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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 16 December, 2022 UPSC CNA in Hindi

16 दिसंबर 2022 : समाचार विश्लेषण

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था:

  1. केरल का विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक:

शासन:

  1. एक लोक सेवक द्वारा अवैध परितोषण:
  2. समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code):

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

राजव्यवस्था:

  1. अहस्तक्षेप का सिद्धांत:

शासन:

  1. आरटीआई अधिनियम की कार्यप्रणाली:

F. प्रीलिम्स तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. अग्नि-V बैलिस्टिक मिसाइल:
  2. महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र आयोग:

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

केरल का विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था:

विषय: राज्यपाल की भूमिका।

मुख्य परीक्षा: राज्य में राज्यपाल की भूमिका से सम्बंधित विभिन्न मुद्दे।

संदर्भ:

  • केरल सरकार ने 13 दिसंबर, 2022 को राज्य की विधानसभा में दो विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक पारित किए गए हैं।

विवरण:

  • हाल ही में केरल विधानसभा ने 14 राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के पद से राज्यपाल को प्रतिस्थापित (हटाने) करने के लिए दो विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक पारित किए हैं।
  • इस विधेयक के तहत राज्यपाल को राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के पद से हटाया जा सकेगा और शिक्षाविदों की नियुक्ति की जा सकेगी।
  • राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को कानून बनने के लिए राज्यपाल की सहमति की आवश्यकता होती है।
  • ये विधेयक राज्य सरकार को राष्ट्रीय उन्नत विधि अध्ययन विश्वविद्यालय और केरल कलामंडलम को छोड़कर कृषि और पशु चिकित्सा विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, सामाजिक विज्ञान, मानविकी, साहित्य, कला, संस्कृति, कानून या लोक प्रशासन सहित ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षाविदों या “प्रतिष्ठित व्यक्तियों” को राज्य विश्वविद्यालयों में कुलाधिपति के रूप में नियुक्त करने में सक्षम बनाएंगे।
  • इन विधेयकों में नियुक्त कुलाधिपतियों के कार्यकाल को पांच वर्ष तक सीमित करने के प्रावधान भी शामिल किये गए हैं।

विधेयक के खिलाफ तर्क:

  • इन विधेयकों द्वारा राज्य सरकार को राज्य के विश्वविद्यालयों के उप-कुलपतियों के रूप में अपने स्वयं के नामित व्यक्तियों को नियुक्त करने की अधिक स्वतंत्रता मिलेगी।
    • इसके परिणामस्वरूप विश्वविद्यालय प्रशासन की शक्ति राज्यपाल और UGC से हस्तांतरित होकर राज्य सरकार के पास चली जाएगी।
  • विपक्षी राजनीतिक दलों को डर है कि राज्य सरकार राज्य के विश्वविद्यालयों को अपने नियंत्रण के क्षेत्र में लाकर बड़े बदलाव करने की कोशिश करेगी, जिससे विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता का क्षरण होगा।

पृष्ठ्भूमि:

  • केरल के राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच कई मुद्दों पर बड़े मतभेद हैं।
  • ताजा विवाद इसलिए भड़क गया है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति को रद्द करने के बाद राज्यपाल ने विभिन्न कुलपतियों के इस्तीफे की मांग की है।
    • एक तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति को चुनौती देने वाले एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि की गई नियुक्ति विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के नियमों के अनुसार नहीं की गई हैं।
    • यह भी देखा गया था कि इस पद पर नियुक्ति के लिए खोज समिति ने केवल एक उम्मीदवार की पहचान की और नियुक्ति के लिए कुलाधिपति को इसकी सिफारिश की थी। जबकि UGC के नियमों के अनुसार कुलाधिपति को 3 से 5 नामों के पैनल की सिफारिश की जानी चाहिए।
    • राज्यपाल ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रतिक्रिया स्वरुप नौ विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के इस्तीफे की मांग की। हालाँकि, जब इस आदेश को केरल उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, तो राज्यपाल ने निर्देश को कारण बताओ नोटिस में बदल दिया, जिसमें कुलपतियों को उनकी नियुक्तियों की वैधता की व्याख्या करने के लिए कहा गया।
  • इसके अलावा, राज्यपाल ने राज्य के वित्त मंत्री की टिप्पणियों के बाद उनकी बर्खास्तगी की भी मांग की है। राज्यपाल ने घोषणा की कि उन्होंने मंत्रिपरिषद में मंत्री की नियुक्ति के संबंध में प्रसादपर्यंतता (Pleasure) को वापस ले लिया है।
    • केरल के वित्त मंत्री ने राज्यपाल की कार्रवाई के खिलाफ टिप्पणी करते हुए कहा कि जिसने उत्तर प्रदेश में विश्वविद्यालयों को संभाला है, वह केरल में विश्वविद्यालयों की व्यवस्था को नहीं समझ सकता है।
    • राज्यपाल ने इन बयानों को राज्यपाल के पद की गरिमा को क्षति पहुँचाने एवं राष्ट्रीय एकता को चोट पहुँचाने और क्षेत्रवाद को भड़काने वाला माना। इसकी तुलना देशद्रोह से भी की गई थी।
    • हालाँकि, केरल के मुख्यमंत्री ने यह कहते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की कि भारत की लोकतांत्रिक प्रथाओं और परंपराओं को देखते हुए, बयान प्रसादपर्यंतता के सिद्धांत की समाप्ति के अधिकार के लिए एक आधार प्रदान नहीं करता है।
  • राज्यपाल ने राज्य विधानसभा द्वारा पूर्व में पारित किये गए विवादास्पद लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक और विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक को भी स्वीकृति देने से इंकार कर दिया।
  • राज्य मंत्रिमंडल ने उल्लेख किया कि वर्ष 2007 में स्थापित पुंछी आयोग ( Punchhi Commission) ने सिफारिश की थी कि राज्य सरकारें राज्यपालों पर कुलाधिपति की भूमिका का बोझ डालने से बचें और कहा कि सरकार राज्यपाल के अतिक्रमणों से विश्वविद्यालयों की न्यायिक स्वायत्तता को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।

सारांश:

  • केरल सरकार ने राज्य के राज्यपाल को राज्य विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के पद से हटाने का फैसला किया है और उन्हें “प्रसिद्ध अकादमिक विशेषज्ञों” से प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया है। चूँकि ‘विश्वविद्यालय’ संविधान की प्रविष्टि 32 के तहत एक राज्य का विषय है इसलिए, राज्य सरकार के पास इस मामले पर कानून बनाने की शक्ति है।
  • राज्य सरकार बनाम राज्यपाल के पद से संबंधित विवाद पर अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: State Government Vs Governor

एक लोक सेवक द्वारा अवैध परितोषण:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

शासन:

विषय: शासन, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्वपूर्ण पहलू।

मुख्य परीक्षा: भ्रष्टाचार उन्मूलन हेतु विभिन्न उपाय।

संदर्भ:

  • 15 दिसंबर, 2022 को सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने कहा कि लोक सेवक द्वारा रिश्वत की मांग और स्वीकृति या अवैध परितोषण के संबंध में प्रत्यक्ष प्रमाण के अभाव में परिस्थितिजन्य प्रमाण के आधार पर एक न्यायालय द्वारा इस संबंध में अनुमान के आधार पर कार्रवाई की जा सकती है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणियां:

  • संवैधानिक पीठ इस सवाल का जवाब दे रही थी कि क्या शिकायतकर्ता की मृत्यु या किसी अन्य कारण से अनुपलब्धता के कारण प्रत्यक्ष मौखिक या लिखित साक्ष्य के अभाव में:
    • धारा 7 (सरकारी कर्मचारी द्वारा एक आधिकारिक दायित्व के संबंध में कानूनी पारिश्रमिक के अलावा अन्य परितोषण लेना) और
    • 13 (1)(d)(i) और (ii) (सरकारी कर्मचारी द्वारा आपराधिक कदाचार) के तहत सार्वजनिक कर्मचारियों को भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया जा सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने शिकायतकर्ता के साक्ष्य के अभाव में अभियोजन पक्ष द्वारा उपयोग किए गए अन्य साक्ष्यों के आधार पर धारा 7, 13 (1)(d)(i) और (ii) जिसे 13(2) के साथ पढ़ा जाए, के तहत एक लोक सेवक की अभियोज्यता या दोष में कटौती करने की अनुमति दी।
    • अभियोजन पक्ष भ्रष्टाचार के अपने मामले को किसी अन्य गवाह, मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य, या उन मामलों में परिस्थितिजन्य साक्ष्य की मदद से साबित कर सकता है जिनमें शिकायतकर्ता पक्षद्रोही हो गए हैं। इस परिस्थिति में मुकदमा समाप्त नहीं होगा या इसके परिणामस्वरूप दोषमुक्ति नहीं होगी।
  • पीठ ने कहा कि अगर रिश्वत देने वाला लोक सेवक की ओर से कोई मांग किए बिना अवैध रूप से रिश्वत देने की पेशकश करता है और लोक सेवक केवल प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है और भुगतान (रिश्वत) प्राप्त करता है, तो इस स्थिति में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत “स्वीकृति” का मामला बनेगा।
    • यदि आरोपी (लोक सेवक) रिश्वत की मांग करता है और रिश्वत स्वीकार करता है, तो इस स्थिति में “प्राप्ति” (लेने) का मामला बनेगा और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के 13 (1)(d)(i) और (ii) के तहत एक अपराध होगा।
  • लेकिन रिश्वत देने वाले की पेशकश और अवैध परितोषण की मांग और स्वीकृति दोनों को अभियोजन पक्ष द्वारा एक तथ्य के रूप में प्रभावी रूप से साबित करना होगा।
    • बिना किसी और चीज के अवैध परितोषण की स्वीकृति और प्राप्ति इसे अधिनियम की धारा 7 और 13 (1) (d) (i) और (ii) के तहत अपराध नहीं बनाती है।

सारांश:

  • सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने भ्रष्टाचार पर एक सवाल का जवाब देते हुए कहा की शिकायतकर्ताओं और अभियोजन पक्ष को भ्रष्ट लोक सेवकों की सजा सुनिश्चित करने के लिए ईमानदारीपूर्वक प्रयास करने पर जोर देना चाहिए, क्योंकि भ्रष्टाचार का देश के कुशल प्रशासन और शासन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

समान नागरिक संहिता:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

शासन:

विषय: सरकार की नीतियां और विकास के लिए हस्तक्षेप।

मुख्य परीक्षा: समान नागरिक संहिता और भारत में व्यक्तिगत कानूनों पर इसका प्रभाव।

संदर्भ:

  • केंद्रीय कानून मंत्री ने 15 दिसंबर, 2022 को राज्यसभा को सूचित किया कि राज्य समान नागरिक संहिता पर कानून बना सकते हैं।

विवरण:

  • केंद्र सरकार ने संसद को बताया कि राज्यों को समान नागरिक संहिता (UCC) को सुरक्षित करने के लिए व्यक्तिगत कानून बनाने का अधिकार है जो उत्तराधिकार, विवाह और तलाक जैसे मुद्दों को विनिश्चित करते हैं।
  • एक लिखित उत्तर में कानून मंत्री ने कहा कि समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का भारतीय संविधान के भाग 4, अनुच्छेद 44 में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।
  • व्यक्तिगत कानून जैसे निर्वसीयत और उत्तराधिकार, वसीयत, संयुक्त परिवार और विभाजन, विवाह और तलाक संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची III (समवर्ती सूची) की प्रविष्टि 5 के अंतर्गत आते हैं, और इसलिए, राज्यों को भी उन पर कानून बनाने का अधिकार है।

पृष्ठ्भूमि:

  • हाल ही में गुजरात और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों ने UCC को लागू करने के अपने इरादे की घोषणा की है।
  • पूरे देश में समान नागरिक संहिता (UCC) के कार्यान्वयन के लिए 09 दिसंबर, 2022 को राज्यसभा में एक निजी सदस्य विधेयक (private member bill) पेश किया गया था।
  • इस विधेयक में UCC की तैयारी और पूरे देश में इसके कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय निरीक्षण और जांच समिति की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया है।

साराश:

  • कई राज्य सरकारों की पहल और पूरे देश में UCC को लागू करने के लिए एक निजी सदस्य विधेयक की शुरूआत को गंभीर विरोध का सामना करना पड़ा है क्योंकि उनका मानना है कि प्रस्तावित कानून संविधान की भावना के खिलाफ है।

समान नागरिक संहिता मुद्दे पर अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Uniform Civil Code Issue

संपादकीय-द हिन्दू

संपादकीय:

अहस्तक्षेप का सिद्धांत:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था:

विषय: शक्तियों का पृथक्करण।

मुख्य परीक्षा: भारतीय संविधान में शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत।

संदर्भ:

  • हाल ही में, भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति ने विभिन्न अवसरों पर शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के महत्व पर प्रकाश डाला है।

भूमिका:

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित किए जा रहे संविधान दिवस समारोह में राष्ट्रपति ने अपने समापन भाषण में कहा कि “संविधान सुशासन के लिए एक मानचित्र की रूपरेखा तैयार करता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण विशेषता राज्य के तीन अंगों के कार्यों और शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत है।
  • उन्होंने इस बात की सराहना की कि किस तरह से तीन अंगों ने संविधान द्वारा निर्धारित सीमाओं का सम्मान किया है, जो हमारे गणतंत्र की पहचान रही है साथ ही उन्होंने तीनों अंगों को अत्यधिक “उत्साह” के प्रति सावधान भी किया, जिसके कारण “सीमाओं” का उल्लंघन हो सकता है।
  • उपराष्ट्रपति ने राज्य सभा के सभापति के रूप में 7 दिसंबर को पहली बार सदन को संबोधित किया।
  • अपने संबोधन में, उन्होंने कहा कि शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत की सर्वोच्चता तब महसूस की जाती है जब विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका मिलकर और एकजुटता से कार्य करती हैं और संबंधित क्षेत्राधिकार डोमेन के लिए सावधानीपूर्वक उनका पालन सुनिश्चित करती हैं।
  • इसके अलावा, उपराष्ट्रपति ने सर्वोच्च न्यायालय के 2015 के फैसले का संदर्भ दिया, जिसने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) और 99वें संशोधन को रद्द कर दिया, और पूछा कि कैसे न्यायपालिका ने सर्वसम्मति से पारित संवैधानिक प्रावधान को रद्द कर दिया जो लोगों की इच्छा को दर्शाता है।

शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत:

  • यह एक ऐसा सिद्धांत है जिसमें सरकार के तीन अंगों, कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के अलग-अलग कार्य और शक्तियाँ हैं, और ये एक अंग दूसरे के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करते हैं।
  • सरकार की शक्ति एक पक्ष के पास संकेंद्रित होने से खराब प्रबंधन, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और सत्ता के दुरुपयोग का खतरा होता है।
  • इसलिए, राष्ट्र में निरंकुश शासन को रोकने के लिए , कुशल शासन को प्रोत्साहन देने के लिए, विधायिका को मनमाने या असंवैधानिक कानून पारित करने से रोकने के लिए और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के लिए शक्तियों का पृथक्करण आवश्यक है।

शक्तियों के पृथक्करण के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Separation of Powers

सारांश:

  • न्यायिक नियुक्तियों की मौजूदा प्रक्रिया को लेकर केंद्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के बीच चल रहे टकराव (ongoing confrontation) के बीच शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति द्वारा की गई हालिया टिप्पणी अपना विशेष महत्व रखती है।

आरटीआई अधिनियम की कार्यप्रणाली:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

शासन:

विषय: शासन, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्वपूर्ण पहलू।

मुख्य परीक्षा: भारत में आरटीआई के क्रियान्वयन से संबंधित विभिन्न मुद्दे।

संदर्भ:

  • इस लेख में देश में आरटीआई अधिनियम के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है।

सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005:

  • प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम 2005 में अधिनियमित किया गया था।
  • यह अधिनियम नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरण के नियंत्रण के तहत सूचना तक सुरक्षित पहुंच के लिए सूचना के अधिकार का प्रावधान करता है।
  • साथ ही यह अधिनियम नागरिकों के अनुरोधों पर सरकारी सूचना के लिए समय पर प्रतिक्रिया देना भी आवश्यक बनाता है।
  • आरटीआई अधिनियम नागरिकों को नीति निर्माण प्रक्रिया में भाग लेने की शक्ति प्रदान करता है और सार्वजनिक प्राधिकरणों को उनके कामकाज में जवाबदेह और पारदर्शी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • आरटीआई का व्यापक रूप से विभिन्न कार्यकर्ताओं, वकीलों, नौकरशाहों, शोधकर्ताओं और पत्रकारों द्वारा उपयोग किया जाता है।
  • आरटीआई सहभागी लोकतंत्र का एक उल्लेखनीय उदाहरण है।

सूचना के अधिकार के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Right to Information

आरटीआई की प्रभावशीलता:

  • आरटीआई प्रामाणिक जानकारी तक पहुंच प्रदान करके आम आदमी को सशक्त बनाता है जो लोगों को अधिक जागरूक और सक्रिय बनाता है।
    • इसने नागरिकों को सार्वजनिक नीतियों की दक्षता और उनकी तर्कसंगतता पर सवाल उठाने और सहभागी लोकतंत्र में सुधार करने में मदद की है।
  • अधिनियम बेहतर पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ सार्वजनिक कार्यालयों की जांच की एक अतिरिक्त परत प्रदान करता है।
  • आरटीआई भारत में भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए एक उपकरण के रूप में उभरा है।
    • उदाहरण के लिए, एक गैर-लाभकारी संगठन, हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क द्वारा दायर एक आरटीआई से पता चला है कि दिल्ली सरकार ने राष्ट्रमंडल खेलों के लिए दलित समुदाय के कल्याण के लिए रखे गए फंड से 744 करोड़ रुपये डायवर्ट किए थे।
  • अधिनियम का नागरिक केंद्रित दृष्टिकोण लोगों के लिए कल्याणकारी कार्यक्रमों को चलाने में नागरिक-सरकार भागीदारी को बढ़ावा देता है।
  • आरटीआई अधिनियम एक बहुत मजबूत जमीनी आंदोलन के परिणामस्वरूप आया है, जिसमें लोगों ने सरकार से जानकारी प्राप्त करने के लिए कानून की मांग की थी। आरटीआई आवेदन दाखिल करना सीधी और सरल प्रक्रिया है।
    • अध्ययनों से पता चला है कि आरटीआई आवेदनों का एक बहुत बड़ा प्रतिशत सबसे गरीब और हाशिए पर मौजूद लोगों द्वारा दायर किया जाता है, जिसमें आमतौर पर ऐसी जानकारी मांगी जाती है जो उनके बहुत ही बुनियादी अधिकारों और हक्दारियों से संबंधित होती है।

क्रियान्वयन से संबंधित मुद्दे:

  • एक अनुमान के मुताबिक, हर साल 40 से 60 लाख के बीच आरटीआई आवेदन दायर किए जाते हैं, लेकिन वर्तमान आंकड़ों के अनुसार आज भी 3 प्रतिशत से भी कम भारतीय नागरिकों ने कभी आरटीआई याचिका दायर की है।
  • सतर्क नागरिक संगठन (SSN) और सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज (CES) द्वारा जारी ‘भारत में सूचना आयोगों का रिपोर्ट कार्ड, 2018-19’ के अनुसार, दाखिल किए गए आवेदनों में से, 45 प्रतिशत से कम को उनके द्वारा मांगी गई जानकारी प्राप्त हुई।
    • लेकिन सूचना प्राप्त नहीं करने वाले 55 प्रतिशत में से 10 प्रतिशत से भी कम लोगों ने इसके लिए अपील दायर की।
  • आरटीआई आवेदनों का उत्तर देने के लिए सरकारी कार्यालयों में पर्याप्त बुनियादी ढांचे और कर्मचारियों की कमी है।
  • आरटीआई कार्यकर्ताओं के खिलाफ धमकियों और हिंसा की घटनाओं से संबंधित मुद्दा भी है।
    • पिछले 15 वर्षों में आरटीआई आवेदन दायर करने वाले कम से कम 86 लोग मारे गए हैं जबकि 175 अन्य पर हमला किया गया है।
  • प्रस्तावित डेटा संरक्षण विधेयक आरटीआई कानून में इस तरह से संशोधन की व्यवस्था स्थापित करेगा जिसमें सभी व्यक्तिगत जानकारियों को छूट दी जाएगी।
    • आरटीआई अधिनियम के तहत प्रदान की जाने वाली संपूर्ण सक्रिय प्रकटीकरण योजना प्रस्तावित विधेयक में प्रावधानों के कारण पूरी तरह से कमजोर पड़ जाएगी।

सारांश:

  • आरटीआई का उपयोग व्यक्तिगत शिकायतों के निवारण, राशन कार्ड और पेंशन जैसी पात्रता तक पहुँचने, सरकारी नीतियों और निर्णयों की जाँच करने तथा भ्रष्टाचार और सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग को उजागर करने के लिए किया जा रहा है। प्रमुख बाधा आरटीआई कानून के बारे में जागरूकता की कमी और इसे व्यापक रूप से अपनाए जाने में कमी है।

प्रीलिम्स तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. अग्नि-V बैलिस्टिक मिसाइल:
  • भारत ने 16 दिसंबर,2022 को परमाणु-सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-V का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है।
  • अग्नि-5 सतह से सतह पर मार करने वाली सबसे उन्नत स्वदेश निर्मित बैलिस्टिक मिसाइल है।
    • अग्नि-5 एक “दागो और भूल जाओ” मिसाइल है, जिसे एक बार प्रक्षेपित किए जाने के बाद इंटरसेप्टर मिसाइल के अलावा किसी भी तरह से रोका नहीं जा सकता हैं।
  • अग्नि-5 का संचालन करने वाली सामरिक बल कमान (SFC) ने ओडिशा के तट पर स्थित एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से इस मिसाइल का सफल परीक्षण किया है।
    • SFC एक प्रमुख त्रि-सेवा गठन है जो सभी रणनीतिक संपत्तियों का प्रबंधन और प्रशासन करता है और भारतीय परमाणु कमांड प्राधिकरण के दायरे में आता है।
  • यह मिसाइल, जो तीन चरणों के ठोस ईंधन वाले इंजन का उपयोग करती है, को एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) के तहत रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित किया गया है।
  • यह मिसाइल 5,000 किमी तक के लक्ष्य को मार सकती है जो चीन के सबसे उत्तरी भाग और यूरोप के क्षेत्रों सहित लगभग पूरे एशिया को अपनी मारक सीमा के अंतर्गत शामिल करती है।

भारत की मिसाइलों के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Missiles of India

  1. महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र आयोग:
  • 54-सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद(ECOSOC) ने ईरान को महिलाओं की स्थिति (CSW) पर गठित आयोग से वर्ष 2026 में समाप्त होने वाले इसके चार साल के शेष कार्यकाल से हटाने के लिए 14 दिसंबर, 2022 को अमेरिका द्वारा प्रस्तुत एक प्रस्ताव को अपनाया है।
  • यह कार्रवाई ईरान में हिजाब को लेकर विरोध प्रदर्शनों पर वहां की सरकार द्वारा कि गई क्रूर कार्रवाई के मद्देनजर की गई है।
  • CSW की मार्च में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में वार्षिक बैठक होती है और इसे दुनिया में लैंगिक समानता के पैरोकारों की सबसे बड़ी सभा के रूप में वर्णित किया जाता है।
  • महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र आयोग (CSW) की स्थापना 1946 में हुई थी, और यह महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, दुनिया भर में महिलाओं के जीवन की वास्तविकता का दस्तावेजीकरण करने तथा लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण पर वैश्विक मानकों को आकार देने में सहायक बन गया है।
  • इसके 45 सदस्य समान भौगोलिक वितरण के आधार पर ECOSOC द्वारा चुने जाते हैं और चार साल तक काम करते हैं।

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. अग्नि-5 के संबंध में, निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर-मध्यम)

  1. यह सतह से हवा में मार करने वाली परमाणु सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल है।
  2. तीन चरणों के ठोस ईंधन वाले इंजन का उपयोग करने वाली परमाणु सक्षम मिसाइल को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित किया गया है।
  3. सामरिक बल कमान (SFC), जो देश के सामरिक और रणनीतिक परमाणु हथियारों के भंडार के प्रबंधन और प्रशासन के लिए जिम्मेदार है, अग्नि-5 का संचालन करती है।

विकल्प:

(a) केवल 1

(b) केवल 1 और 3

(c) केवल 2 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: c

व्याख्या:

  • कथन 1 गलत है: अग्नि-5 सतह से सतह पर मार करने वाली सबसे उन्नत स्वदेश निर्मित बैलिस्टिक मिसाइल है।
  • कथन 2 सही है: मिसाइल, जो तीन चरणों वाले ठोस ईंधन वाले इंजन का उपयोग करती है, को एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) के तहत रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित किया गया है।
  • कथन 3 सही है: सामरिक बल कमान (SFC) अग्नि-5 का संचालन करती है।
    • SFC एक प्रमुख त्रि-सेवा गठन है जो सभी रणनीतिक संपत्तियों का प्रबंधन और प्रशासन करता है और भारतीय परमाणु कमांड प्राधिकरण के दायरे में आता है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिएः (स्तर-कठिन)

परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थान

  1. काकरापार परमाणु ऊर्जा स्टेशन महाराष्ट्र
  2. कलपक्कम परमाणु ऊर्जा स्टेशन तमिलनाडु
  3. नरौरा परमाणु ऊर्जा स्टेशन उत्तर प्रदेश
  4. तारापुर परमाणु ऊर्जा स्टेशन गुजरात

उपर्युक्त युग्मों में से कितने सुमेलित हैं?

(a) केवल एक युग्म

(b) केवल दो युग्म

(c) केवल तीन युग्म

(d) सभी चारों युग्म

उत्तर: b

व्याख्या:

  • युग्म 1 गलत है: काकरापार परमाणु ऊर्जा स्टेशन गुजरात में स्थित एक परमाणु ऊर्जा स्टेशन है जो मांडवी और तापी नदी के निकट अवस्थित है।
  • युग्म 2 सही सुमेलित है: कलपक्कम/मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन चेन्नई के लगभग 70 किमी दक्षिण में पूर्वी तट पर तमिलनाडु के उत्तरी भाग में स्थित है।
  • युग्म 3 सही सुमेलित है: नरोरा परमाणु ऊर्जा स्टेशन (NAPS) उत्तर प्रदेश के नरौरा में स्थित एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र है।
  • युग्म 4 गलत है: तारापुर परमाणु ऊर्जा स्टेशन तारापुर, महाराष्ट्र में स्थित है। यह भारत में निर्मित पहला वाणिज्यिक परमाणु ऊर्जा स्टेशन था।

भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Nuclear Power Plants in India

प्रश्न 3. शून्यकाल के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर-मध्यम)

  1. प्रक्रिया के नियमों में शून्यकाल का उल्लेख नहीं है।
  2. शून्यकाल प्रश्नकाल के तुरंत बाद शुरू होता है और दिन के एजेंडे तक चलता है।
  3. यह संसदीय प्रक्रियाओं के क्षेत्र में एक भारतीय नवाचार है और 1950 से अस्तित्व में है।

विकल्प:

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: a

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: शून्य काल वह समय है जब संसद सदस्य (सांसद) अत्यावश्यक सार्वजनिक महत्व के मुद्दे उठा सकते हैं। प्रक्रिया के नियमों में इसका उल्लेख नहीं है।
  • कथन 2 सही है: शून्यकाल प्रश्नकाल के तुरंत बाद शुरू होता है और तब तक चलता है जब तक कि दिन के लिए एजेंडा ग्रहण नहीं कर लिया जाता।
  • कथन 3 गलत है: शून्यकाल संसदीय प्रक्रियाओं के क्षेत्र में एक भारतीय नवाचार है और 1962 से अस्तित्व में है।

प्रश्न 4. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर-कठिन)

  1. धमनीविस्फार (Aneurysm) एक रक्त वाहिका की दीवार में एक असामान्य उभार या गुब्बारा है।
  2. धमनियों की तुलना में धमनीविस्फार शिराओं में अधिक बहुधा देखा जाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से गलत है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) दोनों

(d) कोई भी नहीं

उत्तर: d

व्याख्या:

  • एक धमनीविस्फार रक्त वाहिका की भित्ति में एक उभरा हुआ, कमजोर क्षेत्र है जिसके परिणामस्वरूप रक्त वाहिनी के सामान्य व्यास (चौड़ाई) के 50% से अधिक असामान्य कोष्ठ या गुब्बारा निर्मित हो जाता है। धमनीविस्फार किसी भी रक्त वाहिका में हो सकता है, लेकिन इसे अक्सर शिरा के बजाय धमनी में देखा जाता है।

प्रश्न 5. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (CSE-PYQ-2022) (स्तर-कठिन)

  1. गुजरात में भारत का विशालतम सौर पार्क है।
  2. केरल में पूर्णतः सौर शक्तिकृत अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है।
  3. गोआ में भारत की विशालतम तैरती हुई सौर प्रकाश-वोल्टीय परियोजना है।

उपर्युक्त कथनों में कौन सा/से सही है/हैं?

(a) 1 और 2

(b) केवल 2

(c) 1 और 3

(d) केवल 3

उत्तर: b

व्याख्या:

  • कथन 1 गलत है: 2245 मेगावाट की क्षमता वाला राजस्थान का भादला सौर पार्क दुनिया का सबसे बड़ा सौर पार्क है।
  • कथन 2 सही है: कोचीन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, केरल दुनिया का पहला ऐसा हवाई अड्डा बन गया है जो पूरी तरह से सौर ऊर्जा द्वारा संचालित होता है। यह सार्वजनिक-निजी-भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत निर्मित भारत का पहला हवाई अड्डा है। यह प्लांट केरल राज्य में सोलर पीवी सिस्टम का पहला मेगावाट स्केल इंस्टालेशन भी है
  • कथन 3 गलत है: आंध्र प्रदेश में भारत का सबसे बड़ा तैरता सौर ऊर्जा संयंत्र है। राज्य द्वारा संचालित राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (NTPC) ने विशाखापत्तनम में अपने सिम्हाद्री थर्मल स्टेशन पर भारत की सबसे बड़ी तैरती सौर पीवी परियोजना का संचालन शुरू किया।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. क्या आपको लगता है कि भारत का संविधान शक्तियों के सख्त पृथक्करण के सिद्धांत को स्वीकार नहीं करता है बल्कि यह ‘नियंत्रण और संतुलन’ के सिद्धांत पर आधारित है? व्याख्या कीजिए। (10 अंक; 150 शब्द) (जीएस-2; राजव्यवस्था)

प्रश्न 2. क्या आरटीआई अपने प्रयोजन के अनुसार नागरिक और सरकार के बीच पारदर्शिता सुनिश्चित कर रहा है? समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। (15 अंक; 250 शब्द) (जीएस-2; शासन)