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वन बेल्ट वन रोड- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को ‘वन बेल्ट -वन रोड’ परियोजना या संक्षेप में “OBOR” कहा जाता है। वन बेल्ट, वन रोड (One Belt One Road-OBOR) परियोजना के द्वारा चीन प्राचीन सिल्क मार्ग को पुनः विकसित कर रहा है। चीन इस परियोजना के तहत सड़कों, रेल मार्गों, बंदरगाहों, पाइपलाइनों और अन्य बुनियादी सुविधाओं के माध्यम से मध्य एशिया से लेकर यूरोप और अफ्रीका तक कनेक्टिविटी तैयार कर रहा है। यह साल 2013 में चीनी सरकार द्वारा अपनाई गई एक वैश्विक बुनियादी ढांचा विकास रणनीति है। इसमें करीब 70 देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा निवेश करने की संभावना है।

इस पहल को 2017 में चीन के संविधान में शामिल किया गया था। चीनी सरकार इस पहल को “क्षेत्रीय कनेक्टिविटी बढ़ाने और एक उज्जवल भविष्य अपनाने के लिए एक प्रयास” कहती है। चीन ने इस महत्वकांक्षी परियोजना को पूरा करने के लिए साल 2049 तक का समय निर्धारित किया है, इसी साल पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) की स्थापना की शताब्दी वर्षगांठ भी है।

आईएएस परीक्षा 2023 के लिहाज से वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) एक महत्वपूर्ण विषय है जिसका भारत की विदेश नीति और अर्थव्यवस्था पर काफी गहरा प्रभाव पड़ेगा। इस विषय के संबंध में UPSC Mains GS-II (इंडियन पोलिटी, गवर्नेंस एंड इंटरनेशनल रिलेशंस) के तहत प्रश्न पूछे जानें की संभावना है।

इस लेख में हम आपको वन बेल्ट वन रोड पहल के इतिहास, उद्देश्यों, नवीनतम अपडेट्स और इस पर भारत के रुख के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।

नोट: उम्मीदवार यूपीएससी 2023 परीक्षा की तैयारी शुरू करने से पहले नवीनतम UPSC Prelims Syllabus in Hindi का ठीक से अध्ययन कर लें। इसके बाद ही अपनी आईएएस परीक्षा की तैयारी की रणनीति बनाएं। 

वन बेल्ट वन रोड (One Belt One Road-OBOR) पहल क्या है?

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने साल 2013 में वन बेल्ट, वन रोड (One Belt One Road-OBOR) परियोजना की घोषणा की थी। यह परियोजना ‘बेल्ट’ ‘सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट’ को संदर्भित करती है, जो प्राचीन काल के सिल्क रोड और मध्य युग की याद दिलाने वाले थलचर मार्गों की एक श्रृंखला है, जबकि ‘रोड’ समुद्री मार्गों को संदर्भित करता है, जिसे 21वीं सदी के समुद्री रेशम मार्ग के रूप में भी संदर्भित किया जाता है।

वन बेल्ट, वन रोड को 2016 से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के रूप में संदर्भित किया गया है क्योंकि चीनी सरकार को लगता है कि ‘वन’ (एक) शब्द की गलत व्याख्या हो सकती है। हालांकि चीनी मीडिया आज भी इसे वन बेल्ट वन रोड परियोजना के रूप में ही संदर्भित करता है।

वन बेल्ट वन रोड पहल के उद्देश्य

ओबीओआर के उद्देश्य नीचे दिए गए हैं –

चीन इस पहल के द्वारा एक एकीकृत बड़े बाजार का निर्माण करना चाहता है जो अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दोनों बाजारों का उपयोग कर सके।

इसका दूसरा उद्देश्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान और एकीकरण को सुगम बनाना है।

चीन के अनुसार इस पहल के द्वारा सदस्य राष्ट्रों की आपसी समझ और विश्वास को बढ़ाया जाएगा जो पूंजी प्रवा (capital inflows), प्रतिभा पूल (talent pool) और प्रौद्योगिकी डेटाबेस (and technology database) के साथ एक अभिनव वातावरण को बढ़ावा देगा।

ओबीओआर का प्रमुख उद्देश्य ढांचागत अंतर को कम करना और एशिया प्रशांत क्षेत्र, अफ्रीका और पूर्वी यूरोप में संभावित आर्थिक विकास को गति देना है।

आईएएस उम्मीदवारों को ओबीओआर के बारे में अपडेट पता होना चाहिए क्योंकि यह यूपीएससी 2023 परीक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है। उम्मीदवारों को इस विषय से जुड़े बुनियादी तथ्यों को अच्छी तरह से जान लेना चाहिए। UPSC मुख्य परीक्षा में इस विषय से संबंधित प्रश्न पूछे जाने की प्रबल संभावना है।

नोट: आप खुद को नवीनतम UPSC Current Affairs in Hindi से अपडेट रखने के लिए BYJU’S के साथ जुडें, यहां हम प्रमुख जानकारियों को आसान तरीके से समझाते हैं।

ओबीओआर का विश्लेषण

चीन ने 1980 के दशक से 2000 के दशक की शुरुआत में क्षेत्रीय सीमा-पार उत्पादन कार्यों में देश के एकीकरण द्वारा संचालित उत्पादन और निवेश में वृद्धि के साथ तेजी से विकास की आवश्यकता को अनुभव किया। इसके बाद साल 2008 में आई आर्थिक मंदी के बाद चीन के वैश्विक व्यापार में आई गिरावट ने चीन के आर्थिक विकास को प्रभावित किया, क्योंकि इसने निर्यात-उन्मुख विकास रणनीति को गंभीर रूप से बाधित किया था।

इसके बाद चीन ने एक नई आर्थिक रणनीति बनाने पर विचार किया। इस रणनीति की नींव बड़े पैमाने पर धन सृजन और कम ब्याज दरों द्वारा वित्तपोषित एक प्रमुख निवेश कार्यक्रम था। ऐसा माना जाता था कि इस तरह की योजना बाहरी मांग में गिरावट के प्रभावों का मुकाबला करने में सक्षम होगी। 

हालांकि, ओबीओआर पहल के संबंध में कई महत्वपूर्ण आर्थिक और भू-राजनीतिक कारक हैं, लेकिन चीन की अपनी घरेलू आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए, उस पर ध्यान केंद्रित किए जाने की अधिक संभावना है।

ओबीओआर की कई प्रस्तावित बुनियादी ढांचा परियोजनाएं चीन के कुछ अविकसित क्षेत्रों से होकर गुजरती हैं क्योंकि यह पहल चीन की आर्थिक मंदी के लिए बेहद जरूरी प्रोत्साहन प्रदान कर सकती है। बीजिंग का यह विश्वास है कि यह परियोजना उसके गरीब और अमीर प्रांतों के बीच यह बेहतर संपर्क, बेहतर आर्थिक एकीकरण और क्षेत्रीय रूप से संतुलित विकास का मार्ग प्रशस्त करेगी।

नोट – UPSC प्रीलिम्स और IAS परीक्षा 2023 की तैयारी करने वाले छात्रों को वन रोड़-वन बेल्ट और सीपेक जैसी अंतर्राष्ट्रीय परियोजनाओं के बारे में अवश्य जानना चाहिए। 

विदेश नीति के संबंध में

ओबीओआर परियोजना चीन के पड़ोसियों के साथ संबंधों को सुधारने में कई प्राथमिकताओं को दर्शाता है, जो कि असंख्य सीमा विवादों के कारण बंधे हुए हैं। कुल मिलाकर इस पहल के दीर्घकालिक सफल कार्यान्वयन से पूरे यूरेशियन क्षेत्रों से सीमा पार व्यापार और वित्तीय प्रवाह में सुधार होने की संभावना है।

इसके अलावा, ओबीओआर परियोजना में चीन के भू-राजनीतिक निहितार्थों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। चीन इस परियोजना के द्वारा विश्व शक्ति के रूप में अमेरिका की यथास्थिति का मुकाबला करने के लिए ओबीओआर का उपयोग करेगा। दुनिया भर के देशों में विशेष रूप से हवाई अड्डों के बुनियादी ढांचे में रणनीतिक रूप से निवेश करके, चीन किसी भी ऐसे कदम का मुकाबला करने में सक्षम होगा जो भविष्य में उसके हितों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं।

नोट: UPSC 2023 परीक्षा नजदीक आ रही है, इसलिए आप अपनी तैयारी को बढ़ाने के लिए BYJU’S के The Hindu Newspaper के दैनिक वीडियो विश्लेषण का उपयोग करें।

ओबीओआर को लेकर एशिया और उससे इतर प्रमुख चिंताएं

ओबीओआर के कार्यान्वयन से चीन के पड़ोसियों के साथ-साथ उसके स्वयं के लिए भी कई महत्वपूर्ण चुनौतियां उत्पन्न हो सकती है। उनमें से कुछ चुनौतियां इस प्रकार हैं – 

चीन के लिए जोखिम – चीनी निर्माण कंपनियों का विदेशी राष्ट्रों में काम करते समय खराब ट्रैक रिकॉर्ड होता है, उनमें से प्रमुख स्थानीय श्रमिकों के साथ दुर्व्यवहार आदि शामिल है। इसलिए, इन कंपनियों की ओर से किसी भी तरह की ज्यादती से चीन की छवि को गंभीर झटका लग सकता है। यह मेजबान देशों में अस्थिरता को जन्म देने के अलावा ओबीओआर पहल के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।

भू-राजनीतिक पहलू – वन बेल्ट वन रोड परियोजना का भू-राजनीतिक पहलू यह हैं कि कुछ राष्ट्र जैसे संयुक्त राष्ट्र और रूस इसे अपने संबंधित क्षेत्रों में अपने प्रभाव के लिए जोखिम के रूप में देखते हैं। रूस लंबे समय से मध्य एशिया को अपने प्रभाव क्षैत्र के हिस्से के रूप में देखता है, इसलिए यह परियोजना उसे जोखिमपूर्ण लग रही है। इससे चीनी प्रभाव में वृद्धि होगी, जिससे रूसी हितों के लिए बाधा के रूप में देखा जा रहा है। वहीं, संयुक्त राज्य अमेरिका भी इस परियोजना को अपने सामरिक हितों के अनुरुप नहीं मानता है।

चीन के ‘ऋण जाल’ में फंसने का डर – इस परियोजना का सबसे बड़ा जोखिम कई राष्ट्रों का चीनी ‘ऋण जाल’ में फंसने का है। स्थानीय अर्थव्यवस्था की मदद करने के बजाय स्थानीय संसाधनों तक चीनी पहुंच को सुरक्षित करने के लिए बेकार परियोजनाओं के लिए अत्यधिक धन ऐसे राष्ट्रों को चीनी प्रभाव के प्रति संवेदनशील बना देगा। जब कोई मेजबान देश चीन द्वारा निवेश किए गए धन को वापस करने में असमर्थ होता है, तो चीन अपनी ओर से ऐसी रियायतों की मांग करता है जिससे उने देशों की संप्रभुता से समझौता करना पड़ सकता है। हाल ही में श्रीलंका द्वारा अपने एक चीनी-वित्तपोषित शिपयार्ड को चीन समर्थित कंपनी को 99 साल की लीज पर सौंपना पड़ा था।

ओबीओआर का हिस्सा रहे देशों ने चीन पर अत्यधिक ब्याज दर वसूल कर साम्राज्यवादी नीति पर अमल करने का आरोप लगाया है। चीन उन्हें ऋण चुकाने के बदले महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को छोड़ने के लिए मजबूर करता है। हालांकि, चीन द्वारा इस तरह के दावों का जोरदार तरीके से खंडन किया गया है।

वन बेल्ट वन रोड परियोजना पर भारत का रुख

भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान चीन की सिल्क रोड परियोजना को लेकर काफी आशंकित हैं।

भारत के सामरिक मामलों के विशेषज्ञों के समुदाय ने भूमि सीमाओं पर लंबे समय से चीन के सड़क निर्माण और हिंद महासागर में बंदरगाह निर्माण को ‘रणनीतिक घेराव’ के रूप देखते हुए इस पर आपत्ति जताई है।

वन बेल्ट वन रोड परियोजना के साथ-साथ चीन द्वारा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) बनाने की योजना ने भारत के लिए समस्या को और भी जटिल कर दिया है। चीन द्वारा CPEC का निर्माण वास्तव में चीन के ‘रणनीतिक घेराव’ के सिद्धांत को बल देता है।

हालांकि, कुछ विशेषज्ञ यह मानते है कि भारत को इस परियोजना को नए सिरे से देखने की जरूरत है। वहीं, कुछ विशेषज्ञ इससे भू-आर्थिक विकल्पों के मामले में भारत के हाशिए पर जाने की आशंका जता रहे हैं। 

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (China-Pakistan Economic Corridor) 

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा चीन और पाकिस्तान के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इससे चीन और पाक के व्यापारिक संबंध काफी मजबूत होंगे। यह गलियारा गलियारा करीब 2442 किलोमीटर लंबा होगा। यह परियोजना पर 46 बिलियन डॉलर का खर्च आने का अनुमान है। यह ग्वादर से काशगर तक बनाया जाएगा। 

यह चीन और पाकिस्तान की एक बहुत बड़ी वाणिज्यिक परियोजना है। इसके तहत दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान से चीन के उत्तर-पश्चिमी स्वायत्त क्षेत्र शिंजियांग के ग्वादर बंदरगाह तक, रेलवे और हाइवे के माध्यम से तेल और गैस की सप्लाई की जाएगी। एक अनुमान के मुताबिक ग्वादर के बंदरगाह के पूर्णतः विकसित होने के बाद इसमें 19 मिलियन टन कच्चे तेल को सीधे चीन तक  पहुंचाने की क्षमता होगी। 

सीपेक का इतिहास 

सीपेक की परिकल्पना 1950 के दशक में की गई थी। हालांकि चीन की शी जिनपिंग सरकार ने साल 2014 में इस गलियारे की आधिकारिक घोषणा की थी। लेकिन पाकिस्तान में कई सालो तक राजनीतिक अस्थिरता के कारण इस परियोजना में देरी हुई है। साल 1998 में ही चीन ने पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह का निर्माण शुरू किया जो साल 2002 में पूरा हो गया था। 

भारत की चिंता 

भारत के अपने दोनों मुख्य पडोसी देशों चीन और पाकिस्तान के साथ लंबे समय से चल रहे सीमा विवाद के कारण तनाव बना हुआ है। ये दोनों देश भारत के लिए अक्सर सीमा पर परेशान खड़ी करते रहते हैं। अगर इनकी साझोदारी में चीन-पाक आर्थिक गलियारा यानी सीपेक बनना है तो ये भारत के लिए परेशानी का बड़ा कारण हो सकता है। सीपेक परियोजना, पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) से होकर गुजरती है जोकि भारत की अभिन्न अंग है। इसलिए इस परियोजना पर भारत कई बार आपत्त्ति जता चुका है।

वन बेल्ट वन रोड परियोजना को लेकर भारत के पास विकल्प

सबसे पहले, भारत सरकार खुद यह तय करेगी कि वन बेल्ट वन रोड परियोजना उसके लिए खतरा है या एक अवसर। हालांकि बात अगर इस परियोजना से लाभ की करें तो यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत की संस्थागत एजेंसियां देश के सामरिक उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम है या  नहीं।

इस परियोजना के सामरिक जोखिम को कम करने के लिए भारत सीमा प्रबंधन का नवीनीकरण, नए बंदरगाहों का निर्माण करके अपनी सीमा अवसंरचना में सुधार कर सकता है। साथ ही भारत भी विदेशों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को शुरू करने के लिए विदेशी कॉर्पोरेट संस्थाओं को सरकार द्वारा सहयोग देना शुरू कर सकता है।

इस परियोजना के जोखिम को कम करने के लिए भारत को उन क्षमताओं का समर्थन करने की महत्वाकांक्षा को पूरा करने की जरूरत है जो उसे हिंद महासागर क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रदाता बनने की अनुमति देता है। लेकिन ऐसा करने के लिए भारत को अपनी रक्षा साझेदारी और खरीद के संबंध में तेजी से निर्णय लेने की आवश्यकता होगी।

चीन के लिए ओबीओआर के फायदे

ओबीओआर परियोजना चीन को अपने पड़ोसी देशों और सुदूर पश्चिम देशों के साथ सामरिक और आर्थिक संबंधों में सुधार करने में मदद करेगा। साथ ही इससे चीन अपने पश्चिमी क्षेत्र को विकसित करने और समुद्र पर सुरक्षित नेविगेशन सुनिश्चित कर सकेगा।

यह चीन को हिंद महासागर में समुद्री सुविधाओं तक पहुंच के माध्यम से “मलक्का दुविधा” को दूर करने में मदद करेगा। वहीं इससे चीन को ऊर्जा और खनिज आपूर्ति तक सुरक्षित पहुंच बनाने में भी मदद मिलेगी। इसलिए इससे चीन को महत्वपूर्ण रणनीतिक लाभ मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है।

ओबीओआर यूरेशियन क्षेत्र में चीन की उपस्थिति को मजबूत करेगा और इससे एशिया में चीन काफी प्रभावशाली बनकर उभरेगा। 

मलक्का दुविधा क्या है? 

भारत इंडियन ओसियन यानी हिंद महासागर के बीचो बीच बसा हुआ देश है। इसमें हमारे एक ओर अफ्रीका है और दूसरी ओर इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देश हैं। इसी हिंद महासागर में मलक्का जलसंधि भी है। चीन के तात्कालीन राष्ट्रपति हू जिंताओ ने साल 2003 में मलक्का जलसंधि को मलक्का दुविधा बताया था। 

चीन अपने कारोबार और ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए मलक्का जल संधि पर निर्भर है। इसलिए इसे चीन की लाइफलाइन भी कहा जाता है। चीन की करीब 80 फीसीद तेल की आपूर्ति इस संधि पर निर्भर है। इसमें सिंगापुर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साथ ही सिंगापुर भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका का निकट सहयोगी भी है। इसलिए चीन को सिंगापुर का भारत और अमेरिका से प्रभावित होने का डर बना रहता है। इससे चीन को ये आशंका है कि इस मार्ग पर भारत के नियंत्रण से चीन को भारी नुकसान पहुंच सकता है और चीन को तेल परिवहन के लिए लंबा रास्ता चुनने पर मजबूर होना पड़ा सकता है।

ओबीओआर परियोजना से भारत को संभावित लाभ

ओबीओआर परियोजना से भारत की सीमा और बाहरी क्षेत्रों को बुनियादी ढांचे को विकसित करने में मदद करेगा, जिसकी वर्तमान में कमी है।

इससे वित्तीय संस्थानों से धन उपलब्धका अधिक आसानी से हो सकती है और चीन और इसकी बुनियादी ढांचा निर्माण कंपनियों से सहायता भी आसानी से मिल सकती है।

यह परियोजना भारत के पड़ोसियों के साथ आर्थिक, कूटनीतिक और रणनीतिक संबंधों को बेहतर बनाने में मदद करेगी।

ओबीओआर के संबंध में नवीनतम अपडेट

रूस के उप प्रधान मंत्री, इगोर शुवालोव ने साल 2015 में कहा था कि रूस को सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट को अपने पारंपरिक और क्षेत्रीय प्रभाव क्षेत्र के लिए खतरे के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि यह परियोजना यूरेशियन आर्थिक संघ के लिए एक अवसर है।

चीन, अप्रैल 2019 में और सुधार और विकास पर दूसरे अरब फोरम के दौरान, 18 अरब देशों के साथ ‘बेल्ट एंड रोड का निर्माण, विकास और समृद्धि साझा करें’ नामक साझेदारी की एक श्रृंखला में शामिल हुआ था।

ग्रीस, क्रोएशिया समेत 14 अन्य पूर्वी यूरोपीय देश पहले से ही बीआरआई के ढांचे के विकास के लिए चीन के साथ काम कर रहे हैं। मार्च 2019 में, इटली, चीन की इस महत्वकांक्षी पहल में शामिल होने वाले सात देशों के समूह का पहला सदस्य था।

जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया, बेल्ट एंड रोड का विकल्प बनाने के लिए ‘ब्लू डॉट नेटवर्क’ बनाने के लिए एक साथ आए थे। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य सरकारों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाजों के सहयोग से वैश्विक ढांचागत विकास करना है। ब्लू डॉट नेटवर्क मूल रूप से एक ग्रेडिंग तंत्र है जो ऋण, पर्यावरण मानकों, श्रम मानकों आदि जैसे विभिन्न मापदंडों के आधार पर वैश्विक बुनियादी ढांचे (हिंद-प्रशांत क्षेत्र और दुनिया भर में) का मूल्यांकन करता है।

हाल ही में, अमेरिका भी इस पहल में शामिल हुआ है। इसलिए इस गठबंधन का नाम बदलकर फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी (एफओआईपी) कर दिया गया है। इसके लिए तात्कालिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यूएस फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी (एफओआईपी) को अधिक ठोस पहल बनाने के लिए प्रयास किए थे।

इस परियोजना को लेकर साल 2019 के मार्च महीने में, जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल और यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष जीन-क्लाउड जंकर और फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रॉन के साथ पेरिस में शी जिनपिंग के साथ वार्ता में शामिल हुए थे। इस बैठक में मैक्रॉन ने चीन से ‘यूरोपीय संघ की एकता और दुनिया में उसके मूल्यों का सम्मान करने’ का आह्वान किया था।

पाकिस्तान के तात्कालिन प्रधान मंत्री इमरान खान ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की रुकी हुई परियोजनाओं को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से 7-8 अक्टूबर 2019 को चीन का दौरा किया था।

दक्षिण-चीन समुद्री विवाद में मामूली वृद्धि के कारण, संयुक्त राज्य अमेरिका ने अगस्त 2020 में दक्षिण चीन सागर में ‘दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों’ के लिए चीनी के स्वामित्व वाले कुछ उद्यमों और अधिकारियों पर नए आर्थिक लगा दिए थे। ये प्रतिबंध ओबीओआर से जुड़ी कई परियोजनाओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

जून 2021 में इंग्लैंड के कॉर्नवॉल में G-7 शिखर सम्मेलन के दौरान बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड पार्टनरशिप (B3W) की घोषणा की गई थी। नई पहल, आने वाले वर्षों में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में ‘करोड़ों अरबों डॉलर’के स्थायी और मूल्य-चालित बुनियादी ढांचे के निवेश का वादा करती है। इसे व्यापक रूप से ओबीओआर पहल पर जी7 के जवाब के रूप देखा जा सकता है।

भारत के लिए आगे की राह

चीन की नीतियों से निपटने के लिए वर्तमान में भारत को नए सिरे से मजबूत रणनीति बनाने की जरुरत हैं। इसके लिए भारत को अपने पड़ोसी देशों से बेहतर संबंध बनाने के साथ-साथ एक नया आर्थिक खाका भी तैयार करना होगा। इसके लिए भारत की लुक-ईस्ट, लुक-वेस्ट के साथ कनेक्टिंग मध्य एशिया जैसी नीतियां बेहद मददगार साबित हो सकती है। साथ ही भारत को अपने पड़ोसी देशों को अपने पक्ष में करना पड़ेगा। इसके लिए भारत सार्क, बिम्सटेक, आसियान, एस.सी.ओ. जैसे क्षेत्रीय संगठनों की मदद ले सकता है। 

वन बेल्ट, वन रोड को लेकर चीन की मंशा 

वन बेल्ट, वन रोड के माध्यम से चीन एशिया के साथ-साथ दुनिया भर में अपना दबदबा कायम करना चाहता है।

इस परियोजना के द्वारा चीन, दक्षिणी एशिया एवं हिंद महासागर क्षैत्र में भारत के बढ़ते रुतबे को प्रभापित करना चाहता है।

चीन वन बेल्ट, वन रोड़ परियोजना के चीन कई देशों के साथ द्विपक्षीय समझोंते करके उन्हें ऋण दे रहा है ताकि बाद में उन पर मनमानी शर्तें थोप सके। इसी के साथ चीन उन देशों के बाजारों पर भी अपना आधिप्तय जमाना चाहता है।

कुछ विशेषज्ञों का दावा है कि पिछले कुछ सालों में चीन के पास स्टील, सीमेंट, और निर्माण सामग्री बड़ी मात्रा में जमा है, इसलिए चीन इस परियोजना के माध्यम से उसे खपाना चाहता है। 

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