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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 17 November, 2022 UPSC CNA in Hindi

17 नवंबर 2022 : समाचार विश्लेषण

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध:

  1. मॉस्को में अफगानिस्तान पर वार्ता:

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

जैव विविधता एवं पर्यावरण:

  1. जलवायु परिवर्तन के कारण हुई क्षति के लिए मुआवजा:

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

राजव्यवस्था:

  1. कुलपतियों की इस प्रकार पदच्युति दोषपूर्ण है:

शासन:

  1. मुक्त व्यापार समझौता वार्ताओं में पारदर्शिता की आवश्यकता:

अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

  1. बगदाद में सरकार के गठन के बाद भी इराक में हिंसा जारी:

F. प्रीलिम्स तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. पोलैंड में मिसाइल हमला:
  2. आर्टेमिस मिशन:
  3. पोलावरम परियोजना:

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

मॉस्को में अफगानिस्तान पर वार्ता:

अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत को शामिल करने वाले और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते।

मुख्य परीक्षा: विभिन्न संवाद मंचों पर अफगानिस्तान पर वार्ता एवं उसका महत्व।

संदर्भ:

  • भारत ने हाल ही में मॉस्को में आयोजित ‘अफगानिस्तान पर मॉस्को प्रारूप परामर्श’ (‘Moscow format consultations on Afghanistan’) की नवीनतम बैठक में भाग लिया।

मॉस्को प्रारूप (Moscow Format):

  • ‘मॉस्को प्रारूप’ अफगानिस्तान पर कई संवाद मंचों में से एक है। यह मंच तालिबान (Taliban) द्वारा काबुल के अधिग्रहण से पहले शुरू हुआ था।
  • इसकी स्थापना रूस द्वारा वर्ष 2017 में अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के लिए की गई थी।
  • यह मॉस्को प्रारूप रूस, अफगानिस्तान, चीन, पाकिस्तान, ईरान और भारत के विशेष प्रतिनिधियों के बीच परामर्श के लिए छह-पक्षीय तंत्र के आधार पर पेश किया गया था।
  • मॉस्को प्रारूप की वर्तमान बैठक में तालिबान अधिकारियों के साथ भारत, चीन, पाकिस्तान, ईरान और मध्य एशियाई गणराज्यों सहित 10 देशों का एक समूह शामिल है।

हाल की बैठक की मुख्य विशेषताएं:

  • भारत ने मॉस्को में आयोजित अफगानिस्तान पर मॉस्को प्रारूप परामर्श की चौथी बैठक में भी भाग लिया।
  • इस बैठक में रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के विशेष दूतों और वरिष्ठ अधिकारियों ने भी भाग लिया।
    • इस बैठक में अतिथि के रूप में कतर, यूएई, सऊदी अरब और तुर्की ने भी हिस्सा लिया हैं।
  • बैठक के दौरान, प्रतिभागियों ने वर्तमान मानवीय स्थिति और सहायता प्रदान करने, अंतर-अफगान वार्ता, एक समावेशी और प्रतिनिधि सरकार के गठन, आतंकवाद के खतरों का मुकाबला करने के प्रयासों और क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न हितधारकों के चल रहे प्रयासों सहित अफगानिस्तान से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।
  • बैठक ने इस बात को रेखांकित किया कि अफगानिस्तान में आर्थिक मंदी से बड़ी संख्या में शरणार्थियों का पलायन होगा, जिसकी वजह से उग्रवाद, आतंकवाद और अस्थिरता को बढ़ावा मिलेगा, साथ ही अफगानिस्तान के आसपास प्रवासन में वृद्धि होगी, जो पड़ोसी देशों में शांति और स्थिरता के लिए खतरा पैदा कर सकता है।
  • इस बैठक में भाग लेने वाले प्रतिभागियों ने अफगानिस्तान में एक वास्तविक समावेशी सरकार के निर्माण पर भी जोर दिया, जो प्रमुख जातीय-राजनीतिक समूहों के हितों और उस देश से उत्पन्न होने वाले आतंकवाद, नशीली दवाओं और अन्य खतरों को दूर करने की आवश्यकता को दर्शाता है।
  • इन प्रतिभागियों ने फसल प्रतिस्थापन (बदलाव) कार्यक्रम विकसित करने और नशीले पदार्थों के उत्पादन और तस्करी पर नकेल कसने में अफगान अधिकारियों के लिए समर्थन भी व्यक्त किया हैं।
  • बैठक में, अंतर-अफगान राष्ट्रीय सुलह को बढ़ावा देने तथा अफगानिस्तान और अन्य कुशल तंत्रों पर परामर्श के मॉस्को प्रारूप के तत्वावधान में क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय प्रयासों का समन्वय जारी रखने का निर्णय लिया गया।
  • मॉस्को प्रारूप कि बैठक में विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान के भी) के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने भी इस बैठक में भाग लेने वाले अन्य देशों के विशेष दूतों के साथ विचार-विमर्श किया।
  • भारत के अफगानिस्तान के साथ मजबूत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों और निकटवर्ती पड़ोसी के रूप में, अफगानिस्तान के प्रति भारत का दृष्टिकोण हमारी ऐतिहासिक मित्रता और अफगान लोगों के साथ विशेष संबंधों द्वारा निर्देशित है।

सारांश:

  • पिछले कुछ समय से अफगानिस्तान में चल रहा संकट अब अधिक जटिल होता जा रहा है क्योंकि पश्चिम ने अपना ध्यान यूक्रेन में संघर्ष की ओर स्थानांतरित कर दिया है। वहीं दूसरे और कई देशों ने अभी भी तालिबान को मान्यता नहीं दी है जिससे मौजूदा संकट और गहरा रहा है। ऐसे निर्णायक समय में न केवल अफगानिस्तान बल्कि पड़ोसी देशों में भी क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ‘अफगानिस्तान पर मॉस्को प्रारूप परामर्श’ जैसे मंच महत्वपूर्ण हैं।
  • भारत-अफगानिस्तान संबंधों पर अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:India-Afghanistan relations

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

जलवायु परिवर्तन के कारण हुई क्षति के लिए मुआवजा:

जैव विविधता एवं पर्यावरण:

विषय: अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण एजेंसियां और समझौते।

मुख्य परीक्षा: जलवायु परिवर्तन के समाधान में “प्रदूषक द्वारा भुगतान” (“Polluter Pays”) सिद्धांत का महत्व।

संदर्भ:

  • हाल ही में बाली में आयोजित G-20 शिखर सम्मेलन में कई विकसित देशों ने इंडोनेशिया की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कोयले के स्थान पर अन्य समाधान खोजने के लिए 20 बिलियन अमरीकी डॉलर देने का वादा किया है।

विवरण:

  • बाली में हुए G-20 शिखर सम्मेलन के मौके पर संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, कनाडा और छह यूरोपीय देशों ने इंडोनेशिया के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जिसका उद्देश्य इंडोनेशिया की कोयले पर निर्भर अर्थव्यवस्था से “केवल बिजली क्षेत्र संक्रमण” सुनिश्चित किया जा सके।
  • इस समझौते के तहत इंडोनेशिया जो की दुनिया का तीसरे सबसे बड़े वर्षावनों का घर हैं, ने पूर्व की योजना से 10 साल पहले वर्ष 2050 तक कार्बन-तटस्थ देश होने का वचन दिया है, साथ ही इसे वर्ष 2030 तक अपने नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को लगभग दोगुना करना है।
  • अमेरिका और जापान ने इंडोनेशिया के प्रयासों का समर्थन करने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र से धन जुटाने हेतु अंतर्राष्ट्रीय भागीदार समूह का नेतृत्व किया है।
  • इन देशों ने इंडोनेशिया की मदद के लिए कम से कम 20 अरब डॉलर जुटाने का वादा किया हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान और क्षति के लिए मुआवजा:

  • जलवायु क्षतिपूर्ति हानि और क्षति के लिए किया जाने वाला भुगतान है जो क्षतिपूर्ति की अवधारणा पर आधारित है। जलवायु सुधार जलवायु न्याय का एक रूप है, जिसमें ऐतिहासिक उत्सर्जन से होने वाले नुकसान और क्षति के लिए देशों को जवाबदेह ठहराने हेतु मुआवजा आवश्यक है, और यह एक नैतिक दायित्व है।
  • सन 1900 और वर्त्तमान के बीच विकसित देशों को औद्योगिक विकास से जो लाभ हुआ है, उससे ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन भी हुआ।
  • ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के डेटा से पता चलता है कि वर्ष 1751 से 2017 के बीच, CO2 उत्सर्जन का 47% यू.एस. और यूरोपीय देशों से हुआ था। यह उत्सर्जन कुल मिलाकर सिर्फ 29 देशों से हुआ है।
  • अध्ययन से पता चलता है कि वर्ष 1990-2014 तक यू.एस. द्वारा किये जाने वाले उत्सर्जन के कारण दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका तथा दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1-2% नुकसान हुआ है, जहां तापमान परिवर्तन ने श्रम उत्पादकता और कृषि पैदावार को प्रभावित किया है।
  • समुदाय जो जलवायु प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं वे विशेष रूप से क्षति के प्रति प्रवण हैं, जब वे अनुकूलन उपायों को लागू करने के लिए वित्त तक पहुंच की कमी के कारण वे जितना अनुकूलित कर सकते हैं उससे परे जलवायु प्रभावों का अनुभव करते हैं।
  • विकासशील देशों ने अपेक्षाकृत देर से आर्थिक विकास शुरू किया है जिसके कारण वे अब उत्सर्जन कर रहे हैं, लेकिन विकसित देशों द्वारा सख्त कार्रवाई करने के बजाय जलवायु परिवर्तन के आलोक में विकासशील देशों को आर्थिक विकास को रोकने के लिए कहना अनुचित है।
  • इसकी ऐतिहासिक जिम्मेदारी महत्वपूर्ण है क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड सैकड़ों वर्षों तक वातावरण में रहती है, कार्बन डाइऑक्साइड का संचय ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है।

चित्र स्रोत: UNCTAD.org

भारत द्वारा किया जा रहा उत्सर्जन:

  • भारत शीर्ष सात उत्सर्जकों में शामिल है। चीन के साथ भारत, यूरोपीय संघ- 27 (EU-27), इंडोनेशिया, ब्राजील, रूसी संघ और अमेरिका प्लस अंतर्राष्ट्रीय परिवहन, द्वारा वर्ष 2020 में वैश्विक GHG उत्सर्जन का 55% हिस्सा उत्सर्जित किया गया था।
  • सामूहिक रूप से G-20 के सदस्य वैश्विक GHG उत्सर्जन के 75% हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं।
  • भारत की जनसंख्या के संदर्भ में, इसका उत्सर्जन अन्य देशों की तुलना में प्रति व्यक्ति बहुत कम है।
  • वर्ष 2020 में प्रति व्यक्ति GHG उत्सर्जन का वैश्विक औसत 6.3 टन CO2 समतुल्य (tCO2e) था।
    • अमेरिका में 14, उसके बाद रूसी संघ में 13 और चीन में 9.7 है।
    • भारत विश्व का केवल 2.4% GHG उत्सर्जन के साथ वैश्विक औसत से काफी नीचे है।
  • भारत के जलवायु लक्ष्य पर अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: India’s Climate Targets

सारांश:

  • शर्म अल शेख, मिस्र में चल रहे COP27 शिखर सम्मेलन ( COP27 summit) में हुए विचार-विमर्श ने उत्सर्जन को कम रखने हेतु दुनिया भर में एक मजबूत प्रयास की ओर इशारा किया है, ताकि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस सीमा के भीतर बनाए रखा जा सके। अब विकसित देशों से उम्मीद की जा रही है कि वे एक प्रक्रिया की पहचान करने और समयबद्ध तरीके से इस क्षति की भरपाई के लिए एक स्थायी वित्तीय व्यवस्था स्थापित करने हेतु कदम उठाकर कमजोर देशों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए COP27 मंच का उपयोग करेंगे।

संपादकीय-द हिन्दू

संपादकीय:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

राजव्यवस्था:

कुलपतियों की इस प्रकार पदच्युति दोषपूर्ण है:

विषय: संघ और राज्यों के कार्य और उत्तरदायित्व, संघीय ढांचे से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ।

प्रारंभिक परीक्षा: संविधान का अनुच्छेद 254

मुख्य परीक्षा: कुलपतियों (VC) की नियुक्ति पर हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का आलोचनात्मक मूल्यांकन।

प्रसंग:

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों (VC) की नियुक्ति पर हाल ही में दिए गए दो फैसले सुर्खियों में आ गए हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले:

गंभीरदान के. गढ़वी बनाम गुजरात राज्य का मामला (मार्च 2022):

  • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात में सरदार पटेल विश्वविद्यालय के मौजूदा कुलपति की नियुक्ति को खारिज कर दिया था।
  • शीर्ष अदालत ने नियुक्ति को इस आधार पर रद्द कर दिया कि “खोज समिति” 2018 के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) विनियमों के अनुसार कुलपति की नियुक्ति के लिए एक पैनल स्थापित करने में विफल रही।
  • अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि कुलपति की नियुक्ति के संबंध में राज्य के कानून ने UGC के नियमों का उल्लंघन किया है, इसलिए UGC के नियम प्रबल होंगे और राज्य कानून के तहत कुलपति की नियुक्ति आरंभतः शून्य हो गई थी।

प्रोफेसर (डॉ.) श्रीजीत पी. एस. बनाम डॉ. राजश्री एम. एस. (अक्टूबर 2022)

  • इस मामले में ए.पी.जे. अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, तिरुवनंतपुरम के कुलपति की नियुक्ति पर प्रश्न उठाए गए थे।
  • कुलपति की नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि खोज समिति ने केवल एक नाम की सिफारिश की थी, जिसने फिर से यूजीसी के नियमों का उल्लंघन किया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने चुनौती को बरकरार रखा और कुलपति की नियुक्ति को इस आधार पर रद्द कर दिया कि विश्वविद्यालय अधिनियम में खोज समिति से संबंधित प्रावधान यूजीसी विनियमों के प्रतिकूल था, और इसलिए इसे शून्य घोषित कर दिया गया था।
  • शीर्ष अदालत के इस फैसले ने राज्य में एक अभूतपूर्व घटनाक्रम की शुरुआत जिसमें केरल के राज्यपाल, जो सभी राज्य विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति हैं, ने अन्य राज्य विश्वविद्यालयों के लगभग 11 कुलपतियों को इस आधार पर इस्तीफा देने का निर्देश दिया कि सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद उनकी नियुक्तियां भी शून्य हो गई है।
  • किसी भी कुलपति ने इस्तीफा नहीं दिया है और एक मामला अब केरल उच्च न्यायालय के समक्ष है।
    • इस बीच, एक अन्य मामले में, केरल के उच्च न्यायालय ने नवंबर में केरल यूनिवर्सिटी ऑफ फिशरीज एंड ओशन स्टडीज के कुलपति की नियुक्ति को इस आधार पर खारिज कर दिया कि नियुक्ति में यूजीसी विनियमों का उल्लंघन किया गया है।
  • इस विकास ने राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच मौजूदा झगड़े को और तेज कर दिया है।

इस विषय के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक करें – Role of the Governor as Chancellor of Universities

कुलपतियों की नियुक्ति में केंद्रीय मुद्दा

  • शिक्षा, जो पहले एक राज्य का विषय था, को 42वें संविधान संशोधन, 1976 के माध्यम से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया और इस विषय पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।
  • दोनों मामलों में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मुद्दे पर प्रकाश डाला गया कि कुलपतियों की नियुक्ति यूजीसी विनियमों के अनुसार की जाती है या राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार।
  • संबंधित विश्वविद्यालय अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार कुलपति की नियुक्ति कुलाधिपति द्वारा की जाती है। हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने यह तय करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 254 को ध्यान में रखा कि क्या राज्य के कानून के प्रावधान केंद्रीय कानून के प्रावधानों के प्रतिकूल हैं जो राज्य के कानून को शून्य बनाते हैं।
  • हाल के दोनों मामलों में, सर्वोच्च न्यायालय ने पाया था कि खोज समिति ने कुलपति की नियुक्ति के लिए केवल एक नाम की सिफारिश की थी, जो यूजीसी के नियमों का उल्लंघन करता है क्योंकि नियमों में तीन से पांच नामों की सिफारिश अनिवार्य है। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित किया है कि राज्य का कानून शून्य है।

संविधान का अनुच्छेद 254

  • अनुच्छेद 254 संसद द्वारा बनाए गए कानूनों और राज्यों के विधानमंडलों द्वारा बनाए गए कानूनों के बीच असंगतता से संबंधित है। यह प्रतिकूलता के सिद्धांत के बारे में वर्णन करता है।
  • अनुच्छेद 254(1): यदि राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कोई कानून संसद द्वारा बनाए गए कानून के विरुद्ध है, तो राज्य का कानून शून्य घोषित किया जाएगा और संसद द्वारा बनाया गया कानून मान्य होगा।
  • अनुच्छेद 254(2): संसद के विरुद्ध राज्य द्वारा पारित प्रतिकूल कानून के मामले में, राज्य राष्ट्रपति से सहमति प्राप्त होने पर कानून को लागू कर सकता है।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 254 भारत में प्रतिकूलता के सिद्धांत को सफलतापूर्वक स्थापित करता है।
    • प्रतिकूलता तब होती है जब कानून के दो हिस्सों के बीच विरोध होता है और जब इन्हें एक ही तथ्य पर लागू किया जाता है तो इसके अलग-अलग परिणाम उत्पन्न होते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की आलोचना

  • विशेषज्ञ बताते हैं कि अनुच्छेद 254 के प्रावधान केवल राज्य के कानून और संसद द्वारा बनाए गए एक मूल कानून पर लागू होते हैं और यह UGC जैसे अधीनस्थ प्राधिकरणों द्वारा बनाए गए नियमों या विनियमों को बाहर रखता है।
    • इसलिए विरोध केवल विश्वविद्यालय अधिनियमों और यूजीसी अधिनियम के प्रावधानों के बीच हो सकता है, न कि यूजीसी के किन्ही विनियमों के बीच।
  • यूजीसी जैसे अधीनस्थ प्राधिकरणों द्वारा बनाए गए नियम और विनियम संसद के समक्ष रखे जाते हैं लेकिन वे कानून के समान प्रक्रिया से नहीं गुजरते हैं क्योंकि उन्हें आमतौर पर राष्ट्रपति की सहमति या अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है।
    • अधिनियम या कानून की तुलना में इन नियमों और विनियमों की स्थिति निम्न होती है और इसलिए अधिनियमों या कानूनों के साथ इनकी समानता नहीं की जा सकती है।
  • भारत का संविधान सामान्य शब्दों में “कानून” शब्द को परिभाषित नहीं करता है और अनुच्छेद 13 (2) के तहत उल्लिखित “कानून” की परिभाषा केवल उस अनुच्छेद पर लागू होती है। इसलिए, “कानून” शब्द में अनुच्छेद 254 के उद्देश्य के लिए नियम, विनियम आदि शामिल नहीं हैं।
  • इसके अलावा, संघ के अधीनस्थ प्राधिकरणों द्वारा तैयार किए गए नियम और विनियम राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून को अध्यारोही करते हुए संविधान में निहित संघवाद के सिद्धांतों के उल्लंघन के समान होंगे क्योंकि वे संविधान द्वारा राज्य को दी गई समवर्ती विधायी शक्ति की उपेक्षा करते हैं।
  • विशेषज्ञ यह भी बताते हैं कि कुलपतियों की नियुक्ति पर यूजीसी के नियम यूजीसी अधिनियम के मुख्य प्रावधानों के दायरे से बाहर हैं क्योंकि इसके किसी भी प्रावधान में कुलपतियों की नियुक्ति का उल्लेख नहीं है।

भावी कदम:

  • अनुच्छेद के प्रावधानों के अनुसार इस तरह के निर्णय लेने से पहले अनुच्छेद 254 का गहराई से विश्लेषण किया जाना चाहिए।
  • इसके अलावा, ऐसे मुद्दे जो विशेष रूप से राज्यों के अधिकारों और संघीय सिद्धांतों को प्रभावित करते हैं, उन्हें सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए और इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
  • 1994 में एस. सत्यपाल रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश सरकार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि “अदालत को स्पष्ट रूप से परस्पर विरोधी कानूनों के प्रावधानों को सुलझाने के लिए हर संभव प्रयास करना होगा और अदालत सामंजस्यपूर्ण निर्माण देने का प्रयास करेगी। उचित परीक्षण यह होगा कि क्या दोनों कानूनों के प्रावधानों को प्रभावी किया जा सकता है या दोनों कानून एक साथ बने रह सकते हैं।”
    • इस तरह, केंद्रीय कानून के प्रतिकूल होने के आधार पर राज्य के कानून को रद्द करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी।

सारांश:

  • यूजीसी जैसे संघ के अधीनस्थ प्राधिकरणों द्वारा बनाए गए नियमों और विनियमों के निर्वाचित राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए अधिनियमों या कानूनों पर हावी होने से संविधान में निहित संघीय सिद्धांतों पर गंभीर प्रभाव पड़ेंगे और इसलिए ऐसे फैसलों, जिन्होंने ऐसे नियमों को उच्च दर्जा दिया है, की तत्काल फिर से जांच की जानी चाहिए।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:

शासन:

मुक्त व्यापार समझौता वार्ताओं में पारदर्शिता की आवश्यकता:

विषय: शासन, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्वपूर्ण पहलू।

प्रारंभिक परीक्षा: मुक्त व्यापार समझौता (FTA)।

मुख्य परीक्षा: भारत और यू.के. में महत्वपूर्ण संधियों पर वार्ता के लिए उपलब्ध तंत्रों के बीच तुलना और भारत के लिए महत्वपूर्ण सिफारिशें।

संदर्भ:

  • भारत वर्ष 2030 तक 2 ट्रिलियन डॉलर के निर्यात लक्ष्य को हासिल करने के उद्देश्य से यूरोपीय संघ, कनाडा, यू.के. और इज़राइल जैसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर वार्ता करने का प्रयास कर रहा है।

विवरण:

  • वे मुक्त व्यापार समझौते जो बातचीत के चरण में हैं, उनमे विभिन्न पहलू शामिल हैं जैसे कि शुल्क में कमी जो विनिर्माण और कृषि क्षेत्रों को प्रभावित करता है; सेवा व्यापार पर नियम; बौद्धिक संपदा अधिकार; डिजिटल मुद्दे और निवेश।
  • हालांकि, भारत की मुक्त व्यापार समझौता वार्ताएं काफी गोपनीय रही हैं, जिसके कारण इसके उद्देश्यों और प्रक्रियाओं के बारे में बहुत कम जानकारी है और ये पूरी तरह से जांच के अधीन भी नहीं हैं।
  • जबकि अन्य देशों जिनके साथ भारत मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहा है, में संस्थागत तंत्र के साथ जांच के लिए मजबूत तंत्र हैं जो मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर के दौरान और बाद में कार्यपालिका के कार्यों की जांच करने करते हैं।

मुक्त व्यापार समझौते के बारे में अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:

Free Trade Agreement (FTA)

यू.के. में मुक्त व्यापार समझौता वार्ताएं:

  • यू.के. में, ऐसे कई तंत्र मौजूद हैं जो मुक्त व्यापार समझौता वार्ताओं में कुछ हद तक पारदर्शिता सुनिश्चित करते हैं। इनकी चर्चा नीचे की गई है।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विभाग (DFIT), एक नीति पत्र जारी करता है जिसमें मुक्त व्यापार समझौते के सभी रणनीतिक उद्देश्य और इसका महत्व शामिल होता है।
    • नीति पत्र में मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने से होने वाले विशिष्ट लाभ भी सूचीबद्ध होते हैं जिसमें आर्थिक लाभ, वितरण संबंधी प्रभाव, पर्यावरणीय प्रभाव और मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने के श्रम और मानव अधिकार प्रभाव शामिल हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विभाग द्वारा जारी या प्रकाशित नीति पत्र में व्यवसायों और गैर-सरकारी संगठनों जैसे प्रमुख हितधारकों द्वारा प्रदान किए गए विभिन्न इनपुट और सुझाव भी शामिल होते हैं और इन विशिष्ट सुझावों तथा इनपुट पर सरकार के विचारों का भी उल्लेख होता है।
  • इसके अलावा, यू. के. में, मुक्त व्यापार समझौते के रणनीतिक उद्देश्यों की यू. के. की संसद द्वारा जांच की जाती है।
    • ब्रिटिश संसद की अंतर्राष्ट्रीय समझौता समिति (IAC) को यह काम सौंपा गया है और समिति मुक्त व्यापार समझौते पर विशेषज्ञ के साक्ष्यों की जाँच करती है और यदि आवश्यक हो तो सिफारिशें प्रस्तुत करती है। इसके बाद, यू. के. सरकार इन सिफारिशों का जवाब देती है।
  • यू.के. के संवैधानिक सुधार और शासन अधिनियम, 2010 के अनुसार, कार्यपालिका को संधि को अनुसमर्थित करने से पहले 21 दिनों के लिए ब्रिटिश संसद के समक्ष एक व्याख्यात्मक ज्ञापन के साथ प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
    • यह संसद को उस संधि के बारे में सूचित करता है जिसे कार्यपालिका अनुसमर्थित करने जा रही है।

भारत-यू.के. मुक्त व्यापार समझौते के बारे में अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:

India-UK FTA

भारत में मुक्त व्यापार समझौता वार्ताएं:

  • भारत में, कार्यपालिका की मुक्त व्यापार समझौता वार्ताओं की संसदीय जांच के लिए कोई तंत्र नहीं है।
    • हालाँकि, भारतीय संसदीय प्रणाली विभाग-संबंधित संसदीय समितियों को विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करने और सिफारिशें देने की अनुमति देती है। लेकिन इसके बावजूद, वाणिज्य संबंधी संसदीय स्थायी समिति (PSCC) शायद ही कभी मुक्त व्यापार समझौते पर वार्ता करने और हस्ताक्षर करने के उद्देश्यों की जांच करती है।
  • इसके अलावा, मुक्त व्यापार समझौते सहित संधियों के अनुसमर्थन में संसद की किसी भी भूमिका के लिए कोई तंत्र नहीं है जबकि संधियों में प्रवेश, वार्ता, हस्ताक्षर और अनुसमर्थन संसद की संवैधानिक क्षमता के तहत आता है।
    • हालाँकि, संसद ने पिछले 70 से अधिक वर्षों में इन शक्तियों का प्रयोग नहीं किया है, जिसके कारण ऐसे मामलों में कार्यपालिका को अनियंत्रित स्वतंत्रता मिली हुई है।
  • इसके अलावा, भारत में, ऐसा कोई भी दस्तावेज प्रकाशित नहीं किया जाता है, जिसमें मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता, महत्व और प्रभावों का उल्लेख हो।
    • वाणिज्य मंत्रालय मुक्त व्यापार समझौते से निपटने वाला नोडल मंत्रालय है और इसकी वेबसाइट पर मुक्त व्यापार समझौता वार्ताओं के बारे में बहुत कम जानकारी प्रकाशित की जाती है।
  • मंत्रालय हितधारक परामर्श और अंतर-मंत्रालयी बैठकें भी आयोजित करता है लेकिन चर्चा और सरकार की प्रतिक्रिया सार्वजानिक रूप से उपलब्ध नहीं होती है।

सिफारिशें:

  • भारत को मुक्त व्यापार समझौते सहित सभी संधियों पर हस्ताक्षर और वार्ता को नियंत्रित तथा उसकी समीक्षा करने में सक्षम कानून विकसित करने की आवश्यकता है।
  • यह महत्वपूर्ण है कि कार्यपालिका मुक्त व्यापार समझौते जैसी विभिन्न संधियों पर वार्ता और हस्ताक्षर करने के लिए स्पष्ट आर्थिक और रणनीतिक तर्क प्रदान करे।
  • सभी संबंधित हितधारकों के साथ परामर्श करने और उनकी चिंताओं का जवाब देने के लिए कार्यपालिका को बाध्यकारी बनाया जाना चाहिए और इस तरह के परामर्श और प्रतिक्रियाएं सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
  • भारतीय संसद को यू.के. की अंतर्राष्ट्रीय समझौता समिति (IAC) के समान एक समिति की स्थापना करनी चाहिए जो मुक्त व्यापार समझौते में प्रवेश करने के रणनीतिक उद्देश्यों की छानबीन करने में मदद करती है।
  • इसके अलावा, कार्यपालिका को मुक्त व्यापार समझौते जैसी संधियों को संसद के पटल पर रखने के लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए और ऐसी संधियों की पुष्टि करने से पहले संसद को उन पर बहस करने की अनुमति देनी चाहिए।

सारांश:

  • चूंकि मुक्त व्यापार समझौता जैसी महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर और अनुसमर्थन का समग्र रूप से अर्थव्यवस्था और समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है, इसलिए ऐसी संधियों पर बातचीत करने, हस्ताक्षर करने और पुष्टि करने की शक्ति का प्रयोग इस तरह से किया जाना चाहिए जो पारदर्शी और जवाबदेह हो क्योंकि ये लोकतंत्र के अभिन्न पहलू हैं।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

बगदाद में सरकार के गठन के बाद भी इराक में हिंसा जारी:

विषय: विकसित और विकासशील देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव

मुख्य परीक्षा: इराक में राजनीतिक अराजकता और भविष्य की दिशा

संदर्भ:

  • लगभग तीन वर्षों तक कार्यवाहक शासन के बाद, आखिरकार इराक में एक निर्वाचित सरकार का गठन हो गया है।

पृष्ठभूमि:

  • इराक में कुर्दों के बीच का विभाजन हाल ही में समाप्त हो गया जब कुर्दिस्तान डेमोक्रेटिक पार्टी (KDP) ने देश के राष्ट्रपति को नामित करने के अपने आग्रह को वापस ले लिया और अपने प्रतिद्वंद्वी समूह पैट्रियोटिक यूनियन ऑफ कुर्दिस्तान (PUK) के दावे को स्वीकार कर लिया, जैसा कि PUK ने अपने उम्मीदवार अब्दुल लतीफ राशिद को राष्ट्रपति बनाए जाने का प्रस्ताव रखा था।
  • 13 अक्टूबर को अब्दुल लतीफ राशिद को संसद द्वारा बहुमत से राष्ट्रपति के रूप में मंजूरी मिल गई और उन्होंने मोहम्मद शिया अल-सुदानी को इराक के नए प्रधानमंत्री के रूप में नामित किया।
  • मोहम्मद शिया अल-सुदानी को 27 अक्टूबर को अपने और अपने मंत्रिमंडल के लिए संसदीय स्वीकृति प्रदान की गई थी।

इराक में राजनीतिक प्रणाली

  • मुहासासा (apportionment) प्रणाली इराक में राजनीतिक प्रणाली की मुख्य विशेषता है।
  • 2003 में अमेरिका द्वारा कब्जे के दौरान इस प्रणाली को देश में लाया गया था।
  • मुहासासा प्रणाली के अनुसार, चुनावों के बाद, इराक की राजनीतिक व्यवस्था “विजयोपहार (spoils)” आधार पर कार्य करेगी, जिसमें पद शिया, सुन्नी और कुर्द राजनीतिक समूहों के बीच साझा किए जाएंगे।
  • इस प्रणाली ने यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है कि प्रभावी शक्ति शिया पार्टियों के मजबूत गठबंधन के साथ बनी रहे और शेष सुन्नी और कुर्द समुदायों के साथ साझा किया जाए।
  • इसके अलावा, इस प्रणाली ने ईरान को इराक की राजनीति में एक केंद्रीय भूमिका प्रदान की, क्योंकि अधिकांश शिया दल और उग्रवादी ईरान द्वारा प्रायोजित और समर्थित हैं।

इस व्यवस्था के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

  • मुहासासा प्रणाली के खिलाफ विरोध अक्टूबर 2019 में शुरू हुआ, जब पूरे इराक में कई युवाओं ने प्रदर्शन किया और अपने देश में प्रभावी शासन की अनुपस्थिति और बाहरी प्रभावों (ईरानी और अमेरिकी) के बारे में आवाज उठाई।
  • राज्य ने इन विरोधों को कुचलने के लिए हिंसा का सहारा लिया, जिसके कारण 600 से अधिक लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए। इसके कारण निर्वाचित सरकार का पतन हुआ और कार्यवाहक शासनों की एक श्रृंखला शुरू हुई जिन्हें देश की राजनीतिक व्यवस्था में सुधार लाने का काम सौंपा गया था।
  • अंतिम कार्यवाहक प्रधानमंत्री, मुस्तफा अल-कदीमी द्वारा चुनावी सुधार हेतु कदम उठाए गए और अक्टूबर 2021 में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराए गए।
  • हालांकि, चुनाव के कारण विभिन्न शिया समूहों के बीच संघर्ष हुआ:
    • मुक्तदा अल-सदर के नेतृत्व में एक पक्ष ने “बहुमत वाली राष्ट्रीय सरकार” को बढ़ावा दिया, जिसमें सरकार में विभिन्न संप्रदाय और जातीय समूह शामिल होंगे जो विदेशी प्रभाव से स्वतंत्र होंगे।
    • जबकि दूसरे पक्ष में एक “समन्वय ढांचा” शामिल था जिसमें ईरान समर्थक शिया दलों और मिलिशिया समूह शामिल था, जिसने शिया एकता के आधार पर सरकार-गठन का समर्थन किया जो शिया वर्चस्व को बनाए रखेगा।
  • राजनीतिक गतिरोध की अवधि के बाद, मुक्तदा अल-सदर ने अपने गठबंधन के सदस्यों से अपनी संसदीय सीटों से इस्तीफा देने के लिए कहा, यह सोचकर कि इससे नए सिरे से चुनाव होंगे।
    • हालाँकि, इराकी कानून के अनुसार, एक इस्तीफा देने वाले सदस्य को उस उम्मीदवार द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा जो चुनाव में दूसरे स्थान पर रहा हो और इसलिए अल-सदर के गठबंधन के सदस्यों ने अपनी संसदीय शक्ति खो दी और “समन्वय ढांचा” ने संसदीय बहुमत प्राप्त किया।
    • इसके बाद, अल-सदर ने राजनीति से अपनी “हटने” की घोषणा की और धमकी और हिंसा का सहारा लिया।

इराक के लिए भावी कदम:

  • मोहम्मद शिया अल-सुदानी की कैबिनेट ने पुष्टि की है कि इराक की मुहासासा राजनीतिक व्यवस्था बरकरार रहेगी क्योंकि उनके मंत्रिमंडल में विभिन्न शिया, सुन्नी और कुर्द समूहों के मंत्री शामिल हैं।
  • मुक्तदा अल-सदर के गठबंधन का वर्तमान कैबिनेट में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है और अल-सुदानी ने अल-सद्र को खुश करने के लिए एक साल के भीतर नए चुनाव का वादा किया है।
  • मोहम्मद शिया अल-सुदानी ने भ्रष्टाचार से लड़ने, आर्थिक विकास और सेवाओं के वितरण को प्राथमिकता दी है, लेकिन आम जनता इन आश्वासनों के बारे में संदेह कर रही है क्योंकि भ्रष्टाचार विरोधी प्रभावी अभियान प्रधानमंत्री के करीबी सहयोगियों को भी प्रभावित करेगा।
  • इसके अलावा, 2022 के पहले छह महीनों में प्राप्त $60 बिलियन का तेल राजस्व आर्थिक सुधार और सेवाओं के वितरण के लिए आवश्यक संसाधनों को बढ़ाने में मदद कर सकता है, लेकिन ये राजस्व अतीत में नागरिकों के जीवन में कोई अंतर लाने में विफल रहे हैं।
  • मुक्तदा अल-सदर, जो अब सत्ता से बाहर हैं, एक गंभीर चुनौती बने हुए हैं और सरकार पर दबाव बनाने में लोकलुभावन भूमिका निभाने की उम्मीद है।

सारांश:

  • इराक में अक्टूबर 2019 में शुरू हुई राजनीतिक अराजकता तीन साल बाद बगदाद में एक निर्वाचित सरकार की नियुक्ति के साथ आखिरकार समाप्त हो गई है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि हिंसा की वजह से इराकी राजनीति का प्रभावित होना जारी रह सकता है जिससे पश्चिम एशियाई क्षेत्र में मौजूद नाजुक शांति को नुकसान पहुंचने की आशंका है।

प्रीलिम्स तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

1. पोलैंड में मिसाइल हमला:

  • पोलैंड के साथ लगती हुई यूक्रेन की सीमा से लगभग 15 मील दूर पूर्वी पोलैंड में एक मिसाइल के गिरने से दो पोलिश नागरिक मारे गए हैं।
  • यह रूस-यूक्रेन संघर्ष का पहला पुष्ट उदाहरण है जिसके कारण किसी दूसरे देश के लोग सीधे तौर पर हताहत हुए हैं।
  • यह मिसाइल सोवियत संघ में बनाया गया एक S-300 रॉकेट था लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इसे रूस द्वारा लॉन्च किया गया था।
  • पोलैंड और नाटो (NATO) के अनुसार यह मिसाइल शायद यूक्रेन के एयर डिफेंस द्वारा दागी गई एक मिसाइल थी, न कि रूस द्वारा।
  • रूस-यूक्रेन संघर्ष पर अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:Russia-Ukraine Conflict

2. आर्टेमिस मिशन:

  • नासा के आर्टेमिस 1 मिशन को हाल ही में फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था।
  • आर्टेमिस 1 मिशन पहले 14 नवंबर को लॉन्च किया जाना था, लेकिन उष्णकटिबंधीय तूफान ‘निकोल’ के कारण इसे स्थगित करना पड़ा था।
  • आर्टेमिस को स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) द्वारा लॉन्च किया गया था, जो दुनिया का सबसे शक्तिशाली रॉकेट है। SLS रॉकेट को निम्न भू कक्षा (LEO) से परे मिशन के लिए डिजाइन किया गया था। यह कार्गो और चालक दल को चंद्रमा और उससे आगे ले जा सकता है।
  • SLS रॉकेट ओरियन अंतरिक्ष यान को पृथ्वी से चंद्रमा की कक्षा में ले जा रहा है।
  • आर्टेमिस II मिशन आर्टेमिस I पर आधारित होगा।
    • आर्टेमिस I के विपरीत, आर्टेमिस II में ओरियन अंतरिक्ष यान में एक चालक दल होगा और इस तथ्य की पुष्टि करने के लिए यह एक परीक्षण मिशन होगा कि चालक दल सवार होने पर अंतरिक्ष यान की सभी प्रणालियाँ डिज़ाइन किए गए अनुसार काम करेंगी।

चित्र स्रोत: Evening Standard

  • आर्टेमिस मिशन पर अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए: Artemis Mission

3.पोलावरम परियोजना:

  • तेलंगाना ने हाल ही में पोलावरम परियोजना प्राधिकरण (Polavaram Project Authority (PPA)) को सूचित किया कि जुलाई 2022 में गोदावरी नदी में आई बाढ़ के कारण 103 गांव डूब गए थे, जिससे राज्य में 40,446 एकड़ जमीन जलमग्न हो गई थी।
  • गौरतलब हैं कि पोलावरम परियोजना के तहत राज्य के भीतर गोदावरी नदी के दोनों ओर के पांच गांवों की 892 एकड़ कृषि भूमि बैकवाटर में जलमग्न हो जाएगी।
  • यह भूमि 150 फीट के पूर्ण जलाशय स्तर (FRL) के पानी के कारण जलमग्न होगी।
  • पोलावरम परियोजना एक बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना है जिसे केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिया गया है।
  • गोदावरी नदी पर निर्माणाधीन यह बांध आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले और पूर्वी गोदावरी जिले में स्थित है और इसका जलाशय छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों के कुछ हिस्सों में भी विस्तृत है।
  • यह जलाशय प्रसिद्ध पापिकोंडा राष्ट्रीय उद्यान (Papikonda National Park) को कवर करता है।
  • यह विशाखापत्तनम टाउनशिप एवं अन्य कस्बों और गांवों को पीने के पानी की आपूर्ति और विशाखापत्तनम तट स्थित इस्पात संयंत्र और आसपास के अन्य उद्योगों को औद्योगिक जल की आपूर्ति भी प्रदान करेगा।
  • इस परियोजना के तहत पनबिजली उत्पन्न करने, नौपरिवहन सुविधाएं प्रदान करने, मत्स्य पालन विकसित करने और शहरीकरण को बढ़ावा देने और साथ ही मनोरंजन सुविधाओं की पेशकश करने की भी परिकल्पना की गई है।

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिएः (स्तर-कठिन)

साड़ी राज्य

  1. चंदेरी मध्य प्रदेश
  2. जामदानी ढकाई पश्चिम बंगाल
  3. पैठणी महाराष्ट्र
  4. पटोला गुजरात

उपरोक्त युग्मों में से कितने सही सुमेलित हैं?

(a) केवल एक युग्म

(b) केवल दो युग्म

(c) केवल तीन युग्म

(d) सभी चारों युग्म

उत्तर: d

व्याख्या:

  • युग्म 1 सुमेलित है: चंदेरी साड़ी मध्य प्रदेश के चंदेरी में निर्मित की जाने वाली एक पारंपरिक साड़ी है। चंदेरी की बुनाई संस्कृति का उदय दूसरी और सातवीं शताब्दी के बीच हुआ था। चंदेरी राज्य के दो सांस्कृतिक क्षेत्रों, मालवा और बुंदेलखंड की सीमा पर स्थित है।
  • युग्म 2 सुमेलित है: जामदानी दक्षिणी बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल में सदियों से उत्पादित किया जाने वाला महीन मलमल का कपड़ा है। जामदानी के ऐतिहासिक उत्पादन को मुगल बादशाहों के शाही फरमानों द्वारा संरक्षण प्राप्त था।
    • जामदानी को आमतौर पर सूती और सोने के धागे के मिश्रण से बुना जाता है।
    • वर्ष 2013 में, जामदानी बुनाई की पारंपरिक कला को यूनेस्को ने मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत घोषित किया था।
    • वर्ष 2016 में, बांग्लादेश को जामदानी साड़ी के लिए भौगोलिक संकेत (GI) का दर्ज़ा प्रदान किया गया था।
  • युग्म 3 सुमेलित है: पैठणी साड़ी का एक प्रकार है, जिसका नाम महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के पैठण शहर के नाम पर रखा गया है।
    • तिरछी चौकोर डिजाइन की सीमाओं और मोर डिजाइन के साथ एक पल्लू पैठणी साड़ी की मुख्य विशेषता है।
  • युग्म 4 सुमेलित है: पटोला एक डबल इकत में बुनी हुई साड़ी है, जो आमतौर पर रेशम से बनाई जाती है। यह साड़ी आमतौर पर गुजरात के पाटन में निर्मित की जाती है।
    • पटोला आमतौर पर सूरत, अहमदाबाद और पाटन में बुनी जाती है। लेकिन मखमली पटोला शैली की साड़ियां मुख्य रूप से सूरत में बनाई जाती हैं।
    • इसे वर्ष 2013 में भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्रदान किया गया था।
    • पटोला साड़ियों को इंडोनेशिया में अत्यधिक महत्व दिया जाता है और यह वहां की स्थानीय बुनाई परंपरा का हिस्सा बन गई है।

प्रश्न 2. करतार सिंह सराभा के संबंध में, निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर-मध्यम)

  1. करतार सिंह गदर पार्टी के प्रमुख सदस्य थे।
  2. लाहौर षडयंत्र केस में उन पर मुकदमा चलाया गया था।

विकल्प:

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) दोनों

(d) कोई भी नहीं

उत्तर: c

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: करतार सिंह सराभा ग़दर पार्टी के सबसे कम उम्र के संस्थापक सदस्य थे। वह अनुदान संचय करने वाले संगठन के सबसे सक्रिय सदस्यों में से एक थे, वे ग्रामीण क्षेत्रों में बैठकें करते थे जहाँ किसान उन्हें उदारता से दान देते थे।
  • कथन 2 सही है: वर्ष 1915 में, करतार सिंह सराभा को गिरफ्तार किया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया जिसे लाहौर षड़यंत्र केस कहा गया, जिसके परिणामस्वरूप उनके सहित 24 ग़दरियों को मौत की सजा (मृत्युदंड) दी गई।

प्रश्न 3. निम्नलिखित में से कौन सी पुस्तकें स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित हैं? (स्तर-कठिन)

  1. सत्यार्थ प्रकाश
  2. संस्कारविधि
  3. ऋग्वेद भाष्यम
  4. वैदिक कालक्रम और वेदांग ज्योतिष

विकल्प:

(a) केवल 1, 2 और 3

(b) केवल 1, 3 और 4

(c) केवल 2, 3 और 4

(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: a

व्याख्या:

  • स्वामी दयानंद सरस्वती की प्रमुख साहित्यिक रचनाएँ सत्यार्थ प्रकाश, संस्कारविधि, ऋग्वेद भाष्यम आदि हैं।
  • वैदिक कालक्रम और वेदांग ज्योतिष को बाल गंगाधर तिलक ने लिखा था।

प्रश्न 4. आर्टेमिस मिशन के निम्न में से कौन से उद्देश्य हैं? (स्तर-मध्यम)

  1. मंगल ग्रह सहित भविष्य की खोज के लिए आवश्यक नई तकनीकों, क्षमताओं और व्यावसायिक दृष्टिकोणों का प्रदर्शन करना।
  2. नासा (NASA) की वाणिज्यिक और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी को व्यापक बनाना।
  3. नई पीढ़ी को प्रेरित करना और STEM में करियर को प्रोत्साहित करना।
  4. पृथ्वी, चंद्रमा और हमारे सौर मंडल की उत्पत्ति और इतिहास के बारे में अधिक जानने के लिए चंद्रमा का अध्ययन करना ।

विकल्प:

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2, 3 और 4

(c) 1, 2, 3 और 4

(d) केवल 3 और 4

उत्तर: c

व्याख्या:

आर्टेमिस मिशन (Artemis mission) के मुख्य उद्देश्य हैं:

  • मंगल ग्रह सहित भविष्य की खोज के लिए आवश्यक नई तकनीकों, क्षमताओं और व्यावसायिक दृष्टिकोणों का प्रदर्शन करना।
  • पृथ्वी, चंद्रमा और हमारे सौर मंडल की उत्पत्ति और इतिहास के बारे में अधिक जानने के लिए चंद्रमा का अध्ययन करना।
  • अमेरिकी वैश्विक आर्थिक प्रभाव का विस्तार करते हुए चंद्रमा पर अमेरिकी नेतृत्व और रणनीतिक उपस्थिति स्थापित करना।
  • नासा (NASA) की वाणिज्यिक और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी को व्यापक बनाना।
  • नई पीढ़ी को प्रेरित करना और STEM में करियर को प्रोत्साहित करना।

प्रश्न 5. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: डीएनए बारकोडिंग एक साधन हो सकता है: (CSE-PYQ-2022) (स्तर-मध्यम)

  1. किसी पौधे या जानवर की उम्र का आकलन करने के लिए।
  2. एक जैसी दिखने वाली प्रजातियों में अंतर करने के लिए।
  3. प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में अवांछित जानवरों या पादप पदार्थ की पहचान के लिए।

उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 3

(c) केवल 1 और 2

(d) केवल 2 और 3

उत्तर: d

व्याख्या:

  • कथन 1 गलत है: वैज्ञानिक पौधों और पशु अवशेषों की आयु मापने के लिए कार्बन डेटिंग पद्धति का उपयोग करते हैं।
  • कथन 2 सही है: डीएनए बारकोड छोटी, क्षतिग्रस्त, या औद्योगिक रूप से संसाधित सामग्री से भी – प्रजातियों की निष्पक्ष पहचान करने में मदद करते हैं। इसका उपयोग समान दिखने वाली प्रजातियों में अंतर करने के लिए किया जा सकता है।
  • कथन 3 सही है: डीएनए बारकोडिंग प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में अवांछित जानवरों या पौधों की सामग्री की पहचान करने में मदद करता है।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. सर्वोच्च न्यायालय का यह निष्कर्ष कि राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम के प्रावधान अनुच्छेद 254 के तहत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों के प्रतिकूल, दोषपूर्ण हैं। कथन का परीक्षण कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द) (GS II-राजव्यवस्था)

प्रश्न 2. भारत में मुक्त व्यापार समझौतों के अनुसमर्थन में संसद की किसी भी भूमिका के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है। व्याख्या कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द) (GS II-राजव्यवस्था)