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राज्यपाल की क्षमादान शक्तियां

किसी राज्य के राज्यपाल की क्षमादान शक्ति के बारे में संविधान के अनुच्छेद 161 में उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि किसी राज्य के राज्यपाल के पास किसी मामले से संबंधित किसी भी कानून के खिलाफ किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सजा को क्षमा, दमन, विराम या छूट देने या निलंबित करने, परिहार करने या कम करने की शक्ति होगी। जब एक दोषी ने राज्य के कानून के खिलाफ अपराध किया है, तो राज्य के राज्यपाल द्वारा संबंधित सजा को क्षमा, राहत, राहत और छूट दी जा सकती है।

आईएएस परीक्षा 2023 के लिए भारतीय राजनीति विषय के अंतर्गत ‘राज्यपाल की क्षमादान शक्ति’ विषय महत्वपूर्ण है।

आईएएस परीक्षा 2023 की तैयारी करने वाले उम्मीदवार राज्यपाल की क्षमादान शक्तियों के बारे में अधिक जानने के लिए इस लेख को ध्यान से पढ़ें। इस लेख में राज्यपाल की क्षमादान शक्तियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है। राज्यपाल की क्षमादान शक्तियों के बारे में अंग्रेजी में पढ़ने के लिए  Pardoning Power of the Governor पर क्लिक करें।

अनुच्छेद 161 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 (Article 161) में राज्यपाल की शक्तियों का उल्लेख किया गया है। इसमें राज्यपाल की क्षमा, दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्तियों पर चर्चा की गई है। 

इसके अनुसार राज्यपाल के पास किसी अपराध के (सिद्धदोष अपराधी) व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रविलंबन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश में निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्ति होती है। 

हालांकि इस मानले में न्यायालय ने कहा है कि अनुच्छेद 161 के तहत किसी कैदी को क्षमा करने की राज्यपाल की संप्रभु शक्ति वास्तव में राज्य सरकार द्वारा प्रयोग की जाती है। वहीं, सरकार की सलाह राज्य के उपराज्यपाल के लिए बाध्यकारी हो सकती है।

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राज्यपाल की क्षमादान शक्तियां

हमारे देश में राष्ट्रपति की तरह की किसी राज्य के राज्यपाल के पास भी किसी अपराधी या दोषी को क्षमादान देने की शक्ति होती है। राज्यपाल की क्षमा शक्तियों के बारे में नीचे चर्चा की जा रही है। इसके अनुसार राज्यपाल के पास निम्न शक्तियां होती हैं –

  • क्षमा (Pardon)
  • मोहलत (Respite)
  • सजा कम करना (Remission)
  • दण्डविराम (Reprieve)
  • बदलना/ परिवर्तित करना (Commute)

राज्यपाल की ये क्षमादान शक्तियां, न्यायिक शक्तियों का भाग हैं।

राज्यपाल की क्षमा शक्तियों के बारे में ताजा अपडेट

साल 2021 में 3 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय राज्यपाल की शक्तियों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी राज्य के राज्यपाल मृत्युदंड पाने वाले सहित किसी भी कैदी को क्षमा कर सकते हैं। हालांकि इसके लिए जरुरी है कि संबंधित व्यक्ति, कम से कम 14 साल की जेल की सजा काट चुका हों।

क्षमा करने की राज्यपाल की शक्ति के बारे में हालिया निर्णय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 433ए (Code of Criminal Procedure — Section 433A) – के एक प्रावधान को रद्द कर देता है, जिसमें यह अनिवार्य है कि एक कैदी की सजा केवल 14 साल की जेल के बाद ही छूट दी जा सकती है।

सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने यह माना है कि राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति, ‘दंड प्रक्रिया संहिता’ (CrPC) की धारा 433A से अधिक है।

एक दया याचिका के एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल राज्य मंत्रिपरिषद की सिफारिश को अस्वीकार नहीं कर सकता है। हालांकि इस बारे में निर्णय लेने के लिए कोई समयसीमा निर्धारित नहीं है।

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राज्यपाल की क्षमादान शक्तियां से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

क्षमा – जब राज्यपाल द्वारा किसी अपराधी को क्षमा दान दिया जाता है, तो दोषी की सजा और दोषसिद्धि दोनों सजाओं, दंडों और अयोग्यताओं को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाता हैं

नोट –

  • राज्यपाल कोर्ट-मार्शल द्वारा दी गई सजा को माफ नहीं कर सकते।
  • अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का दायरा अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की क्षमादान शक्ति से व्यापक है।

अनुच्छेद 161 के तहत एक कैदी को क्षमा करने की राज्यपाल की संप्रभु शक्ति वास्तव में राज्य सरकार द्वारा प्रयोग की जाती है, न कि राज्यपाल स्वयं।

लघुकरण – जब राज्यपाल किसी अपराधी को ‘राहत’ देने के लिए अपनी क्षमा शक्ति का उपयोग करते है, तो वह मूल रूप से दोषी को दी गई सजा को कम करने का विकल्प चुन सकते हैं।

उदाहरण –

  • किसी विशेष तथ्य, जैसे किसी अपराधी की शारीरिक अक्षमता या किसी महिला अपराधी के गर्भवती होने के कारण, उसके दंड के स्वरुप को बदला जा सकता है या सजा को कम किया जा सकता है।
  • मृत्युदंड को आजीवन कारावास और कठोर कारावास को साधारण कारावास में भी बदला जा सकता है।
  • इसमें दंड की प्रकृति में परिवर्तन  किया जाना शामिल है, जैसे दो वर्ष के कारावास को एक वर्ष के कारावास में परिवर्तित किया जा सकता है।

विराम या मोहलत या राहत – जब राज्यपाल क्षमादान शक्ति का उपयोग करते हैं तो वह एक अस्थायी अवधि के लिए एक  (विशेषकर मृत्यु की) के निष्पादन पर रोक लगा सकते हैं। ऐसा करने से, वह दोषी को क्षमा मांगने का समय देते हैं। इसके अंतर्गत किसी दोषी को प्राप्त मूल सजा के प्रावधान को किन्हीं विशेष परिस्थितियों में बदलना शामिल है।

छूट देना – राज्यपाल क्षमा शक्ति का उपयोग सजा की अवधि को कम करने के लिए कर सकते हैं,  लेकिन सजा का चरित्र वही रहता है। उदाहरण के लिए, दो साल के कठोर कारावास की सजा को एक वर्ष के कठोर कारावास में बदला जा सकता है, लेकिन कारावास कठोर ही रहता है

राज्यपाल राज्य के कानून के खिलाफ किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सजा या सजा को कम कर सकते हैं।

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राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्तियों में प्रमुख अंतर 

हमारे देश में राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों को क्षमा करने की शक्तियां दी गई है। लेकिन इन दोनों की क्षमा शक्तियों में कुछ अंतर है। संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का दायरा अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की क्षमादान शक्ति से अधिक व्यापक है। इस बारे में नीचे विस्तार से चर्चा की जा रही हैं –

कोर्ट मार्शल की सजा माफ करने की शक्ति – भारत में राष्ट्रपति के पास कोर्ट मार्शल के तहत सजा प्राप्त व्यक्ति की सजा को माफ करने की  शक्ति होती है, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल के पास ऐसा करने की शक्ति नहीं है।

मौत की माफ करने की शक्ति सजा – राष्ट्रपति उन मौत की पाने वाले कैदियों की सजा को माफ कर सकते हैं। लेकिन राज्यपाल अपनी क्षमादान की शक्ति के तहत मौत की सजा के मामलों में में क्षमा दान नहीं दे सकते हैं। 

भारत में राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियां

संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति के पास दोषी व्यक्ति की सज़ा को माफ करने, राहत देने, छूट देने या निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति होती हैं। लेकिन इसकी भी कुछ सीमाएं  होती हैं। नीचे हम उन सीमाओं के बारे में बता रहे हैं – 

राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति सीमाएं

हमारे देश में राष्ट्रपति सरकार से स्वतंत्र होकर (बिना राय लिए) अपनी क्षमादान की शक्ति का उपयोग नहीं कर सकते हैं।

इस बारे में कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय सुनाया दिया है कि किसी भी दया याचिका पर फैसला करते समय राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह लेने के बाद निर्णय करना होता है।

कुछ चर्चित मामले –

इस विषय को लेकर साल 1980 का मारू राम बनाम भारत संघ और साल 1994 का धनंजय चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले बेहद चर्चित रहे हैं।

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