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IAS मुख्य परीक्षा के लिए UPSC अर्थशास्त्र पाठ्यक्रम

यूपीएससी सिविल सेवा की परीक्षा तीन चरणों में होती है | प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार | प्रारंभिक परीक्षा में दो प्रश्न पत्र होते हैं- प्रथम प्रश्न पत्र सामान्य ज्ञान का होता है एवं द्वितीय प्रश्न पत्र सामान्य बौद्धिक क्षमता का | प्रथम प्रश्न पत्र में अर्थशास्त्र से आर्थिक और सामाजिक विकास – सतत विकास, गरीबी, जनसांख्यिकी, समावेशन एवं सामाजिक क्षेत्र में की गई नई पहल इत्यादि के अतिरिक्त राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व की सामयिक घटनाओं , भारत के इतिहास और भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन , भारत एवं विश्व का प्राकृतिक, सामाजिक, आर्थिक भूगोल, भारतीय राज्यतन्त्र और शासन संविधान, राजनैतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोक नीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे,पर्यावरणीय पारिस्थितिकी जैव-विविधता और मौसम परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे एवं सामान्य विज्ञान से भी प्रश्न पूछे जाते हैं । मुख्य परीक्षा में वैकल्पिक विषय अर्थशास्त्र के 2 पत्र होते हैं | प्रत्येक पत्र 250 अंको का होता है | इस लेख में आप यूपीएससी मुख्य परीक्षा में वैकल्पिक विषय के तौर पर अर्थशास्त्र के पाठ्यक्रम ,पुस्तक सूचि एवं परीक्षा रणनीति की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं |

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हिंदी माध्यम में यूपीएससी परीक्षा के मार्गदर्शन के लिए हमारे हिंदी पेज आईएएस हिंदी को अवश्य देखें |

वैकल्पिक विषय अर्थशास्त्र का पाठ्यक्रम

प्रश्न पत्र -1

1. उन्नत व्यष्टि अर्थशास्त्र :

(क) कीमत निर्धरण के मार्शलियन एवं वालरासियम उपागम ।

(ख) वैकल्पिक वितरण सिद्दांत: रिकार्डों, काल्डोर, कलीकी ।

(ग) बाजार संरचना: एकाधिकारी प्रतियोगिता, द्विअधिकार, अल्पाधिकार ।

(घ) आधुनिक कल्याण मानदंड: परेटी हिक्स एवं सितोवस्की, ऐरो का असंभावना प्रमेय, ए. के. सेन का सामाजिक कल्याण फलन ।

2. उन्नत समष्टि अर्थशास्त्र :

नियोजन आय एवं ब्याज दर निर्धरण के उपागम: क्लासिकी,कीन्स (IS-LM) वक्र , नवक्लासिकी संश्लेषण एवं नया क्लासिकी, ब्याज दर निर्धरण एवं ब्याज दर संरचना के सिद्दांत ।

3. मुद्रा बैंकिंग एवं वित्त:

(क) मुद्रा की मांग और पूर्ति : मुद्रा का मुद्रा गुणक मात्रा सिद्दांत (फिशर, पीक एवं फाइडमैन) तथा कीन का मुद्रा के लिए मांग का सिद्दांत, बंद और खुली अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रा प्रबंधन के लक्ष्य एवं साधन । केन्द्रीय बैंक और खजाने के बीच संबंध । मुद्रा की वृद्दि दर पर उच्चतम सीमा का प्रस्ताव ।

(ख) लोक वित्त और बाजार अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका: पूरी के स्वीकरण में, संसाधनों का विनिधन और वितरण और संवृद्दि । सरकारी राजस्व के स्रोत, करों एवं उपदानों के रूप, उनका भार एवं प्रभाव । कराधान की सीमाएं, ऋण, क्राउडिंग आउट प्रभाव एवं ऋण लेने की सीमाएं । लोक व्यय एवं इसके प्रभाव ।

4. अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र :

(क) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के पुराने और नए सिद्दांत:

(I) तुलनात्मक लाभ,

(II) व्यापार शर्तें एवं प्रस्ताव वक्र,

(III) उत्पाद चक्र एवं निर्णायक व्यापार सिद्दांत,

(IV) ‘‘व्यापार, संवृद्दि के चालक के रूप में’’ और खुली अर्थव्यवस्था में अवविकास के सिद्दांत ।

(ख) संरक्षण के स्वरूप: टैरिफ एवं कोटा ।

(ग) भुगतान शेष समायोजन: वैकल्पिक उपागम:

(I) कीमत बनाम आय, नियत विनिमय दर के अधीन आय के समायोजन ।

(II) मिश्रित नीति के सिद्दांत ।

(III) पूंजी चलिष्णुता के अधीन विनिमय दर समायोजन ।

(IV) विकासशील देशों के लिए तिरती दरें और उनकी विवक्षा, मुद्रा (करेंसी) बोर्ड ।

(V) व्यापार नीति एवं विकासशील देश ।

(VI) BOP खुली अर्थव्यवस्था समष्टि माॅडल में समायोजन तथा नीति समन्वय ।

(VII) सट्टा ।

(VIII) व्यापार गुट एवं मौद्रिक संघ ।

(IX) विश्व व्यापार संगठन (WTO) : TRIM, TRIPS घरेलू उपाय WTO बातचीत के विभिन्न चक्र ।

5. संवृद्दि एवं विकास :

(क) (I) संवृद्दि के सिद्दांत: हैरड का माॅडल ।

(II) अधिशेष श्रमिक के साथ विकास का ल्यूइस माॅडल ।

(III) संतुलित एवं असंतुलित संवृद्दि ।

(IV) मानव पूंजी एवं आर्थिक वृद्दि ।

(ख) कम विकसित देशों का आर्थिक विकास का प्रक्रम: आर्थिक विकास एवं संरचना परिवर्तन के विषय में मिडल एवं कुजमेंटस: कम विकसित देशों के आर्थिक विकास में कृषि की भूमिका ।

(ग) आर्थिक विकास तथा अंतर्राष्ट्रीय एवं निवेश, बहुराष्ट्रीयों की भूमिका ।

(घ) आयोजना एवं आर्थिक विकास: बाजार की बदलती भूमिका एवं आयोजना, निजी-सरकारी साझेदारी ।

(घ) कल्याण संकेतक एवं वृद्दि के माप-मानव विकास के सूचक । आधारभूत आवश्यकताओं का उपागम ।

(च) विकास एवं पर्यावरणी धारणीयता-पुनर्नवीकरणीय एवं अपुनर्नवीकरणीय संसाधन, पर्यावरणी अपकर्ष अंतर-पीढ़ी इक्विटी विकास ।

प्रश्न पत्र -2

1. स्वतंत्रता पूर्व युग में भारतीय अर्थव्यवस्था:

भूमि प्रणाली एवं इसके परिवर्तन, कृषि का वाणिज्यिीकरण, अपवहन सिद्दांत, अबंधता सिद्दांत एवं समालोचना । निर्माण एवं परिवहन: जूट कपास, रेलवे, मुद्रा एवं साख ।

2. स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय अर्थव्यवस्था:

(क) उदारीकरण के पूर्व का युग

(I) वकील, गाइगिल एवं वी. के. आर. वी. राव के योगदान ।

(II) कृषि: भूमि सुधर एवं भूमि पट्टा प्रणाली, हरित क्रांति एवं कृषि में पूंजी निर्माण ।

(III) संघटन एवं संवृद्दि में व्यापार प्रवृत्तियां, सरकारी एवं निजी क्षेत्रों की भूमिका, लघु एवं कुटीर उद्योग ।

(IV) राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय: स्वरूप, प्रवृत्तियां, सकल एवं क्षेत्रीय संघटन तथा उनमें परिवर्तन ।

(V)राष्ट्रीय आय व वितरण को निर्धरित करने वाले स्थूल कारक, गरीबी के माप, गरीबी एवं असमानता में प्रवृत्तियां ।

ख. उदारीकरण के पश्चात् का युग

(I) नया आर्थिक सुधार एवं कृषि: कृषि एवं WTO, खाद्य प्रसंस्करण, उपदान, कृषि कीमतें एवं जन वितरण प्रणाली, कृषि संवृद्दि पर लोक व्यय का समाघात ।

(II) नई आर्थिक नीति एवं उद्योग: औद्योगिकीरण निजीकरण,विनिवेश की कार्य नीति, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश तथा बहुराष्ट्रीयों की भूमिका ।

(III) नई आर्थिक नीति एवं व्यापार: बौद्धिक संपदा अध्किार:TRIPS, TRIMS, GATS तथा NEW EXIM नीति की विवक्षाएं ।

(IV) नई विनिमय दर व्यवस्था: आंशिक एवं पूर्ण परिवर्तनीयता ।

(V) नई आर्थिक नीति एवं लोक वित्त: राजकोषीय उत्तरदायित्व अधिनियम, बारहवां वित्त आयोग एवं राजकोषीय संघवाद तथा राजकोषी समेकन ।

(VI) नई आर्थिक नीति एवं मौद्रिक प्रणाली: नई व्यवस्था में RBI की भूमिका ।

(VII) आयोजन: केन्द्रीय आयोजन से सांकेतिक आयोजना तक, विकेन्द्रीकृत आयोजना और संवृद्धि हेतु बाजार एवं आयोजना के बीच संबंध: 73वां एवं 74वां संविधन संशोधन ।

(VIII) नई आर्थिक नीति एवं रोजगार: रोजगार एवं गरीबी,ग्रामीण मजदूरी, रोजगार सृजन, गरीबी उन्मूलन योजनाएं, नई ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ।

वैकल्पिक विषय अर्थशास्त्र की पुस्तक सूचि

वैकल्पिक विषय अर्थशास्त्र की पुस्तक सूचि
भारतीय अर्थव्यवस्था : एक सर्वेक्षण डा.एस.एन.लाल
भारत की अर्थव्यवस्था रमेश सिंह
भारतीय अर्थव्यवस्था दत्त एवं सुन्दरम
भारतीय अर्थव्यवस्था नितिन सिंघानिया
भारतीय अर्थव्यवस्था मिश्रा,पूरी एवं गर्ग
भारतीय अर्थव्यवस्था : सिद्धांत ,नीतियाँ एवं विकास एस.श्रीरंगम / आर.डी.झा
भारतीय अर्थव्यवस्था संजीव वर्मा
भारतीय अर्थव्यवस्था सिन्हा एवं सिन्हा
भारतीय अर्थव्यवस्था महेश वर्णवाल
भारतीय अर्थव्यवस्था : सूक्ष्म अवधारणा शंकर गणेश करुप्पैया
भारतीय अर्थव्यवस्था जैन एवं त्रेहन
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं वित्त जी.सी.सिंघई
अर्थशास्त्र के विभिन्न आयाम (अनुवादित) उमा कपिला
NCERT 11वीं एवं 12वीं की किताबें
भारत सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey)
मुख्य परीक्षा के लिए वैकल्पिक विषयों की सूचि
(i) कृषि विज्ञान (ii) पशुपालन एवं पशुचिकित्सा विज्ञान (iii) नृविज्ञान (iv) वनस्पति विज्ञान (v) रसायन विज्ञान (vi) सिविल इंजीनियरिंग (vii) वाणिज्य शास्त्र तथा लेखा विधि (viii) अर्थशास्त्र (ix) विद्युत् इंजीनियरिंग (x) भूगोल (xi) भू-विज्ञान (xii) इतिहास (xiii) विधि

(xiv) प्रबंधन (xv) गणित (xvi) यांत्रिक इंजीनियरिंग (xvii) चिकित्सा विज्ञान (xviii) दर्शन शास्त्र (xix) भौतिकी (xx) राजनीति विज्ञान एवं अतर्राष्ट्रीय संबंध |

(xxi) मनोविज्ञान (xxii) लोक प्रशासन (xxiii) समाज शास्त्र (xxiv) सांख्यिकी (xxv) प्राणी विज्ञान (xxvi) निम्नलिखित भाषाओं में से किसी एक भाषा का साहित्य : असमिया , बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी,कन्नड़, कशमीरी, कोंकणी, मैथिलि , मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया , पंजाबी , संस्कृत, संथाली, सिन्धी , तमिल , तेलुगू, उर्दू व अंग्रेज़ी।

परीक्षा रणनीति

अर्थशास्त्र एक गतिज विषय है, अर्थात यह समसामयिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है जिसके कारण प्रारंभिक परीक्षा एवं साक्षात्कार दोनों में इससे सहायता मिल सकती है | हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के लिए भी अध्ययन सामग्री की कोई कमी नहीं है | कई “विषय- विशेष” समाचार पत्र-पत्रिकाएं भी उपलब्ध हैं | अतः जिन अभ्यर्थियों की इस विषय में रूचि हो अथवा जिनका इससे परिचय हो उनके लिए यह यूपीएससी में एक अच्छा विकल्प हो सकता है | अर्थशास्त्र के लिए सबसे पहली रणनीति तो यह होनी चाहिए की विषय वस्तु को ठीक से समझा जाए क्योंकि यह एक तार्किक एवं तथ्यात्मक विषय है | इसे पढने का तरीका बिलकुल वैज्ञानिक होना चाहिए | दूसरा इसमें गणना, आंकड़ों एवं विश्लेषण का अच्छा सम्मिश्रण है अतः तार्किक एवं बौद्धिक कुशलता का परिष्करण इस विषय के लिए अत्यंत लाभदायक होगा | सामान्य पुस्तकों के अतिरिक्त समसामयिक आर्थिक घटनाओं से अपने आप को आद्यतन रखना , आर्थिक समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं तथा विशेष तौर पर प्रतिवर्ष होने वाले आर्थिक सर्वेक्षण (economic survey) का गहन अध्ययन भी अत्यंत आवश्यक है | मुख्य परीक्षा में उत्तर लेखन मात्रात्म (quantitative) न हो कर गुणात्मक (qualitative) होना चाहिये | विषय के टॉपर्स द्वारा पाठ्यक्रम को बार- बार देखने तथा पिछले वर्ष के प्रश्न-पत्रों के अभ्यास की सलाह दी जाती है |

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