16 फरवरी 2023 : समाचार विश्लेषण
A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: स्वास्थ्य:
C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: अर्थव्यवस्था:
D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E. संपादकीय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
सामाजिक न्याय:
राजव्यवस्था:
F. प्रीलिम्स तथ्य:
G. महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: |
---|
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
तेल कंपनियों के अप्रत्याशित लाभ (windfall profits) पर कर लगाना:
अर्थव्यवस्था:
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास और रोजगार से संबंधित विषय।
प्रारंभिक परीक्षा: अप्रत्याशित कर (Windfall Taxes)।
मुख्य परीक्षा: अप्रत्याशित लाभ प्राप्ति के कारण और अप्रत्याशित लाभ कर लगाने के लाभ।
प्रसंग:
- केंद्र सरकार ने घरेलू स्तर पर उत्पादित कच्चे तेल और डीजल तथा विमानन टरबाइन ईंधन (ATF) के निर्यात पर लगाए गए अप्रत्याशित लाभ कर (विंडफॉल टैक्स) को घटा दिया है, जिसे 3 फरवरी, 2023 को बढ़ा दिया गया था।
विवरण:
- सरकार ने अब तेल की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के अनुरूप विंडफॉल टैक्स/अप्रत्याशित कर को 5,050 रुपये प्रति टन से घटाकर 4,350 रुपये प्रति टन कर दिया है।
- सरकार ने डीजल के निर्यात पर कर को 7.50 रुपये प्रति लीटर से घटाकर 2.50 रुपये प्रति लीटर और एटीएफ पर उत्पाद शुल्क को 6 रुपये प्रति लीटर से घटाकर 1.50 रुपये प्रति लीटर कर दिया है।
- हालांकि पेट्रोल पर शून्य विंडफॉल टैक्स/अप्रत्याशित कर जारी है।
अप्रत्याशित लाभ कर (windfall profit taxes) क्या है?
- अप्रत्याशित लाभ का तात्पर्य किसी बाहरी या अप्रत्याशित घटना के कारण किसी कंपनी के लाभ या कमाई में अप्रत्याशित वृद्धि से है, न कि किसी व्यावसायिक निर्णय के कारण हुए लाभ या वृद्धि से।
- यूएस कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (CRS) के अनुसार, अप्रत्याशित लाभ “बिना किसी अतिरिक्त प्रयास या खर्च के आय में अनर्जित, अप्रत्याशित लाभ” है।
- अप्रत्याशित लाभ के लिए किसी ऐसी चीज को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है जिसमें कोई इकाई सक्रिय रूप से शामिल है, जैसे निवेश की रणनीति या व्यापार का विस्तार।
- अप्रत्याशित लाभ कर वे हैं जिन्हें बाह्य या अभूतपूर्व घटनाओं (जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि) से किसी कंपनी को होने वाले लाभ (अप्रत्याशित लाभ) पर कर लगाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- आम तौर पर, सरकार कर की सामान्य दरों के ऊपर पूर्वव्यापी कर के रूप में अप्रत्याशित कर लगाती है।
- देश में अप्रत्याशित करों की समीक्षा पाक्षिक आधार पर की जाती है और यह तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों, विनिमय दरों और निर्यात की मात्रा जैसे विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है।
- तेल कंपनियों की वित्तीय स्थिति पर बी.के.चतुर्वेदी समिति ने वर्ष 2008 में टिप्पणी की थी कि अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने और पुनर्वितरण न्याय को आगे बढ़ाने के लिए अप्रत्याशित लाभ करों को लागू करना सरकारों के विशेषाधिकार के रूप में देखा जाता हैं।
- विंडफॉल टैक्स या स्पेशल एडिशनल एक्साइज ड्यूटी (SAED) पहली बार भारत द्वारा जुलाई 2022 में लगाया गया था।
- वित्त वर्ष 2022-23 में कच्चे तेल के उत्पादन तथा पेट्रोल, डीजल और ATF के निर्यात से भारत में SAED का संग्रह लगभग ₹25,000 करोड़ होने की उम्मीद है।
- अप्रत्याशित करों की वसूली के माध्यम से दुनिया भर की सरकारों का लक्ष्य:
- कंपनियों द्वारा कमाए गए भारी मुनाफे को भुनाना और इसे विशिष्ट घरेलू उद्देश्यों के लिए उपयोग करना।
- उपभोक्ताओं पर उच्च कीमतें आरोपित करने से उत्पादकों को हुए अप्रत्याशित लाभ का पुनर्वितरण करना।
- समाज कल्याण योजनाओं को वित्तपोषित करना।
- सरकार के लिए एक वैकल्पिक राजस्व सुनिश्चित करना जो अप्रत्याशित भू-राजनीतिक घटनाओं के दौरान काम आएगा।
अप्रत्याशित लाभ के कारण:
- रूस-यूक्रेन युद्ध दुनिया भर में तेल बाजार में अस्थिरता के प्रमुख कारणों में से एक है।
- रूस सबसे बड़े उत्पादकों में से एक होने के नाते वैश्विक तेल बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी है।
- हालाँकि, कई पश्चिमी देशों ने यूक्रेन में रूस की कार्रवाइयों के खिलाफ एक प्रतिशोधी कदम के रूप में रूस से अपने ऊर्जा आयात को रोकने या कम करने के उपाय किए हैं, जिसके कारण जीवाश्म ईंधन की कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई क्योंकि देश अब अपनी ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए अन्य आपूर्तिकर्ताओं की ओर रुख कर रहे हैं।
- जीवाश्म ईंधन की कीमतों में अचानक वृद्धि से प्रमुख तेल कंपनियों को लाभ हुआ है।
- रॉयटर्स के अनुसार, सभी “बिग ऑयल” कंपनियां जैसे बीपी, शेवरॉन, शेल, टोटल एनर्जी आदि ने 2022 में अपने मुनाफे को दोगुना कर दिया है।
- उनकी कमाई में अचानक हुई इस वृद्धि ने तेल कंपनियों को स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में उपाय करने के बजाय ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करने के लिए पारंपरिक स्रोतों में अपने निवेश को प्राथमिकता देने के लिए प्रभावित किया है।
तेल की कीमतों के लिए भावी कदम:
- भू-राजनीतिक संघर्ष की शुरुआत के करीब एक साल बाद अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) को वर्तमान में लगता है कि वैश्विक तेल बाजार अपेक्षाकृत शांत है।
- डीजल को छोड़कर सभी प्रकार के तेल की कीमतें पूर्व-युद्ध के स्तर पर वापस आ गई हैं और प्रतिबंधों के बावजूद रूसी तेल उत्पादन और निर्यात भी अपेक्षाकृत अच्छी तरह से चल रहे हैं।
- IEA को उम्मीद है कि वैश्विक तेल मांग 2023 में 2 mb/d बढ़कर 101.9 mb/d हो जाएगी और आपूर्ति पक्ष भी जनवरी 2023 में 100.8 mb/d पर स्थिर है।
- “अप्रत्याशित कर” से संबंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न वीडियो देखें: https://www.youtube.com/watch?v=Ttty6cAxnlk
सारांश:
|
---|
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
भारत के मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 को समझना:
स्वास्थ्य:
विषय: स्वास्थ्य से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
प्रारंभिक परीक्षा: भारत का मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)।
मुख्य परीक्षा: भारत में मानसिक स्वास्थ्य सुविधाएं और उससे संबंधित चुनौतियां।
प्रसंग:
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने भारत में सभी 46 सरकारी मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों की अमानवीय और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति पर प्रकाश डाला है।
विवरण:
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 (MHA) के कार्यान्वयन का आकलन करने के लिए सभी कार्यरत मानसिक स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों का दौरा किया हैं।
- एनएचआरसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ये संस्थाएं मरीजों के ठीक होने के लंबे समय बाद तक उन्हें अवैध रूप से अपने पास रख रही हैं जो मानसिक रूप से बीमार मरीजों के मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है।
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 (Mental Healthcare Act, 2017 (MHA)):
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 (MHA) के माध्यम से सरकार ने मानसिक रूप से बीमार रोगी के एक समुदाय के हिस्से के रूप में रहने के अधिकार को स्वीकार किया है और ऐसे व्यक्तियों के पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित किया है।
- अधिनियम की धारा 19 के अनुसार, सरकार को सामुदायिक जीवन के लिए कम प्रतिबंधात्मक विकल्पों तक पहुँचने के लिए रोगियों के लिए अवसर निर्मित करने के प्रयास करना अनिवार्य किया गया है, जिसमें हाफवे होम्स, आश्रय स्थल, पुनर्वास गृह आदि शामिल हैं।
- इसके अलावा यह अधिनियम स्वच्छता, सफाई, भोजन, मनोरंजन, गोपनीयता और बुनियादी ढांचे के लिए रोगियों के अधिकारों को मान्यता देता है और इस तथ्य को भी मान्यता प्रदान करता है कि ” जब तक की लोग अन्यथा/भिन्न साबित न हो जाए तब तक लोग सामर्थयवान होते हैं।
- अधिनियम ने यह भी स्वीकार किया कि आय, सामाजिक स्थिति और शिक्षा जैसे बाहरी कारकों का मानसिक कल्याण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, और इसलिए रिकवरी में मनोरोग और सामाजिक दोनों इनपुट शामिल होने चाहिए।
- यह अधिनियम भौतिक अवरोधों जैसे चेनिंग और अनमॉडिफाइड इलेक्ट्रो-कंवल्सिव थेरेपी (ECT) का उपयोग करने को भी हतोत्साहित करता है।
- अधिनियम की धारा 5 लोगों को अग्रिम स्वास्थ्य देखभाल निर्देश बनाने का अधिकार देती है, जिसे “जीवित इच्छा” के रूप में भी जाना जाता है।
- यह अधिनियम सभी राज्यों को एक राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड (State Mental Health Authority and Mental Health Review Boards (MHRBs)) स्थापित करने के लिए बाध्य करता है जो मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों के लिए मानकों का मसौदा तैयार कर सकते हैं, संस्थानों के कामकाज की निगरानी कर सकते हैं और अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित कर सकते हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, यह पहली बार था जब मानसिक स्वास्थ्य के प्रति मनोसामाजिक दृष्टिकोण अपनाया गया था।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 से संबंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए: Mental Healthcare Act, 2017
प्रमुख चुनौतियां:
- इस तथ्य के बावजूद कि गृह मंत्रालय ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों में लोगों के अधिकारों की रक्षा के उपायों को शामिल किया है, ऐसे प्रावधानों को लागू करना एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
- रिपोर्टों के अनुसार, सरकार द्वारा संचालित मनोरोग संस्थानों में लगभग 36.25% आवासीय सेवा उपयोगकर्ताओं को ऐसे संस्थानों में एक वर्ष या उससे अधिक समय तक रहते हुए देखा गया है।
- अधिकांश राज्यों ने अभी तक राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड (MHRBs) स्थापित नहीं किए हैं और यदि स्थापित भी हो गए हैं तो वे निष्क्रिय बने हुए हैं।
- राज्य अभी तक मानसिक स्वास्थ्य आपातकालीन सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक न्यूनतम मानकों को अधिसूचित करने में भी विफल रहे हैं।
- धन के अनुचित उपयोग के साथ-साथ बजटीय आवंटन की कमी भी इसकी कुछ प्रमुख चुनौतियों में से एक रही है।
- इसके अतिरिक्त, सुविधाओं की कमी, कर्मचारियों की कमी और नियोजित पेशेवरों का पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं होना भी समस्याएं हैं।
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम से संबंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए: National Mental Health Programme
सारांश:
|
---|
संपादकीय-द हिन्दू
संपादकीय:
रोगाणुरोधी प्रतिरोध ( Antimicrobial Resistance – AMR) का समाधान:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
विषय: विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव-रोगाणुरोधी।
मुख्य परीक्षा: रोगाणुरोधी प्रतिरोध ( Antimicrobial Resistance – AMR) के समक्ष चुनौतियाँ।
प्रसंग:
- इस लेख में रोगाणुरोधी प्रतिरोध ( Antimicrobial Resistance – AMR) के खतरों और इसके विरुद्ध आवश्यक प्रतिक्रिया पर चर्चा की गई है।
भूमिका:
- कोविड-19 महामारी ने सरकारों के लिए स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और किसी संकट के प्रति त्वरित प्रतिक्रिया करने की अविलंब आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance – AMR) की मौन महामारी दुनिया भर की सरकारों की कमज़ोर प्रतिक्रिया के कारण बढ़ती जा रही है।
- AMR मनुष्यों और जानवरों में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग और अति प्रयोग के कारण वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा है।
- यह सुनिश्चित करने में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है कि AMR वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंडे की प्राथमिकता बनी रहे क्योंकि भारत वर्तमान में G-20 की अध्यक्षता कर है और इस मौन महामारी के प्रति सुभेद्य भी है।
AMR का बोझ:
- AMR की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब सूक्ष्मजीव (जैसे जीवाणु, कवक, विषाणु और परजीवी) लगातार वृद्धि करने की क्षमता विकसित करते हैं, उस स्थिति में भी जब वे रोगाणुरोधी दवाओं के संपर्क में आते हैं जिनका निर्माण उन्हें मारने या उनके विकास को सीमित करने के लिए किया गया है [प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक्स), कवकरोधी (एंटीफंगल), विषाणुरोधी (एंटीवायरल), मलेरियारोधी (एंटीमलेरियल्स), और कृमिनाशक (एंथेलमिंटिक्स)]।
- नतीजतन, दवाएं अप्रभावी हो जाती हैं और शरीर में संक्रमण बना रहता है, जिससे इसके दूसरों में फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
- प्रतिजैविक दवाओं के लिए रोगाणु प्रतिरोध (Microbial Resistance) ने निमोनिया, तपेदिक (टीबी), रक्त-विषाक्तता (सेप्टीसीमिया) और कई खाद्य जनित रोगों जैसे संक्रमणों का इलाज करना कठिन बना दिया है।
- टीबी की वैश्विक महामारी बहुऔषध प्रतिरोध (Multidrug Resistance) से गंभीर रूप से प्रभावित हुई है- इसके रोगियों के ठीक होने की संभावना 60% से कम है।
- WHO के अनुसार, सिप्रोफ्लोक्सासिन [मूत्र मार्ग के संक्रमण का इलाज करने के लिए आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक)] का प्रतिरोध एस्चेरिशिया कोलाई (ई. कोलाई) के लिए 8.4% से 92.9% और क्लेबसिएला न्यूमोनिया [एक जीवाणु जो निमोनिया और गहन देखभाल इकाई (ICU) से संबंधित संक्रमण जैसे जानलेवा संक्रमण पैदा कर सकता है] के लिए 4.1% से 79.4% तक भिन्न होता है।
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध की निगरानी के लिए एक भारतीय नेटवर्क (Indian Network for Surveillance of Antimicrobial Resistance – INSAR) के अध्ययन ने सामान्य रूप से इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं जैसे कि सिप्रोफ्लोक्सासिन, जेंटामाइसिन, को-ट्रिमोक्साज़ोल, एरिथ्रोमाइसिन और क्लिंडामाइसिन के प्रतिरोध की उच्च दर की ओर इशारा किया है।
- 2019 में, AMR अनुमानित 4.95 मिलियन मानव मौतों के लिए जिम्मेदार था, जिसमें जीवाणु AMR के कारण 1.27 मिलियन मौतें हुई थीं।
- AMR के कारण लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहने, स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं और देरी से ठीक होने के कारण रोगी पर स्वास्थ्य संबंधी खर्च का बोझ अत्यधिक बढ़ जाता है।
- इसके कारण 2050 तक प्रति वर्ष 10 मिलियन लोगों की मृत्यु होने और वैश्विक अर्थव्यवस्था में $100 ट्रिलियन की कुल हानि का अनुमान है।
- AMR संचारी रोगों के बोझ को बढ़ाता है और देश की स्वास्थ्य प्रणालियों पर दबाव को बढ़ाता है।
AMR पर वैश्विक उच्च स्तरीय मंत्रिस्तरीय सम्मेलन:
- मस्कट, ओमान में आयोजित रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर तीसरे वैश्विक उच्च-स्तरीय मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (नवंबर 24-25, 2022) में 30 से अधिक देशों ने AMR पर मस्कट मंत्रिस्तरीय घोषणापत्र को स्वीकार किया।
- मस्कट घोषणापत्र ने AMR से प्रेरित स्वास्थ्य संकट को प्रभावी ढंग से रोकने, पूर्वानुमान और पता लगाने के लिए एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण के क्रियान्वयन में राजनीतिक प्रतिबद्धताओं में तेजी लाने की आवश्यकता को स्वीकृत किया।
- इसने AMR के प्रभाव को न केवल मनुष्यों पर बल्कि जानवरों पर और पर्यावरणीय स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा तथा आर्थिक वृद्धि और विकास के क्षेत्रों में भी संबोधित करने की आवश्यकता को भी स्वीकार किया है।
- सम्मेलन तीन स्वास्थ्य लक्ष्यों पर केंद्रित था:
- 2030 तक कृषि-खाद्य प्रणाली में उपयोग किए जाने वाले रोगाणुरोधी की कुल मात्रा को कम से कम 30-50% तक कम करना।
- मानव स्वास्थ्य के लिए चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण रोगाणुरोधियों के जानवरों और खाद्य उत्पादन में उपयोग को समाप्त करना।
- यह सुनिश्चित करना कि 2030 तक मनुष्यों में समग्र प्रतिजैविक खपत का कम से कम 60% ‘प्रतिजैविक दवाओं से संबंधित WHO “एक्सेस” समूह’ से प्रयोग किया जाए।
AMR और भारत:
- भारत में जीवाणु रोग का बोझ दुनिया में सबसे अधिक है।
- भारत में बड़ी आबादी मधुमेह, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों से पीड़ित है, जो उन्हें संक्रमण के प्रति प्रवण बनाता है।
- 40% बच्चे कुपोषित हैं और उन्हें संक्रमण का खतरा है।
- 2022 में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के एक अध्ययन से पता चला है कि ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीमाइक्रोबायल्स के लिए प्रतिरोध स्तर हर साल 5% से 10% तक बढ़ जाता है।
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर राष्ट्रीय कार्य योजना (2017-21) में स्वच्छ भारत अभियान (Swachh Bharat Abhiyan), कायाकल्प और स्वच्छ स्वस्थ सर्वत्र जैसे हाथों की स्वच्छता से संबंधी कार्यक्रमों के लिए सरकार की पहलों की प्रभावशीलता पर जोर दिया गया है।
- भारत निगरानी को मजबूत करने और नई दवाओं पर अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।
- भारत में निजी क्षेत्र की संलग्नता को बढ़ाने तथा WHO ग्लोबल एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस एंड यूज सर्विलांस सिस्टम (GLASS) और अन्य मानकीकृत प्रणालियों के समक्ष डेटा की रिपोर्टिंग करने की भी योजना बनाई जा रही है।
- सरकार ने विशेष रूप से पशु खाद्य उद्योग में स्वस्थ और बेहतर खाद्य उत्पादन प्रथाओं के बारे में सामुदायिक जागरूकता बढ़ाने का भी प्रयास किया है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में प्रतिजैविक दवाओं के ओवर-द-काउंटर उपयोग को सीमित करने और पशुधन में वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए प्रतिजैविक दवाओं के उपयोग को प्रतिबंधित करने के दिशानिर्देश हैं।
भावी कदम:
- AMR से निपटने के लिए प्रतिजैविक खपत की निरंतर निगरानी करने और उपयोग की जा रही प्रतिजैविक दवाओं के प्रकार और मात्रा की पहचान करने की आवश्यकता होती है।
- सरकार की नीतियों को भी धरातल पर मजबूती से लागू करने की जरूरत है।
- कृषि-खाद्य प्रणाली में रोगाणुरोधी उत्पादों के उपयोग को अत्यधिक कम किया जाना चाहिए।
- नीदरलैंड और थाईलैंड जैसे देशों ने इसके उपयोग में लगभग 50% की कमी की है।
- चीन में, कृषि क्षेत्र में प्रतिजैविक दवाओं की खपत में भारी गिरावट आई है।
- कई देशों में पिछले एक दशक में विकास को बढ़ावा देने के लिए स्वस्थ पशुओं में प्रतिजैविक दवाओं का उपयोग भी कम किया गया है।
- देशों को WHO के GLASS प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्राथमिक रोगजनकों की निगरानी करने – फेनोटाइपिक और जीनोटाइपिक दोनों – और डेटा साझा करने पर ध्यान देना चाहिए।
- नए प्रतिजैविकों के लिए अनुसंधान और नवाचार में अधिक सरकारी निवेश आवश्यक है।
- वैज्ञानिक समुदाय को मनुष्यों और जानवरों में AMR जीवों के कारण होने वाले कुछ संक्रमणों को रोकने के लिए टीकों के उपयोग पर अनुसंधान करना चाहिए।
- टीबी और औषधि – प्रतिरोधी टीबी (Drug-Resistant TB) से निपटने के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
- 2023 में होने वाले विभिन्न G-20 स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन भारत को यह सुनिश्चित करने का अवसर प्रदान करते हैं कि AMR के सभी पहलुओं पर ध्यान दिया जाए और सभी देश प्रगति के लिए प्रतिबद्ध हों।
सारांश:
|
---|
भारत में श्रीलंकाई शरणार्थी:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
सामाजिक न्याय:
विषय: सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
मुख्य परीक्षा: भारत और श्रीलंका के बीच सहमति और टकराव के प्रमुख मुद्दे।
प्रसंग:
- इस लेख में भारत में रह रहे श्रीलंकाई शरणार्थियों की स्थिति पर चर्चा की गई है।
भूमिका:
- श्रीलंका ने 25 से अधिक वर्षों तक चले एक गृहयुद्ध (civil war), जो 2009 में समाप्त हुआ, के कारण पिछले कुछ दशकों में बहुत विरोध और संघर्ष का अनुभव किया है।
- इस अवधि के दौरान कई श्रीलंकाई नागरिकों को अपने घरों से पलायन करने और भारत सहित अन्य देशों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
- श्रीलंका के लोगों ने तमिलनाडु में समान जातीयता की आबादी के बीच भारत में सुरक्षा की मांग की। विशाल जनसंख्या ने सुरक्षा की तलाश में भारत में प्रवेश किया, कई लोगों को बिना यात्रा दस्तावेजों के और मानवीय आधार पर भारत सरकार द्वारा शरण प्रदान की गई।
- भारत में श्रीलंकाई शरणार्थियों को भी अपने नए परिवेश में कई चुनौतियों और संघर्षों का सामना करना पड़ता है, और उनकी दुर्दशा को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।
भारत में शरणार्थी:
- गृह मंत्रालय (MHA) ने अपनी 2021-2022 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि 3,04,269 श्रीलंकाई शरणार्थियों ने 1983 और 2012 के बीच भारत में प्रवेश किया और उन्हें आश्रय, रियायती राशन, शैक्षिक सहायता, चिकित्सा देखभाल और नकद भत्ते सहित राहत प्रदान की गई है।
- वर्तमान में, 58,648 शरणार्थी तमिलनाडु में 108 शिविरों में रह रहे हैं जबकि 54 शिविर ओडिशा में हैं। तमिलनाडु के प्राधिकरणों के पास पंजीकृत अन्य 34,135 शरणार्थी शिविरों के बाहर रहते हैं।
- भारत सरकार ने शरणार्थियों के राहत और आवास के लिए ₹1,226 करोड़ प्रदान किए हैं।
श्रीलंकाई शरणार्थियों के समक्ष विभिन्न मुद्दे:
- भारत में श्रीलंकाई शरणार्थियों को भारत सरकार द्वारा शरण दी गई है, लेकिन उनकी स्थिति अनिश्चित बनी हुई है।
- उन्हें भारत में काम करने की अनुमति नहीं है, इसलिए, वे भारत सरकार के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (UNHCR) और विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों (NGO) से प्राप्त सहायता पर निर्भर हैं।
- शरणार्थी शिविरों में रहने की स्थिति अक्सर खराब होती है, जिसमें अपर्याप्त स्वच्छता, स्वच्छ पानी तक सीमित पहुंच और अत्यधिक भीड़भाड़ होती है।
- शरणार्थियों को मानव तस्करों द्वारा शोषण किए जाने का भी खतरा है, जो पैसे के बदले में उन्हें दूसरे देशों तक पहुंचाने में मदद करने का वादा करते हैं।
- भारत में श्रीलंकाई शरणार्थियों के पास कानूनी दर्जे का अभाव है क्योंकि उन्हें नागरिकता नहीं दी जाती है, जिसका अर्थ है कि वे कई बुनियादी अधिकारों और सेवाओं का उपयोग करने में असमर्थ हैं।
- भारत में श्रीलंकाई शरणार्थियों को भी अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्हें भारतीय समाज में एकीकृत होने की अनुमति नहीं है। उन्हें अक्सर बाहरी लोगों के रूप में देखा जाता है और स्थानीय लोगों से भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
स्वदेश वापसी की धीमी प्रगति:
- भारत सरकार का उद्देश्य श्रीलंका में शरणार्थियों का प्रत्यावासन (अपने देश में वापस भेजना) है। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ शरणार्थियों पर वैश्विक समझौते (Global Compact on Refugees) के अनुरूप, सुरक्षित और स्थायी वापसी के लिए श्रीलंका के भीतर परिस्थितियों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
- मार्च 1995 तक लगभग 99,469 शरणार्थियों को श्रीलंका वापस भेज दिया गया था और उसके बाद कोई संगठित प्रत्यावासन नहीं किया गया।
- इनमें भारतीय मूल के 30,000 व्यक्ति (जो “पहाड़ी तमिल” के रूप में भी जाने जाते हैं) हैं। वे 1964, 1974 और 1987 के भारत-श्रीलंका समझौतों और श्रीलंकाई कानून (भारतीय मूल के व्यक्तियों को नागरिकता की प्रदायगी अधिनियम) के लिए किए गए संशोधनों के माध्यम से श्रीलंका की नागरिकता का दावा करते हैं।
- भारत में श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी जो स्वेच्छा से लौटना चाहते हैं, उन्हें श्रीलंका सरकार और विकास भागीदारों द्वारा सुविधा प्रदान की जा रही है।
- उन्होंने उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में स्थानीय आबादी के लिए पुनर्वास, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे, आजीविका और सामाजिक सेवाओं की बहाली के उद्देश्यों के साथ कार्यक्रम शुरू किए हैं।
- इससे महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं जैसे; आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों (IDPs) की वापसी, बुनियादी ढांचे का विकास, कृषि और आजीविका का विस्तार।
- पिछले वर्ष के दौरान, 208 व्यक्ति स्वेच्छा से लौटे हैं।
- इन प्रयासों के बावजूद, कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिनमें रिकवरी की ज़रूरतों के लिए धन की कमी भी शामिल है।
- 2019 में ईस्टर बमबारी के बाद कोविड-19 ने विकास प्रक्रिया को धीमा कर दिया, 2022 के आर्थिक और राजनीतिक संकट के कारण स्थित और जटिल हो गई।
- हालांकि, कंकेनसंथुराई के लिए फेरी सेवा शुरू करने और भारत से जाफना के लिए सीधी उड़ानें शुरू करने की हालिया घोषणाओं से विश्वास बहाली और लौटने के इच्छुक लोगों को सहायता मिलने की उम्मीद है।
स्वैच्छिक वापसी का मुद्दा:
- चुनौतियों के बावजूद, भारत में श्रीलंकाई शरणार्थियों ने उल्लेखनीय लचीलापन और साधन संपन्नता दिखाई है। उनमें से कई ने अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए शरणार्थी शिविरों में छोटे-छोटे व्यवसाय स्थापित किए हैं, जैसे सिलाई या फूड स्टॉल।
- UNHCR और विभिन्न गैर सरकारी संगठन भारत में श्रीलंकाई शरणार्थियों का समर्थन करने के लिए काम कर रहे हैं, उन्हें सहायता और कानूनी सहायता प्रदान कर रहे हैं। वे शरणार्थियों अधिकारों और शरणार्थी शिविरों में रहने की बेहतर स्थितियों की भी वकालत करते रहे हैं।
- हाल के वर्षों में, भारत सरकार ने कुछ शरणार्थियों को शिविरों को छोड़कर भारत के अन्य हिस्सों में बसने की अनुमति दी है, और कुछ को भारतीय नागरिकता भी प्रदान की गई है।
- इसलिए, भारत में श्रीलंकाई शरणार्थियों की एक बड़ी आबादी वापस नहीं लौटना चाहती, भारत को अपना घर बुलाना पसंद करती है क्योंकि वे भारत में पैदा हुए हैं और उन्हें अपने मूल देश के बारे में कोई ज्ञान या अनुभव नहीं है।
- UNHCR शरणार्थी के रूप में सामजिक स्थिति को समाप्त करने के लिए स्वैच्छिक वापसी को सबसे वांछित विकल्प मानता है।
सारांश:
|
---|
भारत-श्रीलंका संबंधों के बारे में अधिक जानकारी के लिए: India-Sri Lanka Relations
सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों की राजनीतिक नियुक्ति:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
राजव्यवस्था:
विषय: भारतीय संविधान में नियंत्रण और संतुलन के प्रावधान ।
मुख्य परीक्षा: भारत में न्यायाधीशों के लिए सेवानिवृत्ति के बाद की अन्य पद पर नियुक्ति के निहितार्थ।
संदर्भ:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस. अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है।
भूमिका:
- न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद की राजनीतिक नियुक्तियों का तात्पर्य न्यायपालिका में पूर्व में सेवा दे चुके एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश को सरकार या अन्य सार्वजनिक पद प्रदान करने की प्रथा से है।
- ये नियुक्तियां आमतौर पर सत्तारूढ़ सरकार या राजनीतिक दल द्वारा की जाती हैं, और न्यायपालिका में सेवा देने वाले न्यायाधीशों को पुरस्कृत करने और शासन में उनकी विशेषज्ञता का उपयोग करने के तरीके के रूप में देखी जाती हैं।
- हालाँकि, इस प्रथा की आलोचना न्यायपालिका को प्रभावित करने, उनकी स्वतंत्रता से समझौता करने और न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को कम करने के रूप में की गई है।
- हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त होने के एक महीने के भीतर, न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
पिछले उदाहरण:
- 1950 के बाद से, भारत के 44 ऐसे मुख्य न्यायाधीश हुए हैं जिन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद अन्य पद को स्वीकार किया है।
- एक अध्ययन के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के 100 से अधिक सेवानिवृत्त न्यायाधीशों में से 70 ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग , राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, सशस्त्र बल न्यायाधिकरण, भारतीय विधि आयोग आदि जैसे संगठनों में पदभार संभाले हैं।
- पूर्व CJI जस्टिस रंगनाथ मिश्रा को 1992 में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। वह 1998 में कांग्रेस सदस्य के रूप में राज्यसभा के सदस्य बने।
- 2014 के बाद से, जस्टिस एस. अब्दुल नजीर सर्वोच्च न्यायालय के चौथे जज हैं, जिन्हें सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद एक उच्च राजनीतिक पद प्राप्त हुआ है।
- न्यायमूर्ति पी सदाशिवम को केरल के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था, और भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई को उनकी सेवानिवृत्ति के चार महीने बाद ही 2020 में राज्यसभा के लिए नामित किया गया था।
- न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी, जो तब सर्वोच्च न्यायालय के सिटिंग जज थे, को 2019 में उनकी सेवानिवृत्ति से ठीक तीन दिन पहले सरकार द्वारा कॉमनवेल्थ सेक्रेटेरिएट आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल में नामित किया गया था।
- विधिक समुदाय और मीडिया द्वारा व्यापक रूप से इन नियुक्तियों की आलोचना की गई थी, जिसमें कई का तर्क है कि यह सरकार और न्यायाधीशों के बीच एक क्विड प्रो क्वो (Quid Pro Quo) यानी लाभ के लिए आपसी समझौते का मामला था।
राजनीतिक नियुक्तियों के मुद्दे:
- इन नियुक्तियों को लेकर हो रहे विवाद ने न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों के लिए चयन प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला हैं।
- ऐसी नियुक्तियों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों और मानदंडों की कमी ने पक्षपात और राजनीतिक संरक्षण के आरोपों को जन्म दिया है, और न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर सवाल उठाए हैं।
- यह धारणा कि न्यायाधीशों को उनके फैसलों या उनकी राजनीतिक संबद्धता के लिए पुरस्कृत किया जा रहा है, न्यायपालिका की विश्वसनीयता को कमजोर कर सकता है। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर एक संक्षारक प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि नागरिकों का उनके अधिकारों की रक्षा करने और न्याय सुनिश्चित करने वाली संस्थाओं में विश्वास कम हो जाता है।
- सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों की राजनीतिक नियुक्तियों के साथ एक और चिंता हितों के बीच टकराव की संभावना है।
- जब एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश को किसी सरकारी पद पर नियुक्त किया जाता है, तो उन्हें निर्णय लेने के लिए बुलाया जा सकता है जो उन मामलों को प्रभावित कर सकते हैं जिसकी सुनवाई उन्होंने पहले न्यायाधीशों के रूप में की थी।
- न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद की राजनीतिक नियुक्तियाँ न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच एक रिवोल्विंग डोर निर्मित कर सकती हैं, जहाँ न्यायाधीश सरकार की दो शाखाओं के बीच कार्य करते हैं।
- इससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है जहां न्यायाधीशों द्वारा सरकार के अनुकूल निर्णय लेने की अधिक संभावना होती है, क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसा करने पर उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद अन्य पद पर नियुक्ति से पुरस्कृत किया जा सकता है।
नियुक्तियों के पक्ष में तर्क:
- न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद की राजनीतिक नियुक्तियों से सरकार सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की विशेषज्ञता का दोहन करने और उनके ज्ञान और अनुभव का लाभ उठाने में सक्षम होती है।
- विदेशों के विपरीत भारत में उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीश तुलनात्मक रूप से कम उम्र में सेवानिवृत्त होते हैं और अन्य कई वर्षों के उत्पादक कार्य करने में सक्षम होते हैं।
- अधिकांश पदों पर पूर्व न्यायाधीशों की नियुक्ति की वैधानिक आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)।
भावी कदम:
- न्यायपालिका को सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी नियुक्तियों को विनियमित करने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता है।
- न्यायाधिकरणों और न्यायिक निकायों में सक्षम सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति करने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों का एक आयोग स्थापित करने के लिए एक कानून बनाया जा सकता है।
- किसी भी मामले में, सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी न्यायिक भूमिका को लेने के लिए एक न्यायाधीश के सहमत होने से पहले न्यूनतम दो साल की कूलिंग अवधि को अनिवार्य किया जाना चाहिए।
- जब सरकार स्वयं मामले में पक्षकार हो और साथ ही नियुक्ति प्राधिकारी भी हो तो नियुक्ति प्रक्रिया के परिणामस्वरूप निर्णय प्रभावित नहीं होने चाहिए।
- जजों की सेवानिवृत्ति की उम्र को बढ़ाया जा सकता है।
- पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा ने सुझाव दिया था कि एक न्यायाधीश के सेवानिवृत्त होने से पहले, सरकार को पेंशनभोगी होने या मौजूदा वेतन प्राप्त करने का विकल्प प्रदान करना चाहिए।
- यदि वे पेंशन का विकल्प चुनते हैं, तो सरकारी नौकरी चली जाती है लेकिन यदि उन्होंने पूर्ण वेतन का विकल्प चुना है, तो उस नाम को एक पैनल में रखा जाना चाहिए।
- जब कोई रिक्ति होती है, तो इन व्यक्तियों पर विचार किया जा सकता है और प्रक्रिया तुष्टिकरण, पक्षपात आदि के आरोपों से रहित हो जाती है।
सारांश:
|
---|
प्रीलिम्स तथ्य:
1.आईएनएस विक्रांत:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
रक्षा:
विषय: रक्षा और सुरक्षा
प्रारंभिक परीक्षा: आईएनएस विक्रांत से संबंधित जानकारी।
प्रसंग
- नौसेनाध्यक्ष के अनुसार, आईएनएस विक्रांत साल के अंत (2023) तक पूरी तरह से परिचालन में आ जाएगा।
आईएनएस विक्रांत:
- आईएनएस विक्रांत भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत है।
- आईएनएस विक्रांत को भारत द्वारा निर्मित अब तक का सबसे जटिल युद्धपोत माना जाता है और 43,000 टन की विस्थापन क्षमता के साथ आईएनएस विक्रांत दुनिया में विमान वाहक पोतों में सातवां सबसे बड़ा पोत होगा।
- आईएनएस विक्रांत को भारतीय नौसेना के इन-हाउस वॉरशिप डिज़ाइन ब्यूरो (WDB) द्वारा डिज़ाइन किया गया था और इसे कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा बनाया गया था, जो कि पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र का शिपयार्ड है।
- आईएनएस विक्रांत को 7,500 समुद्री मील की क्षमता के साथ 28 समुद्री मील की अधिकतम गति तक पहुंचने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- स्वदेशी विमान वाहक आईएनएस विक्रांत एक 18-मंज़िला ऊंचा जहाज है जिसमें लगभग 2,400 कोष्ठ (कम्पार्टमेंट) हैं जो चालक दल के 1,600 सदस्यों को समायोजित कर सकते हैं।
- अपने पूर्ण परिचालन मोड में, आईएनएस विक्रांत में 30 विमानों से युक्त एक एयर विंग होगा जिसमें मिग-29K फाइटर जेट्स, कामोव-31 हेलीकॉप्टर, MH-60R मल्टी-रोल हेलीकॉप्टर, एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (ALH) और लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) जैसे विमान शामिल हैं।
- आईएनएस विक्रांत में एयरक्राफ्ट को लॉन्च करने के लिए स्की-जंप के साथ शॉर्ट टेक ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी (STOBAR) मॉडल का उपयोग किया जाता है।
आईएनएस विक्रांत के बारे में अधिक जानकारी के लिए: INS Vikrant
महत्वपूर्ण तथ्य:
- एक अध्ययन के अनुसार गर्म पानी अंटार्कटिका के ग्लेशियर को पिघला रहा है:
- नेचर पत्रिका में प्रकाशित दो पत्रों में बताया गया है कि गर्म पानी अदृढ़ स्थानों में रिस रहा है और इसके कारण अंटार्कटिका में तापमान बढ़ रहा है जिससे गलन की स्थिति और बिगड़ रही है।
- अंटार्कटिका के थ्वाइट्स ग्लेशियर, जो “डूम्सडे ग्लेशियर” के नाम से भी प्रसिद्ध है, का अध्ययन करते समय वैज्ञानिकों ने ऐसी घटनाओं को देखा है।
- थवाइट्स ग्लेशियर लगभग फ्लोरिडा और जितना बड़ा है और यह वैश्विक समुद्र स्तर की वृद्धि क्षमता में आधे मीटर (1.6 फीट) से अधिक का कारण है। इसके अलावा, यह नज़दीकी ग्लेशियरों को भी अस्थिर कर सकता है जो बाद में समुद्र स्तर में तीन-मीटर (9.8-फीट) वृद्धि का कारण बन सकते हैं।
- जो वैज्ञानिक पहले बर्फ के व्यवहार का अध्ययन करने के लिए उपग्रह चित्रों पर निर्भर थे, वे अब आइसफिन नामक एक पानी के नीचे चलने वाले रोबोट वाहन का उपयोग कर रहे हैं, जो ग्लेशियर की ग्राउंडिंग लाइन की निगरानी में भी मदद कर सकता है।
- भारत के G-20 शेरपा का कहना है कि चीन द्वारा गरीब देशों को दिए गए ऋणों में मात्रात्मक छूट देनी चाहिए:
- विकासशील देशों के लिए चीनी ऋण का सीधा संदर्भ देते हुए, भारत के G -20 शेरपा ने कहा है कि चीन को गरीब देशों को अपने ऋणों पर मात्रात्मक छूट के लिए सहमत होना चाहिए ताकि उनकी आर्थिक सुधार में मदद मिल सके।
- उन्होंने आगे सवाल किया कि चीनी ऋण की अदायगी के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) कैसे छूट प्रदान कर सकता है।
- यहां तक कि अमेरिका ने भी अक्सर विकासशील देशों में चीनी कर्ज की आलोचना की है लेकिन भारत ने देशों के संप्रभु ऋण पर टिप्पणी करते हुए चीन का उल्लेख नहीं किया था।
- IMF, विश्व बैंक और भारत (G20 के वर्तमान अध्यक्ष) द्वारा आयोजित ग्लोबल सॉवरेन डेट राउंड-टेबल की एक वर्चुअल बैठक से पहले इन बयानों को महत्व मिला है।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर – मध्यम)
- केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण MoEFCC के तहत एक कार्यकारी निकाय है।
- देश के प्रत्येक चिड़ियाघर को इसके द्वारा मान्यता प्रदान की जानी चाहिए।
- भारत और किसी अन्य देश के बीच होने वाले जानवरों के किसी भी आदान-प्रदान को प्राधिकरण द्वारा अधिकृत किया जाना चाहिए।
विकल्प:
- 1 और 2
- 2 और 3
- 1 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: b
व्याख्या:
- कथन 1 गलत है: केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय(MoEFCC) के तहत काम करने वाला एक वैधानिक निकाय (statutory body) है।
- केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण का गठन वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम,1972 के प्रावधानों के आधार पर किया गया था।
- कथन 2 सही है: देश के प्रत्येक चिड़ियाघर को अपने संचालन के लिए केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से मान्यता प्राप्त करना आवश्यक है।
- कथन 3 सही है: एक्ज़िम नीति (EXIM Policy) और साइट्स की अनुमति (CITES permits) के तहत आवश्यक मंजूरी से पहले भारतीय और विदेशी चिड़ियाघरों के बीच जानवरों के आदान-प्रदान को केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण द्वारा भी अनुमोदित किया जाता है।
प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर – कठिन)
- क्यूपर/कुइपर बेल्ट (Kupier’s belt) मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच स्थित है।
- रॉश लिमिट उस दूरी को निर्धारित करती है जिसके बाद धूल के कण ग्रह के चारों ओर एक वलय के बजाय चंद्रमा के रूप में मौजूद हो सकते हैं।
विकल्प:
- केवल 1
- केवल 2
- 1 और 2 दोनों
- न तो 1, न ही 2
उत्तर: b
व्याख्या:
- कथन 1 गलत है: क्यूपर/कुइपर बेल्ट नेप्च्यून की कक्षा के ठीक बाहर बर्फीले पिंडों का एक छल्ला है। प्लूटो सबसे प्रसिद्ध कुइपर बेल्ट पिंड है।
- क्यूपर/कुइपर बेल्ट नेप्च्यून से परे एक डिस्क के आकार का क्षेत्र है।
- कथन 2 सही है: रॉश लिमिट एक गणितीय रूप से निर्धारित दूरी है जिसके आगे छल्ले मौजूद नहीं हैं।
- यदि चंद्रमा को पृथ्वी के करीब लाया जाता है, तो ज्वारीय बल उपग्रह के गुरुत्वाकर्षण को निष्प्रभावी कर देगा जिससे चन्द्रमा खंडित हो जाएगा, और चंद्रमा एक वलय में बदल जाएगा। जिस न्यूनतम दूरी पर ऐसा होता है उसे रॉश लिमिट/सीमा के रूप में जाना जाता है।
- रॉश लिमिट/सीमा किसी भी ग्रह और उसके आसपास के खगोलीय पिंडों पर लागू होती है।
प्रश्न 3. निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर – मध्यम)
- “आईएनएस विक्रांत” भारत का एक सक्रीय विमानवाहक पोत है।
- आईएनएस विक्रमादित्य के बाद यह दूसरा स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत है।
विकल्प:
- केवल 1
- केवल 2
- 1 और 2 दोनों
- न तो 1, न ही 2
उत्तर: d
व्याख्या:
- कथन 1 गलत है: नौसेनाध्यक्ष ने घोषणा की है कि आईएनएस विक्रांत 2023 के अंत तक पूरी तरह परिचालन में आ जाएगा।
- कथन 2 गलत है: INS विक्रांत भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत है।
- INS विक्रमादित्य भारतीय नौसेना का विमानवाहक पोत है और यह रूसी नौसेना के सेवामुक्त पोत एडमिरल गोर्शकोव मिसाइल क्रूजर वाहक को परिवर्तित कर बनाया गया एक युद्धपोत है।
प्रश्न 4. निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर – कठिन)
- “डूम्सडे ग्लेशियर” (Doomsday Glacier) पश्चिम अंटार्कटिका में स्थित है।
- अंतर्राष्ट्रीय थ्वाइट्स (Thwaites) ग्लेशियर सहयोग अमेरिकी और ब्रिटिश वैज्ञानिकों का एक समूह है जो डूम्सडे ग्लेशियर का अध्ययन कर रहा है।
विकल्प:
- केवल 1
- केवल 2
- 1 और 2 दोनों
- न तो 1, न ही 2
उत्तर: c
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: थ्वाइट्स ग्लेशियर जो डूम्सडे ग्लेशियर के रूप में भी प्रसिद्ध है, पश्चिम अंटार्कटिका में स्थित है।
- यह पृथ्वी के सबसे चौड़े ग्लेशियरों में से एक है।
- कथन 2 सही है: अंतर्राष्ट्रीय थ्वाइट्स ग्लेशियर सहयोग (International Thwaites Glacier Collaboration (ITGC)) अंटार्कटिका में सबसे अस्थिर ग्लेशियरों में से एक की जांच के लिए यूएस-नेशनल साइंस फाउंडेशन (National Science Foundation (NSF)) एवं यूके-नेचुरल एनवायरनमेंट रिसर्च काउंसिल (Natural Environment Research Council (NERC)) के बीच का एक सहयोग है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित में से किससे/किनसे भारत में अंग्रेजी शिक्षा की नींव पड़ी? (PYQ 2018) ((स्तर – मध्यम))
- 1813 का चार्टर ऐक्ट
- जनरल कमिटी ऑफ़ पब्लिक इंस्ट्रक्शन, 1823
- प्राच्यविद् एवं आंग्लविद् विवाद
निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिए:
- केवल 1 और 2
- केवल 2
- केवल 1 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: d
व्याख्या:
- चार्टर एक्ट 1813 में ईस्ट इंडिया कंपनी को भारतीयों की शिक्षा पर हर साल 1 लाख खर्च करने का आदेश दिया गया था।
- 1823 में शैक्षिक मामलों, विशेष रूप से एक लाख रुपये की राशि के व्यय के नियोजन के लिए सार्वजनिक निर्देश की सामान्य समिति (जनरल कमिटी ऑफ़ पब्लिक इंस्ट्रक्शन) बनाई गई थी।
- प्राच्यविद्-आंग्लविद् विवाद शिक्षा की प्रकृति के संबंध में एक विवाद था जो कि ब्रिटिश-ईस्ट इंडिया कंपनी को अपने क्षेत्र में स्थानीय आबादी को प्रदान करना था।
- डॉ. एच.एच.विल्सन और एच.टी. प्रिंसेप के नेतृत्व में प्राच्यविदों ने शिक्षा के माध्यम के रूप में संस्कृत, अरबी और फारसी की वकालत की।
- दूसरी ओर चार्ल्स ट्रेवेलियन, एलफिन्स्टन के नेतृत्व में आंग्लविदों ने अंग्रेजी के माध्यम से पश्चिमी शिक्षा प्रदान करने की वकालत की थी।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. दशकों से सरकार तमिलनाडु में श्रीलंकाई शरणार्थियों को फिर से बसाने में क्यों विफल रही है? इसके संभावित उपायों की पहचान कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस II – सामाजिक न्याय)
प्रश्न 2. अल्पावधि में विंडफॉल कर एक आकर्षक विचार हो सकता है, लेकिन दीर्घावधि में इसके लाभ से अधिक हानि है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस III – अर्थशास्त्र)