संविधान के अनुच्छेद 245 के अनुसार, संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारत की संसद देश के संपूर्ण क्षेत्र अथवा उसके किसी भाग के लिये कानून बना सकती है तथा किसी राज्य का विधानमंडल उस संपूर्ण राज्य अथवा किसी भाग के लिये कानून बना सकता है । संविधान के भाग- XI में अनुच्छेद 245 से 255 तक केन्द्र-राज्य विधायी संबंधों की चर्चा की गई है । हालाँकि इस अनुच्छेद में कुछ शर्तें भी हैं :-
- तीन केंद्र-शासित प्रदेशों – अंडमान -निकोबार, लक्षद्वीप और दमन-दीव एवं दादर नगर हवेली के लिए, भारत के राष्ट्रपति को भी ‘शांति, प्रगति और सुशासन’ के लिए नियम बनाने का अधिकार है । ऐसा कानून इतना शक्तिशाली होगा कि यह इन क्षेत्रों के संबंध में संसद द्वारा बनाए गए कानून को भी निरस्त या संशोधित कर सकता है ।
- पाँचवीं अनुसूची के अनुसूचित क्षेत्रों के मामले में, राज्यपाल यह निर्देश दे सकता है कि कोई विशेष संसदीय कानून ऐसे क्षेत्र पर लागू हो या नहीं । राज्यपाल यह भी निर्देश दे सकते हैं कि क्या ऐसा कानून उपयुक्त संशोधनों और अपवादों के साथ लागू हो सकता है ।
- छठी अनुसूची के राज्यों (असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम) के मामले में राज्यपाल निर्देश दे सकते हैं कि क्या कोई संसदीय कानून संशोधन के साथ लागू हो या नहीं । इस प्रकार, भारत के पूरे क्षेत्र या किसी भी हिस्से के लिए कानून बनाने की संसद की शक्ति सर्वोपरि नहीं है और इसे संविधान के अन्य प्रावधानों के अधीन पढ़ा जाना चाहिए ।
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