30 नवंबर 2022 : समाचार विश्लेषण
A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: राजव्यवस्था:
C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E. संपादकीय: भारतीय राजव्यवस्था:
राजव्यवस्था एवं शासन:
पर्यावरण:
F. प्रीलिम्स तथ्य: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। G. महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: |
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या दोगुनी करने से मामलों की लंबितता खत्म नहीं होगी: SC
राजव्यवस्था:
विषय: कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्यप्रणाली।
मुख्य परीक्षा: न्यायिक लंबितता की समस्याएं और न्यायपालिका के कामकाज को प्रभावित करने वाली अन्य चुनौतियां।
संदर्भ:
- सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने कहा है कि देश में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने से भारत में न्यायिक लंबितता (judicial pendency in India) की समस्या का समाधान करने में किसी प्रकार की मदद नहीं मिलेगी।
न्यायिक मामलों की लंबितता पर सर्वोच्च न्यायालय के विचार:
- उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों में वर्षों से लंबित मामलों को कम करने हेतु न्यायाधीशों की संख्या दोगुनी करने की मांग वाली एक जनहित याचिका (Public Interest Litigation (PIL)) पर सुनवाई करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने कहा कि मौजूदा न्यायिक पदों को भरने के लिए अच्छे वकीलों को खोजने में अदालतों को पहले से ही कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
- याचिकाकर्ता के अनुसार, वर्तमान में देश में लगभग 10 करोड़ मामले जिला अदालतों में लंबित हैं। याचिकाकर्ता ने विकसित देशों का हवाला देते हुए कहा कि इन देशों में न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात (प्रत्येक मिलियन (10 लाख) की जनसंख्या पर) लगभग 50 है।
- हालांकि, भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India (CJI)) न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि इस तरह की याचिकाओं पर यू.एस. या यू.के. की शीर्ष अदालतों द्वारा भी विचार नहीं किया जाएगा क्योंकि ऐसे मुद्दे हमारी न्यायिक प्रणाली की एक वास्तविकता हैं।
- इस सुनवाई में उन्होंने आगे कहा कि हमने सर्वोच्च न्यायालय (SC) तक प्रत्येक व्यक्ति की पहुंच को उस बिंदु तक विस्तृत कर दिया है जो निष्क्रिय होता जा रहा है।
- CJI ने आगे कहा कि आज न्यायपालिका “इस प्रकार के तंत्र की वजह से अत्यधिक बोझिल हो चुकी हैं और यदि हम इस पर विराम (रोक) लगाते हैं, तो हम स्पष्ट रूप से लंबित मामलों के बोझ से मुक्त जायेंगे।”
- हाल ही में, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, जो सर्वोच्च न्यायालय में दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं, ने भी सर्वोच्च न्यायालय की पीठ में शामिल होने के लिए अच्छी कानूनी प्रतिभा की उपलब्धता के बारे में चिंता जताई थी और बताया था कि उच्च न्यायालयों में लगभग 20% न्यायिक पद खाली हैं।
- न्यायमूर्ति कौल ने आगे कहा कि सरकार की निष्क्रियता के कारण उत्पन्न अनिश्चितता की वजह से कई उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों ने वकीलों के पीठ में शामिल होने की अनिच्छा के बारे में शिकायत की थी।
- न्यायमूर्ति कौल ने महीनों तक कॉलेजियम की सिफारिशों को रोके रखने और उसमे देरी करने के लिए सरकार की आलोचना की है।
- न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा, जो CJI पीठ में एक एसोसिएट जज (सहायक न्यायाधीश) हैं, ने भी कहा था कि न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने से लंबितता का समाधान नहीं होगा।
- भारत में न्यायिक लंबितता के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक कीजिए: Judicial Delays – RSTV: In Depth
सारांश:
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संपादकीय-द हिन्दू
संपादकीय:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:
भारतीय राजव्यवस्था:
सहकारी संघवाद की भाषा का निर्धारण:
विषय: संघीय संरचना और राजभाषा।
मुख्य परीक्षा: हिंदी भाषा का थोपा जाना और प्रसार।
प्रारंभिक परीक्षा: राजभाषा और राजभाषा से जुड़े संवैधानिक प्रावधान।
संदर्भ:
- संसदीय राजभाषा समिति की प्रेस वार्ता।
विवरण:
- भारत विविध संस्कृतियों के बावजूद विशिष्ट रूप से एकीकृत रहा है। एक बार फिर हिंदी को थोपने के लिए ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ का मुद्दा उठाया गया है, जबकि शायद इन सबकी अब आवश्यकता नहीं है।
- भाषा व्यक्ति की पहचान का एक महत्वपूर्ण तत्व है। भाषाई रूप से भिन्न समाज में राष्ट्रीय पहचान व्यक्त करने का मुद्दा, जिसका उद्देश्य अंग्रेजी के उपयोग को कम करना था (क्योंकि यह औपनिवेशिक शक्ति का प्रतीक था) संविधान सभा में अत्यधिक विवादित मुद्दा था एवं ‘राष्ट्रीय प्रतिष्ठा’ से जुड़ा था।
- संविधान का मसौदा तैयार करते समय राजभाषा से सम्बंधित बहस ने ‘विरोध’ को उजागर करने का कार्य किया। इसमें विधायिकाओं, अदालतों और न्यायपालिका की भाषा और संघ के आधिकारिक कार्य शामिल थे।
राजभाषा संकल्प के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें: Official Language Resolution was Passed by Both the Houses of Parliament on 18 January 1968 – This Day in History
संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 345 के अनुसार, राज्य आधिकारिक उद्देश्यों के लिए अपनी भाषा चुन सकता है। हालाँकि, वास्तव में, कई राज्य/संघ राज्य क्षेत्र अब भी अंग्रेजी का उपयोग करना जारी रखे हुए हैं।
- संविधान का अनुच्छेद 348 निर्दिष्ट करता है कि संसद में सभी विधेयकों, सर्वोच्च न्यायालय और ‘प्रत्येक उच्च न्यायालय’ आदि की सभी कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होगी।
- संविधान की आठवीं अनुसूची, राजभाषा अधिनियम 1963, और 1976 में बनाए गए इसके नियम (1987, 2007, 2011 में संशोधन) स्पष्ट रूप से भारत के भाषा परिदृश्य की विविधता और जटिलता को उजागर करते हैं।
- अनुच्छेद 351 संघ को हिंदी भाषा के प्रसार को बढ़ावा देने और इसके संवर्धन का निर्देश देता है ताकि यह भारत की समग्र संस्कृति के सभी तत्वों के लिए अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके।
- संसदीय राजभाषा समिति:
- समिति (30 सदस्य) की अध्यक्षता गृह मंत्री करते हैं।
- इसका उद्देश्य राजकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी के प्रयोग में हुई प्रगति की समीक्षा करना और राजकीय संचार में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ाने के लिए सुझाव देना है।
- समिति की रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति को प्रस्तुत की जाती है, जो इसकी सिफारिशों को दोनों सदनों को अग्रेषित करता है।
हिंदी भाषा को थोपे जाने से जुड़े विवाद:
- हिंदी भाषा को थोपे जाने को लेकर बार-बार असंतोष सामने आया है। असंतोष की शुरुआत बी.जी. खेर आयोग के साथ हुई थी। इसकी सिफारिशों के कारण वर्ष 1965 में तमिलनाडु में हिंसक आंदोलन हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप 50 से अधिक लोगों की मौत हुईं थीं।
- हाल के दिनों (नवंबर 2022) में, एक समाचार पत्र में प्रकाशित किया गया था कि केंद्र सरकार द्वारा तमिलनाडु में हिंदी लागू करने के कारण एक 85 वर्षीय DMK पदाधिकारी ने सलेम में अपना जीवन समाप्त कर लिया।
- यह देखा गया है कि नौवीं रिपोर्ट (2010 में) तक की सिफारिशें संसद के सदनों को भेजी गई हैं। हालांकि 10वीं और 11वीं रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी गई हैं, लेकिन ये सार्वजनिक डोमेन में नहीं हैं।
- अक्टूबर 2022 में गृह मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस:
- गृह मंत्री द्वारा सम्मेलन में 11वीं रिपोर्ट के पूरा होने की घोषणा की गई थी।
- उन्होंने तकनीकी पाठ्यक्रमों में निर्देश और परीक्षाओं की भाषा से संबंधित इसकी कुछ सिफारिशों पर प्रकाश डाला था। इसके परिणामस्वरूप इसकी व्यावहारिकता, निहितार्थ, मानक पुस्तकों की उपलब्धता और शिक्षकों की पर्याप्त रूप से संवाद करने की क्षमता पर बहस शुरू हो गई थी।
- इससे संबंधित एक अन्य चिंता इसमें परीक्षा देने वाले उम्मीदवारों की क्षमता और हिंदी मातृभाषा वाले उम्मीदवारों के साथ प्रतिस्पर्धा थी।
- इन बहसों के मूल में विविधतापूर्ण समाज में पहचान का बड़ा पहलू छिपा है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कहीं भी यह सुझाव नहीं दिया गया है कि विविधता (भाषाई विविधता सहित) को भाषाई एकरूपता में शामिल किया जाना चाहिए।
संसदीय समिति की सिफारिशों के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें: UPSC Exam Comprehensive News Analysis. Oct 18th, 2022 CNA. Download PDF
‘राष्ट्रभाषा’ का मुद्दा:
- यह याद रखा जाना चाहिए कि राजभाषा के अध्याय की भाषा निश्चित है और स्वयं को संघ की भाषा तक सीमित रखती है। इसमें किसी राष्ट्रभाषा का उल्लेख नहीं है। इसके अलावा, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों या मौलिक कर्तव्यों में भी इसका उल्लेख नहीं है।
- अनुच्छेद 344 (3) स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है कि ‘लोक सेवाओं के संबंध में अहिंदी भाषी क्षेत्रों से संबंधित व्यक्तियों के न्यायसंगत दावों और हितों’ पर राष्ट्रपति द्वारा विचार किया जाएगा।
- लेखक के अनुसार, हिंदी को संघ की राजभाषा के स्थान पर राष्ट्रभाषा बनाने और इसे कुछ प्रक्रियात्मक उपकरणों जैसे निर्देश, परीक्षा, पाठ्यपुस्तकों की भाषा बनाने ततः नौकरी बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिए इसे महत्वपूर्ण मानने से ‘सांस्कृतिक उग्रवाद’ का उदय होता है।
- इस संदर्भ में संघीय सरकार के लिए उपलब्ध संवैधानिक मार्ग अनुच्छेद 345 के तहत भाषा का चयन करना होगा, जो प्रत्येक विधानमंडल को सभी आधिकारिक उद्देश्यों के लिए हिंदी का उपयोग करने या अपनी भाषा चुनने की अनुमति देता है। हालांकि,यह सत्ताधारी दल की चुनावी सफलता पर निर्भर होगा।
संबंधित लिंक:
UPSC Exam Comprehensive News Analysis. Apr 30th, 2022 CNA. Download PDF
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 से संबंधित:
राजव्यवस्था एवं शासन:
उच्च शिक्षा में EWS का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है:
विषय: जनसंख्या के कमजोर वर्ग के लिए कल्याणकारी योजनाएँ।
मुख्य परीक्षा: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) कोटा।
प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग।
संदर्भ:
- सर्वोच्च न्यायालय ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) कोटा की वैधता को बरकरार रखा है।
विवरण:
- संविधान (124वें संशोधन) के इस विधेयक के अनुसार, सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) वित्तीय अक्षमता के कारण काफी हद तक उच्च शिक्षण संस्थानों से बाहर हैं। इस प्रकार, उच्च शिक्षा में बहिष्करण या कम प्रतिनिधित्व EWS कोटा के लिए मुख्य आधार/तर्क है।
- लेख के लेखकों ने इस तथ्य की समीक्षा की है कि EWS कोटा के बारे में यह तर्क साक्ष्यों द्वारा समर्थित है या नहीं।
- सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें: Sansad TV Perspective: EWS Quota
विस्तृत विश्लेषण:
- राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (National Institutional Ranking Framework (NIRF)) के तहत रैंक किए गए उच्च शिक्षण संस्थानों का एक डेटाबेस तैयार किया गया था। वर्ष 2019 में (EWS कोटा की शुरुआत से पहले) 457 उच्च शिक्षण संस्थानों में EWS छात्रों की तुलना वर्ष 2022 (नवीनतम वर्ष) में रैंगिक वाले 528 संस्थानों के साथ की गई थी।
- हालांकि राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क डेटा EWS छात्रों का अनुपात प्रदान नहीं करता है, बल्कि इसमें ‘आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों’ की संख्या का विवरण समाहित है जिन्हें ऐसे छात्र के रूप में परिभाषित किया गया था जिनके माता-पिता की आय कर योग्य स्लैब से कम है। सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग को इससे बाहर रखा गया था।
- EWS आय मानदंड की जांच के लिए अजय भूषण पांडेय समिति नियुक्त की गई है।
- समिति का विचार है कि मौजूदा प्रभावी आयकर छूट की सीमा व्यक्तियों के लिए लगभग 8 लाख रुपये है, इसलिए पूरे परिवार के लिए 8 लाख रुपये की सकल वार्षिक आय सीमा को EWS कोटा में शामिल करने के लिए उचित माना जाना चाहिए।
- विश्लेषण के निष्कर्ष:
NIRF Institution |
EWS share in 2019 |
Socially Backward Group (SC/ST/OBC) share in 2019 |
EWS share in 2022 |
Socially Backward Group (SC/ST/OBC) share in 2022 |
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NIRF-ranked higher education institutions |
19% |
39% |
15% |
-* |
Colleges |
28% |
47% |
-* |
-* |
Medical institutes |
2% |
-* |
-* |
-* |
Management institutes |
-* |
3% |
-* |
-* |
Public higher education institutions (218 in total) |
19% |
-* |
17% |
-* |
Private institutions (239 in total) |
20% |
36% |
13% |
36% |
Centrally funded institutions like IITs and IIMs(within Public institution) |
21% |
-* |
16% |
-* |
जहाँ * = डेटा प्रदान नहीं किया गया है।
- अन्य निष्कर्ष:
- वर्ष 2019 का आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण विश्लेषण (Periodic Labour Force Survey ) डेटा भी इस बात की पुष्टि करता है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को उच्च शिक्षण संस्थानों को न तो बाहर रखा गया है और न ही उनका प्रतिनिधित्व कम है।
- पाल्मा अनुपात (नीति-प्रासंगिक असमानता माप) के अनुसार, परिवारों को नीचे के 40% (गरीब), मध्य 50% (मध्यम वर्ग) और शीर्ष 10% (अमीर) के रूप में वर्गीकृत किया गया था। नीचे के 40% में
- सामान्य श्रेणी (गैर-एससी/एसटी/ओबीसी) का अनुपात 18% है। और इनमें से:
- 18-25 वर्ष के लगभग 20% ने उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिला लिया है।
- और 22 से 29 वर्ष के 20% ने अपना स्नातक (या ऊपर) पूरा कर लिया है।
- सामान्य श्रेणी (गैर-एससी/एसटी/ओबीसी) का अनुपात 18% है। और इनमें से:
संबंधित लिंक:
UPSC Exam Comprehensive News Analysis. Nov 1st, 2022 CNA. Download PDF
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 से संबंधित:
पर्यावरण:
अपशिष्ट कहां से उत्पादित होता है और कहां जाता है?
विषय: ठोस अपशिष्ट प्रबंधन।
मुख्य परीक्षा: अपशिष्ट के स्रोत और गंतव्य का विश्लेषण।
प्रारंभिक परीक्षा: एन्विस्टैट्स इंडिया 2022।
संदर्भ:
- सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित ‘एनवीस्टैट्स इंडिया 2022’ रिपोर्ट।
विवरण:
- ‘एन्विस्टैट्स इंडिया 2022’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए बिना राज्यों द्वारा उत्पन्न ठोस अपशिष्ट के निपटान के दुष्कर कार्य पर प्रकाश डाला गया है।
- रिपोर्ट में सभी प्रकार के ठोस अपशिष्ट के स्रोत और गंतव्य के निर्धारण और गणना हेतु दिल्ली का उदाहरण लिया गया है। आंकड़ें सभी 5 शहरी स्थानीय निकायों और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति से एकत्र किए गए थे।
- निम्नलिखित आंकड़ा दिल्ली में उत्पादित ठोस अपशिष्ट के विभिन्न स्रोतों (उनके हिस्से के साथ) को दर्शाता है।
चित्र 1: वर्ष 2020-21 में उत्पादित ठोस अपशिष्ट के स्रोत
स्रोत: The Hindu
- रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- दिल्ली में लगभग 85% नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) घरों द्वारा और लगभग 15% दुकानों और रेस्तरां द्वारा उत्पादित किया गया था। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि नगरपालिका ठोस अपशिष्ट में गार्बेज (अत्यधिक सड़ने वाली सामग्री जैसे भोजन), ट्रैश (भारी सामान जैसे पेड़ों की शाखाओं, पुराने उपकरण) और मलबा (कागज, धातु, कांच, आदि जैसे धीरे-धीरे सड़ने वाले उत्पाद) शामिल होते हैं।
- इसके अलावा, लगभग 3200 टन खतरनाक अपशिष्ट भी दिल्ली में उत्पादित हुआ था। इस खतरनाक अपशिष्ट में कारखानों से वाहितमल, औद्योगिक निर्माण प्रक्रियाओं से निकलने वाले अपशिष्ट और बैटरियाँ शामिल होती हैं।
- आधे ठोस अपशिष्ट का निपटान लैंडफिल में किया गया था, जबकि शेष आधे को पुनर्चक्रित करके दोबारा इस्तेमाल में लाया गया था। अपशिष्ट निपटान का विवरण चित्र 2 में दिया गया है।
चित्र 2: वर्ष 2020-21 में दिल्ली में अपशिष्ट निपटान के तरीके
स्रोत: The Hindu
- रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि दिल्ली में ई-अपशिष्ट के लिए कोई उपचार और निपटान सुविधा उपलब्ध नहीं है। हालाँकि, रिपोर्ट के अनुसार 2020-21 में उत्पादित 610 टन ई-अपशिष्ट में से, रिफर्बिशर ने 28.6 टन और शेष को थोक उपभोक्ताओं एकत्र किया था।
- इसके अलावा, लगभग 22% प्लास्टिक अपशिष्ट को ऊर्जा में परिवर्तित कर दिया गया था, जबकि 37% का निपटान लैंडफिल में कर दिया गया था।
भारत के अन्य राज्यों के बारे में विवरण:
- चूंकि 2020-21 का डेटा अन्य राज्यों के लिए उपलब्ध नहीं है, इसलिए आकलन 2019-20 के आंकड़ों के आधार पर किया गया है।
- कुल उत्पादित नगरपालिका ठोस अपशिष्ट का लगभग 68% भारत में संसाधित किया जाता है।
- कुल उत्पादित नगरपालिका ठोस अपशिष्ट के 98% के प्रसंस्करण के साथ हिमाचल प्रदेश शीर्ष निष्पादक है। इसके बाद छत्तीसगढ़ 93% के साथ दूर स्थान पर है।
- दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल द्वारा केवल 9% संसाधित किया था।
- वर्ष 2018-19 में भारत में प्रति 1,000 जनसंख्या पर औसतन 2.5 टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादित हुआ था।
- देश भर में लगभग 87% बायोमेडिकल अपशिष्ट को उपचारित किया गया था। 17 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों ने पहले ही 100% बायो-मेडिकल अपशिष्ट उपचारण का लक्ष्य हासिल कर लिया है। इसके विपरीत, बिहार और छत्तीसगढ़ में केवल 29% बायो-मेडिकल अपशिष्ट का उपचार किया गया था।
- वर्ष 2018 में भारत में प्रति दिन लगभग 614 टन बायोमेडिकल अपशिष्ट उत्पादित हुआ था।
- भारत में उत्पादित खतरनाक अपशिष्ट के केवल 45% का पुनर्नवीनीकरण/उपयोग किया गया था। अधिकांश राज्य इस सूचक में पीछे हैं। विश्लेषण किए गए 30 राज्यों में से, 13 राज्यों में 50% से कम का पुनर्चक्रण/उपयोग किया गया था और 22 राज्यों में, 75% से कम का पुनर्चक्रण/उपयोग किया गया था।
- वर्ष 2018 में भारत में प्रति 1,000 जनसंख्या पर 8.09 मीट्रिक टन खतरनाक अपशिष्ट उत्पादित हुआ था।
संबंधित लिंक:
What are the solutions for solid waste disposal? Know the Answer at BYJU’S UPSC Preparation
सारांश:
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प्रीलिम्स तथ्य:
आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।
महत्वपूर्ण तथ्य:
1. UNDP अपशिष्ट पृथक्करण श्रमिकों को सरकारी योजनाओं तक पहुँचने में मदद करेगा:
- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme (UNDP)) भारत में अपशिष्ट पृथक्करण उद्योग में कार्यरत श्रमिकों की सरकारी कल्याण कार्यक्रमों तक पहुँचने में मदद कर उन्हें औपचारिक अर्थव्यवस्था में शामिल करने का प्रयास कर रहा है।
- इस पहल के तहत संयुक्त राष्ट्र के अवर महासचिव अपशिष्ट पृथक्करण श्रमिकों को “जन धन” खाता किट (Jan Dhan” account kits) वितरित करेंगे।
- इन श्रमिकों के खाते UNDP के प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कार्यक्रम के माध्यम से खोले गए हैं।
- ज्ञातव्य हो की UNDP का प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कार्यक्रम चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के लिए सभी प्लास्टिक के संग्रह, पृथक्करण और पुनर्चक्रण की सुविधा प्रदान करता है।
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य सफाई साथियों (कचरा बीनने वालों) को विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़कर उनका कल्याण और वित्तीय समावेशन सुनिश्चित करना है।
- UNDP के अनुसार, इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य इस क्षेत्र को अनौपचारिक से औपचारिक की ओर ले जाने में मदद करना है। इस उद्देश्य के अनुरूप UNDP श्रमिकों को जन धन खातों, आधार कार्ड, आयुष्मान भारत, पेंशन योजनाओं जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़ने के लिए कई कदम उठा रहा है।
2. पांच अन्य द्विपक्षीय सेनाओं के साथ युद्ध अभ्यास:
- वर्तमान में भारतीय सेना देश के भीतर और बाहर पांच देशों के साथ द्विपक्षीय अभ्यास कर रही है।
- “युद्ध अभ्यास” का 18वां संस्करण भारत-यू.एस. की सेना के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control (LAC)) से करीब 100 किलोमीटर दूर उत्तराखंड के औली में किया जा रहा है।
इसके अतिरिक्त, किये जा रहे अन्य अभ्यास इस प्रकार हैं:
- ऑस्ट्रेलिया के साथ ऑस्ट्रा हिंद अभ्यास राजस्थान के महाजन फील्ड फायरिंग रेंज में आयोजित किया जा रहा है।
- सिंगापुर के साथ अग्नि वॉरियर अभ्यास का आयोजन महाराष्ट्र के देवलाली में किया जा रहा है।
- मलेशिया के साथ हरीमऊ शक्ति अभ्यास पुलाई, क्लुआंग, मलेशिया में आयोजित किया जा रहा है।
- इंडोनेशिया के साथ गरुड़ शक्ति अभ्यास का आयोजन करावांग, इंडोनेशिया में संगगा बुआना प्रशिक्षण क्षेत्र में किया जा रहा है।
- कजाकिस्तान के साथ काज़इंड अभ्यास दिसंबर के मध्य में आयोजित किया जाना है।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. कुकी-चिन जनजातीय समुदाय के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर-कठिन)
- चिन शब्द का प्रयोग म्यांमार के राज्य चिन में निवास करने वाले लोगों के लिए किया जाता है, जबकि चिन को भारतीय क्षेत्र में कुकी कहा जाता है।
- 1990 के दशक की शुरुआत में नागाओं और कुकी के बीच जातीय संघर्ष के बाद, नागा आधिपत्य और दावे का मुकाबला करने के लिए कुकी नेशनल फ्रंट जैसे कई कुकी संगठनों का गठन किया गया था।
- कुकी-चिन राष्ट्रीय सेना का उद्देश्य दक्षिणी बांग्लादेश में चट्टग्राम पहाड़ी क्षेत्र (CHT) में एक अलग राज्य की स्थापना करना है।
सही कूट का चयन कीजिए:
(a) एक कथन सही है
(b) दो कथन सही हैं
(c) सभी कथन सही हैं
(d) इनमें से कोई भी नहीं
उत्तर: c
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: चिन शब्द का प्रयोग म्यांमार के चिन राज्य में निवास करने वाले लोगों के लिए किया जाता है, जबकि चिन को भारतीय क्षेत्र में कुकी कहा जाता है।
- कथन 2 सही है: 1990 के दशक की शुरुआत में नागाओं और कुकी के बीच जातीय संघर्ष के बाद, नागा आधिपत्य और दावे का मुकाबला करने के लिए कुकी नेशनल फ्रंट जैसे कई कुकी संगठनों का गठन किया गया था।
- कथन 3 सही है: कुकी-चिन राष्ट्रीय सेना का उद्देश्य दक्षिणी बांग्लादेश में चट्टग्राम पहाड़ी क्षेत्र (CHT) में एक अलग राज्य की स्थापना करना है।
प्रश्न 2. भारत में बंद कमरे की अदालती कार्यवाही के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर – कठिन)
- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 327 में उन मामलों का विस्तृत विवरण दिया गया है जिन्हें बंद कमरे में रिकॉर्ड किया जाना चाहिए, जिसमें बलात्कार के मामले में जांच और परीक्षण शामिल है।
- इस धारा के अनुसार, यदि पीठासीन न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट उचित समझे, तो वह कार्यवाही के किसी भी चरण में यह आदेश दे सकता है कि आम तौर पर जनता, या कोई विशेष व्यक्ति, अदालत कक्ष या अदालत भवन में उपस्थित नहीं रहेगा।
- बंद कमरे की कार्यवाही आमतौर पर न्यायिक पृथक्करण, तलाक की कार्यवाही, नपुंसकता और ऐसे अन्य मामलों सहित वैवाहिक विवादों के मामलों में पारिवारिक अदालतों में की जाती है।
सही कूट का चयन कीजिए:
- केवल 1 और 3
- केवल 2 और 3
- केवल 1
- उपर्युक्त सभी
उत्तर: d
व्याख्या:
- कथन 1 सही है :दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure (CrPC)) की धारा 327 में उन मामलों का विस्तृत विवरण दिया गया है जिन्हें बंद कमरे में रिकॉर्ड किया जाना चाहिए, जिसमें बलात्कार के मामले में जांच और परीक्षण शामिल है।
- कथन 2 सही है: CrPC की धारा 327 के अनुसार, यदि पीठासीन न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट उचित समझे, तो वह कार्यवाही के किसी भी चरण में यह आदेश दे सकता है कि आम तौर पर जनता, या कोई विशेष व्यक्ति, अदालत कक्ष या अदालत भवन में उपस्थित नहीं रहेगा।
- कथन 3 सही है: बंद कमरे की कार्यवाही आमतौर पर न्यायिक पृथक्करण, तलाक की कार्यवाही, नपुंसकता और ऐसे अन्य मामलों सहित वैवाहिक विवादों के मामलों में पारिवारिक अदालतों में की जाती है।
- आतंकवादी गतिविधियों के गवाहों के बयान के दौरान बंद कमरे में कार्यवाही भी अदालत के विवेक के अनुसार की जाती है, ताकि उनकी रक्षा की जा सके और राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखा जा सके।
प्रश्न 3. निम्नलिखित में से कौन सा ‘वेट लीज़िंग ए एयरक्राफ्ट’ (wet leasing an aircraft) को सर्वोत्तम रुप से परिभाषित करता है? (स्तर–मध्यम)
- चालक दल और इंजीनियरों सहित विमान किराए पर लेना
- केवल विमान किराए पर लेना
- किसी भी ‘लेबल के बिना’ विमान किराए पर लेना
(d) चिकित्सा प्रयोजनों के लिए विमान किराए पर लेना
उत्तर: a
व्याख्या:
- वेट लीजिंग का तात्पर्य चालक दल और इंजीनियरों सहित विमान को किराए पर देना है।
- ड्राई लीजिंग से तात्पर्य केवल विमान को किराए पर लेने से है।
प्रश्न 4. भारतीय रिज़र्व बैंक के ई-रुपी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही नहीं है? (स्तर – आसान)
- ई-रुपी उसी मूल्यवर्ग में जारी किया जाएगा जिसमें वर्तमान में कागजी मुद्रा और सिक्के जारी किए जाते हैं।
- उपयोगकर्ता भागीदार बैंकों द्वारा पेश और मोबाइल फोन तथा अन्य उपकरणों पर इंस्टाल किए जा सकने वाले डिजिटल वॉलेट के माध्यम से ई-रुपी के साथ लेनदेन करने में सक्षम होंगे।
- लेन-देन केवल व्यक्ति-से-व्यापारी (P2M) तक हो सकता है।
- RBI ने डिजिटल रुपी को दो व्यापक श्रेणियों – खुदरा और थोक में विभाजित किया है।
उत्तर: c
व्याख्या:
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) 1 दिसंबर से पायलट आधार पर मुंबई और दिल्ली सहित चार शहरों में खुदरा ग्राहकों और व्यापारियों के लिए केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा ( central bank digital currency (CBDC)) जारी करेगा।
- ई-रुपी (e₹) उसी मूल्यवर्ग में जारी किया जाएगा जिस मूल्यवर्ग में वर्तमान में कागजी मुद्रा और सिक्के जारी किए जाते हैं।
- उपयोगकर्ता भागीदार बैंकों द्वारा पेश और मोबाइल फोन तथा अन्य उपकरणों पर इंस्टाल किए जा सकने वाले डिजिटल वॉलेट के माध्यम से ई-रुपी के साथ लेन-देन करने में सक्षम होंगे।
- CBDC या डिजिटल रुपी को दो व्यापक श्रेणियों – खुदरा (CBDC-R) और थोक (CBDC-W) में विभाजित किया है, जिसके तहत लेन-देन व्यक्ति से व्यक्ति (P2P) और व्यक्ति से व्यापारी (P2M) दोनों हो सकते हैं।
प्रश्न 5. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? PYQ (2016) (स्तर – मध्यम)
विषाणु संक्रमित कर सकते हैं-
- जीवाणुओं को
- कवकों को
- पादपों को
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
- केवल 1 और 2
- केवल 3
- केवल 1 और 3
- 1, 2 और 3
उत्तर: d
व्याख्या:
- यह ज्ञात है कि विषाणु (Viruses) पादपों, जानवरों, जीवाणुओं, कवकों, आर्किया आदि को संक्रमित कर सकते हैं।
- अल्फ्रेड हर्षे और मार्था चेस (1952) ने उन विषाणुओं पर काम किया था जो बैक्टीरियोफेज (bacteriophages) नामक जीवाणु को संक्रमित करते हैं।
- विषाणु जिस प्रकार के परपोषी को संक्रमित करते हैं, उसके अनुसार इन्हें मुख्य रूप से निम्नलिखित चार प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:
- शैवाल विषाणुओं सहित पादप विषाणु -RNA/DNA
- मानव विषाणुओं सहित पशु विषाणु-DNA/RNA
- फंगल विषाणु (माइकोवायरस) – द्वि-रज्जु RNA (dsRNA)
- साइनोफेज सहित बैक्टीरियल विषाणु (Bacteriophages)।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. देश के विभिन्न भागों में अपशिष्ट निपटान स्थलों का क्षमता से अधिक भराव अपशिष्ट प्रबंधन नीति की विफलता को इंगित करता है। क्या आप इससे सहमत हैं? व्याख्या कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस II – शासन)
प्रश्न 2. भारतीय न्यायालयों में लंबित मामलों की भारी संख्या को केवल न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर हल नहीं किया जा सकता है। समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द; 15 अंक) (जीएस II – राजव्यवस्था)