06 दिसंबर 2022 : समाचार विश्लेषण
A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: अर्थव्यवस्था:
बुनियादी ढांचा:
D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E. संपादकीय: राजव्यवस्था एवं शासन:
F. प्रीलिम्स तथ्य: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। G. महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: |
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महामारी के बाद श्रम का संकट:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
अर्थव्यवस्था:
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने प्रगति,विकास तथा रोजगार से संबंधित विषय।
प्रारंभिक परीक्षा: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और इसकी रिपोर्ट से सम्बंधित तथ्य।
मुख्य परीक्षा: भारत और दुनिया भर में रोजगार के रुझान और महत्वपूर्ण सिफारिशों के संबंध में मुख्य निष्कर्ष।
संदर्भ:
- अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ( International Labour Organisation (ILO)) ने दो रिपोर्ट जारी की हैं, जो महामारी के बाद के समय में वैश्विक रोजगार की वर्तमान स्थिति और रुझानों के बारे में एक दृष्टिकोण प्रदान करती है।
विवरण:
- अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने अपनी रिपोर्ट “वैश्विक मजदूरी रिपोर्ट 2022-2023: मजदूरी और क्रय शक्ति पर मुद्रास्फीति और कोविड-19 का प्रभाव” में मुद्रास्फीति और आर्थिक मंदी के दोहरे संकटों के बारे में बताया है जिसके कारण दुनिया भर में वास्तविक मासिक वेतन में गिरावट आई है।
- इस रिपोर्ट में वैश्विक ऊर्जा संकट के और बिगड़ने में रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभावों पर भी चर्चा की गई है।
- वैश्विक मजदूरी रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य लगभग 190 देशों और क्षेत्रों से मजदूरी डेटा एकत्र करना है, जिन्हें बाद में पांच अलग-अलग क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है।
- “एशिया-प्रशांत रोजगार और सामाजिक आउटलुक 2022: काम के मानव-केंद्रित भविष्य के लिए क्षेत्रीय रणनीतियों पर पुनर्विचार” रिपोर्ट बताती है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में वर्ष 2022 में 2.2 करोड़ से अधिक लोगों को अपनी नौकरियाँ खोनी पड़ी।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:
- वैश्विक मजदूरी रिपोर्ट ने कर्मचारियों के वास्तविक और सांकेतिक वेतन के रुझानों का विश्लेषण किया है।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, “मजदूरी” शब्द को कुल सकल पारिश्रमिक के रूप में परिभाषित किया गया हैं, जिसमें एक समय के लिए निर्दिष्ट अवधि (रिपोर्ट के लिए मासिक) के दौरान कर्मचारियों को दिए गए नियमित बोनस और काम न करने की अवधि के लिए भी सवैतनिक अवकाश और सवेतन अस्वस्थता अवकाश शामिल हैं।
- इस रिपोर्ट के अनुसार सांकेतिक वेतन उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति पर विचार करने के बाद समायोजित आंकड़ों को संदर्भित करता है और वास्तविक वेतन वृद्धि और कुछ नहीं बल्कि सभी कर्मचारियों के वास्तविक औसत मासिक वेतन में साल-दर-साल बदलाव है।
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में सांकेतिक वेतन वर्ष 2006 के 4,398 रुपये से बढ़कर वर्ष 2021 में 17,017 रुपये प्रति माह हो गया है।
- रिपोर्ट की गणना के लिए यह डेटा केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय से लिया गया था।
- सांकेतिक मजदूरी में वृद्धि के बावजूद, देश में वास्तविक मजदूरी वृद्धि दर वर्ष 2006 में 9.3% से गिरकर वर्ष 2021 में -0.2% हो गई है, जब इसमें मुद्रास्फीति की भी गणना की गई।
- भारत में यह नकारात्मक वृद्धि कोविड महामारी के बाद से शुरू हुई है।
- वास्तविक मजदूरी वृद्धि दर न केवल भारत में बल्कि चीन जैसे देशों में भी गिर गई है, जहां विकास दर वर्ष 2019 में 5.6% से घटकर वर्ष 2022 में 2% हो गई है और वहीँ पाकिस्तान की विकास दर वर्ष 2022 में -3.8% है।
- इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जीवन यापन की बढ़ती लागत का निम्न आय वाले लोगों और उनके परिवारों पर गंभीर प्रभाव पड़ा है क्योंकि वे अपनी अधिकांश डिस्पोजेबल आय आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च कर रहे हैं, जिनमें गैर-जरूरी चीजों की तुलना में कीमतों में वृद्धि अधिक हुई है।
- एशिया-प्रशांत में रोजगार पर रिपोर्ट के अनुसार, केवल उच्च-कौशल वाली नौकरियों के रुझानों ने कोविड-19 महामारी के बाद से सुधार दिखा है, जो सभी उपक्षेत्रों में भी देखा जाता है।
- बढ़ती असमानता के बारे में चिंताएं जताई जा रही हैं क्योंकि वर्ष 2019 और 2021 के बीच उच्च-कुशल श्रमिकों के बीच रोजगार लाभ 1.6% देखा गया था और निम्न-से-मध्यम-कौशल श्रमिकों के बीच कोई सुधार नहीं हुआ।
- इसके अलावा, G-20 देशों के बीच, उन्नत G-20 देशों और उभरते G-20 देशों के बीच वास्तविक मजदूरी के औसत स्तर में महत्वपूर्ण अंतर था।
- उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में वास्तविक मजदूरी का औसत स्तर लगभग 4,000 डॉलर प्रति माह और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में लगभग 1,800 डॉलर प्रति माह पाया गया।
अनुशंसाएँ:
- रिपोर्टें जीवन यापन की लागत से संबंधित संकट के मुद्दे को दूर करने के लिए नीतिगत उपायों के एक सेट की सिफारिश करती हैं। इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कि कोविड-19 के दौरान 7.5 से 9.5 करोड़ से अधिक लोगों को अत्यधिक गरीबी में धकेल दिया गया था, रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य के सांकेतिक वेतन समायोजन के लिए सौदेबाजी की प्रक्रिया में पर्याप्त रूप से वृहद् और विवेकपूर्ण मूल्य प्रत्याशा को अपनाना चाहिए।
- इस तरह परिवारों, विशेष रूप से कम आय वाले परिवारों के जीवन स्तर को अप्रत्याशित भावी मुद्रास्फीति से बचाया जा सकता है और एक अवांछनीय मजदूरी-मुद्रास्फीति सर्पिल को रोका जा सकता है।
- रिपोर्ट्स यह भी कहती हैं कि श्रम बाजार संस्थानों और वेतन नीतियों को मजबूत करने की आवश्यकता है।
- ILO की राय है कि समुचित औपचारिक वेतन वाले रोजगार का विकास मजदूरी और आय के समान वितरण के लिए एक पूर्वापेक्षा है, और समान और टिकाऊ मजदूरी वृद्धि के लिए प्रमुख योगदानकर्ता है।
- इसके अलावा, ILO ने सरकारों से लैंगिक वेतन अंतर पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया है क्योंकि जब महिलाएं श्रम बाजार छोड़ती हैं, तो पुरुषों की तुलना में उनके लौटने की संभावना कम होती है।
- एक बहुपक्षीय दृष्टिकोण अपनाने की भी आवश्यकता है जो जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों, बढ़ती असमानताओं, गरीबी, भेदभाव, हिंसा और बहिष्कार तथा गरीब और अमीर देशों के बीच बढ़ते डिजिटल विभाजन से निपटने में मदद करे।
सारांश:
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मछुआरे विझिंजम बंदरगाह परियोजना का विरोध क्यों कर रहे हैं?
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
बुनियादी ढांचा:
विषय: बुनियादी ढांचा: बंदरगाह।
प्रारंभिक परीक्षा: विझिंजम बंदरगाह से सम्बंधित तथ्य।
मुख्य परीक्षा: विझिंजम बंदरगाह परियोजना को लेकर विवाद।
संदर्भ:
- निर्माणाधीन विझिंजम बंदरगाह पर पिछले कई महीनों से मछुआरे और उनके परिवार विरोध कर रहे हैं।
चित्र स्रोत: Vizhinjam Seaport Limited
विझिंजम बंदरगाह परियोजना का महत्व:
- विझिंजम बंदरगाह केरल के तिरुवनंतपुरम जिले में भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी सिरे पर स्थित है।
- यह बंदरगाह प्रमुख अंतरराष्ट्रीय समुद्री मार्गों और पूर्व-पश्चिम नौ-परिवहन धुरी (अक्ष) से लगभग 10 समुद्री मील की दूरी पर स्थित है।
- इस बंदरगाह में तट से एक समुद्री मील के भीतर 20 मीटर से अधिक की प्राकृतिक जल गहराई है और देश के साथ-साथ यह केरल के समुद्री विकास में अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित होगा।
- विझिंजम बंदरगाह से केरल और अन्य क्षेत्रीय बंदरगाहों में छोटे बंदरगाहों के विकास को गति प्रदान करने और रोजगार के महत्वपूर्ण अवसर सृजित करने में मदद मिलने की उम्मीद है।
- यह बंदरगाह वर्तमान में अडानी पोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा एक सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) घटक के साथ एक डिजाइन, निर्माण, वित्त, संचालन और हस्तांतरण (DBFOT) के आधार पर एक भू-स्वामी मॉडल के रूप में विकसित किया जा रहा है।
तटीय क्षरण की चिंताएँ:
- विझिंजम बंदरगाह परियोजना का विरोध कर रहे मछुआरों के अनुसार, इस विकास कार्य ने तिरुवनंतपुरम के तट पर तटीय कटाव को बढ़ा दिया है।
- समुद्र तट के किनारे रहने वाले करीब 300 परिवारों को राहत शिविरों में स्थानांतरित कर दिया गया है क्योंकि उच्च तीव्रता वाले तटीय कटाव के कारण उनके घर नष्ट हो गए थे।
- हालांकि इस प्रकार का तटीय कटाव केरल के सभी तटीय जिलों में एक मुद्दा रहा है, एवं तिरुवनंतपुरम के समुद्र तट पर अधिक गंभीर है।
- नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्टल मैनेजमेंट, सोसाइटी ऑफ इंटीग्रेटेड कोस्टल मैनेजमेंट तथा पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार बंदरगाह का निर्माण शुरू होने से पहले ही कटाव त्रिशूर में न्यूनतम (1.5%) और तिरुवनंतपुरम में अधिकतम (23%) था।
- गौरतलब है कि केरल में मानसून के महीनों के दौरान मौसमी तटरेखा के परिवर्तन अधिक गंभीर/घातक होते हैं क्योंकि उच्च-ऊर्जा वाली छोटी तूफानी लहरें तट से लंबवत स्थिति में टकराती हैं जिसके कारण तटों का कटाव होता है।
सरकार का रुख:
- इस संबंध में केरल सरकार का कहना है कि बंदरगाह के करीब तटीय कटाव जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है और ऐसे में बंदरगाह निर्माण को रोकने की मांग को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
- राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण और तटरेखा निगरानी प्रकोष्ठ द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि बंदरगाह का निर्माण शुरू होने के बाद भी कई जगहों पर कटाव पहले की तरह ही बना हुआ है। हालाँकि, अक्टूबर 2020-सितंबर 2021 की अवधि के दौरान, बंदरगाह के करीब के कुछ क्षेत्रों में कटाव देखा गया।
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2017 में आये चक्रवात ओखी के बाद अरब सागर के ऊपर बनने वाले चक्रवातों की उच्च संख्या को हाल के कटाव और अभिवृद्धि के प्रमुख कारण के रूप में उद्धृत किया गया है जबकि तट के दोनों ओर बंदरगाह गतिविधियों का प्रभाव कम महत्वपूर्ण रहा है।
- इसके अलावा इस संबंध में सरकारी अधिकारियों का कहना है कि यह बंदरगाह एक प्राकृतिक तलछट प्रकोष्ठ के अंदर बनाया जा रहा है, जो एक पॉकेट जैसा क्षेत्र है, जहां तट के साथ रेत के संचलन में व्यवधान आसन्न तटरेखा को प्रभावित नहीं करता है।
प्रदर्शनकारियों की मांगें:
- प्रदर्शनकारियों ने क्षेत्र में मछुआरों के लिए व्यापक पुनर्वास पैकेज की मांग की है।
- मछली पकड़ने के दौरान दुर्घटनाओं में जान गंवाने वालों के परिवारों को मुआवजा दिया जाए।
- तटीय क्षरण को कम करने के प्रभावी उपाय किये जाएं।
- इसके अलावा इस क्षेत्र के मछुआरों ने खराब मौसम की स्थिति के कारण समुद्र के अगम्य होने पर न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करने और नावों के लिए सब्सिडी वाले मिट्टी के तेल की मांग की है।
इस मुद्दे पर अधिक जानकारी के लिए 07 सितंबर 2022 का विस्तृत समाचार विश्लेषण लेख देखें।
सारांश:
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संपादकीय-द हिन्दू
संपादकीय:
पैरोल और फरलो के नियमों में एकरूपता नहीं:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित
राजव्यवस्था एवं शासन:
विषय: नीतियों के डिजाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: पैरोल और फरलो।
मुख्य परीक्षा: राज्यों में पैरोल और फरलो प्रावधान।
संदर्भ:
- हरियाणा और तमिलनाडु में पैरोल और फरलो पर दोषियों की रिहाई।
विवरण:
- जेल अधिनियम, 1894, या कैदी अधिनियम, 1900 में पैरोल और/या फरलो से संबंधित कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं हैं। हालांकि, जेल अधिनियम की धारा 59 राज्यों को सजा कम करने या अच्छे आचरण को पुरस्कृत करने के संबंध में नियम बनाने के लिए अधिकृत करती है।
- यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि जेल, सुधार गृह और अन्य संबद्ध संस्थान संविधान की सातवीं अनुसूची Seventh Schedule की राज्य सूची में आते हैं।
विभिन्न राज्यों में पैरोल/छुट्टी और फरलो का प्रावधान:
- फरलो जेल में अच्छे आचरण के लिए एक प्रोत्साहन को संदर्भित करता है और इसके दिनों को एक सजा के रूप काटे गए दिनों में गिना जाता है। जबकि, पैरोल/छुट्टी सजा का निलंबन है। परिवार में मृत्यु, गंभीर बीमारी, या विवाह जैसी विशिष्ट आपात स्थितियों के लिए आपातकालीन अवकाश/पैरोल प्रदान किया जाता है।
- उत्तर प्रदेश में, सरकार एक महीने तक के लिए ‘सजा के निलंबन’ की अनुमति देती है। राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन से अवधि को 12 माह से अधिक बढ़ाया जा सकता है।
- महाराष्ट्र में नियम 21 या 28 दिनों (मामले के आधार पर) की अवधि के लिए एक दोषी को फरलो पर रिहा करने की अनुमति देते हैं। नियम 14 दिनों के लिए ‘आपातकालीन पैरोल’ और 45 से 60 दिनों की अवधि के लिए ‘नियमित पैरोल’ की भी अनुमति देते हैं।
- हरियाणा के नियम (अप्रैल 2022 में संशोधित) 10 सप्ताह (दो भागों में) तक के ‘नियमित पैरोल’, एक वर्ष में 3 से 4 सप्ताह के लिए ‘फरलो’ और 4 सप्ताह तक के ‘आपातकालीन पैरोल’ की अनुमति देते हैं।
- 1982 के तमिलनाडु के नियम 21 से 40 दिनों के लिए ‘साधारण अवकाश’ का प्रावधान करते हैं, 15 दिनों तक के (4 भागों में) ‘आपातकालीन अवकाश’, जिसे असाधारण परिस्थितियों में सरकार द्वारा आगे बढ़ाया जा सकता है, का भी प्रावधान है।
- आंध्र प्रदेश में फरलो और 2 सप्ताह तक की पैरोल/आपातकालीन अवकाश का प्रावधान है, जिसे असाधारण परिस्थितियों में बढ़ाया जा सकता है।
- ओडिशा में नियम 4 सप्ताह तक के लिए ‘फरलो’, 30 दिनों तक के लिए ‘पैरोल अवकाश’ और 12 दिनों तक के लिए ‘विशेष अवकाश’ की अनुमति देते हैं।
- पश्चिम बंगाल में, अपराधी को अधिकतम 1 महीने के लिए और आपात स्थिति में 5 दिनों तक के लिए ‘पैरोल’ पर रिहा किया जाता है।
- केरल सरकार एक समय में 60 दिनों (4 चरणों में) का ‘साधारण अवकाश’ और 15 दिनों तक का ‘आपातकालीन अवकाश’ प्रदान करती है।
- कस्टडी पैरोल: एक अपराधी जो किसी भी फरलो या पैरोल के लिए अपात्र है, उसे पुलिस अनुरक्षण के तहत एक करीबी रिश्तेदार के अंतिम संस्कार/विवाह में शामिल होने की अनुमति है। कस्टडी पैरोल के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग अवधि होती है। उदाहरण के लिए, हरियाणा में यह 6 घंटे है और केरल में यह अधिकतम 24 घंटे है।
- राज्यों में पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों और फरलो/पैरोल/आपातकालीन अवकाश देने के लिए दोषियों के रिश्तेदारों की सूची के मामले में भी अत्यधिक विविधता मौजूद है। उदाहरण के लिए, केरल में, मृत्यु के मामले में 24 और शादी के मामले में 10 रिश्तेदारों की सूची है, जबकि अन्य राज्यों में पति-पत्नी, माता-पिता या भाई-बहन जैसे करीबी रिश्तेदारों को ही रिश्तेदार माना जाता है।
- इसके अलावा, प्रत्येक राज्य पैरोल या फरलो अवधि समाप्त होने के बाद आत्मसमर्पण करने में विफल रहने वाले एक दोषी को दंडित करने के लिए एक अलग मानदंड का उपयोग करता है।
निष्कर्ष:
- यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अस्थायी रिहाई को अधिकार के रूप में प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
- प्रत्येक राज्य के अपने प्रावधानों/दिशानिर्देशों का अपना सेट होता है जो दायरे और सामग्री में भिन्न होता है। यह तर्क दिया जाता है कि कुछ शक्तिशाली दोषियों को लाभ पहुंचाने के लिए ऐसे प्रावधानों का उल्लंघन किया जा सकता है।
- राज्यों का मार्गदर्शन करने और दुरुपयोग को रोकने के लिए एक सामान्य कानूनी ढांचे के अभाव में, मनमानी की जा सकती है और यह अंततः पूरी आपराधिक न्याय प्रणाली को खतरे में डाल सकती है।
- चूँकि ‘जेल’ राज्य सूची का विषय है, कम से कम आधे राज्यों को एक साथ आना चाहिए और केंद्र सरकार से पैरोल और फरलो पर देश के लिए एक साझा कानून बनाने का अनुरोध करना चाहिए।
संबंधित लिंक्स:
सारांश:
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ईडब्ल्यूएस कोटा: मुद्दे से ध्यान हटाना:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित
राजव्यवस्था एवं शासन:
विषय: जनसंख्या के कमजोर वर्ग के लिए कल्याणकारी योजनाएँ।
प्रारंभिक परीक्षा: ईडब्ल्यूएस।
मुख्य परीक्षा: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए कोटा।
विवरण:
- आरक्षण (Reservation) का उद्देश्य प्रशंसनीय था क्योंकि इसे सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े (SEBCs) या शिक्षा और रोजगार जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व वाले समूहों को अवसर देने के लिए एक अल्पकालिक उपाय के रूप में पेश किया गया था।
- इसके परिणामस्वरूप कई लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ।
- लेखक का तर्क है कि सात दशकों के बाद भी आरक्षण प्रणाली को अल्पकालिक उपाय होने के बावजूद राजनीतिक और सामाजिक कारणों से बढ़ाया जाता रहा है। यह भी तर्क दिया जाता है कि जिन लोगों को वास्तव में आरक्षण की आवश्यकता थी, वे इसके लाभों से वंचित रह गए।
- भारतीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक कृषि प्रधान थी और स्वतंत्रता के समय पारंपरिक वाणिज्य पर आधारित थी। लोग काफी हद तक अकुशल थे। लेकिन मुफ्त स्कूली शिक्षा और औद्योगीकरण ने लोगों को नए कौशल से लैस किया। जैसे-जैसे शहर महानगरीय होते गए वर्ग विभाजन अतीत की बात बन गई।
- लेखक के अनुसार, सामाजिक असमानता और उत्पीड़न का कारण गलत तरीके से एक विशेष विश्वास और उस समय प्रचलित जाति व्यवस्था की प्रथा को माना गया था। प्रौद्योगिकी और सूचना के वर्तमान युग में, बढ़ती मध्यवर्गीय आबादी ने जाति व्यवस्था को कम प्रचलित कर दिया है। वर्तमान आर्थिक समृद्धि ने काफी हद तक सामाजिक अन्याय के कारण को बेअसर कर दिया है।
- प्रस्तावना में उल्लिखित “सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय” के लक्ष्य को प्राप्त करना सरकार का संवैधानिक और नैतिक दायित्व है। लेखक के अनुसार, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग ( Economically Weaker Section(EWS) ) के लिए 10% कोटा सही दिशा में एक कदम है जो आर्थिक और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेगा।
- लेखक EWS कोटे से जुड़ी कुछ गलतफहमियों को सामने रखता है:
- एक व्यापक धारणा है कि संविधान की मूल संरचना ( basic structure of the Constitution) का उल्लंघन किया गया है क्योंकि EWS कोटा समाज के विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों को सशक्त बनाता है जो न तो सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं और न ही उनका प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है।
- इसके अलावा, ‘अगड़े’ समुदायों के पक्ष में खुली श्रेणी में 10% कोटा अन्य वर्गों और समुदायों के लिए खुली श्रेणी में सीटों की उपलब्धता को कम कर सकता है। यह स्पष्ट किया गया कि यह 10% कोटा SEBCs के पक्ष में मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त है।
संबंधित लिंक:
Sansad TV Perspective: EWS Quota
सारांश:
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विश्वास और स्वतंत्रता:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित
राजव्यवस्था एवं शासन:
विषय: नीतियों के डिजाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाली समस्या।
मुख्य परीक्षा: धर्म की स्वतंत्रता और धर्मांतरण विरोधी कानून।
संदर्भ:
- सर्वोच्च न्यायालय देश में धोखे से धर्मांतरण को रोकने के लिए कार्रवाई की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है।
विवरण:
- सर्वोच्च न्यायालय एक कथित जनहित याचिका (Public Interest Litigation (PIL)) पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें भारत में धोखे से धर्मांतरण की जांच के लिए कार्रवाई की मांग की गई है।
- गुजरात सरकार भी अपने धर्मांतरण विरोधी कानून के एक विशिष्ट प्रावधान पर लगी रोक हटाने की उम्मीद कर रही है, जिसके तहत “प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से” किए गए किसी भी धर्मांतरण के लिए जिला मजिस्ट्रेट से पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है। गुजरात उच्च न्यायालय ने गुजरात धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2003 (‘विवाह द्वारा धर्म परिवर्तन’ को शामिल करने के लिए 2021 में संशोधित) की धारा 5 पर रोक लगा दी थी, साथ ही अन्य प्रावधानों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी, जिनमें अंतर-धार्मिक विवाह को अवैध धर्मांतरण के उदाहरण मानने का प्रयास किया जा रहा था।
- उच्च न्यायालय ने कहा कि पूर्व अनुमति की आवश्यकता व्यक्ति को अपने धार्मिक विश्वास या धर्म के किसी भी परिवर्तन का खुलासा करने के लिए मजबूर करेगी, जो कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के विपरीत है, जिसमें कहा गया है कि विवाह और विश्वास में एक व्यक्ति की पसंद शामिल है।
- हालाँकि, गुजरात सरकार ने दावा किया है कि धारा 5 पर रोक वास्तविक अंतर-धार्मिक विवाहों को भी प्रभावित कर रही है जिनमें कोई धोखाधड़ी या ज़बरदस्ती शामिल नहीं है। यह इस दावे पर आधारित है कि पूर्व अनुमति की आवश्यकता एक अंतर-धार्मिक विवाह के परिणामस्वरूप होने वाले धर्मांतरण, यदि कोई हो, की वास्तविक प्रकृति पर सवाल उठाने की आवश्यकता को समाप्त करती है।
- यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि धर्म की स्वतंत्रता ( Freedom of religion) की रक्षा तभी की जाती है जब अंतर-धार्मिक विवाह की पद्धति के आधार पर कोई प्रश्न/संदेह न उत्पन्न किया जाता हो।
- किसी व्यक्ति को धर्म बदलने के अपने इरादे का खुलासा करने के लिए मजबूर करना अंतरात्मा की स्वतंत्रता और निजता के अधिकार (right to privacy) दोनों का उल्लंघन करता है।
- “लालच” या दान कार्य के माध्यम से धर्म परिवर्तन के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय की एक खंडपीठ की टिप्पणियों ने सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर धर्मांतरण विरोधी उपायों को तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया।
- कई लोगों द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि अदालत को बड़े पैमाने पर कपटपूर्ण धर्मांतरण के अतिशयोक्तिपूर्ण आरोपों पर विचार नहीं करना चाहिए और इसके बजाय इस मुद्दे की सीमा (यदि कोई हो) की पहचान करने तथा धार्मिक स्वतंत्रता और सांप्रदायिक सद्भाव की रक्षा के उपायों को अपनाने का दायित्व राज्यों पर छोड़ देना चाहिए।
संबंधित लिंक:
Love Jihad Laws Explained. UP Prohibition of Unlawful Conversion Laws.
सारांश :
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प्रीलिम्स तथ्य:
आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- सर्वोच्च न्यायालय ने ‘धोखे से धर्मांतरण’ का समाधान खोजने की पेशकश की:
चित्र स्रोत: The Hindu
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी समुदाय या गरीबों की मदद करने के लिए दान या अच्छे काम को धर्म परिवर्तन के इरादे को छुपाने के लिए एक कवर अप के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए साथ ही न्यायालय ने यह भी कहा कि देश में जबरन धर्मांतरण एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है क्योंकि यह भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों को प्रभावित करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि एक अलग धर्म के ईश्वर में स्वैच्छिक विश्वास के आधार पर धर्मांतरण प्रलोभन के माध्यम से अपनाए गए धर्म से अलग है और न्यायालय भोजन, दवाइयां, उपचार आदि की पेशकश के लालच के माध्यम से धर्म परिवर्तन के पीछे छिपे इरादों की जांच करेगा।
- केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर-जनरल ने एक वैधानिक तंत्र स्थापित करने के महत्व को उठाया, जिसमें एक तटस्थ प्राधिकरण यह जांच करेगा कि क्या अनाज, दवाइयां या उपचार देने का उद्देश्य धर्म परिवर्तन कराना है।
- शीर्ष अदालत ने अतीत में ऐसी विधियों को बरकरार रखा है जो धर्मांतरण की निगरानी करती हैं और अदालत ने केंद्र सरकार को विभिन्न राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानूनों और विधियों और अन्य उपायों का विवरण प्रदान करने का निर्देश दिया है।
2. भारत, जर्मनी ने प्रवासन समझौते पर हस्ताक्षर किए:
- भारत और जर्मनी के विदेश मंत्रियों की हालिया बैठक के दौरान, दोनों देशों ने प्रवास और गतिशीलता पर एक व्यापक साझेदारी पर हस्ताक्षर किए, जिसका उद्देश्य दोनों देशों में लोगों के लिए अनुसंधान, अध्ययन और काम के लिए की जाने वाली यात्रा को आसान बनाना है।
- भारतीय विदेश मंत्री के अनुसार, नया समझौता अधिक समकालीन साझेदारी का आधार होगा।
- मंत्रियों ने द्विपक्षीय मुद्दों जैसे अक्षय ऊर्जा और ऊर्जा संक्रमण पर भारत को जर्मनी की सहायता, उनकी भारत-प्रशांत रणनीति, तथा चीन, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से संबंधित अन्य अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श किया।
- द्विपक्षीय वार्ता के दौरान, भारतीय विदेश मंत्री ने यूक्रेन में युद्ध के बाद से रूसी तेल के आयात को बढ़ाने के भारत सरकार के फैसले का यह कहकर बचाव किया कि भारत में रूसी तेल की खपत यूरोप की खपत का लगभग छठा हिस्सा है और इसकी तुलना प्रतिकूल रूप से नहीं की जानी चाहिए।
3. श्रीलंका ने डेयरी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भारत से मदद मांगी:
- अपने डेयरी उत्पादन को बढ़ाने और आत्मनिर्भर बनने के लिए श्रीलंका ने भारत के राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (National Dairy Development Board (NDDB)) और अमूल से तकनीकी सहायता मांगी है।
- 1990 के दशक के अंत में श्रीलंका ने इसी तरह के सहयोग का प्रयास किया था, लेकिन यह अमल में नहीं आया था।
- श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति चंद्रिका भंडारनायके कुमारतुंगा ने भारत के “दुग्ध पुरुष” वर्गीज कुरियन (Verghese Kurien ) को “किरिया” डेयरी परियोजना स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया था, जिसका नाम दूध के सिंहल (भाषा) शब्द के नाम पर रखा गया था।
- NDDB और श्रीलंका के MILCO के बीच 20 मिलियन डॉलर के संयुक्त उद्यम की भी घोषणा की गई थी, लेकिन श्रीलंका में राष्ट्रवादी श्रमिक संघों और व्यापारिक लॉबियों के प्रतिरोध के कारण यह परियोजना विफल रही।
- श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने हाल ही में NDDB के साथ काम करने और स्थानीय दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए लघु, मध्यम और दीर्घकालिक योजनाओं को तैयार करने हेतु श्रीलंका के सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के प्रतिनिधियों को मिलाकर एक समिति नियुक्त की है।
- वर्तमान में, श्रीलंका का घरेलू डेयरी उत्पादन इसकी आवश्यकताओं के 50% से कम है और देश ज्यादातर न्यूज़ीलैंड से डेयरी आयात पर लगभग 300 मिलियन डॉलर सालाना खर्च करता है।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. एशिया-प्रशांत रोजगार और सामाजिक आउटलुक 2022 रिपोर्ट जारी की गई हैं ?
(a) अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा
(b) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन द्वारा
(c) विश्व आर्थिक मंच द्वारा
(d) विश्व बैंक द्वारा
उत्तर: a
व्याख्या:
- “एशिया-प्रशांत रोजगार और सामाजिक आउटलुक 2022: मानव-केंद्रित भविष्य के काम के लिए क्षेत्रीय रणनीतियों पर पुनर्विचार” नामक रिपोर्ट अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा जारी कि गई है।
प्रश्न 2. मौद्रिक नीति समिति (MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर MPC के अध्यक्ष होते हैं।
- MPC मुद्रास्फीति के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक नीतिगत रेपो दर निर्धारित करती है।
- मौद्रिक नीति समिति का निर्णय बैंक के लिए बाध्यकारी होगा और MPC की बैठक के लिए कोरम तीन सदस्यों का होता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
- केवल 1 और 2
- केवल 2 और 3
- केवल 1 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) के पदेन अध्यक्ष होते हैं।
- कथन 2 सही है: MPC मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक नीतिगत रेपो दर निर्धारित करती है।
- कथन 3 गलत है: मौद्रिक नीति समिति का निर्णय बैंक पर बाध्यकारी होता है और MPC की बैठक के लिए कोरम चार सदस्यों का होता है।
प्रश्न 3. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- विश्व बैंक के अनुसार अत्यधिक गरीब व्यक्तियों की श्रेणी में उन लोगों को रखा गया हैं जो प्रति दिन $1.90 से कम आय पर अपना जीवन यापन करते हैं।
- अत्यधिक गरीबी रेखा, 2017 क्रय शक्ति समानता (PPP) पर आधारित है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
- केवल 1
- केवल 2
- दोनों
- कोई भी नहीं
उत्तर: b
व्याख्या:
- कथन 1 गलत है: विश्व बैंक ने सितंबर 2022 में वैश्विक गरीबी रेखा को अद्यतन किया और नई अत्यधिक गरीबी रेखा $2.15 प्रति व्यक्ति प्रति दिन है, जिसने $1.90 गरीबी रेखा को प्रतिस्थापित किया है।
- कथन 2 सही है: अत्यधिक गरीबी रेखा 2017 क्रय शक्ति समानता (Purchasing Power Parity (PPP)) पर आधारित है।
प्रश्न 4. 2021 में सर्वाधिक सैन्य खर्च करने वाले पांच देशों में कौन सा देश शामिल नहीं है?
(a) चीन
(b) भारत
(c) रूस
(d) फ्रांस
उत्तर: d
व्याख्या:
- स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, 2021 में पांच सबसे बड़े सैन्य खर्चकर्ता संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, भारत, यूनाइटेड किंगडम और रूस थे।
- इन पांच देशों ने मिलकर कुल सैन्य खर्च का 62% खर्च किया।
प्रश्न 5. निम्नलिखित में से कौन सा पक्षी नहीं है? PYQ (2022)
(a) गोल्डन महसीर
(b) इंडियन नाईटजार
(c) स्पूनबिल
(d) व्हाईट आइबिस
उत्तर: a
व्याख्या:
- गोल्डन महसीर मीठे पानी की मछली की प्रजाति है जो टोर जीनस से संबंधित है।
- गोल्डन महसीर को “भारतीय नदियों का बाघ” माना जाता है।
- गोल्डन महसीर हिमालय की तलहटी की नदियों, सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र बेसिन, कावेरी, ताम्बरापारिणी और कोसी नदियों में देखी जा सकती है।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. महामारी के बाद के वैश्विक रोजगार परिदृश्य पर एक टिप्पणी लिखिए और जीवन यापन की लागत के संकट के लिए नीतिगत विकल्पों और प्रतिक्रियाओं का एक सेट सुझाइये। (10 अंक, 150 शब्द) (जीएस-3; अर्थव्यवस्था)
प्रश्न 2.भारत में धर्मांतरण विरोधी कानूनों की स्थिति की जांच कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द) (जीएस-2; राजव्यवस्था एवं शासन)