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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 19 September, 2022 UPSC CNA in Hindi

19 सितंबर 2022 : समाचार विश्लेषण

A.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

B.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

सामाजिक न्याय:

  1. अनुसूचित जनजाति सूची:

राजव्यवस्था:

  1. मुफ्त कानूनी सहायता:
  2. ऑनलाइन विवाद समाधान (ODR)

C.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

D.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E.सम्पादकीय:

अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

  1. भू-अर्थशास्त्र के बिना भू-राजनीति, मुर्खता का काम:
  2. चीन और पाकिस्तान के बीच विघटनकारी गठबंधन:

भारतीय समाज:

  1. लैंगिक वेतन अंतर, कटु सत्य और आवश्यक कार्यवाई:

सामाजिक न्याय:

  1. नंबर हमें क्या नहीं बताते?:

F. प्रीलिम्स तथ्य:

  1. लम्पी त्वचा रोग (Lumpy Skin Disease):

G.महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. किन्नू (Kinnow):

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

अनुसूचित जनजाति सूची:

सामाजिक न्याय:

विषय: अनुसूचित जनजाति से संबंधित मुद्दे

मुख्य परीक्षा: अनुसूचित जनजातियों का विकास।

संदर्भ:

  • हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विभिन्न राज्यों में अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes (ST)) की सूची में कई जनजातियों को जोड़ने के प्रस्ताव को मंजूरी दी हैं।

परिचय:

  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, अनुच्छेद 342 के तहत भारत में अनुसूचित जनजाति के रूप में लगभग 705 जातीय समूह सूचीबद्ध हैं।
  • देश में एसटी (ST) आबादी का कुल हिस्सा का 8.6% है।
  • अनुसूचित जनजातियों में लिंगानुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 990 महिलाएं हैं।
  • अनुसूचित जनजाति की आबादी सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में (14.7 फीसदी) और मेघालय में सबसे कम (2.5 फीसदी) है।

एसटी (ST) सूची में हाल ही में जोड़ी गई जनजातियां:

  • हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चार जनजातियों को इस सूची में जोड़ने को मंजूरी प्रदान की हैं।
  • हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले के ट्रांस-गिरी क्षेत्र में हट्टी जनजाति, तमिलनाडु की नारिकोरवन (नारिकुर्वन) और कुरिविक्करन (कुरिविकरण) पहाड़ी जनजाति, और छत्तीसगढ़ में बिंझिया जनजाति, जो झारखंड और ओडिशा में अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध थी, लेकिन छत्तीसगढ़ में नहीं थी,को भी इस सूची में जोड़ा गया हैं।
  • कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश के 13 जिलों में रहने वाले गोंड समुदाय को अनुसूचित जाति सूची से अनुसूचित जनजाति सूची में लाने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी।
  • इसमें गोंड समुदाय की पांच उपश्रेणियों में धुरिया, नायक, ओझा, पथरी और राजगोंड शामिल हैं।
  • कैबिनेट ने कर्नाटक में कडु कुरुबा जनजाति के पर्याय के रूप में ‘बेट्टा-कुरुबा’ को मंजूरी प्रदान की हैं।
  • छत्तीसगढ़ में, मंत्रिमंडल ने भारिया (जोड़ी गयी विविधताओं में भूमिया और भुइयां), गढ़वा (गढ़वा), धनवार (धनवार, धनुवर), नगेसिया (नागसिया, किसान) और पोंढ़ (पोंड) जैसी जनजातियों के लिए समानार्थक शब्द को मंजूरी दी हैं।

सूची से समुदायों को जोड़ने या हटाने की प्रक्रिया:

  • जनजातियों को एसटी सूची में शामिल करने की प्रक्रिया संबंधित राज्य सरकारों या केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन की सिफारिश से शुरू होती है, जिसे बाद में जनजातीय मामलों के मंत्रालय को भेजा जाता है, जो इन्हे सूची में शामिल करने की समीक्षा करता है और बाद में इसे अनुमोदन के लिए भारत के महापंजीयक को भेज दिया जाता है।
  • इसके बाद राज्य सरकार अपने विवेक के आधार पर कुछ समुदायों को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की सूची में जोड़ने या हटाने के लिए सिफारिश करने का विकल्प चुन सकती है।
  • इसके बाद इस सम्बन्ध में अंतिम निर्णय के लिए इस सूची को कैबिनेट को भेजे जाने से पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes) की मंजूरी ली जाती है।
  • इस पर अंतिम निर्णय राष्ट्रपति कार्यालय के साथ एक अधिसूचना जारी करने के साथ होता है जिसमें अनुच्छेद 341 और 342 में निहित शक्तियों के तहत परिवर्तनों को निर्दिष्ट किया जाता है।
  • अनुसूचित जनजाति या अनुसूचित जाति की सूची में किसी भी समुदाय का समावेश या बहिष्कार तभी प्रभावी होता है जब संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 और संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में संसद द्वारा संशोधन करने वाले विधेयक को पारित करने के बाद उस पर राष्ट्रपति सहमति दे।

किसी भी समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने हेतु मानदंड:

सरकार कई मानदंडों को देखती है जैसे:

  1. जातीय लक्षण।
  2. पारंपरिक विशेषताएं।
  3. विशिष्ट संस्कृति।
  4. भौगोलिक अलगाव और पिछड़ापन।
  5. हालाँकि, इन मानदंडों का वर्णन संविधान में नहीं किया गया है।
  • मार्च 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को यह निर्धारित करने के लिए फुल-प्रूफ पैरामीटर तय करने की सलाह दी है कि क्या कोई व्यक्ति अनुसूचित जनजाति का है और निम्नलिखित लाभों का हकदार है।
    • (फुल-प्रूफ पैरामीटर-कोई ऐसी योजना जो इतनी अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई हो की वह समझने में आसान हो या उपयोग में इतनी सरल हो कि उसका गलत तरीके से उपयोग नहीं किया जा सकता हैं।)
  • सुप्रीम कोर्ट ने ‘एफिनिटी टेस्ट’ (Affinity Test-आत्मीयता परीक्षण) को लेकर भी शंका जताई हैं,जिसमे एक व्यक्ति को एक जनजाति से जोड़ने के लिए मानवशास्त्रीय और नृवंशविज्ञान संबंधी लक्षणों के माध्यम से जोड़ने के लिए इसका उपयोग किया जाता है क्योंकि इस बात की संभावना भी काफी होती है कि अन्य संस्कृतियों के साथ संपर्क, प्रवास और आधुनिकीकरण ने एक जनजाति की पारंपरिक विशेषताओं को मिश्रित या धूमिल कर दिया हो।
  • सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस हेमंत गुप्ता और वी रामसुब्रमण्यम की बेंच ने यह इंगित करते हुए कि जाति प्रमाण पत्र जारी करते समय यह मुद्दा “महत्व का विषय” होता हैं,अतः इससे सम्बंधित पैरामीटर तय करने के सवाल को एक बड़ी बेंच के पास भेज दिया हैं।

एसटी सूची में शामिल होने के लाभ:

  • सूचीबद्ध समुदाय एसटी के लिए सरकार की मौजूदा योजनाओं के तहत विभिन्न प्रकार के लाभ प्राप्त कर सकते हैं जैसे कि पोस्ट-मैट्रिक (दसवीं के बाद ) छात्रवृत्ति, विदेशी छात्रवृत्ति और राष्ट्रीय फेलोशिप, शिक्षा के अलावा, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त और विकास निगम से रियायती ऋण और छात्रों के लिए छात्रावास जैसी सुविधाएँ।
  • सम्बंधित सूची में आने के पश्चात वे सरकारी नीति के अनुसार नौकरियों में आरक्षण और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के के भी हकदार होते हैं।

सारांश:

  • हाल ही में सरकार द्वारा विभिन्न समुदायों को एसटी सूची में शामिल किया गया है,क्योंकि कई जनजातियों ने एसटी सूची में शामिल होने में “अत्यधिक देरी” पर विरोध शुरू करने की धमकी दी थी। अब इस संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (तीसरा संशोधन) विधेयक, 2022 के अधिनियम बनने के बाद शामिल किये गए समुदाय एसटी को मिलने वाले लाभ उठा सकेंगे।
  • एसटी और पीवीटीजी के बारे में अधिक जनकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:STs and PVTGs

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

मुफ्त कानूनी सहायता:

राजव्यवस्था:

विषय: न्यायपालिका-त्रि-स्तरीय संरचना।

मुख्य परीक्षा: भारत में मुफ्त कानूनी सहायता का प्रावधान।

संदर्भ:

  • हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अभियुक्तों को पर्याप्त कानूनी सहायता न मिलने के कारण एक निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया हैं।

पृष्ठ्भूमि:

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया, जिसने एक व्यक्ति को अपनी पत्नी की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, चूंकि मुकदमे की पर्याप्त अवधि के लिए उस व्यक्ति को वकील उपलब्ध नहीं करवाया गया था।
  • उच्च न्यायालय ने मुफ्त कानूनी सेवाओं के अधिकार का सम्मान नहीं करने के लिए इसे “न्याय-हत्या” (grave miscarriage of justice) कहा हैं।

भारत में मुफ्त कानूनी सहायता का अधिकार:

  • भारत में, कानूनी सहायता सबसे पहले न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती द्वारा वर्ष 1971 में गठित कानूनी सहायता समिति के तहत प्रस्तावित की गई थी।
  • कानूनी सहायता का अर्थ उन व्यक्तियों को मुफ्त कानूनी सेवाएं प्रदान करना है जो कानूनी प्रतिनिधित्व और अदालत तक पहुंच का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं।
  • भारत में सर्वोच्च न्यायालय सहित अन्य न्यायालयों ने कई मौकों पर इस बात को यह माना है कि यदि कोई अभियुक्त कानूनी सेवाओं को वहन करने में सक्षम नहीं है तो उसे राज्य द्वारा उपलब्ध मुफ्त कानूनी सहायता का अधिकार है।
  • भारत में कानूनी सहायता योजनाओं को एक समान वैधानिक ढांचा प्रदान करने के लिए वर्ष 1995 में कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 (Legal Services Authorities Act,1987 ) लागू किया गया था।
  • यह समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त और सक्षम कानूनी सेवाएं प्रदान करने और न्याय हासिल करने के अवसर सुनिश्चित करने के लिए कानूनी सेवा प्राधिकरणों का गठन करने के लिए बनाया गया एक अधिनियम है।

संवैधानिक अधिकार के रूप में:

  • मुफ्त कानूनी सेवा राज्य का संवैधानिक कर्तव्य है और भारत के नागरिक का अधिकार हैं।
  • संविधान के अनुच्छेद 14 और 22 (1) राज्य के लिए कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करना अनिवार्य बनाते हैं,और एक कानूनी प्रणाली जो बिना किसी भेदभाव, वित्तीय या अन्य सभी के लिए समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देती है।
  • अनुच्छेद 21 (Article 21) में सभी के लिए युक्तियुक्त, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण विचारण (trial) का प्रावधान है।
  • अनुच्छेद 39ए के तहत राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (Directive Principle of State Policy) में स्पष्ट रूप से राज्य को सभी को न्याय के समान अवसर प्रदान करके न्याय को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • भारत में अदालतों ने माना है कि यदि कोई आरोपी कानूनी सेवाएं हासिल करने में सक्षम नहीं है तो उसे राज्य द्वारा उपलब्ध करवाई गई मुफ्त कानूनी सहायता का अधिकार है।

सारांश:

  • सुप्रीम कोर्ट ने अपने विभिन्न फैसलों में यह माना गया है कि किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति के लिए मुफ्त कानूनी सेवाओं का अधिकार “उचित, निष्पक्ष और न्यायसंगत” प्रक्रिया का एक अनिवार्य घटक है। अतः देश में कानूनी व्यवस्था को समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देने के लिए काम करना चाहिए।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

ऑनलाइन विवाद समाधान (ODR)

राजव्यवस्था:

विषय: विवाद निवारण तंत्र एवं संस्थान।

मुख्य परीक्षा: भारत में वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र का उपयोग।

संदर्भ:

  • नीति आयोग द्वारा ऑनलाइन विवाद समाधान (online dispute resolution (ODR)) की पहल के दो साल बाद भारत में ऑनलाइन विवाद समाधान (ODR) प्रणाली में 16 मिलियन से अधिक विवादों के शामिल किया गया है।

ऑनलाइन विवाद समाधान क्या है ?

  • ऑनलाइन विवाद समाधान सार्वजनिक अदालत प्रणाली के बाहर विवादों को हल करने के लिए प्रौद्योगिकी और वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) प्रक्रियाओं का उपयोग है।
  • हालांकि,विवाद समाधान प्रक्रियाओं में प्रौद्योगिकी का मूल एकीकरण ओडीआर के अनुकूल नहीं है।
  • ओडीआर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/मशीन लर्निंग टूल्स के माध्यम से विवादों का समाधान किया सकता है लेकिन इसमें प्रक्रियाओं का कोई निर्धारित सेट शामिल नहीं है।

हमें ओडीआर की आवश्यकता क्यों है:

  • ओडीआर विवाद से बचने, विवाद नियंत्रण और विवाद समाधान में मददगार साबित हो सकता है।
  • कोविड -19 महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान, न्याय प्रणाली में संरचनात्मक मुद्दे न्याय प्रदान करने में सबसे बड़ी चुनौती साबित हुए, जिसके परिणामस्वरूप भारत में न्यायपालिका के सभी स्तरों पर लंबित मामलों में भारी वृद्धि हुई हैं।
  • इसे ई-लोक अदालतों के माध्यम से अदालत से जुड़े एडीआर केंद्रों में प्रौद्योगिकी एकीकरण के माध्यम से न्यायपालिका का केस निपटान में सहयोग देने हेतु एकीकृत किया जा सकता है।
  • मोटर दुर्घटना के दावों (क्लेम्स), चेक बाउंस होने के मामलों, व्यक्तिगत चोट के दावों जैसे मामलों में छोटे लेकिन महत्वपूर्ण विवादों को ओडीआर के माध्यम से निपटाया जा सकता है।
  • यह लागत प्रभावी, सुविधाजनक एवं कुशल है, साथ ही यह अनुकूलन योग्य प्रक्रियाओं को विकसित करने की अनुमति देता है, और अचेतन पूर्वाग्रह को सीमित कर सकता है जो मानव अंतःक्रियाओं के परिणामस्वरूप पैदा होता है।
  • नीति आयोग की ओडीआर पहल सराहनीय है एवं इसकी मसौदा रिपोर्ट को सावधानीपूर्वक संकलित किया गया है।
  • यह विवाद समाधान और प्रौद्योगिकी के बीच इंटरफेस (अंतराफलक) का एक अनूठा विश्लेषण है, और भारत में इसकी काफी संभावनाएं हैं।

ओडीआर का व्यावहारिक कार्यान्वयन:

  • नीति आयोग ने कई हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद वर्ष 2021 में ‘भारत के लिए ओडीआर नीति योजना’ जारी की हैं।
  • यह इस बात का रोडमैप निर्धारित करता है कि विवाद से बचाव,रोकथाम और जब लागू हो, समाधान के लिए ओडीआर को पहले संपर्क के बिंदु के रूप में किस प्रकार बढ़ाया जाए।
  • वर्तमान में 100 से अधिक कंपनियां और 40 सरकारी विभाग अब ODR का उपयोग कर रहे हैं।
  • आरबीआई (RBI) ने डिजिटल भुगतान के लिए एक ओडीआर नीति जारी की हैं,साथ ही एमएसएमई (MSME) क्षेत्र ने एक समाधान पोर्टल (SAMADHAAN portal ) की शुरुआत की और कानूनी मामलों का विभाग देश भर में ओडीआर सेवा प्रदाताओं के विवरण को इकट्ठा करने की प्रक्रिया में है।
  • हाल ही में, आजीविका के कानूनी शिक्षा और सहायता प्रकोष्ठ (Legal Education and Aid Cell-LEAD) के आजीविका ब्यूरो नामक एक गैर-लाभकारी संगठन ने प्रवासी मजदूरों और उनके ठेकेदारों के बीच महामारी के समय में 3,000 से अधिक वेतन विवादों को हल करने के लिए ODR का प्रयोग किया हैं।

चुनौतियां:

  • संरचनात्मक चुनौतियां- डिजिटल साक्षरता और डिजिटल बुनियादी ढांचे की कमी।
  • व्यवहारिक चुनौती- जागरूकता की कमी, ओडीआर में विश्वास की कमी और इसकार का उपयोग करने में सरकार की अनिच्छा।
  • संचालन संबंधी चुनौतियां- ओडीआर परिणामों को लागू करने में कठिनाई, पुरातन कानूनी प्रक्रियाएं और निष्पक्षता की कमी।

भावी कदम:

  • सरकार को ओडीआर का उपयोग करने के लिए देश में पर्याप्त क्षमता और बुनियादी ढांचे को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
  • सम्बंधित पारिस्थितिकी तंत्र की वर्तमान क्षमता को अधिकतम कर भविष्य के लिए उत्तरोत्तर बढ़ाना होगा।
  • नैतिकता और सर्वोत्तम प्रथाओं पर व्यावहारिक अनुभव और सिमुलेशन प्रशिक्षण सहित समान प्रशिक्षण मानकों को अनिवार्य किया जाना चाहिए।
  • साथ ही निजी क्षेत्र को नवाचार एवं विकास के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि विवाद समाधान पारिस्थितिकी तंत्र और सरकार दोनों को दीर्घ काल में इसका लाभ प्राप्त हो सके।

सारांश:

  • ओडीआर के व्यापक उपयोग से समाज के कानूनी ढांचे में सुधार हो सकता है, तथा अनुबंधों के बढ़ते प्रवर्तन को सुनिश्चित किया जा सकता है और इस तरह यह भारत की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में सुधार ला सकता है। जिसके कारण समय के साथ, सार्वजनिक अदालत प्रणाली में ओडीआर और प्रौद्योगिकी के लाभ एक साथ कानूनी प्रतिमान को समग्र रूप से बदल सकते हैं।

संपादकीय-द हिन्दू

सम्पादकीय:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:

अंतरराष्ट्रीय संबंध:

भू-अर्थशास्त्र के बिना भू-राजनीति, मुर्खता का काम:

विषय: संसद – द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत के हित को प्रभावित करने वाले समझौते।

प्रारंभिक परीक्षा: इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क

मुख्य परीक्षा: भू-अर्थशास्त्र और भू-राजनीति।

संदर्भ: भारत-प्रशांत आर्थिक ढांचे से दूर रहने का भारत का हालिया निर्णय।

इंडो-पैसिफिक में भारत द्वारा अपनाई गई रणनीति:

  • भारत ने हिंद-प्रशांत के भू-राजनीतिक विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने की इच्छा दिखाई जिसके फलस्वरूप इस क्षेत्र में भारत एक प्रमुख धुरी के रूप में उभरा है।
  • इसने क्वाड का सैन्यीकरण करने के प्रलोभनों से काफी हद तक खुद को बचा लिया है और यह सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयास किए हैं कि दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संघ (ASEAN) इंडो-पैसिफिक में शक्ति के बदलते संतुलन से आशंकित न हो।

इंडो-पैसिफिक महत्व के बारे में अधिक जानकारी के लिए, यहां क्लिक करें :

https://byjus.com/free-ias-prep/strategic-importance-of-indo-pacific-rstv-big-picture/

भारत की रणनीति के मुद्दे:

  • हिंद-प्रशांत के लिए भारत का दृष्टिकोण दीर्घकाल में अस्थिर प्रतीत होता है क्योंकि भारत ने इस क्षेत्र में भू-आर्थिक विकास पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है।
  • क्षेत्र के दो प्रमुख बहुपक्षीय व्यापार समझौतों से दूर रहने के भारत के निर्णय से पता चलता है कि भू-अर्थशास्त्र और भू-राजनीति की कल्पना की जाती है और एक पूरक दृष्टिकोण के विपरीत समानांतर रूप से इसका अनुसरण किया जाता है। दो बहुपक्षीय समझौते:
    • भारत ने व्यापार स्तंभ में शामिल होने से इनकार कर दिया है, जिसे इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) का सबसे महत्वपूर्ण पहलू माना जाता है। हालाँकि, नई दिल्ली IPEF के अन्य तीन स्तंभों में शामिल हो गई है, अर्थात् स्वच्छ ऊर्जा, आपूर्ति श्रृंखला और कर एवं भ्रष्टाचार विरोधी स्तंभ।
    • अन्य व्यापारिक व्यवस्था क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) है।
  • भारत ने बहुपक्षीय और यहां तक कि IPEF जैसे नरम समझौतों के विपरीत द्विपक्षीय समझौतों में अधिक रुचि दिखाई है।
  • विभिन्न क्षेत्रीय व्यापार मंचों से भारत की अनुपस्थिति चीन के भू-आर्थिक आधिपत्य को बढ़ाएगी।
  • यदि भारत महत्वपूर्ण क्षेत्रीय बहुपक्षीय व्यापार समझौतों का हिस्सा नहीं है तो भारत के लिए क्षेत्रीय और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को एकीकृत करना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
  • क्षेत्र में आर्थिक संबंध नहीं बनाने से भारत को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए, भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति ‘लुक ईस्ट’ के अपने पहले चरण में तब्दील हो सकती है।
  • भारत को इस क्षेत्र में भू-आर्थिक दुनिया में आर्थिक अलगाव के प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है।

भावी कदम:

  • भारत को चीन के साथ व्यापार के मामले पर व्यापक दृष्टिकोण रखना चाहिए क्योंकि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सैन्य गतिरोध के बाद भी, भारत-चीन व्यापार केवल पिछले वर्षों में बढ़ा है।
  • हालांकि भारत को विभिन्न बहुपक्षीय व्यवस्थाओं के हिस्से के रूप में चीन के साथ व्यापार करने से परहेज नही करना चाहिए, लेकिन उन व्यवस्थाओं में भी शामिल होना चाहिए जिनमें चीनी शामिल नहीं है। IPEF ऐसा ही एक उदाहरण है।
  • बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्थाओं में शामिल होने से भारत की नीति में सुधार होगा। यह इस तथ्य में परिलक्षित होता है कि चीन छोड़ने वाली विभिन्न कंपनियों ने भारत के बजाय वियतनाम जैसे देशों की ओर रुख किया।
  • समुद्री रणनीति को गति देने के लिए, भारत को इस क्षेत्र में और अधिक आर्थिक दांव लगाने चाहिए क्योंकि समुद्री रणनीति ही प्रकृति में सैन्य नहीं है।
  • RCEP के फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत है, भारत को ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (CPTPP) के समझौते में शामिल होना चाहिए।
  • भारत को भी सक्रिय रूप से खनिज सुरक्षा भागीदारी में शामिल होना चाहिए।
  • खनिज सुरक्षा भागीदारी एक यू.एस. के नेतृत्व वाला ग्यारह सदस्यीय समूह है जो महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करता है।

सारांश:

यदि भारत इंडो-पैसिफिक और एशियाई शताब्दी का हिस्सा बनना चाहता है, तो उसे अपने भू-आर्थिक रुख में बड़े बदलाव करने की जरूरत है क्योंकि भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र एक-दूसरे के पूरक हैं।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:

अंतरराष्ट्रीय संबंध:

चीन और पाकिस्तान के बीच विघटनकारी गठबंधन:

विषय: भारत और पड़ोस से संबंध।

प्रारंभिक परीक्षा: UNSC 1267।

मुख्य परीक्षा: चीन-पाकिस्तान संबंध।

संदर्भ: चीन ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 सूची में पाकिस्तान स्थित एक आतंकवादी को रखने के भारत-अमेरिका के प्रयास को विफल कर दिया है।

विवरण:

  • चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अलकायदा और ISIL (दाएश) प्रतिबंध समिति के आतंकवादी साजिद मीर आतंकी सूची में शामिल नहीं होने दिया है। वह आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) से संबंधित है और 2008 के मुंबई हमलों से जुड़ा भारत का मोस्ट वांटेड आतंकवादी है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अल कायदा और ISIL (दाएश) प्रतिबंध समिति को UNSC 1267 समिति के रूप में भी जाना जाता है।
  • चीन ने बार-बार अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया है और अतीत में ऐसे कई लिस्टिंग आतंकवादियों को सूची में शामिल नही हिने दिया है। चीन का ऐसा रवैया आतंकवाद के गंभीर मुद्दे से निपटने के सामूहिक प्रयासों में बाधक है।

अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें:

https://byjus.com/free-ias-prep/upsc-exam-comprehensive-news-analysis-sep18-2022/

चीन- पाकिस्तान संबंध:

  • सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार में दोनों देशों की मिलीभगत है। वे अक्सर सैन्य मामलों, बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी में सहयोग करते हैं।
  • परमाणु मिसाइल प्रसार के क्षेत्र में उनकी मजबूत सांठगांठ है। उन्होंने उत्तर कोरिया को सामूहिक विनाश के हथियार (WMD) प्रौद्योगिकियों को भी हस्तांतरित किया हैं।
  • दोनों के बीच संबंधों का आधार 1960 के दशक से मजबूत सैन्य संबंध हैं। इससे चीन को भारत का मुकाबला करने और दक्षिण-एशिया में अपनी पकड़ बनाए रखने में फायदा हुआ है। चीन अपने सैन्य निर्यात का लगभग 47% पाकिस्तान को करता है।
  • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक प्रमुख घटक, भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान संबंधों को रेखांकित करता है।
    • CPEC चीन के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि काराकोरम राजमार्ग दोनों पक्षों के कब्जे वाले कश्मीर क्षेत्र के बीच एक सीधा लिंक प्रदान करता है, जिसमें शक्सगाम (भारत का दावा) का ट्रांस-काराकोरम पथ शामिल है, जो वर्तमान में चीन के कब्जे वाला कश्मीर है।
    • चीन CPEC का इस्तेमाल हिंद महासागर और प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंच के लिए भी करता है।
  • व्यापार पहलू: चीन का सबसे बड़ा ऋणदाता, अकेले पाकिस्तान पर चीन के कर्ज का 27% हिस्सा है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार करीब 20 अरब डॉलर का है।
  • चीन ने अतीत में कई बार जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया है और यहां तक कि 1960 और 1970 के दशक में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों में पाकिस्तान को अपना समर्थन दिया।
  • भारत में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद चीन ने पाकिस्तान के कहने पर इस मामले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले जाने की कोशिश की। चीन ने इस संबंध में तीन असफल प्रयास किए।
  • चीन और पाकिस्तान एक दूसरे के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने के लिए इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) जैसे नए रास्ते तलाश रहे हैं।
  • चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगरों के मानवाधिकार मुद्दे को लेकर चीन पर दबाव कम करने में भी पाकिस्तान अहम भूमिका निभा रहा है। चीन पर अपने मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप है।
  • पाकिस्तान पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) के संबंध में चीनी चिंताओं के प्रति भी संवेदनशील है, जहां अलगाववादी संघ प्रशासित जनजातीय क्षेत्रों (FATA) में शरण मांग रहे हैं।

सारांश:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका की पूर्व की तरफ झुकाव के बाद, पाकिस्तान चीन के अधिक करीब हो गया है चीन भारत के खिलाफ पाकिस्तान को प्रॉक्सी ताकत के तौर पर इस्तेमाल करता है, जबकि पाकिस्तान उसका इस्तेमाल आर्थिक मदद के लिए करता है। दोनों देशों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और इस्लामिक सहयोग संगठन जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी एक-दूसरे का समर्थन करते देखा जाता है।

सम्बंधित लिंक्स:

https://byjus.com/free-ias-prep/gender-inequality-in-india/

https://byjus.com/current-affairs/criminal-justice-system-reforms-of-india/

https://byjus.com/current-affairs/criminal-justice-system-reforms-of-india/

https://byjus.com/free-ias-prep/national-mental-health-programmenmhp/

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-1 से संबंधित:

भारतीय समाज:

लैंगिक वेतन अंतर, कटु सत्य और आवश्यक कार्यवाई:

विषय: महिलाओं से संबंधित मुद्दे।

प्रारंभिक परीक्षा: अंतर्राष्ट्रीय समान वेतन दिवस।

मुख्य परीक्षा: वेतन में लिंग आधार पर अंतर।

संदर्भ: तीसरा अंतर्राष्ट्रीय समान वेतन दिवस 18 सितंबर को मनाया गया।

विवरण:

  • भारत ने श्रम बाजार के परिणामों के अनुरूप आर्थिक विकास में अत्यधिक सुधार दिखाया है।
  • हालांकि, महामारी ने आय और नौकरी के नुकसान के मामले में महिला श्रमिकों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। बड़ी संख्या में महिलाओं ने अपनी नौकरी छोड़ दी और बच्चों और बुजुर्गों की पूर्णकालिक देखभाल के अपने पुराने काम में लग गई हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की वैश्विक वेतन रिपोर्ट 2020-21 के अनुसार, पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कुल मजदूरी में भारी गिरावट आई है। इसका तात्पर्य यह है कि पहले से मौजूद लिंग वेतन अंतर और बढ़ गया है।

पुरुषों और महिलाओं के वेतन की अभिवृति:

  • 1993-94 में भारतीय महिलाओं ने अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में औसतन 48% कम कमाया।
  • हालांकि, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के श्रम बल सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक वेतन अंतर लगभग 28% तक गिर गया।
  • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2020-21 के प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार, 2018-19 से 2020-21 की अवधि के दौरान अंतराल में 7% की वृद्धि हुई है।

लैंगिक वेतन अंतराल के लिए जिम्मेदार कारक:

  • बुनियादी कारकों में शिक्षा, कौशल और कार्य अनुभव शामिल हैं।
  • मजदूरी के लगातार अंतर के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारक लिंग के आधार पर भेदभाव है। लिंग आधारित भेदभाव के दायरे में शामिल है:
  • महिलाओं के काम का अवमूल्यन, विशेष रूप से नारीकृत उद्यमों और व्यवसायों में।
  • महिलाओं को समान काम के लिए भी कम मजदूरी का भुगतान।
  • मातृत्व वेतन अंतर। यह गैर-माताओं की तुलना में माताओं को कम वेतन देने की प्रथा को संदर्भित करता है।

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लैंगिक वेतन अंतर को कम करने के लिए किए गए प्रयास:

  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर:
    • संयुक्त राष्ट्र ने अपने कार्यों के केंद्र में लैंगिक असमानता के विभिन्न रूपों को समाप्त करने की ठानी है।
    • महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर ILOकी कन्वेंशन (CEDAW) में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी ढांचा बनाया गया है। इसमें ‘समान मूल्य के काम के लिए समान वेतन’ के सिद्धांत को भी अपनाया है।
  • भारत:
    • भारत 1948 में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम को अपनाने वाले पहले देशों में से एक है।
    • 1976 में, समान पारिश्रमिक अधिनियम को लागू किया गया था।
    • भारत ने 2019 में व्यापक सुधार किए। इसने कई कानून बनाने के साथ साथ मजदूरी संहिता भी बनाई।
    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), 2005: इस कानून से ग्रामीण महिलाओं को बहुत लाभ हुआ है और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लिंग वेतन अंतर को कम करने में काफी मदद मिली है।
      • इसने कार्यक्रम में भाग लेने वाली महिला श्रमिकों के वेतन स्तर को बढ़ाया।
      • इससे व्यवसायों में लगी महिलाओं को भी लाभ हुआ क्योंकि मनरेगा ने देश में कृषि मजदूरी बढ़ाने में योगदान दिया जिससे ग्रामीण आर्थिक विकास में तेजी आई।
    • इसके अलावा, 10 या अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में काम करने वाली सभी महिलाओं के लिए ‘वेतन सुरक्षा के साथ मातृत्व अवकाश’ को बारह सप्ताह से बढ़ाकर छब्बीस सप्ताह करने के लिए, 1961 के मातृत्व लाभ अधिनियम में 2017 में संशोधन किया गया। इससे मातृत्व वेतन अंतर कम होगा, खासकर औपचारिक अर्थव्यवस्था में।
    • सरकार ने स्किल इंडिया मिशन जैसी पहल भी की है जो महिलाओं को बाजार से संबंधित कौशल प्रदान करेगी।

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सारांश:

  • विभिन्न प्रयासों के बाद भी, भारत का श्रम बाजार अभी भी व्यापक लैंगिक वेतन अंतर जैसी विषमताओं से बंधा हुआ है। पूर्ण और उत्पादक आर्थिक विकास के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित करने के साथ-साथ कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़े।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:

सामाजिक न्याय:

नंबर हमें क्या नहीं बताते?:

विषय: जनसंख्या के कमजोर वर्ग से संबंधित विषय।

प्रारंभिक परीक्षा: जेल सांख्यिकी रिपोर्ट

मुख्य परीक्षा: कैदियों के मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे

संदर्भ: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की जेल सांख्यिकी रिपोर्ट 2021।

भारत की जेलों में मानसिक स्वास्थ्य संकट:

  • NCRB जेल सांख्यिकी रिपोर्ट के निष्कर्ष:
    • मानसिक बीमारी से पीड़ित लगभग 9,180 कैदी हैं।
    • लगभग 150 आत्महत्याएं हुईं।
    • इसके अलावा पांच कैदियों की मिर्गी और सिजोफ्रेनिया से मौत हो गई।
    • मानसिक बीमारी वाले कुल लोगों में से लगभग 58.4% अभियोगाधीन थे और लगभग 41.3% अपराधी थे।
  • मानसिक स्वास्थ्य बीमारी का आकलन करते समय जिन मानकों पर विचार किया जाता है, उनके बारे में जानकारी का अभाव है। उदाहरण के लिए, क्या लोग अभी भी दवा ले रहे हैं,सर्वेक्षण में इस हिस्से के बारे में जानकारी नही हैं।
  • इसके अलावा, बीमारी के प्रकार, बीमारी की शुरुआत और बीमारी की अवधि जैसे कारक रिपोर्ट का हिस्सा नहीं हैं।
  • अपनी तरह की पहली रिपोर्ट, डेथवर्थी-प्रोजेक्ट 39ए के मुताबिक, मौत की सजा पाने वाले कैदियों में से साठ प्रतिशत से अधिक मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं।
  • डेथवर्थी ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि आत्महत्या मानसिक बीमारी से अधिक संबंधित नहीं है। वास्तव में, यह काफी हद तक हिंसा, संकट, निराशा और सामाजिक समर्थन के अभाव के कारण होती है।
  • यद्यपि भारत की राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति, 2014, कैदियों को एक कमजोर समूह के रूप में मानती है, लेकिन यह इसके लिए कोई समाधान प्रदान नहीं करती है।

भावी कदम:

  • मानसिक स्वास्थ्य संकट के लिए एक मजबूत प्रतिक्रिया प्रणाली बनाने के लिए वर्तमान निष्कर्षों का सार्थक विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है।
  • जेल में खराब स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे में भी काफी सुधार की आवश्यकता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को हल करने के लिए विशुद्ध रूप से चिकित्सा दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, दृष्टिकोण की पहचान और उपचार से परे सामाजिक और संरचनात्मक दृष्टिकोणों को निर्धारित करने के एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
  • इसमें कैदियों के संकट को दूर करने के उपाय भी शामिल होने चाहिए:
    • संकट को एक ऐसे दृष्टिकोण के माध्यम से दूर किया जाना चाहिए जो केवल दवाएं उपलब्ध कराने तक ही सीमित न हो।
    • कैद में हिंसा के पहलुओं में भी बदलाव की जरूरत है, क्योंकि मानसिक संकट के पीछे हिंसा एक प्रमुख कारक हो सकती है।
  • सुधार, पुनर्वास और पुन: एकीकरण की प्रक्रिया हिंसक और कठोर होने के बजाय सहानुभूतिपूर्ण होनी चाहिए।

सारांश:

भारत की जेलों में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बढ़ते मामले देश की दंड और सामाजिक न्याय नीति के उद्देश्य और प्रभावशीलता पर सवाल उठाते हैं। जेल वे स्थान हैं जो अपराधियों के पुनर्वास और सुधार के लिए होते हैं, लेकिन लेकिन इसके बजाय यह स्थान बन गया है जहाँ अशक्तीकरण और सविधाओं से वंचित किया जाता है।

प्रीलिम्स तथ्य:

1.लम्पी त्वचा रोग (Lumpy Skin Disease):

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

विज्ञान एवं तकनीकी:

विषय: विभिन्न रोग।

प्रारंभिक परीक्षा: लम्पी त्वचा रोग (Lumpy Skin Disease (LSD))

सन्दर्भ:

  • एलएसडी (Lumpy Skin Disease (LSD)) वायरस के वायरल अनुक्रमों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2022 के प्रकोप का जीनोम संदर्भ जीनोम की तुलना में बड़ी संख्या में आनुवंशिक विविधताओं को आश्रय देते हैं और एक अलग वंश बनाते हैं।

पृष्ठ्भूमि:

  • एलएसडी वायरस ने वर्ष 2022 में भारत में कम से कम 50,000 मवेशियों की जान ले ली है।
  • वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद- जीनोमिक्स और एकीकृत जीवविज्ञान संस्थान (सीएसआईआर-आईजीआईबी) और राज्य रोग निदान केंद्र, जयपुर में वैज्ञानिकों द्वारा जीनोम के तुलनात्मक विश्लेषण में 177 अद्वितीय वेरिएंट का पता चला हैं, जिनमें से कोई भी जेनबैंक डेटाबेस में जमा बीमारी के 2019 के प्रकोप से संबंधित भारत के चार जीनोम अनुक्रमों में नहीं पाया गया हैं।
  • अध्ययन से यह भी पता चलता है कि जब वायरस को उसकी नाक के साथ-साथ त्वचा से भी निकाला गया तब जानवरों में से एक में एलएसडी वायरस के दो अलग-अलग प्रकार दिखाई दिए,जिससे यह पता चलता है कि यह वायरस एक ही मेजबान के भीतर विकसित होने में सक्षम है।
  • वायरस की संरचना में इस अंतर ने नई वैक्सीन ‘लंपी-प्रो वैकइंड वैक्सीन (Lumpi-ProVacInd Vaccine)’ की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं,जो भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research (ICAR) ) द्वारा विकसित एक टीका हैं जिसे वर्ष 2019 के प्रकोप से पीड़ित रांची में मवेशियों के एलएसडी वायरस के नमूनों पर के आधार पर विकसित किया गया है।

लंपी-प्रो वैकइंड वैक्सीन (Lumpi-ProVacInd Vaccine):

  • वैक्सीन एक जीवित क्षीणन/तनु (live attenuated), या वायरस का एक कमजोर संस्करण है जिसे जब जानवरों में इंजेक्ट किया जाता है तो यह प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करता हैं,जिससे जानवरों को संभावित संक्रमण से बचाया जा सकता है।
  • आईसीएआर के अनुसार 2022 के प्रकोप से पीड़ित जानवरों पर टीके के किए गए प्रायोगिक परीक्षण के उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं।
  • वर्तमान में, इस बीमारी के लिए उपलब्ध एकमात्र टीके बकरी चेचक (goat pox ) और भेड़ चेचक (sheep pox) हैं, जो एलएसडी वायरस से संबंधित हैं।
  • लम्पी त्वचा रोग पर अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Lumpy Skin Disease

महत्वपूर्ण तथ्य:

1. किन्नू (Kinnow):

  • किन्नू एक उच्च उपज वाला संतरा/मैंडरिन है,जो दो खट्टे फलों ‘किंग’ और ‘विलो लीफ’ को मिलकर विकसित किया गया एक संकर फल है।
  • यह फल मुख्य रूप से पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, राजस्थान और हरियाणा के कुछ हिस्सों में उगाया जाता है।
  • संतरे की संकर किस्म वर्ष 1935 में हॉवर्ड बी फ्रॉस्ट (Howard.B. Frost) द्वारा विकसित की गई थी।
  • कारखानों से रसायनों के कारण प्रदूषित नहर के पानी जैसे कई मुद्दों के कारण किन्नू की फसल में लगभग 50% की गिरावट आने की संभावना है।
  • गर्मियों की शुरुआत और मार्च के महीने में तापमान में वृद्धि के कारण इसके फल और फूल गिर गए हैं।

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. जैव विविधता के संदर्भ में स्ट्रिप्ड हेयरस्ट्रीक (striped hairstreak),इलूसिव प्रिंस (elusive prince), विनेड पामर (veined palmer) और स्पॉटेड येलो लांसर (spotted yellow lancer) किससे सम्बंधित हैं। (स्तर-कठिन)

(a) पक्षी

(b) तितलियाँ

(c) पौधे

(d) मछलियों का वर्ग

उत्तर: b

व्याख्या:

  • उपरोक्त सभी नाम तितलियों की प्रजाति के हैं।
  • वर्ष 2020 में अरुणाचल प्रदेश में तितली की दो नई प्रजातियों, स्ट्राइप्ड हेयरस्ट्रेक (Striped Hairstreak) और एल्युसिव प्रिंस (Elusive Prince) की खोज की गई थी।
  • विनेड पामर (veined palmer)/हिदारी भवानी, हेस्पेरिडे परिवार की एक तितली है।

प्रश्न 2. हाल ही में खबरों में रहे टाइफून नानमाडोल (Typhoon Nanmadol) ने निम्नलिखित में से किस देश में दस्तक दी है? (स्तर-मध्यम)

(a) जापान

(b) संयुक्त राज्य अमेरिका

(c) मालदीव

(d) फिलीपींस

उत्तर: a

व्याख्या:

  • टाइफून नानमाडोल ने हाल ही में दक्षिण-पश्चिमी जापान में दस्तक दी थी।
  • जापान मौसम विज्ञान एजेंसी ने वहां के लाखों लोगों को इस शक्तिशाली तूफान की तेज हवाओं और मूसलाधार बारिश से बचने के लिए सुरक्षित जगह पर शरण लेने का आग्रह किया हैं।

प्रश्न 3. क्रांतियों और संबद्ध देशों के निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए: (स्तर-कठिन)

क्रांति सम्बंधित देश

  1. ऑरेंज यूक्रेन
  2. ट्यूलिप किर्गिस्तान
  3. चमेली ट्यूनीशिया
  4. कमल (lotus) मिस्र

उपर्युक्त में से कितने युग्म सही सुमेलित हैं/हैं?

(a) केवल एक युग्म

(b) केवल दो युग्म

(c) केवल तीन युग्म

(d) सभी चार युग्म

उत्तर: d

व्याख्या:

  • युग्म 1 सही सुमेलित है: ऑरेंज क्रांति वर्ष 2004 के यूक्रेनी राष्ट्रपति चुनाव में भ्रष्टाचार और चुनावी धोखाधड़ी के खिलाफ नवंबर 2004 के अंत से जनवरी 2005 तक यूक्रेन में हुए विरोध और राजनीतिक घटनाओं की एक श्रृंखला थी।
  • युग्म 2 सही सुमेलित है: किर्गिस्तान में ट्यूलिप क्रांति वर्ष 2005 में तत्कालीन राष्ट्रपति आस्कर अकायेव के भ्रष्ट, असहिष्णु और सत्तावादी शासन के खिलाफ संसदीय चुनावों के बाद शुरू हुई थी।
  • युग्म 3 सही सुमेलित है: वर्ष 2010 में चमेली क्रांति (Jasmine Revolution) ट्यूनीशिया में भ्रष्टाचार, गरीबी और राजनीतिक दमन के खिलाफ उठा एक विद्रोह था।विद्रोह की सफलता ने पूरे मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में इसी तरह के विरोध की लहर को प्रेरित किया, जिसे अरब स्प्रिंग (Arab Spring) के रूप में जाना जाता है।
  • युग्म 4 सही सुमेलित है: मिस्र की क्रांति तत्कालीन राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के शासन में बढ़ती पुलिस बर्बरता के खिलाफ वर्ष 2011 में हुई थी।
  • इसे 25 जनवरी क्रांति (25 January revolution), स्वतंत्रता क्रांति क्रोध क्रांति (Freedom Revolution Rage Revolution) या कमल क्रांति (Lotus Revolution) के रूप में भी जाना जाता है।

प्रश्न 4. मिशन इनोवेशन पहल के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर-मध्यम)

  1. यह एक वैश्विक पहल है जिसका उद्देश्य सभी के लिए पीने योग्य पानी को सुलभ बनाने के लिए अनुसंधान, विकास और निवेश को उत्प्रेरित करना है।
  2. भारत इस पहल का हिस्सा है।

निम्नलिखित में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 न ही 2

उत्तर: b

व्याख्या:

  • कथन 1 गलत है: मिशन इनोवेशन जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को संबोधित करने, उपभोक्ताओं के लिए स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्था बनाने और हरित रोजगार और व्यावसायिक अवसर पैदा करने के लिए सार्वजनिक और निजी स्वच्छ ऊर्जा नवाचार में तेजी लाने की एक अंतरराष्ट्रीय पहल है।
  • कथन 2 सही है: यह भारत और यूरोपीय संघ सहित 24 देशों की वैश्विक पहल है।
  • मिशन इनोवेशन पर अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:Mission Innovation

प्रश्न 5. गुप्त काल के दौरान भारत में बलात श्रम (विष्टी) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? (स्तर-मध्यम)

(a) इसे राज्य के लिए आय का एक स्रोत ,जनता द्वारा दिया जाने वाला एक प्रकार का कर माना जाता था।

(b) यह गुप्त साम्राज्य के मध्य प्रदेश और काठियावाड़ क्षेत्रों में पुर्णतः अविद्यमान था।

(c) बलात श्रमिक साप्ताहिक मजदूरी का हकदार होता था।

(d) मजदूर के ज्येष्ठ पुत्र को बलात श्रमिक के रूप में भेज दिया जाता था।

उत्तर: a

व्याख्या:

  • गुप्त युग में, विष्टी शब्द को जबरन श्रम कहा जाता था।
  • गुप्त काल में जबरन मजदूरी (विष्टि) पहले की तुलना में अधिक आम हो गई थी।
  • भूमि अनुदान शिलालेखों में करों के साथ इसका उल्लेख किया गया हैं, जो बताता है कि विष्टी को राज्य के लिए आय का एक स्रोत माना जाता था, लोगों द्वारा भुगतान किया जाने वाला एक प्रकार का कर था।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

प्रश्न 1. लैंगिक वेतन के अंतर की खाई को पाटने के लिए समान मूल्य के काम के लिए समान वेतन देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और भारत सरकार द्वारा किए गए उपायों पर चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द) (जीएस 1-सामाजिक मुद्दे)

प्रश्न 2. भारत में कैदियों में मानसिक अस्वस्थता की दर अनुपातहीन रूप से काफी उच्च है। उनके मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण को बढ़ावा देने और संरक्षित करने के लिए एक कार्य योजना का सुझाव दें जो उन्हें मौजूदा जेल के वातावरण में बेहतर कार्य करने में सक्षम बनाएं। (15 अंक, 250 शब्द) (जीएस 2 राजव्यवस्था एवं शासन)