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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 16 May, 2023 UPSC CNA in Hindi

16 मई 2023 : समाचार विश्लेषण

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

सामाजिक मुद्दे:

  1. कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न:

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

अर्थव्यवस्था:

  1. आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS) लेनदेन मॉडल में क्या खामियां हैं?

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

राजव्यवस्था:

  1. शिवसेना के मुद्दे पर निर्णय का विश्लेषण:
  2. न्यायालय द्वारा फ़ैसले की वापसी जो अभियुक्तों के अधिकारों को प्रभावित करती है:

F. प्रीलिम्स तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. शहरों में जीरो वेस्ट के लिए वन-स्टॉप सेंटर शुरू किए जाएंगे:
  2. रक्षा मंत्रालय के iDEX ने महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की:

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न:

सामाजिक मुद्दे:

विषय: महिलाओं से संबंधित मुद्दे।

प्रारंभिक परीक्षा: PoSH अधिनियम से संबंधित जानकारी।

मुख्य परीक्षा: PoSH अधिनियम से संबंधित विवरण, सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ और अधिनियम के कार्यान्वयन में बाधाएं।

प्रसंग:

  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (PoSH अधिनियम) के कार्यान्वयन के संबंध में “गंभीर चूक” और “अनिश्चितता” देखी है।

PoSH अधिनियम:

  • विशाखा बनाम राजस्थान राज्य मामले (विशाखा केस) (Vishakha v/s State of Rajasthan case (Vishakha Case)) की सुनवाई करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने “कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न” के खिलाफ महिलाओं की रक्षा करने वाले कानून की अनुपस्थिति को स्वीकार किया और वर्ष 1997 में “विशाखा दिशानिर्देश” नामक दिशानिर्देशों का एक सेट निर्धारित किया।
  • वर्ष 2007 में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण विधेयक तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री द्वारा पेश किया गया था , जिसे कई बार संशोधित किया गया और अंततः दिसंबर 2013 में इसे कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम या पॉश अधिनियम के रूप में पारित किया गया।
  • PoSH अधिनियम के अनुसार यौन उत्पीड़न में शारीरिक संपर्क और यौन आग्रह, यौन संबंध की मांग या अनुरोध, यौन संबंधी भद्दी टिप्पणियां करना, अश्लील साहित्य दिखाना, और यौन प्रकृति का कोई अन्य अवांछित शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक आचरण जैसे कार्य शामिल हैं।
  • अधिनियम के तहत, सभी महिला कर्मचारी, अपने रोजगार के प्रकार यानी नियमित, अस्थायी, संविदात्मक, तदर्थ या दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी को ध्यान में रखे बिना, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के निवारण की मांग कर सकती हैं।
  • कानून पूरे भारत में सभी सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के संगठनों पर भी लागू होता है।
  • PoSH अधिनियम में यह अनिवार्य है कि 10 से अधिक कर्मचारियों वाले नियोक्ताओं को एक आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन करना चाहिए जिससे औपचारिक यौन उत्पीड़न शिकायत दर्ज करने के लिए महिला कर्मचारियों से संपर्क किया जा सके।
  • आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की संरचना:
    • ICC में आमतौर पर चार सदस्य होते हैं।
    • एक महिला इसमें अध्यक्ष होगी।
    • कर्मचारियों में दो सदस्य होंगे।
    • साथ ही इसमें तीसरे पक्ष का एक सदस्य होगा जैसे कि एक एनजीओ कार्यकर्ता जिसे पांच साल का अनुभव हो और यौन उत्पीड़न की चुनौतियों से परिचित हो।
    • कुल सदस्यों में से कम से कम आधे सदस्य महिलाएँ होंगी।
  • PoSH अधिनियम देश के प्रत्येक जिले में 10 से कम कर्मचारियों वाली फर्मों और अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं, घरेलू कामगारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि से शिकायतें प्राप्त करने के लिए एक स्थानीय शिकायत समिति (LCC) स्थापित करने की भी अपेक्षा करता है।
  • जिला अधिकारी को सात दिनों के भीतर शिकायत प्राप्त करने और उसे समिति को अग्रेषित करने के लिए ग्रामीण या आदिवासी क्षेत्र में प्रत्येक ब्लॉक, तालुका और तहसील और शहरी क्षेत्र में वार्ड या नगर पालिका में एक नोडल अधिकारी नामित करना चाहिए।
  • कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम से संबंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए: Prevention of Sexual Harassment At Work Place

PoSH अधिनियम के कार्यान्वयन में प्रमुख बाधाएँ:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने ICCs की स्थापना में खामियों को चिह्नित किया है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने एक समाचार पत्र की रिपोर्ट का हवाला दिया जिसके अनुसार देश के 30 राष्ट्रीय खेल संघों में से 16 ने आज तक ICC की स्थापना नहीं की है।
  • अदालत ने उन मामलों में ICC की अनुचित तरीके से की गई स्थापना का भी उल्लेख किया जहां वे स्थापित किए गए थे।
  • इन ICC में सदस्यों की संख्या अपर्याप्त थी या अनिवार्य बाहरी सदस्यों की कमी थी।
  • साथ ही इस बात को लेकर भी चिंताएँ रही हैं कि यह कानून जवाबदेही के पहलू को संबोधित नहीं करता है क्योंकि इसमें निम्नलिखित बातों का उल्लेख नहीं किया गया है:
    • यह सुनिश्चित करने का प्रभारी कौन है कि कार्यस्थल कानून का पालन किया जा रहा है।
    • और यदि इन प्रावधानों का पालन नहीं किया जाता है तो किसे जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
  • विशेषज्ञों ने यह भी बताया है कि कानून अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के लिए काफी हद तक पहुँच के बहार है।
  • विशेषज्ञों ने यह भी पाया है कि कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न के मामलों को बड़े पैमाने पर कम रिपोर्ट किया जाता है।
  • अधिनियम को इस दृष्टिकोण से तैयार किया गया था कि कार्यस्थलों के भीतर शिकायतों को अधिक प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सके ताकि महिलाओं को कठिन आपराधिक न्याय प्रक्रियाओं से न गुजरना पड़े।
  • हालांकि इस तरह की पूछताछ के संबंध में अक्षम कार्यप्रणाली और स्पष्टता की कमी ने महिलाओं के लिए इसे मुश्किल बना दिया है।
  • इसके अलावा, संभावित नतीजों ने भी महिलाओं को शिकायत दर्ज नहीं करने के लिए मजबूर किया है।

भावी कदम:

  • शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को यह जांच करने का निर्देश दिया है कि क्या विभिन्न मंत्रालयों, विभागों, संगठनों, संस्थानों आदि ने अधिनियम के अनुसार ICC, LCC और आंतरिक समितियों (ICs) की स्थापना की है।
  • साथ ही इन निकायों को अपनी-अपनी समितियों का विवरण अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करने का आदेश दिया है।

सारांश:

  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने PoSH अधिनियम के कार्यान्वयन के संबंध में गंभीर खामियों की ओर इशारा किया है। महिला कर्मचारियों के लिए एक सुरक्षित, सुदृढ़ और सक्षम वातावरण सुनिश्चित करने के लिए कानून के प्रभावी कार्यान्वयन को प्रभावित करने वाली बाधाओं को तुरंत दूर किया जाना चाहिए।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS) लेनदेन मॉडल में क्या खामियां हैं?

अर्थव्यवस्था:

विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति तथा विकास से संबंधित विषय।

प्रारंभिक परीक्षा: AePS लेनदेन मॉडल।

मुख्य परीक्षा: AePS मॉडल द्वारा विस्तारित उद्देश्य और प्रमुख सेवाएं, मॉडल में मौजूदा खामियां और संभावित उपचार।

प्रसंग:

  • देश के विभिन्न हिस्सों में घोटालों के कई उदाहरण सामने आए हैं जिनमें साइबर अपराधियों ने उपयोगकर्ताओं के बैंक खातों से पैसा निकालने के लिए आधार से लिंक उंगलियों के निशान की नकल बनाने के लिए सिलिकॉन निर्मित अंगूठे का इस्तेमाल किया है।

आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS):

  • आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS) एक बैंक-आधारित मॉडल है जो आधार प्रमाणीकरण की सहायता से किसी भी बैंक के पॉइंट-ऑफ-सेल (PoS) उपकरणों (माइक्रो एटीएम) पर ऑनलाइन वित्तीय लेनदेन की सुविधा प्रदान करता है।
  • AePS एक व्यक्ति को स्थानीय “बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट (BC)” का उपयोग करके देश में कहीं से भी अपने बैंक खाते से पैसा निकालने की अनुमति देता है।
  • एक बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट (BC) बायोमेट्रिक पॉइंट-ऑफ-सेल (PoS) मशीन से लैस एक अनौपचारिक बैंक एजेंट के रूप में कार्य करता है जो एक प्रकार का माइक्रो-एटीएम है।
  • भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) के अनुसार, AePS मॉडल केवल बैंक में दर्ज नाम, आधार संख्या, और आधार नामांकन के दौरान लिए गए उँगलियों के निशानों का उपयोग करके धन हस्तांतरण में मदद करता है।
  • इस प्रकार AePS मॉडल OTP, बैंक खातों और अन्य वित्तीय विवरणों की आवश्यकता को नकारता है।
  • नकद निकासी के अलावा AePS द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न बैंकिंग सेवाओं में नकद जमा, बैलेंस की जानकारी, मिनी स्टेटमेंट, आधार से आधार फंड ट्रांसफर, BHIM आधार पे, प्रमाणीकरण आदि शामिल हैं।
  • प्रमुख उद्देश्य:
    • व्यक्तियों को अपने बैंक खाते तक पहुँचने और बुनियादी बैंकिंग लेनदेन करने के लिए पहचान के रूप में अपने आधार का उपयोग करने के लिए सशक्त बनाना।
    • वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाना।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के खुदरा भुगतानों के इलेक्ट्रॉनिकीकरण के लक्ष्य के अनुरूप।
    • एक सुरक्षित और सुदृढ़ तरीके से बैंकों के बीच अंतर-संचालन की सुविधा प्रदान करना।
  • AePS को सक्रिय या सक्षम करना: भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) और NPCI ने स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया है कि AePS डिफ़ॉल्ट रूप से कार्य करने में सक्षम है या नहीं।
    • कैशलेस इंडिया जो इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा प्रबंधित और संचालित एक वेबसाइट है, के अनुसार AePS सेवा को किसी भी सक्रियण की आवश्यकता नहीं है, और केवल यह आवश्यक है कि उपयोगकर्ता का बैंक खाता उनके आधार नंबर से जुड़ा होना चाहिए।
    • UIDAI के अनुसार, जो व्यक्ति आधार अधिनियम की धारा 7 के तहत अधिसूचित योजनाओं के तहत कोई लाभ या सब्सिडी प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें अनिवार्य रूप से अपना आधार नंबर बैंकिंग सेवा प्रदाता को जमा करना होगा।

AePS मॉडल में खामियां:

  • स्कैमर्स और साइबर अपराधियों ने बायोमेट्रिक POS डिवाइस और बायोमेट्रिक ATM संचालित करने के लिए ग्राहकों की आधार से लिंक बायोमेट्रिक जानकारी का उपयोग किया है।
  • अतीत में आधार डेटा उल्लंघनों की कई बार रिपोर्ट की गई है, लेकिन UIDAI ने डेटा के किसी भी उल्लंघन से इनकार किया है।
  • UIDAI ने माना है कि आधार की जानकारी जैसे बायोमेट्रिक डेटा पूरी तरह से सुरक्षित और सुदृढ़ है।
  • UIDAI के डेटाबेस के अलावा, आधार से जुड़ी बायोमेट्रिक जानकारी अन्य स्रोतों से लीक हो सकती है जहां ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी फोटोकॉपी और सॉफ्ट कॉपी के रूप में आसानी से उपलब्ध होती है।
  • अपराधियों ने लेन-देन करने के लिए उपकरणों को चकमा देने के लिए सिलिकॉन का उपयोग भी किया है।
  • भ्रष्ट बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट (BC) ने भी उपयोगकर्ताओं को गुमराह किया है और AePS से संबंधित होने वाली धोखाधड़ी में शामिल रहे हैं।

भावी कदम:

  • UIDAI ने आधार (सूचना साझाकरण) विनियम, 2016 में संशोधन का प्रस्ताव किया है, जो आधार संख्या रखने वाली संस्थाओं को विवरण साझा नहीं करना अनिवार्य करता है जब तक कि आधार संख्या को उचित माध्यम से संपादित या ब्लैक आउट नहीं किया जाता है।
  • UIDAI टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन मैकेनिज्म लेकर आया है जिसे मशीन-लर्निंग-आधारित सुरक्षा प्रणाली की मदद से विकसित किया गया जो एक फिंगरप्रिंट की ‘जीवंतता’ का विश्लेषण करने के लिए उंगली के निशानों और उंगली की छवियों को कैप्चर करता है।
  • इसके अलावा, उपयोगकर्ताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे UIDAI की वेबसाइट पर जाकर या मोबाइल ऐप का उपयोग करके अपनी आधार जानकारी को लॉक कर लें।
  • आधार जानकारी को लॉक करने से बायोमेट्रिक जानकारी से छेड़छाड़ होने पर भी किए गए वित्तीय लेनदेन को रोका जा सकेगा।
  • उपयोगकर्ताओं और ग्राहकों से भी आग्रह किया जाता है कि वे अपने बैंक खातों में किसी भी संदिग्ध गतिविधि के मामले में जितनी जल्दी हो सके बैंकों और संबंधित अधिकारियों को सूचित करें।
    • RBI द्वारा जारी सर्कुलर के मुताबिक, यदि ग्राहक इस तरह के अनधिकृत लेनदेन के संबंध में बैंक से एक सूचना प्राप्त होने के तीन कार्य दिवसों के भीतर बैंक को सूचित करता है तो ग्राहक की देयता शून्य होती है।
    • इस प्रकार समय पर रिपोर्टिंग यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकती है की कपटपूर्ण साधनों का उपयोग करके हस्तांतरित धन पीड़ित को वापस कर दिया जाता है।
  • “फिनटेक और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर” के बारे में अधिक जानकारी के लिए, निम्न लिंक पर क्लिक करें:Gist of Yojana April 2022: Fintech

सारांश:

  • AePS-सक्षम धोखाधड़ी और घोटालों के हाल के उदाहरणों ने AePS मॉडल की कमजोरियों को उजागर किया है और लोगों के समक्ष उनकी मेहनत की कमाई के लूटने का खतरे में उत्पन्न किया है। सिस्टम में खामियों को दूर करने और साइबर अपराधियों द्वारा दुरुपयोग को रोकने के लिए तुरंत एक तंत्र विकसित किया जाना चाहिए।

संपादकीय-द हिन्दू

संपादकीय:

शिवसेना के मुद्दे पर निर्णय का विश्लेषण:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था:

विषय: राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।

मुख्य परीक्षा: शिवसेना बनाम शिवसेना मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का विश्लेषण।

प्रारंभिक परीक्षा: अयोग्यता; राज्यपाल।

प्रसंग:

  • हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने शिवसेना बनाम शिवसेना मामले में अपना फैसला सुनाया।

विवरण:

  • यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि शिवसेना बनाम शिवसेना मामले में दोनों पक्षों को लगता है कि फैसला उनके पक्ष में है।

इस फैसले के विवरण से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए 12 मई, 2023 का यूपीएससी परीक्षा विस्तृत समाचार विश्लेषण पढ़ें।

फैसले का विश्लेषण:

  • शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र के राज्यपाल के फ्लोर टेस्ट के आह्वान की कार्रवाई की कड़ी आलोचना की है क्योंकि उसके पास ऐसे कोई परोक्ष साक्ष्य नहीं थे जिससे साबित होता हो कि मौजूदा सरकार ने बहुमत खो दिया है।
    • शीर्ष अदालत ने इस कार्रवाई को ‘गैरकानूनी’ करार दिया।
    • यह तर्क दिया जाता है कि राज्यपाल की इस कार्रवाई ने मुख्यमंत्री (श्री उद्धव ठाकरे) को इस्तीफा देने के लिए प्रेरित किया।
  • इसके अलावा, तत्कालीन मुख्यमंत्री (श्री उद्धव ठाकरे) के इस्तीफे ने अदालत को उनके मुख्यमंत्री पद को बहाल करने और पूर्ण न्याय करने से रोक दिया है।
  • हालाँकि, अदालत ने पाया कि वैकल्पिक सरकार बनाने के लिए दूसरे गुट (श्री एकनाथ शिंदे) को बुलाना राज्यपाल (Governor) की संवैधानिक जिम्मेदारी थी। इस फैसले में कुछ भी गलत नहीं था।
    • लेकिन यह तर्क दिया जाता है कि सभी लोकतांत्रिक देशों में जब सरकार गिरती है तो संवैधानिक प्रमुख (राष्ट्रपति या राज्यपाल) विपक्ष के नेता को सरकार बनाने के लिए बुलाते हैं।
    • महाराष्ट्र के राज्यपाल ने विपक्ष के नेता के बजाय शिवसेना (जिसकी सरकार ने अभी इस्तीफा दिया) के एक और सदस्य को बुलाया।
  • शीर्ष अदालत ने कई बार दोहराया है कि राज्यपाल को पार्टी के आंतरिक संघर्षों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
  • व्हिप (Whip) की वैधता:
    • दोनों गुटों ने व्हिप जारी किया और सवाल था कि किसका व्हिप वैध माना जाए।
    • निर्णय ने यह कहकर भ्रम पैदा किया कि जब एक पार्टी में विभाजन होता है, तो दो गुट बनते हैं और कोई भी एक गुट पार्टी नहीं होता है।
    • यह तर्क दिया जाता है कि हमेशा एक मूल पार्टी होती है जो अयोग्यता तय करने के लिए संदर्भ बिंदु होता है।
    • दसवीं अनुसूची (Tenth Schedule) के पैरा (2)(1) के अनुसार, “सदन के किसी निर्वाचित सदस्य के बारे में यह समझा जाएगा कि वह ऐसे राजनीतिक दल का,यदि कोई हो, सदस्य है जिसने उसे ऐसे सदस्य के रूप में निर्वाचन के लिए अभ्यर्थी के रूप में खड़ा किया था।”
    • इस प्रकार, मूल पार्टी (श्री ठाकरे के नेतृत्व में) के व्हिप को वैध माना जाना चाहिए था।
  • निर्णय में इस कथन में भी स्पष्टता का अभाव है कि “परिच्छेद 3 को हटाने का प्रभाव यह है कि दोनों गुटों को मूल राजनीतिक दल नहीं माना जा सकता है”।
    • यह सभापति पर यह तय करने की जिम्मेदारी छोड़ देता है कि किस विधायक ने मूल राजनीतिक दल से दलबदल किया है।
    • भारत के चुनाव आयोग (Election Commission of India) के पास यह तय करने का अपना मानदंड होगा कि कौन सा गुट पार्टी है।

संबंधित लिंक:

State Government Vs Governor: Sansad TV Perspective Discussion of 27 Oct 2022

सारांश:

  • शिवसेना बनाम शिवसेना मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में कुछ गंभीर टिप्पणियां सामने आई हैं जो इंगित करती हैं कि कोई भी गुट नहीं हारा है। हालाँकि, कुछ निर्णय ऐसे थे जिनमें स्पष्टता का अभाव था और उनसे भ्रम की स्थित निर्मित/उत्पन्न होती है।

न्यायालय द्वारा फ़ैसले की वापसी जो अभियुक्तों के अधिकारों को प्रभावित करती है:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था:

विषय: न्यायपालिका और संवैधानिक अधिकार।

मुख्य परीक्षा: डिफ़ॉल्ट जमानत।

प्रारंभिक: डिफ़ॉल्ट जमानत।

प्रसंग:

  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने रितु छाबड़िया बनाम भारत संघ मामले में दिए अपने फैसले को वापस ले लिया है।

भूमिका:

  • 1 मई 2023 को, सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने रितु छाबड़िया बनाम भारत संघ मामले पर दिए अपने फैसले को वापस ले लिया।
  • भारत के सॉलिसिटर जनरल द्वारा जोर देकर कहा गया था कि केंद्रीय जांच एजेंसियां ‘मुश्किलों का सामना’ कर रही हैं।
  • 12 मई 2023 को, सर्वोच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश जारी किया जिसमें स्पष्ट किया गया था कि अदालतें रितु छाबड़िया फैसले पर निर्भर हुए बिना और स्वतंत्र रूप से डिफ़ॉल्ट जमानत दे सकती हैं।
  • यह तर्क दिया जाता है कि आपराधिक मामलों में प्रतिवादियों के अधिकारों को निलंबित करने के न्यायालय के फैसले के परिणामस्वरूप अभियुक्तों के संवैधानिक अधिकारों का और क्षरण हो सकता है। यह आपराधिक प्रक्रिया के मूलभूत सिद्धांतों के भी खिलाफ होगा।

डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार:

  • वैधानिक जमानत का अधिकार जिसे डिफ़ॉल्ट जमानत भी कहा जाता है, ऐसे मामलों में अभियुक्तों के लिए उपलब्ध होता है जब जांच एजेंसी समय सीमा के भीतर अपनी जांच पूरी नहीं कर पाती है।
  • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 167(2) के अनुसार, जांचकर्ताओं के लिए उपलब्ध अधिकतम समय 60 या 90 दिन है।
  • यदि इस समय अवधि के भीतर जांच पूरी नहीं होती है, तो आरोपी CrPC की धारा 167(2) के प्रथम प्रावधान के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए आवेदन कर सकता है।
  • यह प्रावधान आरोपी की लंबी अवधि की हिरासत को रोकने के लिए बनाया गया है।
  • कई उदाहरणों में, अदालत ने दोहराया है कि यह एक अपरिहार्य अधिकार है जो संविधान के अनुच्छेद 21 से प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए,
    • अचपाल बनाम राजस्थान राज्य (2018) मामले में, अदालत ने फैसला सुनाया कि एक अनधिकृत अधिकारी द्वारा एक जांच रिपोर्ट आरोपी को इस अधिकार का लाभ उठाने से नहीं रोक सकती।
    • इसी तरह, एस. कासी बनाम राज्य (2020) में, यह फैसला सुनाया गया कि अभियुक्तों की अतिरिक्त हिरासत के कारण के रूप में महामारी का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • CrPC के पूर्ववर्ती संस्करण में, आरोपी व्यक्तियों को अधिकतम 15 दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता था।
  • विधि आयोग (Law Commission) ने अपनी 41वीं रिपोर्ट में पुलिस द्वारा अभियुक्तों की हिरासत बढ़ाने के प्रावधान के दुरुपयोग के कारण डिफ़ॉल्ट जमानत की सिफारिश की थी।
  • 1978 में, CrPC को वैधानिक जमानत जोड़ने और यह सुनिश्चित करने के लिए संशोधित किया गया था कि अभियुक्त को विस्तारित अवधि के लिए हिरासत में न रखा जाए।

संबद्ध चिंताएं:

  • जांच अधिकारी 60/90 दिन की अवधि के भीतर अधूरी या पूरक चार्जशीट दायर करके डिफ़ॉल्ट जमानत प्रावधानों को बाईपास कर देते हैं।
  • रितु छाबड़िया के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने अधूरी चार्जशीट को डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए आवेदन करने के लिए अमान्य घोषित कर दिया।
  • इसके अलावा, मामले ने जांच में कोई अतिरिक्त बाधा नहीं डाली।
  • फैसले को वापस लेने के अदालत के आदेश ने न केवल चिंता उत्पन्न की है बल्कि देश भर में अभियुक्तों की डिफ़ॉल्ट जमानत के फैसलों को भी टाल दिया गया है।

संबंधित लिंक:

Bail in India – UPSC Notes on Imp. Legal Terms with Explanation. Download PDF.

सारांश:

  • रितु छाबड़िया बनाम भारत संघ मामले में अपने फैसले को वापस लेने के अदालत के आदेश ने डिफ़ॉल्ट जमानत के अधिकार और अभियुक्तों के संवैधानिक अधिकारों पर इसके निहितार्थ पर चिंता उत्पन्न कर दी है। इसके अलावा, यह आपराधिक प्रक्रिया के मौलिक सिद्धांतों से विचलन का कारण बनेगा।

प्रीलिम्स तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. शहरों में जीरो वेस्ट के लिए वन-स्टॉप सेंटर शुरू किए जाएंगे:
  • शहरी भारत में कचरे के उत्पादन को कम करने के लिए सरकार वन-स्टॉप सेंटर स्थापित करेगी जहां नागरिक पुराने कपड़े, जूते, किताबें, खिलौने और प्लास्टिक जमा कर सकते हैं जिनका पुन: उपयोग या पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है।
  • ये “रिड्यूस, रीसायकल और रीयूज (RRR)” केंद्र विभिन्न हितधारकों को जमा की गई अपशिष्ट वस्तुओं को एक चक्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाले नए उत्पादों के रूप में नवीनीकृत, पुन: उपयोग या पुनर्नवीनीकरण करने के लिए सौंपेंगे।
  • स्वच्छ भारत मिशन – शहरी 2.0 के तत्वावधान में एक राष्ट्रव्यापी अभियान “मेरी लाइफ (LiFE), मेरा स्वच्छ शहर” के हिस्से के रूप में RRR केंद्रों की स्थापना की जाएगी।
  • अभियान का उद्देश्य टिकाऊ दैनिक आदतों को अपनाकर पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के लिए सामूहिक कार्रवाई करना है।
  1. रक्षा मंत्रालय के iDEX ने महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की:
  • रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (Innovations for Defence Excellence (iDEX)), जो रक्षा मंत्रालय की एक प्रमुख पहल है, ने 250वें अनुबंध पर हस्ताक्षर के साथ एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर ली है।
  • नवीनतम अनुबंध मिशन डेफस्पेस के तहत पहला और 100वां स्प्रिंट/SPRINT (नौसेना) अनुबंध है।
  • मिशन डेफस्पेस के पहले iDEX अनुबंध का अतिरिक्त सचिव (रक्षा उत्पादन), रक्षा नवाचार संगठन (DIO) के CEO और इंस्पेसिटी के CEO के बीच आदान-प्रदान किया गया था।
    • इंस्पेसिटी एक गैस-आधारित (कॉम्पैक्ट माइक्रोप्रॉपल्शन सिस्टम) प्रणाली विकसित कर रहा है। प्रौद्योगिकी को अन्य उपग्रहों जैसे क्यूबसैट समूह के साथ एकीकृत किया जा सकता है जिसका विकास मिशन डेफस्पेस के तहत किया जा रहा है।
    • निजी क्षेत्र द्वारा संबोधित की जाने वाली 75 रक्षा अंतरिक्ष चुनौतियों के साथ मिशन डेफस्पेस अक्टूबर 2022 में गांधीनगर में डेफएक्सपो (DefExpo) के दौरान लॉन्च किया गया था।
  • 100वें स्प्रिंट (नौसेना) अनुबंध का सिलिकोनिया टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड के साथ आदान-प्रदान किया गया।
    • पृथ्वी की निचली, मध्यवर्ती और भूस्थैतिक कक्षा में स्थित उपग्रह संचार के लिए सॉफ्टवेयर-परिभाषित एंटीना का उपयोग कर एक हल्के ASIC (एप्लीकेशन-स्पेसिफिक इंटीग्रेटेड सर्किट) आधारित संचार प्रणाली का एक प्रोटोटाइप विकसित किया जाएगा।
    • स्प्रिंट पहल के हिस्से के रूप में, भारतीय उद्योग के लिए 75 चैलेंज स्टेटमेंट जुलाई 2022 में सामने आए थे, और इस पहल का उद्देश्य अगस्त 2023 तक नौसेना में 75 तकनीकों और उत्पादों को शामिल करना है।

यह भी पढ़ें – Sansad TV Perspective: India’s Defence Prowess

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. इन दिनों चर्चा में रहा एक शब्द “न्यायसंगत परिवर्तन”, किससे संबंधित है? (स्तर – सरल)

  1. महामारी के बाद दूरस्थ के स्थान पर कार्यालयों से काम करने की ओर परिवर्तन।
  2. मानव नौकरियों को AI द्वारा प्रतिस्थापित करने के खतरों से निपटना।
  3. उच्च से निम्न कार्बन ऊर्जा उत्पादन साधनों की ओर परिवर्तन।
  4. ईवी बैटरी के लिए आयात प्रतिस्थापन के भारतीय प्रयास।

उत्तर: c

व्याख्या:

  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) ‘न्यायसंगत परिवर्तन’ को सभी के लिए समुचित कार्य, सामाजिक समावेश और गरीबी उन्मूलन के लक्ष्यों में योगदान करते हुए पर्यावरण की दृष्टि से स्थायी अर्थव्यवस्था की ओर कदम के रूप में परिभाषित करता है।
  • न्यायसंगत परिवर्तन एक अर्थव्यवस्था के हरितिकरण (ग्रीनिंग) को संदर्भित करता है जो संबंधित सभी के लिए यथासंभव उचित और समावेशी है, काम करने के समुचित अवसर उपलब्ध करता है और किसी को पीछे नहीं छोड़ता है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन सी गतिविधि आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन होगी? (स्तर – मध्यम)

  1. मंत्रियों द्वारा आधिकारिक यात्राओं और चुनाव अभियान यात्राओं को मिलाना।
  2. प्रशासन को सूचित किए बिना मुक्त रूप से उपलब्ध ग्रामीण मैदान में अचानक सभा करना।
  3. एक राजनीतिक दल के सदस्य द्वारा मतदाताओं से अधिक से अधिक संख्या में जाकर मतदान करने का आग्रह करना।

विकल्प:

  1. 1 और 2
  2. 2 और 3
  3. 1 और 3
  4. 1, 2 और 3

उत्तर: a

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: आदर्श आचार संहिता के अनुसार, मंत्री अपने आधिकारिक दौरे को चुनाव प्रचार कार्य के साथ नहीं जोड़ेंगे और चुनाव प्रचार कार्य के दौरान आधिकारिक मशीनरी या कर्मियों का उपयोग भी नहीं करेंगे।
  • कथन 2 सही है: पार्टी या उम्मीदवार को किसी भी प्रस्तावित बैठक के स्थान और समय के बारे में स्थानीय पुलिस अधिकारियों को समय पर सूचित करना चाहिए ताकि पुलिस यातायात को नियंत्रित करने तथा शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक व्यवस्था कर सके।
  • कथन 3 गलत है: एक राजनीतिक दल के सदस्य का मतदाताओं से अधिक से अधिक संख्या में जाकर मतदान करने का आग्रह करना आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन नहीं माना जाता है।

प्रश्न 3. थोक मूल्य सूचकांक के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सत्य है/हैं? (स्तर – मध्यम)

  1. यह खुदरा बाजार में प्रवेश करने से पहले वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में बदलाव को कैप्चर करता है।
  2. इसका उपयोग भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के लिए किया जाता है।

विकल्प:

  1. केवल 1
  2. केवल 2
  3. 1 और 2 दोनों
  4. न तो 1, न ही 2

उत्तर: d

व्याख्या:

  • कथन 1 गलत है: WPI लेनदेन के प्रारंभिक चरण के स्तर पर थोक बिक्री के लिए माल की थोक कीमतों के औसत उतार-चढ़ाव को कैप्चर करता है।
    • इस प्रकार यह खुदरा बाजार में प्रवेश करने के बाद वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में हुए परिवर्तन को कैप्चर करता है।
  • कथन 2 गलत है: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) वर्तमान में मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) का उपयोग करता है।

प्रश्न 4. मंडोवी नदी के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कितने सत्य है/हैं? (स्तर – कठिन)

  1. इसका उद्गम कर्नाटक से हुआ है।
  2. यह बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करने से पहले भारत के 3 राज्यों से होकर प्रवाहित होती है।
  3. सलीम अली पक्षी अभयारण्य इस नदी के तट पर स्थित है।

विकल्प:

  1. केवल एक कथन
  2. केवल दो कथन
  3. सभी तीनों कथन
  4. कोई भी नहीं

उत्तर: b

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: कर्नाटक के बेलगावी जिले में स्थित भीमगढ़ वन्यजीव अभयारण्य में महादायी या मंडोवी या महादेई नदी का उद्गम होता है।
  • कथन 2 गलत है: महादायी एक पश्चिम की ओर बहने वाली नदी है जो उत्तरी गोवा जिले के सत्तारी तालुक से गोवा में प्रवेश करती है और अंत में पणजी में अरब सागर में मिल जाती है।
    • मंडोवी नदी का बेसिन गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों में पड़ता है।
  • कथन 3 सही है: सलीम अली पक्षी अभयारण्य गोवा में मंडोवी नदी के किनारे चोराओ द्वीप के पश्चिमी सिरे पर स्थित है।

प्रश्न 5. भारत में विकसित आनुवंशिकतः रूपांतरित सरसों (जेनेटिकली मॉडिफाइड सरसों / GM सरसों) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (PYQ 2018) (स्तर – कठिन)

  1. GM सरसों में मृदा जीवाणु के जीन होते हैं जो पादप को अनेक किस्मों के पीड़कों के विरुद्ध पीड़क-प्रतिरोध का गुण देते हैं।
  2. GM सरसों में वे जीन होते हैं जो पादप में पर-परागण और संकरण को सुकर बनाते हैं।
  3. GM सरसों का विकास IARI और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं

  1. केवल 1 और 3
  2. केवल 2
  3. केवल 2 और 3
  4. केवल 1, 2 और 3

उत्तर: b

व्याख्या:

  • कथन 1 गलत है: DMH-11 (GM सरसों) का उत्पादन सरसों की दो किस्मों वरुणा और अगेती हीरा-2 के बीच संकरण के परिणामस्वरूप होता है।
    • इस तरह के संकरण को सुकर बनाने के लिए बार्नेज और बारस्टार नामक दो मृदा जीवाणुओं से जीन समाविष्ट किए गए थे।
    • वरुणा में बार्नेज अस्थायी बंध्यता को प्रेरित करता है और इसके प्राकृतिक स्व-परागण लक्षणों और प्रवृत्तियों को सीमित करता है।
    • दूसरी ओर, बारस्टार हीरा पर बार्नेज के प्रभाव को सीमित करता है जिससे बीजों का उत्पादन संभव हो पाता है।
  • कथन 2 सही है: GM सरसों में ऐसे जीन होते हैं जो पौधे के पर-परागण और संकरण की अनुमति देते हैं।
  • कथन 3 गलत है: GM सरसों को दिल्ली विश्वविद्यालय में फसलीय पौधों के अनुवांशिक परिवर्तन के लिए केंद्र के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित किया गया है।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. ‘जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद’ की सुस्थापित परिपाटी का विचारण न्यायालय के स्तर पर शायद ही पालन किया जाता है। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में कारणों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस-2; सामाजिक न्याय)

प्रश्न 2. PoSH अधिनियम, 2013 इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे एक अच्छा कानून दोषपूर्ण क्रियान्वयन के कारण अप्रभावी हो गया। उपयुक्त उदाहरणों के साथ विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस-2; राजव्यवस्था)