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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 26 September, 2022 UPSC CNA in Hindi

26 सितंबर 2022 : समाचार विश्लेषण

A.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

भूगोल:

  1. बदलते मानसून व्यवहार/पैटर्न:

B.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

सामाजिक न्याय:

  1. बेहतर कार्य पद्धतियों का आह्वान:

C.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

आपदा प्रबंधन:

  1. भोपाल गैस त्रासदी:

D.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E.सम्पादकीय:

अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

  1. सॉफ्ट पावर, नई दौड़ हर देश जीतना चाहता है:

सामाजिक न्याय:

  1. मध्याह्न भोजन से संबंधित खाद्य विषाक्तता के मामले छह साल के चरम पर:
  2. इण्डिया इनकॉरपोरेट को एक तंत्रिका विविधता कार्यस्थल की आवश्यकता है:

शासन:

  1. ओवर द टॉप :

F. प्रीलिम्स तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

G.महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. नीलकुरिंजी (Neelakuranji):
  2. स्थानीय बोलियाँ:

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

भोपाल गैस त्रासदी:

आपदा प्रबंधन:

विषय: सामुदायिक स्तर पर आपदा प्रबंधन।

मुख्य परीक्षा: आपदा के लिए सक्रिय और प्रतिक्रियाशील प्रतिक्रियाएं।

संदर्भ:

  • हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए मुआवजा बढ़ाने के लिए वर्ष 2010 की याचिका पर केंद्र सरकार से अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा हैं।

परिचय:

  • हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) की 5-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से उसके द्वारा दायर वर्ष 2010 की उपचारात्मक याचिका/क्यूरेटिव पिटीशन (curative petition) पर अपनी स्थिति के बारे में केंद्र से निर्देश लेने को कहा हैं,जिसमें अमरीकी कंम्पनी यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन से भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे की मांग की गई थी।
  • सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया हैं कि जैसा कि केंद्र ने उपचारात्मक याचिका/क्यूरेटिव पिटीशन दायर कि है, में अंतिम निर्णय केंद्र सरकार के फैसले द्वारा निर्धारित किया जाएगा कि उपचारात्मक याचिका/क्यूरेटिव पिटीशन के तहत दायर इन प्रार्थनाओं को अनदेखा किया जाना चाहिए या नहीं।

पृष्ठ्भूमि:

  • केंद्र सरकार ने दिसंबर 2010 में उपचारात्मक याचिका/क्यूरेटिव पिटीशन दायर कर 7413 करोड़ रुपये के मुआवजे में वृद्धि और 14 फरवरी, 1989 से सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा की मांग की।जिसमें मुआवजे को 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर (750 करोड़ रुपये) पर निर्धारित किया गया और इसके बाद के आदेशों ने भुगतान और निपटान की विधि निर्धारित की।
  • वर्ष 2010 में क्यूरेटिव पिटीशन जमा करते हुए केंद्र सरकार ने स्पष्ट रूप से खुद को “पीड़ितों के माता-पिता (रक्षक)” के रूप में घोषित किया था।
  • केंद्र सरकार के अनुसार इससे सम्बंधित पूर्व समझौता बाद की पर्यावरणीय क्षति के लिए उत्तरदायी नहीं था और यह मृत्यु, चोट और यह पीड़ितों की संख्या के गलत अनुमानों पर आधारित था।
  • पहले के अनुमान जिसमे 3,000 लोगो की मृत्यु और 70,000 व्यक्तियों की चोट के मामलों के आधार पर, इसका भुगतान निर्धारित किया गया था।
  • उपचारात्मक याचिका/क्यूरेटिव पिटीशन में मरने वालों की संख्या 5,295 और घायल हुए लोगों की संख्या 527,894 बतायी गई हैं।
  • इसके अलावा, संसद ने भोपाल गैस रिसाव आपदा (दावों को संसाधित करना) अधिनियम, 1985 को अधिनियमित करके पीड़ितों के रक्षक की भूमिका में सरकार को काम सौंपा था।

उपचारात्मक याचिका:

  • एक उपचारात्मक याचिका/क्यूरेटिव पिटीशन एक याचिका है,जिसमें समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद भी अदालत से अपने फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध किया जाता है।
  • एक उपचारात्मक याचिका अंतिम न्यायिक सुधारात्मक उपाय है जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित किसी भी निर्णय के लिए अपनाया जा सकता है जो सामान्य रूप से न्यायाधीशों द्वारा तय किया जाता है।
  • केवल दुर्लभ मामलों में ऐसी याचिकाओं की खुली अदालत में सुनवाई की जाती है। इसलिए, इसे शिकायतों के निवारण के लिए उपलब्ध अंतिम विकल्प माना जाता है।
  • क्यूरेटिव पिटीशन का पहला ज्ञात उदाहरण वर्ष 2002 में रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा मामला है।
  • सवाल यह उठता हैं कि क्या पीड़ित पक्ष सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले के संबंध में किसी राहत का हकदार था।
  • जब अपनी प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने और न्याय की हत्या की किसी भी प्रकार की घटना को रोकने के लिए, सर्वोच्च न्यायालय अपने निर्णय पर अपनी शक्ति की सीमा के भीतर पुनर्विचार करेगा तब यह निर्णय लिया जाएगा।
  • इस प्रकार ‘क्यूरेटिव पिटीशन’ (curative petition) शब्द की व्युत्पत्ति हुई।

सारांश:

  • सुप्रीम कोर्ट और सरकार ने सहमति व्यक्त की थी कि भोपाल गैस त्रासदी “मानव इतिहास में भयानक घटना” थी जिसमे राहत एवं पुनर्वास को निरंतर समीक्षा और परिवर्तन से गुजरना पड़ सकता है।उपचारात्मक याचिका पर केंद्र सरकार के स्पष्ट रुख की कमी से पीड़ितों के मुआवजे पर “निरंतर अनिश्चितता” बनी हुई है।
  • भोपाल गैस त्रासदी पर अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:Bhopal Gas Tragedy

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

बेहतर कार्य पद्धतियों का आह्वान:

सामाजिक न्याय:

विषय: मानव संसाधन

मुख्य परीक्षा: 21वीं सदी में कार्य-जीवन संतुलन से सम्बंधित मुद्दे।

संदर्भ:

  • डेलॉइट का एक हालिया सर्वेक्षण युवा कार्यबल की विभिन्न चिंताओं को दर्शाता है जो एक बेहतर कार्य-जीवन संतुलन की तलाश में हैं।

परिचय:

  • वाक्यांश “क्वाइट क्विटिंग ” (Quiet quitting) ने हाल ही में सोशल मीडिया पर बहुत अधिक रुचि और जुड़ाव उत्पन्न किया है।
  • युवा कार्यबल इस अवधारणा को बढ़ावा दे रहे हैं जो अतिरिक्त कार्य के विचार को खारिज करती है।
  • यह लोगों को काम से समय निकालने और कार्यालय के बाहर कुछ करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
  • यह आत्म-संरक्षण और वह सब करने के इर्द-गिर्द केंद्रित है जिसे करने पर उन्हे भुगतान किया जाता है।
  • एक प्रकार से यह प्रवृत्ति हाइब्रिड या वर्क फ्रॉम होम-बेस्ड ऑफिस कार्य संस्कृति के प्रभाव को दर्शाती है जो कार्य पद्धति कोविड के समय से सभी संगठनों द्वारा अपनाई गई है।
  • इस समय जनरेशन जेड (Generation Z) और सहस्राब्दी श्रमिकों की बढ़ती संख्या अतिरिक्त घंटे लगाने के लिए पहचाने जाने या मुआवजा नहीं दिए जाने से थक गई है।
  • (Generation Z- जनरेशन Z वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, डेलॉइट, मैकिन्से, और प्राइसवाटरहाउसकूपर्स भी जेन जेड के लिए शुरुआती बिंदु के रूप में 1995 का उपयोग करते हैं।
    • जेनरेशन जेड को 1996 से 2015 तक पैदा हुए लोगों के रूप में परिभाषित करता है।जनरेशन जेड, जिसे जेन जेड भी कहा जाता है, सहस्राब्दी के बाद पीढ़ीगत समूह है, जो 1990 के दशक के अंत और 2010 की शुरुआत के बीच पैदा हुआ था।
    • अनुसंधान इंगित करता है कि जनरेशन Z अमेरिकी इतिहास की सबसे बड़ी पीढ़ी है और देश की आबादी का 27 प्रतिशत है।)
  • अब, वे स्वयं को ऑफिस स्थल में काम में खफाना नहीं चाहते हैं, और कार्य-जीवन संतुलन पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं।

डेलॉइट (Deloitte) द्वारा सर्वेक्षण:

  • यह सर्वेक्षण 46 देशों के हजारों प्रतिभागियों के विचार बताता हैं की जनरेशन Z और सहस्राब्दी कार्यकर्ता “स्वयं को कार्य में खपा हुआ ” महसूस कर रहे हैं, और कई अधिक उद्देश्यपूर्ण और लचीले काम पर जोर देते हुए दूसरी नौकरी कर रहे हैं।
  • सर्वेक्षण से पता चलता है कि जनरेशन Z और सहस्राब्दी श्रमिकों में आधे से अधिक अपने बिलों का भुगतान करने में सक्षम नहीं होते हैं और अपने जीवन यापन एवं भुगतान के लिए अगली तनख्वाह के बारे में चिंतित रहते हैं।
  • इसके अलावा, उत्तरदाताओं की संख्या के पांचवें हिस्से में इस विश्वास की कमी दिखी कि वे ठीक तरीके से सेवानिवृत्त हो पाएंगे या नहीं या उनकी क्षमता में कमी आ जायेगी।
  • उनमें से कई अपनी वित्तीय अनिश्चितता को देखते हुए अपने काम में बदलाव कर रहे हैं, और अपने वर्तमान में एक दूसरे भाग- या पूर्णकालिक भुगतान वाली नौकरी से जुड़ने का विकल्प चुन रहे हैं।

गो-स्लो मूवमेंट: एक केस स्टडी

  • वर्तमान में चल रहा यह नया चलन पुराने समय की मंदी और कार्य-दर-मजदूरी हड़तालों से प्रतिध्वनित होता है।जहाँ एक सदी पहले ऐसे कामों में संलग्न ज्यादातर श्रमिक संघों द्वारा ऐसे विचार उठाये गए थे जो काम करने की स्थिति में सुधार एवं कारखानों और औद्योगिक इकाइयों में दैनिक मजदूरी बढ़ाने से सम्बंधित थे।
  • “गो-स्लो” की अवधारणा उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में देखी गई थी जब ग्लासगो, स्कॉटलैंड के संगठित डॉक (गोदी- dock) श्रमिकों ने 10% वेतन वृद्धि की मांग की थी।
  • मालिकों द्वारा मजदूरों के अनुरोध को ठुकराने के बाद डॉक कर्मचारी हड़ताल पर चले गए थे।
  • इसके बाद डॉक (गोदी- dock) मालिकों ने आंदोलन को विफल करने के लिए खेत मजदूरों को काम पर रख लिया था।
  • इसके पश्चात् डॉक (गोदी- dock) के कर्मचारियों ने हार मान ली और उसी मजदूरी पर फिर से काम करना शुरू कर दिया।
  • डॉकर्स (गोदी के कर्मचारियों ने) ने सावधानीपूर्वक मजदूरों की जांच की और पाया कि वे सम्बंधित कार्य करने में अक्षम थे।
  • डॉकर्स ने जानबूझकर खेतिहर मजदूरों की तरह खराब काम किया,इसके बाद मालिकों ने यूनियन से श्रमिकों को पहले की तरह काम पूरा करने के लिए कहा और यह भी कहा की उन्हें 10% की वेतन वृद्धि दी जाएगी।

21वीं सदी में काम करना:

  • सूचना युग में इन कंपनियों को फिर से संगठित किया गया हैं। उदाहरण के लिए, पहले कोई कंपनी जो एक ही गतिविधि में लगी हुई है, अब अन्य कार्यक्षेत्रों में इस कार्य कर रही हैं।
  • इस बदलाव के कारण इन्होने अधिक ग्राहकों के लिए नए भौगोलिक क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया हैं।

21वीं सदी में काम के अब कई पहलू बदल गए हैं।

  • बड़ी संख्या में प्रक्रियाएं अब स्वचालित हो गई हैं।
  • कई औद्योगिक इकाइयों में रोबोट ने इंसानों की जगह ले ली है।
  • स्किल वर्कर्स (कुशल श्रमिक) पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है।
  • ग्राहक आधार के विस्तार ने कर्मचारियों के लिए संगठन के महत्वपूर्ण कार्यों पर चर्चा करने और निष्पादित करने के लिए विविध सहयोगियों के साथ जुड़ना आवश्यक बना दिया हैं।
  • इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप काम के अतिरिक्त घंटे बढ़ गए हैं और व्यक्तिगत समय कम हो गया है।
  • कार्यस्थल में सहयोग प्रौद्योगिकियों, मैट्रिक्स-आधारित संरचनाओं को अपनाने और “एक फर्म/व्यवसाय-प्रतिष्ठान” संस्कृति बनाने की पहल के प्रसार ने ‘सहयोग कार्यभार’ बनाया है।

क्रंच (Crunch) संस्कृति:

  • चल रही प्रवृत्ति कुख्यात ‘क्रंच संस्कृति’ की विरोधी है (गेमिंग उद्योग में, क्रंच ओवरटाइम के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है)।
    • (वीडियो गेम उद्योग में गेम के विकास के दौरान क्रंच अनिवार्य ओवरटाइम की प्रक्रिया है। )
  • बॉम्बे शेविंग कंपनी के संस्थापक और सीईओ शांतनु देशपांडे ने नकारात्मक तरीके से जनरेशन Z के कर्मचारियों को ‘अपनी एक लिंक्डइन पोस्ट में “कम से कम 4-5 साल के लिए काम के दिन में 18 घंटे काम करने और काम-जीवन संतुलन के बारे में नहीं सोचने के लिए कहा”।
  • वर्ष 2020 में, इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने सुझाव दिया था कि COVID-19 संबंधित लॉकडाउन के कारण आई आर्थिक मंदी की भरपाई के लिए भारतीयों को दो से तीन साल के लिए सप्ताह में 64 घंटे काम करना चाहिए।
  • क्रंच संस्कृति द्वारा विषाक्त कार्य संस्कृति को बढ़ावा देने के इस विचार का युवा श्रमिकों/कार्यबल के एक बड़े हिस्से द्वारा सोशल मीडिया पर गंभीर विरोध किया जा रहा है, खासकर कर उन युवाओं के बीच जो सहयोग अधिभार (collaboration overload), क्षतिपूर्ति/मुआवजा स्थिरता (compensation stagnation) और खराब कार्य-जीवन संतुलन का सामना कर रहे हैं।

यूनियनों के बिना एक आंदोलन: भावी कदम

  • हालांकि, पिछली सदी के गोदी श्रमिकों और रेल कर्मचारियों के विपरीत, इक्कीसवीं सदी के इन युवा श्रमिकों में अपनी मांगों को आगे बढ़ाने और समस्यायों का दीर्घकालिक समाधान खोजने हेतु एक संगठित संघ का अभाव है।
  • सबसे अच्छे रूप में,एक यूनियन के समर्थन के बिना उनकी डिजिटल सक्रियता तकनीकी-क्षमता आज के कार्यस्थलों के सम्बन्ध में उनकी महत्वपूर्ण चिंताओं के बारे में उनकी नाराजगी और क्रोध के लिए एक निर्गम मार्ग के रूप में काम कर सकती है।
  • नियोक्ता मिलेनियल्स (millennials -सहस्त्राब्दी) और जेनरेशन Z को एक समृद्ध पेशेवर जीवन देकर इस समस्या का समाधान कर सकते हैं।
  • यदि किसी संगठन में कर्मचारी के लिए अच्छा कार्य-जीवन संतुलन, उपयुक्त वेतन और अपने मौजूदा पदों से आगे बढ़ने और उसके विकास के अवसर का सांस्कृतिक माहौल मिलता हैं तो युवा कर्मचारी स्वयं को संगठन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानेंगे ।
  • यदि ऐसा किया जाता हैं तो कंपनियां अपनी समन्वित कार्रवाई से भरपूर प्रतिफल प्राप्त कर सकती हैं क्योंकि इससे कर्मचारी प्रतिधारण दर में सुधार हो सकता है।

सारांश:

  • श्रमिकों के अधिकारों, उचित वेतन और कर्मचारी लाभों पर वर्तमान समय में मजदूरों के समक्ष सदियों पुराने मुद्दे पुनः उठ खड़े हुए हैं। महामारी के शुरुआती दौर में डिजिटलीकरण में वृद्धि को एक वरदान के रूप में देखा गया था, लेकिन प्रौद्योगिकी पर व्यापक निर्भरता अब कई श्रमिकों के लिए एक अभिशाप बन गई है जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न ऑनलाइन आंदोलनों के जरिए जीवन संतुलन की मांग की जा रही है।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

बदलते मानसून व्यवहार/पैटर्न:

भूगोल:

विषय: जलवायु-मानसून।

मुख्य परीक्षा: अलग-अलग मानसून व्यवहार/पैटर्न का प्रभाव।

संदर्भ:

  • भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, दक्षिण-पश्चिम मानसून (southwest monsoon)ने हाल ही में दक्षिण-पश्चिम राजस्थान और कच्छ के कुछ हिस्सों से वापसी शुरू कर दी है।

वर्ष 2022 में मानसून का वितरण:

  • वर्ष 2022 में भारत में मानसून की वर्षा लगभग 7% अधिक रही है, हालांकि इसके वितरण में अत्यधिक असमानता थी।
  • इसके कारण केरल, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में बाढ़ के कई उदाहरण देखे गए साथ ही मध्य भारत में 20% और दक्षिणी भारत में 25% अधिक बारिश हुई थी।
  • जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा के बड़े हिस्सों में बारिश में भारी कमी देखी गई है।
  • भारत के पूर्व और उत्तर पूर्व में 17% और उत्तर-पश्चिम में 2% बारिश की कमी दर्ज की गई है।
  • इसका खरीफ फसल की बुवाई पर ख़राब असर पड़ा है।
  • धान की बुवाई का क्षेत्र पिछले वर्ष की तुलना में 5.51% कम प्रभावित हुआ है।
  • केंद्र द्वारा चावल उत्पादन में कम से कम छह मिलियन टन की कमी के कयास लगाए जा रहे है,जिससे मुद्रास्फीति बढ़ने की संभावना है।

दक्षिणी और मध्य भारत में अत्यधिक बारिश के प्रभाव:

  • ला नीना (La Nina.)के कारण मध्य भारत और दक्षिणी प्रायद्वीप में भारी बारिश हो रही है।
  • जबकि भारत में अल निनो (El Ninos) के कारण कम बारिश होती है, एवं ला निना अधिशेष वर्षा का संकेत देता है।
  • भारत ला नीना का एक विस्तारित दौर देख रहा है, जिसे ‘ट्रिपल डिप’ (triple dip) ला नीना कहा जाता है।
  • वर्ष 1950 के बाद यह केवल तीसरी बार है जब ला नीना में ट्रिपल डिप (triple dip) देखा गया है।
  • आंशिक रूप से यही कारण है कि लगातार तीसरे वर्ष, भारत में सितंबर में अतिरिक्त बारिश है, क्योंकि यह एक ऐसा महीना होता हैं जिसमे आमतौर पर मानसून पीछे हटता हैं।

मानसून व्यवहार/पैटर्न में बदलाव:

  • आईएमडी के अनुसार, 1989 से 2020 के बीच देश के पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मेघालय और नागालैंड में दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा में उल्लेखनीय कमी देखी गई है।
  • सौराष्ट्र एवं कच्छ, दक्षिण-पूर्वी राजस्थान, उत्तरी तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और दक्षिण-पश्चिम ओडिशा के आस-पास के कुछ क्षेत्रों और कई अन्य राज्यों के हिस्सों में भारी वर्षा के दिनों की आवृत्ति में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
  • वर्ष 2021 में वर्षा में मामूली गिरावट को छोड़कर वर्ष 2019 से भारत में मॉनसून की अधिकता रही है।
  • पूरे देश में वर्ष 2021 में वर्षा सामान्य से 1% कम थी, हालांकि सितंबर में वर्षा सामान्य से 35% अधिक थी।
  • वर्ष 2022 में मानसून पहले से ही लगभग 6% अधिशेष में है।
  • चार वर्षों में सामान्य से तीन साल तक अधिक बारिश आईएमडी के रिकॉर्ड में एक सदी से भी अधिक समय में अभूतपूर्व घटना है।

बदलते मानसून व्यवहार/पैटर्न के निहितार्थ:

  • मानसून के व्यवहार/पैटर्न में बदलाव से कुछ क्षेत्रों में कमी के साथ थोड़े समय में बारिश में वृद्धि के परिणामस्वरूप सतही अपवाह ने देश में पानी की गंभीर कमी पैदा कर दी है।
  • भारत के कई हिस्सों में सूखे और बाढ़ के चक्र अधिक आम हो गए हैं।
  • खराब मॉनसूनी बारिश के परिणामस्वरूप फसल उत्पादन कम होता है जिसके कारण अनाज एवं अन्य खाद वस्तुऐं आयात करने की आवश्यकता होती है क्योंकि भोजन की कमी हो जाती हैं और मुद्रास्फीति बढ़ जाती है।
  • मानसून में बदलाव के कारण मलेरिया, डेंगू जैसी वेक्टर जनित बीमारियों के संक्रमण की घटनाएं भी देखने को मिलती हैं।

सारांश:

  • जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप भारत में अनियमित मानसून पैटर्न देखने को मिल रहा है,क्योंकि गर्म जलवायु के साथ, वातावरण में अधिक नमी बनती हैं, जिससे भारी वर्षा होती हैं, फलस्वरूप, भविष्य में मानसून की अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलता में वृद्धि होगी।देश को इस बदलाव के लिए तैयार करने के लिए मानसून के पूर्वानुमानों की विश्वसनीय भविष्यवाणी महत्वपूर्ण है।
  • भारत की जलवायु पर अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए:Climate of India

संपादकीय-द हिन्दू

सम्पादकीय:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:

अंतरराष्ट्रीय संबंध:

सॉफ्ट पावर, नई दौड़ हर देश जीतना चाहता है:

विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय ,वैश्विक समूह और भारत से संबंधित अथवा भारत के हितो को प्रभावित करने वाले कारक।

मुख्य परीक्षा: सॉफ्ट पावर (स्पोर्ट्स) डिप्लोमेसी।

सॉफ्ट पावर:

  • 1980 के दशक के उत्तरार्ध में, अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक, जोसेफ नी जूनियर ने सॉफ्ट पावर को “जबरदस्ती के बजाय संस्कृति, नीतियों और राजनीतिक विचारों के माध्यम से आकर्षण की शक्ति” के रूप में परिभाषित किया। यह सैन्य शक्ति के विपरीत है।
  • दुनिया भर के छोटे देश आजकल कुलीन खेलों में अधिक निवेश कर रहे हैं, क्योंकि यह माना जाता है कि अंतरराष्ट्रीय खेलों के सफल आयोजन से एक देश की सॉफ्ट पावर हासिल करने की संभावना बढ़ जाती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में जीते गए पदक न केवल देश को गौरव प्रदान करते हैं बल्कि वैश्विक स्तर पर राष्ट्र की सॉफ्ट पावर को भी प्रदर्शित करते हैं। इसके अलावा यह एक महान भू-राजनीतिक नेता के रूप में काम करने को भी प्रोत्साहित करता है।

सॉफ्ट पावर के लिए सर्वेक्षण निष्कर्ष:

  • ओलंपिक में चीन के प्रदर्शन को लेकर 2020 में फ्रांस के नागरिकों का सर्वेक्षण किया गया था। यह पाया गया हैं कि चीन की बढ़ती पदक संख्या से उसकी राष्ट्रीय सॉफ्ट पावर पर सकारात्मक प्रभाव डाला।
  • ओलंपिक में चीन के प्रदर्शन को लेकर 2020 में फ्रांस के नागरिकों का सर्वेक्षण किया गया था। यह पाया गया हैं कि चीन की बढ़ती पदक संख्या से उसकी राष्ट्रीय सॉफ्ट पावर पर सकारात्मक प्रभाव डाला।
  • हालांकि चीन एक कम्युनिस्ट देश है और मानवाधिकारों के बारे में अन्य राष्ट्रों को आशंकाएं है, इसलिए ब्रांडिंग मुश्किल है और इस तरह सॉफ्ट पावर इस संबंध में मदद कर सकती है। लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों के लिए ये कारक ज्यादा मायने नहीं रखते।
  • चीन ने खेल के क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता का इस्तेमाल अन्य देशों के साथ “लोगों से लोगों के बीच” संबंध बनाने के लिए भी किया है। उदाहरण के लिए, मेडागास्कर के एथलीटों को चीन में बैडमिंटन, तैराकी, टेबल टेनिस आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसने स्थानीय एथलीटों को लाभ पहुंचाने के लिए केन्या जैसे देशों के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर भी हस्ताक्षर किए हैं क्योंकि केन्याई एथलीट लंबी दूरी की दौड़ में सर्वश्रेष्ठ हैं।

भारत और खेल:

  • भले ही भारत ने अपने ओलंपिक इतिहास में इस बार सबसे अधिक पदक (7) प्राप्त किए हों, लेकिन जनसंख्या के हिसाब से ये पदक बहुत कम हैं। 1.3 बिलियन की दूसरी सबसे बड़ी आबादी के बावजूद भारत ने 1900 के बाद से ओलंपिक में केवल 35 पदक जीते हैं।
  • खेलों में भारत के खराब प्रदर्शन का कारण प्राथमिक विद्यालय स्तर पर खेलो की अनदेखी है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में शुरुआती चरण के एथलीटों के लिए अनुकूल माहौल नहीं है।
  • 2018 में संसद में एक जवाब के अनुसार, भारत खेल पर प्रति व्यक्ति प्रति दिन केवल 3 पैसे खर्च करता है, जबकि चीन प्रति व्यक्ति प्रति दिन 6.1 रुपये खर्च करता है।
  • खेल के क्षेत्र में भारत के प्रदर्शन में सुधार के लिए की गई पहल:
    • लक्ष्य ओलंपिक पोडियम योजना (TOPS) 2014 में खेल मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य ओलंपिक और पैरालिंपिक में भारत के प्रदर्शन को बेहतर बनाना था। इस योजना में सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय कोचों के अतिरिक्त आर्थिक सहायता और प्रशिक्षण के प्रावधान थे।
    • NITI Aayog की रिपोर्ट में ओलंपिक में भारत के प्रदर्शन को बढ़ावा देने के लिए 20-सूत्रीय योजना की सिफारिश की गई है।

लक्ष्य ओलंपिक पोडियम योजना (TOPS) योजना के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:

https://byjus.com/free-ias-prep/target-olympic-podium-scheme-tops/

भारत की सॉफ्ट पावर में सुधार के लिए भावी कदम:

  • खेलों को राजनीति से अलग कर देना चाहिए। यह सुझाव दिया जाता है कि राजनेताओं के बजाय पूर्व खिलाड़ियों को खेल संगठनों का प्रमुख बनाया जाए।
  • भारत को खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले देशों के साथ समझौता करना चाहिए। उदाहरण के लिए, भारत तैराकी में यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया से मदद ले सकता है। इसी तरह, भारत रनिंग के क्षेत्र में केन्या के साथ सहयोग कर सकता है।
  • प्रतिस्पर्धी माहौल को मजबूत करने के लिए TOPS के तहत एथलीटों की संख्या (कम से कम 500) बढ़ाई जानी चाहिए, जिससे देश का प्रदर्शन बेहतर हो सके। इसके अलावा, भारत को चीन की तरह ही शुरुआती वर्षों में कुछ खेलों पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • खेल के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए निजी निवेश को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके अलावा, एक मजबूत खेल पारिस्थितिकी तंत्र बनाने और शुरुआती चरणों में प्रतिभाओं को पहचानने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को भी अपनाया जा सकता है।

सारांश:

ओलंपिक और कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत की हालिया उपलब्धियां बताती हैं कि खेल के क्षेत्र में भारत के लिए स्वर्णिम काल शुरू हो गया है। भारत इस अवसर का उपयोग विश्व मामलों में अपनी सॉफ्ट पावर को और बढ़ाने के लिए कर सकता है।

सम्बंधित लिंक्स:

https://byjus.com/free-ias-prep/international-olympic-committee/

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:

सामाजिक न्याय:

मध्याह्न भोजन से संबंधित खाद्य विषाक्तता के मामले छह साल के चरम पर:

विषय: आबादी के कमजोर वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं।

प्रारंभिक परीक्षा: मध्याह्न भोजन योजना।

मुख्य परीक्षा: मिड-डे मील योजना के मुद्दे।

संदर्भ: योजना से जुड़े खाद्य विषाक्तता डेटा।

खाद्य विषाक्तता के हालिया मामले:

  • आंध्र प्रदेश, बिहार और कर्नाटक के स्कूलों में 90 दिनों की अवधि में मिड-डे मील योजनाओं के तहत प्रदान किए गए भोजन की खपत के बाद भोजन की विषाक्तता के लगभग 120 मामले सामने आए।
  • एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम और समाचार रिपोर्टों के अनुमानों के अनुसार, पिछले तीस वर्षों में इस तरह के लगभग 9,646 मामले सामने आए है।
  • वर्ष 2022 (14 सितंबर 2022 तक) में फूड पॉइजनिंग के लगभग 979 मामले सामने आए। यह पिछले छह साल में सबसे ज्यादा संख्या है। नीचे दिया गया चार्ट मिड-डे मील योजना से जुड़े खाद्य विषाक्तता के मामलों की संख्या को दर्शाता है।

स्रोत: द हिंदू

  • लगभग बारह प्रतिशत पीड़ित भोजन खाने के बाद बीमार हो गए जिसमें तिलचट्टे, चूहे, छिपकली और सांप पाए गए।
  • 2009 और 2022 के बीच मामलों का राज्य-वार विभाजन इस प्रकार है:
    • कर्नाटक में 1,524 मामले
    • ओडिशा में 1,327 मामले थे
    • तेलंगाना में 1,092 मामले सामने आए
    • बिहार में 950 मामले सामने आए
    • आंध्र प्रदेश में हुई थी 794 घटनाएं

मध्याह्न भोजन योजना के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:

https://byjus.com/free-ias-prep/mdms-mid-day-meal-scheme/

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के निष्कर्ष:

  • नियंत्रक-महालेखापरीक्षक लेखा परीक्षा के अनुसार,खराब मध्याह्न भोजन के पीछे कारण हैं:
    • खराब बुनियादी ढांचा
    • अक्षम निरीक्षण
    • अनियमित लाइसेंसिंग
    • कम रिपोर्टिंग
    • प्रतिक्रिया तंत्र का अभाव
  • कैग ने पाया कि मध्य प्रदेश में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने 2019 में खाद्य विषाक्तता के मामलों की रिपोर्ट के लिए डॉक्टरों को सूचित नहीं किया। इसके अलावा, खाद्य सुरक्षा आयुक्त के पास 2014 और 2019 के बीच हुए खाद्य विषाक्तता के मामलों से संबंधित जानकारी / डेटा का भी अभाव था। इसके परिणामस्वरूप, खाद्य व्यवसाय संचालकों (FBOs) के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकी।
  • मध्य प्रदेश में, वर्ष 2015 में, लगभग 14,500 स्कूलों में भोजन तैयार करने के लिए उचित किचन शेड का अभाव था। इसी तरह, इसी अवधि के दौरान अरुणाचल प्रदेश में, 40% स्कूलों में शेड की सुविधा नहीं थी। CAG के एक सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि 2011 से 2015 के बीच छत्तीसगढ़ के लगभग 8,932 स्कूलों में अस्वच्छ क्षेत्रों में मध्याह्न भोजन पकाया गया।
  • कैग ने यह भी पाया कि स्टाफ की कमी के कारण स्कूलों के निरीक्षण में 80% की कमी थी। डिप्टी कलेक्टरों द्वारा स्कूलों का निरीक्षण किया जाता है।
  • CAG की ऑडिटिंग में यह भी पाया गया कि 2014 में झारखंड में शिकायत निवारण तंत्र प्रमुख रूप से गायब था। इसके परिणामस्वरूप, बच्चों में खाद्य विषाक्तता के मुद्दों को न तो रिपोर्ट किया गया और न ही समय पर संबोधित किया गया।
  • हिमाचल प्रदेश के मामले में (2017 में) बिना किसी निरीक्षण के क्रमशः 97% और 100% खाद्य व्यवसाय ऑपरेटरों को लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाण पत्र आवंटित किए गए थे।

सारांश:

  • जैसा कि विभिन्न नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक लेखापरीक्षा रिपोर्टों में देखा गया है, देश भर में मध्याह्न भोजन योजना के कुशल संचालन में कई खामियां हैं। महामारी के बाद फूड प्वाइजनिंग की घटनाएं फिर से शुरू हो गई हैं। समय की मांग है कि सभी संबंधित हितधारक मामले को गंभीरता से लें और तत्काल आधार पर चिंताओं का समाधान करें।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:

सामाजिक न्याय:

इण्डिया इनकॉरपोरेट को एक तंत्रिका विविधता कार्यस्थल की आवश्यकता है:

विषय: कमजोर वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं।

मुख्य परीक्षा: न्यूरोडिवर्जेंट विकार वाले व्यक्तियों से संबंधित मुद्दे।

संदर्भ: कार्यस्थल में तंत्रिका विविधता।

विवरण:

  • विभिन्न संगठनों ने समावेश और विविधता जैसे पहलुओं पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। 2019 में मैकिन्से के एक अध्ययन के अनुसार:
    • जिन निगमों में लिंग विविधता थी, उनमें अन्य संगठनों की तुलना में औसत से ऊपर लाभप्रदता की संभावना 25% अधिक थी।
    • इसी तरह, जातीय विविधता वाली कंपनियां अपने प्रतिद्वंद्वियों को 36% तक मात दे सकती हैं।
  • इसके अलावा, ‘इंडियाज बेस्ट वर्कप्लेस इन डायवर्सिटी, इक्विटी एंड इंक्लूजन 2021’ रिपोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि विविध कार्य दल बेहतर प्रदर्शन करते हैं, नेतृत्व को मजबूत करते हैं, संगठन के भीतर विश्वास का निर्माण करते हैं, और अंततः राजस्व में वृद्धि कर सकते हैं। हालांकि, न्यूरोडायवर्सिटी से पीड़ित श्रमिकों की अनुपस्थिति के कारण कंपनियों में समावेशिता की कमी है।

तंत्रिका विविधता (न्यूरोडायवर्सिटी):

  • कार्यस्थल में न्यूरोडायवर्सिटी को ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर, एस्परगर सिंड्रोम, अटेंशन-डेफिसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर, डिस्प्रेक्सिया, डिस्केल्कुलिया जैसी न्यूरोडिवर्जेंट स्थितियों वाले लोगों को शामिल करने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
  • हार्वर्ड हेल्थ पब्लिशिंग के अनुसार, न्यूरोडायवर्सिटी एक धारणा है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने परिवेश को अलग तरह से बातचीत और अनुभव करता हैं। व्यवहार करने, सोचने या सीखने का कोई आदर्श तरीका नहीं है। इसके अलावा, इन मतभेदों को विकार या दोष नहीं माना जाना चाहिए।
  • न्यूरोडायवर्स व्यक्तियों को इस धारणा के कारण नौकरी से वंचित कर दिया जाता है कि वे गैर-न्यूरोडायवर्स लोगों की तुलना में अलग तरह से प्रतिक्रिया कर सकते हैं।
  • दुनिया भर के कुछ हालिया रुझान:
    • भारत में लगभग 2 मिलियन लोग ऐसे न्यूरोलॉजिकल और विकासात्मक विकारों से पीड़ित हैं।
    • डेलॉयट के एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया की लगभग 20% आबादी न्यूरोडाइवर्स है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका में, ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम से संबंधित 85% लोग बेरोजगार हैं।

कार्यस्थल में तंत्रिका विविधता:

  • तंत्रिका विविधता को अपनाने वाले निगम तुलनात्मक रूप से अधिक कुशल, रचनात्मक और सुसंस्कृत हैं।
  • जेपी मॉर्गन चेस के एक अध्ययन के अनुसार, ‘ऑटिज्म एट वर्क’ पहल में पेशेवरों ने कम त्रुटियां की और नुरोटाइपिकल कर्मचारियों की तुलना में 90 से 140% अधिक काम किया।
  • इसके अलावा, अध्ययनों से पता चला है कि न्यूरोडिवर्जेंट और न्यूरोटिपिकल दोनों सदस्यों वाली टीमें उन टीमों की तुलना में कहीं अधिक कुशल है जिनमे अकेले न्यूरोटिपिकल कर्मचारी शामिल हैं।
  • यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि न्यूरोडिवर्जेंट लोगों में उत्कृष्ट ध्यान क्षमता होती है और वे लंबे समय तक दोहराए जाने वाले और जटिल कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
  • मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय के एक अन्य अध्ययन में, यह अनुमान लगाया गया था कि दृश्य पैटर्न वाले कार्यों के मामले में, ऑटिस्टिक व्यक्ति अपने कार्य को एक विक्षिप्त व्यक्ति की तुलना में 40% तेजी से पूरा कर सकता है।
  • इसके अलावा, डिस्लेक्सिया वाले लोगों में समस्या को सुलझाने की क्षमता होती है क्योंकि वे किसी समस्या के कई आयामों का विश्लेषण कर सकते हैं। उनके पास औसत या उससे अधिक बुद्धि है।
  • माइक्रोसॉफ्ट, डेलॉइट, एसएपी और जेपी मॉर्गन चेज़ जैसी विभिन्न कंपनियां अपनी कार्य संस्कृति में न्यूरोडायवर्सिटी हायरिंग प्रोग्राम को शामिल कर रही हैं। भारतीय कंपनियों के कुछ उदाहरण हट्टी कापी और लेमन ट्री होटल हैं।

भावी कदम:

  • मानव संसाधन प्रबंधन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कार्यस्थल न्यूरोडायवर्स लोगों के लिए खुला और सहयोगी हो।
  • इस दिशा में विभिन्न उपायों को अपनाया जा सकता है जैसे कि अनुकूलित साक्षात्कार, दिन-प्रतिदिन की सहायता और एक सक्षम बुनियादी ढाँचा ताकि वे अपने इष्टतम स्तर का प्रदर्शन कर सकें।
  • इसके अलावा, इस अनुभाग को लाभान्वित करने के लिए विभिन्न अनुकूलित परामर्श कार्यक्रमों का भी उपयोग किया जा सकता है।

सारांश:

  • एक कार्य वातावरण बनाना महत्वपूर्ण है जो न्यूरोडाइवर्स व्यक्ति के लिए अनुकूल हो, क्योंकि इस तरह वे अपनी वास्तविक क्षमता का एहसास कर सकते हैं। इसके अलावा, यह निगमों को समावेशिता की अपनी परिभाषा को व्यापक बनाने में मदद करेगा।

सम्बंधित लिंक्स:

https://byjus.com/free-ias-prep/national-mental-health-programmenmhp/

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:

शासन:

ओवर द टॉप :

विषय: सरकार की नीतियां और हस्तक्षेप।

मुख्य परीक्षा: दूरसंचार विधेयक प्रस्ताव।

संदर्भ: दूरसंचार विधेयक का मसौदा जनता की टिप्पणियों के लिए खोलना।

विवरण:

  • भारत वर्तमान में एक सदियों पुराने कानून, भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 का उपयोग कर रहा है। इस प्रकार एक नया क़ानून तैयार करना बहुत महत्वपूर्ण है जो 21वीं सदी की तकनीकी प्रगति पर आधारित है।
  • दूरसंचार विधेयक के मसौदे में डिजिटल एप्लिकेशन और ओवर-द-टॉप स्ट्रीमिंग सेवाओं के लिए अधिक विनियमन का संकेत दिया गया है। जैसा कि इस तथ्य से स्पष्ट है कि इसे लाइसेंस दिया जाएगा और दूरसंचार सेवाओं के दायरे में लाया जाएगा। इसका मतलब है कि नेटफ्लिक्स जैसी सेवाओं को दूरसंचार सेवाएं माना जाएगा।
  • सरकार प्रसारण से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मेल, वीडियो और डेटा संचार सेवाओं तक, इंटरनेट और ब्रॉडबैंड सेवाओं से लेकर शीर्ष संचार सेवाओं तक सब कुछ शामिल करके दूरसंचार सेवाओं की परिभाषा का विस्तार करेगी।
  • हालांकि, नए कानून ने आबादी के एक बड़े हिस्से को निराश किया है क्योंकि यह निजता के अधिकार के खिलाफ है। उदाहरण के लिए, सरकार किसी संदेश को “किसी भी सार्वजनिक आपात स्थिति या सार्वजनिक सुरक्षा के हित में” प्रसारित होने से रोक सकती है।
  • इसके अलावा, ड्राफ्ट क्लॉज के लिए एक लाइसेंस की आवश्यकता होती है जो “उस व्यक्ति की स्पष्ट रूप से पहचान करे जिसे वह सेवाएं प्रदान करता है”। इसमें एन्क्रिप्शन को खतरे में डालने और सभी संचारों को असुरक्षित बनाने की क्षमता है।

सारांश:

  • डेटा गोपनीयता और सुरक्षा एक महत्वपूर्ण पहलू है जिसे सरकार द्वारा पर्याप्त रूप से संरक्षित किया जाना चाहिए। जब तक डेटा संरक्षण कानून लागू नहीं हो जाता, तब तक सरकार को बहुत चौकस रहने की जरूरत है, ताकि आम आदमी के मौलिक अधिकार खतरे में न पड़ें।

सम्बंधित लिंक्स:

https://byjus.com/free-ias-prep/personal-data-protection-bill-2019/

प्रीलिम्स तथ्य:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

1. नीलकुरिंजी (Neelakuranji):

  • नीलकुरंजी (स्ट्रोबिलैन्थस कुंथियाना) एक पौधा है,जो 12 साल में एक बार खिलता है जिसे कर्नाटक के सीतालयना गिरी पहाड़ी श्रृंखला में देखा जा सकता है।
  • कुरिंजी पश्चिमी घाटों (Western Ghats) में विशेष रूप से कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में नीलगिरी पहाड़ियों में पाया जाने वाली एक झाड़ी है। इस पौधे में सितंबर-अक्टूबर में फूल आते हैं।
  • इस फूल के कारण ही तमिल पर्वत का नाम नीलगिरि पड़ा।
  • इसे स्थानीय रूप से कुरिंजी के रूप में जाना जाता है, इसके फूल 1,300 से 2,400 मीटर की ऊंचाई पर उगते हैं। यह झाड़ी आमतौर पर 30 से 60 सेमी ऊंची होती है।
  • इस तरह के बड़े पैमाने पर फूल को ‘ग्रेगरियस फ्लावरिंग’ (gregarious flowering) के रूप में जाना जाता है, जहां एक ही जीन समूह के पौधे एक परिदृश्य में खिलते हैं।
  • कर्नाटक में नीलकुरिंजी की लगभग 45 प्रजातियां हैं, विभिन्न प्रजातियों को अलग-अलग ऊंचाई पर सूचीबद्ध किया गया है।
  • तमिलनाडु में रहने वाले पलियान आदिवासी लोग इसे अपनी उम्र की गणना के लिए एक संदर्भ के रूप में इस्तेमाल करते थे।
  • प्रत्येक प्रजाति के फूल छह (6) नौ (9), ग्यारह (11) या बारह (12) वर्षों के अंतराल पर खिलते है।

2. स्थानीय बोलियाँ:

  • बिहार सरकार ने हाल ही में स्थानीय बोलियों – सुरजापुरी और बज्जिका (Surjapuri and Bajjika) को बढ़ावा देने के लिए नई अकादमियों की स्थापना करने का निर्णय लिया है।
  • इससे देशी भाषा और संस्कृति की रक्षा करने में मदद मिलेगी साथ ही इन दो बोलियों को बोलने वाले लोगों पर सकारात्मक सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार में सुरजापुरी भाषी जनसंख्या की कुल संख्या 18,57,930 थी। सुरजापुरी भाषा हिंदी, मैथिली और बांग्ला का मिश्रण है।
  • वर्ष 2001 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, उस समय बिहार में लगभग 20 मिलियन (2 करोड़) बज्जिका भाषी रहते थे।
  • अन्य बोलियों को बढ़ावा देने के लिए पहले से मौजूद आठ केंद्रों की तर्ज पर दो अकादमियों की स्थापना की जानी थी।
  • भारत में लुप्तप्राय भाषाओं की रक्षा के लिए नीतियों के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Policies to protect endangered languages in India

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. नीलकुरिंजी फूल (स्ट्रोबिलेंथेस कुंथियाना-Strobilanthes kunthiana) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (स्तर-कठिन)

  1. इस फूल में गंध नहीं होती है, लेकिन इसका औषधीय महत्व है और इसका उपयोग गठिया रोग के उपचार में किया जाता है।
  2. नीलकुरिंजी की कुछ प्रजातियां के बड़े पैमाने पर पाए जाने के उदाहरण देखने को मिलते हैं जिन्हें मास्टिंग कहा जाता है, जो बांस की प्रजातियों में भी देखा जाता है।
  3. तमिलनाडु में रहने वाले पलियान आदिवासी लोग इसे अपनी उम्र की गणना के लिए एक संदर्भ के रूप में इस्तेमाल करते थे।

विकल्प:

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: b

व्याख्या:

  • कथन 1 गलत है: नीलकुरिंजी के फूल में किसी प्रकार की कोई गंध या औषधीय गुण नहीं होता है।
  • कथन 2 सही है: नीलकुरिंजी (Strobilanthes) की कुछ प्रजातियाँ बड़े पैमाने पर पाए जाने की घटना के उदाहरण हैं जिन्हें मास्टिंग कहा जाता है।
  • जिसे “पौधों की आबादी द्वारा लंबे अंतराल पर बीज के समकालिक उत्पादन” के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
  • कथन 3 सही है: तमिलनाडु पलियान आदिवासी लोगों ने इसे अपनी उम्र की गणना के लिए एक संदर्भ के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

प्रश्न 2. निम्नलिखित पहाड़ियों को उत्तर से दक्षिण की ओर व्यवस्थित कीजिए:

  1. जावड़ी हिल्स
  2. नीलगिरी हिल्स
  3. अनामलाई हिल्स
  4. इलायची की पहाड़ियाँ

विकल्प:

(a) 1-2-3-4

(b) 2-1-4-3

(c) 2-3-4-1

(d) 3-2-1-4

उत्तर: a

व्याख्या:

  • उत्तर से दक्षिण का सही क्रम है: जावड़ी पहाड़ियाँ-नीलगिरी पहाड़ियाँ-अनामलाई पहाड़ियाँ-इलायची की पहाड़ियाँ।

प्रश्न 3. अक्सर समाचारों में देखा जाने वाला मांकडिंग(Mankading) निम्नलिखित में से किस खेल से संबंधित है? (स्तर- मध्यम)

(a) क्रिकेट

(b) फेंसिंग या तलवारबाजी

(c) फ़ुटबॉल

(d) कुश्ती

उत्तर: a

व्याख्या:

  • क्रिकेट में मांकडिंग(Mankading) गेंदबाज गेंद फेंकने से पहले नॉन स्ट्राइक पर खड़े बल्लेबाज को आउट करता है, उसे मांकडिंग रनआउट कहते हैं।
    • दरअसल, गेंदबाज को जब लगता है कि नॉन स्ट्राइकर बल्लेबाज उसके गेंद फेंकने से पहले ही क्रीज से बाहर निकल गया है, तो वह नॉन-स्ट्राइकर छोर की बेल्स गिराकर बल्लेबाज को आउट कर सकता है।
  • वर्ष 1947-48 में भारत के ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान भारतीय ऑलराउंडर भारतीय खिलाड़ी वीनू मांकड ने ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाज बिल ब्राउन को इसी तरीके से रनआउट किया था।इसके बाद से ही बल्लेबाजों को इस तरह आउट होने की घटना को अनौपचारिक तौर पर माकंडिंग कहा जाता है।
  • इस तरह की घटना अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पहली बार हुई थी। आज तक, यह अधिनियम केवल कुछ ही बार उपयोग में लाया गया है।

प्रश्न 4. निम्नलिखित में से कौन-सी लिपि दाएँ से बाएँ लिखी जाती हैं/थी? (स्तर-कठिन)

  1. गुरुमुखी (Gurmukhi)
  2. खरोष्ठी (Kharosthi)
  3. शाहमुखी (Shahmukhi)
  4. तकरी (Takri)

विकल्प:

(a) केवल 1, 2 और 3

(b) केवल 1 और 4

(c) केवल 2 और 3

(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: c

व्याख्या:

  • भारत में सिखों द्वारा अपने पवित्र ग्रन्थ/साहित्य के लिए गुरुमुखी लिपि विकसित की गई थी।
  • इसे दूसरे सिख गुरु, गुरु अंगद (1504-1552) द्वारा मानकीकृत और उपयोग किया गया था।
  • गुरुमुखी बाएं से दाएं लिखी जाती है।
  • इसका आजाद कश्मीर और जम्मू एवं कश्मीर में पहाड़ी-पोठवारी लिखने के लिए मुख्य वर्णमाला के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। शाहमुखी वर्णमाला का प्रयोग सबसे पहले पंजाब के सूफी कवियों ने किया था।
  • खरोष्ठी लिपि प्राचीन गांधार में प्रयुक्त एक प्राचीन लिपि है। यह ब्राह्मी की बहन लिपि है और इसे जेम्स प्रिंसेप ने सबसे पहले समझा था। यह दाएं से बाएं लिखी जाती है।
  • तकरी (जिसे टंकरी भी कहा जाता है) लिपि का प्रयोग 16वीं शताब्दी से कई उत्तरी रियासतों में व्यापक रूप से किया जाता था।
  • इसे 17 वीं शताब्दी में जम्मू और कश्मीर के डोगरा शासकों द्वारा संरक्षित किया गया था और आधिकारिक उद्देश्यों के लिए उनके द्वारा बड़े पैमाने पर इसे काम में लाया जाता था, इसके कई क्षेत्रीय रूपों में विकास हुआ और उर्दू और देवनागरी लिपि लिखने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली फारसी लिपि के साथ इसका भी इस्तेमाल किया जाता था।
  • यह बाएं से दाएं लिखी जाती है।

प्रश्न 5. पल्लवों के संबंध में, निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से गलत है/हैं? (स्तर-कठिन)

  1. कांचीपुरम पल्लवों की राजधानी थी।
  2. महाबलीपुरम में शोर मंदिर और कांचीपुरम में कांची कैलासनाथर मंदिर प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनका निर्माण पल्लवों के शासनकाल के दौरान किया गया था।
  3. महेंद्रवर्मन ने चालुक्य राजधानी वातापी पर अधिकार कर लिया और ‘वातापीकोंडा’ की उपाधि धारण की।

विकल्प:

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 3

(d) कोई भी नहीं

उत्तर: c

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: पल्लवों (Pallavas) ने दक्षिण-पूर्वी भारत पर तीसरी से 9वीं शताब्दी ई. तक शासन किया, जिसकी राजधानी कांचीपुरम थी।
  • उनके साम्राज्य वर्तमान के तमिलनाडु राज्य तक विस्तृत था।
  • कथन 2 सही है: महाबलीपुरम (Mahabalipuram) में शोर मंदिर पल्लव शासक नरसिंहवर्मन द्वितीय के शासनकाल में बनाया गया था, जिसे राजसिम्हा के नाम से भी जाना जाता है, जिन्होंने 700 से 728 ईस्वी तक शासन किया था।
  • कैलासनाथर मंदिर, जिसे कैलासनाथ मंदिर भी कहा जाता है, तमिलनाडु के कांचीपुरम में एक पल्लव-युग का हिंदू मंदिर है।
  • यह शिव को समर्पित,एवं कांचीपुरम के सबसे पुराने जीवित स्मारकों में से एक है।
  • यह द्रविड़ वास्तुकला को दर्शाता है और लगभग 700 ईस्वी में नरसिंहवर्मन द्वितीय और महेंद्र III द्वारा बनाया गया था।
  • कथन 3 गलत है: पल्लव राजा नरसिंहवर्मन प्रथम ने ‘वातापीकोंडा’ (वातापी के विजेता) की उपाधि धारण की,जब उसने पुलकेशिन द्वितीय (चालुक्य राजा) को हराया और मार डाला तथा 642 ईस्वी में चालुक्य राजधानी, बादामी / वातापी पर कब्जा कर लिया।

प्रश्न 6. निम्नलिखित में कौन-सा एक, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अधीन गठित किया गया है? (PYQ-2022) (स्तर-कठिन)

(a) केंद्रीय जल आयोग

(b) केंद्रीय भूजल बोर्ड

(c) केंद्रीय भूजल प्राधिकरण

(d) राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण

उत्तर: c

व्याख्या:

  • देश में भूजल संसाधनों के विकास और प्रबंधन को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 3 (3) के तहत केंद्रीय भूजल प्राधिकरण का गठन किया गया था।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

प्रश्न 1. भारतीय दूरसंचार विधेयक, 2022 के मसौदे का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द) (जीएस-2; शासन)

प्रश्न 2. बताएं कि कैसे देश अपनी ‘सॉफ्ट पावर’ रणनीति के हिस्से के रूप में खेल मेगा-इवेंट का तेजी से उपयोग कर रहे हैं। (10 अंक, 150 शब्द) (जीएस-2; अंतर्राष्ट्रीय संबंध)