षण।
प्रारंभिक परीक्षा: पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम अधिनियम, 1960।
मुख्य परीक्षा: जल्लीकट्टू और संबंधित चिंताएं।
संदर्भ:
- सर्वोच्च न्यायालय की एक संवैधानिक पीठ तमिलनाडु में जल्लीकट्टू की प्रथा को अनुमति देने वाले तमिलनाडु के कानून की वैधता पर अपना निर्णय सुनाने वाली है।
पृष्ठभूमि विवरण:
- जल्लीकट्टू तमिलनाडु में एक खेल है जहां खुले मैदान में छोड़े गए उत्तेजित सांडों के कूबड़ को पकड़ने के लिए पुरुष एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं। इसका आयोजन आमतौर पर पोंगल के मौसम में किया जाता है।
- एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया बनाम ए. नागराजा (2014) में, सर्वोच्च न्यायालय की दो-न्यायाधीश की पीठ ने कहा था कि जल्लीकट्टू अवैध है। न्यायालय ने कहा कि यह एक क्रूर प्रथा है जिसमें जानवर को अनावश्यक दर्द और पीड़ा होती है।
- हालाँकि, तमिलनाडु सरकार ने इस खेल की वैधता प्रदान करने का प्रयास किया और एक कानून पारित किया।
- सर्वोच्च न्यायालय इस कानून की वैधता की समीक्षा करेगा। जिस तरह से न्यायालय इस मुद्दे को सुलझाएगी उसका भारत में पशु अधिकारों और सुरक्षा के भविष्य पर असर पड़ेगा।
जल्लीकट्टू के बारे में अधिक जानकारी के लिए, यहां पढ़ें: Jallikattu – Meaning & Important Facts for UPSC
पशु अधिकार और सुरक्षा:
- यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि संविधान के भाग III में वर्णित अधिकारों में से कोई भी अधिकार जानवरों के लिए स्पष्ट रूप से गारंटी प्रदान नहीं करता। उदाहरण के लिए, समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14) और जीवन का अधिकार (अनुच्छेद 21) ‘व्यक्ति’ को प्रदान किया जाता है।
- राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (DPSP) और मौलिक कर्तव्यों में कुछ प्रावधान हैं जो प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार के लिए राज्य और मनुष्यों की जिम्मेदारी को उजागर करते हैं। लेकिन ये प्रवर्तनीय नहीं हैं।
- पशु कल्याण पर कानून बनाने का प्रारंभिक प्रयास पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (PCA अधिनियम), 1960 है, जो कि इस सामूहिक विचार पर आधारित था कि जानवरों को अनावश्यक दर्द और पीड़ा देना नैतिक रूप से गलत है।
- हालांकि PCA जानवरों के प्रति क्रूरता करने वाली कुछ कार्रवाइयों को आपराधिक घोषित करता है, लेकिन इसमें कुछ कमियां भी हैं। उदाहरण के लिए, चिकित्सा प्रयोगों के लिए पशुओं के उपयोग को इस अधिनियम से छूट दी गई है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने PCA अधिनियम का उपयोग किया और पुष्टि की कि जल्लीकट्टू निषिद्ध कार्यों की सीमाओं के भीतर आता है। इसने घोषणा की कि जल्लीकट्टू, अपने आप में, PCA अधिनियम के मौजूदा प्रावधानों और अनुच्छेद 51A(g) में निहित मौलिक कर्तव्य (fundamental duty) का उल्लंघन है।
- अनुच्छेद 51A(g) नागरिकों द्वारा “वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने व जीवित प्राणियों के प्रति दया रखने” को अनिवार्य करता है।
- हालांकि, तमिलनाडु ने 2017 में PCA अधिनियम में संशोधन करते हुए कहा कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों के पास जानवरों के प्रति क्रूरता से संबंधित मुद्दों पर कानून बनाने की शक्ति है। राज्य सरकार ने कानून के लिए राष्ट्रपति की अनुमति भी प्राप्त कर ली।
याचिकाकर्ता के तर्क:
- यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कानून की न्यायिक समीक्षा दो आधारों पर की जा सकती है:
- क्या विधायिका कानून बनाने के लिए सक्षम है।
- क्या कानून संविधान के भाग III में वर्णित किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
- याचिकाकर्ताओं द्वारा यह दावा किया गया है कि तमिलनाडु के संशोधन दोनों आधारों पर विफल रहे।
- याचिकाकर्ताओं ने कानून बनाने के लिए राज्य विधानमंडल की शक्ति को मान्यता दी, क्योंकि संविधान की अनुसूची VII की समवर्ती सूची की प्रविष्टि 17 में ‘पशु क्रूरता की रोकथाम’ का उल्लेख किया गया है। लेकिन PCA अधिनियम से जल्लीकट्टू को बाहर करने से पशुओं के प्रति क्रूरता को माफ कर दिया जाएगा। इस प्रकार, इसे एक संभाव्य कार्रवाई के रूप में देखा जाना चाहिए जिसका प्रविष्टि 17 से कोई संबंध नहीं है।
- यह भी तर्क दिया जाता है कि वर्षों में “जीवन” (अनुच्छेद 21 में) शब्द के विस्तारित अर्थ में बुनियादी पर्यावरण में विक्षोभ के खिलाफ अधिकार शामिल है। इसका तात्पर्य यह है कि एक जानवर के साथ भी “आंतरिक मूल्य, सम्मान और गरिमा” के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए।
संबद्ध चिंताएं:
- मौलिक अधिकारों से संबंधित तर्क से कई प्रश्न उत्पन्न होंगे जैसे:
- क्या जानवरों में व्यक्तित्व होता है?
- क्या न्याय के विचार में पशु अधिकारों की गारंटी शामिल है?
- जानवरों के प्रति देखभाल का वह कर्तव्य क्या है?
- जानवरों की देखभाल और व्यक्तियों को गारंटीकृत अन्य अधिकारों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए?
- जीवन के अधिकार और समानता के अधिकार को सुनिश्चित करने के कई विचित्र परिणाम होंगे।
भावी कदम:
- दार्शनिक मार्था नुसबौम के अनुसार जानवरों के प्रति देखभाल का हमारा कर्तव्य उनके साथ हमारी समानता के कारण उत्पन्न नहीं होना चाहिए, बल्कि हमें ” जीवन के प्रत्येक रूप को उसकी सुंदरता और विलक्षणता में देखना चाहिए।”
- इसके अलावा, व्यक्तित्व पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, एक बेहतर तरीका यह होगा कि इसे दुनिया में रहने के हमारे अपने अधिकार के संदर्भ में देखा जाए जिसमें जानवरों के साथ समान व्यवहार किया जाता है।
- यह तर्क देना संभव है कि स्वस्थ पर्यावरण के मानव अधिकार में पशु कल्याण का मानव अधिकार शामिल होगा। इस संदर्भ में पशु क्रूरता को रोकने के लिए कानून बनाना राज्य पर बाध्यकारी कर्तव्य में बदल जाएगा।
संबंधित लिंक:
UPSC 2017: Comprehensive News Analysis – July 07 | BYJU’S
सारांश:
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केरल के राज्यपाल द्वारा विलंबित लेकिन सही निर्णय:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
राजव्यवस्था एवं शासन:
विषय: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्तियां।
प्रारंभिक परीक्षा: शपथ, राज्यपाल।
मुख्य परीक्षा: राज्यपाल की शपथ दिलाने की शक्ति।
प्रसंग:
- राज्यपाल द्वारा केरल के पूर्व मंत्री को बहाल करने का मुद्दा।
पृष्ठभूमि विवरण:
- संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार, राज्यपाल को अपने कार्यों के निष्पादन में सहायता और सलाह देने के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद होगी। इसके अलावा, मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी, जो मुख्यमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की भी नियुक्ति करेगा।
- अनुच्छेद 164 के अनुसार, सभी मंत्री राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करेंगे।
- अनुच्छेद 163 और 164 का उपयोग करते हुए, केरल के राज्यपाल, श्री खान ने पहले कुछ मंत्रियों को हटाने का प्रयास किया था, जिन्होंने कथित तौर पर सार्वजनिक रूप से उनका अपमान किया था। हालाँकि, यह स्पष्ट किया गया था कि ऐसा कोई उपाय नहीं किया जा सकता है, और इसके लिए “प्रसादपर्यंतता के सिद्धांत” का विस्तार नहीं किया जा सकता है।
यह भी पढ़ें: Chief Minister & Council of Ministers – Relation, Appointment, Powers – Indian Polity
मामले के बारे में विवरण:
- भारतीय संविधान की आलोचना करने वाले भाषण (पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए) के कारण केरल में एक मंत्री को मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा।
- हालांकि, पार्टी में आंतरिक आलोचना के कारण, पार्टी ने मंत्री को बहाल करने का फैसला किया और शपथ ग्रहण समारोह के लिए राज्यपाल से समय मांगा। राज्य के राज्यपाल तारीख देने के लिए काफी अनिच्छुक थे और इस मुद्दे पर राज्यपाल द्वारा अपने वकीलों से परामर्श करने की सूचना मिली थी।
- शपथ दिलाने की राज्यपाल की शक्ति:
- अनुच्छेद 164 (3) में कहा गया है कि राज्यपाल पद ग्रहण करने से पहले मंत्री को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएगा।
- इसके अलावा, किसी व्यक्ति को मंत्री बनने के लिए या तो राज्य विधान सभा या विधान परिषद (यदि मौजूद है) का सदस्य होना चाहिए और संविधान के तहत प्रदान की गई किसी भी निर्योग्यता से ग्रस्त नहीं होना चाहिए।
- इस मामले में संबंधित मंत्री को एक विधायक के रूप में चुना गया था और वह अपने तथाकथित संविधान विरोधी भाषण के लिए किसी भी तरह निर्हर नहीं था।
- विभिन्न संवैधानिक पदों के लिए शपथ संविधान की अनुसूची III के तहत निर्धारित होता है, और इसके बिना कोई व्यक्ति पद ग्रहण नहीं कर सकता है।
- यदि शपथ दिलाने के लिए अधिकृत प्राधिकारी ऐसा करने से इनकार करता है, तो बाद में क्या होना चाहिए यह एक ऐसा प्रश्न है जिसे न्यायालयों के समक्ष कई बार उठाया गया है।
इसी तरह का मामला:
- अप्रैल 1978 में, एक वरिष्ठ अधिवक्ता वसंत पई को तमिलनाडु विधान परिषद के सदस्य के रूप में निर्वाचित किया गया। अनुच्छेद 188 के अनुसार, अनुसूची III के तहत उन्हें राज्यपाल या उनकी ओर से नियुक्त व्यक्ति द्वारा शपथ दिलाई जानी चाहिए थी।
- उन्होंने प्रोटेम चेयरमैन (राज्यपाल द्वारा मनोनीत) के सामने शपथ लेने से इनकार कर दिया और इसके बजाय राज्यपाल से उन्हें शपथ दिलाने की इच्छा व्यक्त की।
- जैसा कि उन्हें तत्कालीन राज्यपाल से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, उन्होंने राज्यपाल को विधिवत हस्ताक्षरित एक पत्र के रूप में अपनी शपथ भेजी।
- अनुच्छेद 188 का उल्लेख करते हुए, उन्होंने आगे कहा कि शपथ दिलाना राज्यपाल का पवित्र संवैधानिक कर्तव्य था और किसी भी लालफीताशाही या नौकरशाही को इसमें बाधा डालने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
- इसके बाद, मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका भी दायर की गई थी जिसमें यह घोषणा करने की मांग की गई थी कि उन्होंने पद ग्रहण करने से पहले शपथ लेने की संवैधानिक आवश्यकता का अनुपालन किया है।
- न्यायालय ने विधान परिषद में उनके प्रवेश की अनुमति दी (वसंत पई, जुलाई 1978)।
निष्कर्ष
- इस प्रकार, उपरोक्त मामला उजागर करता है कि वर्तमान परिदृश्य में भी, संबंधित मंत्री के पास राज्यपाल को पद और गोपनीयता की शपथ पर हस्ताक्षर करने के लिए एक पंजीकृत पत्र लिखने और बाद में उचित घोषणात्मक राहत के लिए केरल के उच्च न्यायालय में जाने का विकल्प है।
संबंधित लिंक:
Anti Defection Law, Provisions under Tenth Schedule [UPSC Indian Polity]
सारांश:
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प्रीलिम्स तथ्य:
आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- मंत्रियों की अभिव्यक्ति की आजादी पर अतिरिक्त रोक लगाने की जरूरत नहीं: सर्वोच्च न्यायालय
चित्र स्रोत: The Hindu
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि मंत्रियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार (right to free speech) पर “अतिरिक्त प्रतिबंध” लगाने का कोई कारण नजर नहीं आता है।
- अदालत ने आगे कहा कि सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करके मंत्रियों द्वारा की गई टिप्पणियों के लिए सरकार अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी नहीं होगी, भले ही टिप्पणियां राज्य के मामलों से जुड़ी हों या सरकार का बचाव करने के लिए की गई हों।
- अदालत ने यह भी कहा कि सामूहिक जिम्मेदारी की अवधारणा को सदन के बाहर मंत्रियों द्वारा मौखिक रूप से दिए गए बयानों तक विस्तारित करना संभव नहीं है क्योंकि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का सदस्यों पर अनुशासनात्मक नियंत्रण नहीं होता है।
- हालांकि न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने बहुमत के विचार से असहमति जताई और कहा कि यदि मंत्रियों द्वारा की गई कोई टिप्पणी राज्य के किसी भी मामले या सरकार के बचाव के लिए की जा सकती है, तो उन्हें सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करके सरकार के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जब तक कि ऐसे बयान/टिप्पणियां सरकार के दृष्टिकोण का भी प्रतिनिधित्व करती हो।
- सभी धर्मांतरण अवैध नहीं: सर्वोच्च न्यायालय
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि सभी धार्मिक रूपांतरणों को अवैध नहीं माना जा सकता है।
- प्रश्न मध्य प्रदेश (धर्म की स्वतंत्रता) अधिनियम, 2021 की धारा 10 के तहत के प्रावधान के संदर्भ में था।
- इस अधिनियम की धारा 10(1) और (2) के प्रावधानों के अनुसार वह व्यक्ति जो धर्मांतरण करना चाहता है और एक पुजारी/व्यक्ति जो धर्मांतरण करवाता है, को जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष दो महीने पूर्व घोषणा करना (लिखित) अनिवार्य है कि प्रस्तावित धर्मांतरण बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती या प्रलोभन से प्रेरित नहीं है।
- देश के एक उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले ने इस अनिवार्य प्रावधान पर रोक लगा दी थी।
- मध्य प्रदेश की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अधिनियम 2021 की धारा 10 उसी विषय पर आधारित थी जिस पर मध्यप्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम 1968 की धारा 5 आधारित थी, जिसे 1977 में रेव स्टेनिस्लॉस वी / एस (बनाम) मध्य प्रदेश राज्य के एक फैसले में एक संविधान पीठ द्वारा बरकरार रखा गया था।
- 1977 के फैसले में न्यायालय ने माना था कि संविधान के अनुच्छेद 25 में “प्रचार” शब्द किसी अन्य व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित कराने का अधिकार प्रदान नहीं करता है, बल्कि अपने धर्म को उसके सिद्धांतों की व्याख्या द्वारा फैलाने का अधिकार प्रदान करता है।
- संविधान पीठ ने यह भी कहा था कि धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार ( right to freedom of religion) केवल एक धर्म के संबंध में गारंटी नहीं है, बल्कि सभी धर्मों को समान रूप से कवर करता है।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. परिसीमन आयोग के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- यह एक वैधानिक निकाय है।
- केंद्र और राज्य इसे क्रमशः राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर निर्वाचन क्षेत्रों के विभाजन के लिए स्थापित कर सकते हैं।
- यह चुनाव आयोग के प्रशासनिक नियंत्रण में काम करता है।
उपरोक्त कथनों में से कितने सही है/हैं:
- केवल 1 कथन
- केवल 2 कथन
- सभी तीनों कथन
- कोई भी नहीं
उत्तर: d
व्याख्या:
- कथन 1 गलत है: परिसीमन आयोग की स्थापना भारत सरकार (संघ सरकार) द्वारा परिसीमन आयोग अधिनियम के प्रावधानों के तहत की जाती है।
- संसद ने वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोग की नियुक्ति के लिए परिसीमन अधिनियमों को अधिनियमित किया है।
- कथन 2 गलत है: परिसीमन आयोग भारत के चुनाव आयोग के सहयोग से काम करता है।
प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- भारतीय विज्ञान कांग्रेस ने 2023 में अपना 108वां सत्र आयोजित किया।
- सत्र “सतत विकास और महिला सशक्तिकरण के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी” पर केंद्रित था।
- WEF द्वारा प्रकाशित वैश्विक नवाचार सूचकांक 2022 में भारत को 40वें स्थान पर रखा गया था।
उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: 108वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस (ISC) 3 से 7 जनवरी 2023 तक आयोजित की जाएगी।
- कथन 2 सही है: 108वीं ISC का मुख्य विषय “महिला सशक्तिकरण के साथ सतत विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी” है।
- कथन 3 गलत है: भारत वर्ष 2022 में वैश्विक नवाचार सूचकांक में 40वें स्थान पर आ गया है।
- वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) INSEAD, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी और वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन (WIPO) द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
प्रश्न 3. बॉक्साइट की उपलब्धता के घटते क्रम में निम्नलिखित राज्यों को व्यवस्थित कीजिए:
- आंध्र प्रदेश
- ओडिशा
- झारखंड
- गुजरात
विकल्प:
(a) 2-3-1-4
(b) 3-2-1-4
(c) 2-1-4-3
(d) 1-3-2-4
उत्तर: c
व्याख्या:
इंडियन मिनरल्स इयरबुक के अनुसार बॉक्साइट की उपलब्धता के आधार पर भारतीय राज्यों की रैंकिंग:
- ओडिशा (51%)
- आंध्र प्रदेश (16%)
- गुजरात (9%)
- झारखंड (6%)
प्रश्न 4. सीमा सड़क संगठन के बारे में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही नहीं है/हैं?
- यह सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के तहत काम करता है।
- यह भारत की ओर से मैत्रीपूर्ण पड़ोसी देशों में सड़कों का निर्माण करता है।
- यह भारत में आपदा के बाद सड़कों के पुनर्निर्माण में सहायता करता है।
विकल्प:
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 2
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 गलत है: सीमा सड़क संगठन रक्षा मंत्रालय के नियंत्रण में कार्य करता है।
- कथन 2 सही है: सीमा सड़क संगठन भारत के मित्र देशों जैसे अफगानिस्तान, भूटान, म्यांमार और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों में भी कार्य करता है।
- कथन 3 सही है: सीमा सड़क संगठन विपत्ति या प्राकृतिक आपदा के मामले में पुनर्निर्माण कार्य भी करता है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (PYQ 2020)
- कोयले की राख में आर्सेनिक, सीसा और पारद अंतर्विष्ट होते हैं।
- कोयला संचालित विद्युत संयंत्र पर्यावरण में सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन के ऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं।
- भारतीय कोयले में राख की अधिक मात्रा पायी जाती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: d
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: कोयले की राख में पारा, कैडमियम और आर्सेनिक जैसे प्रदूषक अंतर्विष्ट होते हैं।
- कथन 2 सही है: कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र नाइट्रोजन, सल्फर डाइऑक्साइड, पार्टिकुलेट मैटर (PM), मरकरी और दर्जनों अन्य खतरनाक पदार्थों के ऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं।
- कथन 3 सही है: भारत में कोयले के भंडार के निर्माण के प्रवाह सिद्धांत (drift theory) के कारण भारतीय कोयले में राख की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है।
- देश में उत्पादित कोयले की राख सामग्री आम तौर पर 25 से 45% होती है जबकि आयातित कोयले की औसत राख सामग्री 10 से 20% के बीच होती है।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. नफ़रत फ़ैलाने वाले भाषण मनुष्य को गरिमा के अधिकार से वंचित करते हैं। समाज के शक्तिशाली पदों पर बैठे व्यक्तियों द्वारा नफ़रत फ़ैलाने वाले भाषणों से निपटने के लिए एक सख्त कानून की आवश्यकता पर टिप्पणी कीजिए। (150 शब्द, 10 अंक) [जीएस-2, राजव्यवस्था एवं शासन]
प्रश्न 2.पशु क्रूरता को रोकना राज्य और नागरिकों का समान रूप से कर्तव्य है। टिप्पणी कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक) [जीएस-3, पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण]