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UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 04 April, 2023 UPSC CNA in Hindi

04 अप्रैल 2023 : समाचार विश्लेषण

A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध:

  1. स्कॉटिश स्वतंत्रता की मांग:

राजव्यवस्था:

  1. मानहानि कानून: भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक झटका:

C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित:

आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।

E. संपादकीय:

पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण:

  1. कार्बन उत्सर्जन पर मूल्य आरोपित करने का समय:

स्वास्थ्य:

  1. भारत को अपने नमक के सेवन में कटौती क्यों करनी चाहिए?

F. प्रीलिम्स तथ्य:

  1. कोप इंडिया अभ्यास/एक्सरसाइज:

G. महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. पीएम स्वनिधि के तहत ‘अल्पसंख्यक समुदायों’ के वेंडरों को केवल 9.3% ऋण दिया गया’:
  2. फिलीपींस ने अमेरिकी सैनिकों को 4 और सैन्य ठिकाने आवंटित किए:
  3. ओपेक+ द्वारा आश्चर्यजनक रूप से तेल उत्पादन में कटौती ने बाजारों को हिला दिया:

H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

स्कॉटिश स्वतंत्रता की मांग:

अंतर्राष्ट्रीय संबंध:

विषय: विकसित एवं विकासशील देशों की नीतियां और राजनीति का प्रभाव।

मुख्य परीक्षा: यूके से स्कॉटिश स्वतंत्रता की मांगों से जुड़े प्रमुख मुद्दे।

प्रसंग:

  • हाल ही में ब्रिटेन से स्कॉटलैंड की स्वतंत्रता के लिए दूसरा जनमत संग्रह कराने के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने स्कॉटलैंड के नए प्रथम मंत्री हमजा यूसुफ के एक आह्वान को खारिज कर दिया।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • 9वीं शताब्दी में स्कॉटलैंड के स्वतंत्र साम्राज्य का गठन किया गया था और यह इंग्लैंड के साम्राज्य से स्वतंत्र रहने के लिए विभिन्न युद्धों में शामिल था।
  • हालाँकि दोनों राज्यों ने 1603 में, एक व्यक्तिगत संघ समझौते पर हस्ताक्षर किए और दोनों पर एक ही सम्राट का शासन था।
  • इसके अलावा वर्ष 1707 में ब्रिटिश और साथ ही स्कॉटिश संसदों ने दोनों पक्षों में प्रचलित विभिन्न आर्थिक और राजनीतिक कमजोरियों के कारण ग्रेट ब्रिटेन के नाम से एक राजनीतिक संघ में प्रवेश करने के लिए संघ के अधिनियमों को अधिनियमित किया था।
  • निर्णय लेने की अपनी कुछ शक्तियों को अपने पास रखने के बावजूद, स्कॉटलैंड संयुक्त संसद में समान प्रतिनिधित्व पाने में विफल रहा जिसने विभिन्न सांस्कृतिक और राजनीतिक मतभेदों को जन्म दिया था।
  • साथ ही, स्व-शासन की मांग अधिक प्रचलित होने लगी जिसके कारण वर्ष 1979 और 1997 में दो जनमत संग्रह हुए और 1999 में स्कॉटलैंड की संसद का गठन हुआ।
  • स्कॉटलैंड की इस नवनियुक्त संसद को स्वास्थ्य, परिवहन, शिक्षा आदि जैसे मुद्दों पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया था, जबकि रक्षा, मुद्रा, व्यापार और विदेश नीति जैसे मुद्दों पर कानून बनाने की शक्तियाँ आरक्षित थीं।
  • स्कॉटिश स्वतंत्रता के लिए नवीनतम जनमत संग्रह वर्ष 2014 में आयोजित किया गया था, जिसमें स्कॉटिश आबादी के 55% लोगों ने संघ के पक्ष में मतदान किया जबकि 45% ने बाहर निकलने के लिए मतदान किया था।
  • यूनाइटेड किंगडम, ग्रेट ब्रिटेन और इंग्लैंड के बीच अंतर से संबंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए: Difference Between the United Kingdom, Great Britain and England

स्वतंत्रता की मांग:

चित्र स्रोत: World Atlas

  • वर्ष 1934 में दो दलों के विलय के साथ गठित स्कॉटिश नेशनल पार्टी (SNP) ने 1970 के दशक में उत्तरी सागर में तेल की खोज के बाद संघ से स्कॉटलैंड की स्वतंत्रता की मांग के लिए एक अभियान शुरू किया था।
  • SNP ने तर्क दिया था कि यदि ब्रिटिश का आरक्षित मामलों पर कोई नियंत्रण नहीं होगा तो उत्तरी सागर से निकलने वाले तेल से होने वाली आय से स्कॉटिश अर्थव्यवस्था को काफी लाभ होगा।
  • SNP के अनुसार ब्रिटेन उत्तरी सागर के तेल से प्राप्त राजस्व का उपयोग स्कॉट्स की भावी पीढ़ियों में निवेश करने की बजाय अपने मौजूदा खर्चों को पूरा करने के लिए कर रहा है।
  • SNP के अनुसार, स्कॉटिश आबादी को यह तय करने का अधिकार होना चाहिए कि क्या वे एक स्वतंत्र देश बनना चाहते हैं।
  • ब्रिटिश सहायता के बिना एक स्वतंत्र स्कॉटलैंड कैसे काम करेगा, इस पर मौजूदा चिंताओं को दूर करने के लिए, पार्टी “नए स्कॉटलैंड के निर्माण” के अपने दृष्टिकोण पर श्वेत पत्र लेकर आई है।
  • इस पार्टी ने यूरोपीय संघ (EU) में अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए और अन्य संबंधित लाभ प्राप्त करने के लिए यूरोपीय संघ (EU) में फिर से शामिल होने की योजना की भी घोषणा की है।
  • SNP आगे यह तर्क देता है की स्कॉटलैंड यू.के. से अलग है और यह कि स्कॉटलैंड की चुनावी प्रणाली निष्पक्ष है और यू.के. की तुलना में अधिक आनुपातिक रूप से प्रतिनिधित्व करती है।
  • SNP का यह भी तर्क है कि स्कॉटलैंड के हित U.K. से भिन्न हैं, जिसमें खुली आप्रवासन नीतियों पर स्कॉटलैंड का रुख, हरित पारगमन के लिए प्रयासों में वृद्धि, मुफ्त विश्वविद्यालय शिक्षा, उच्च कमाई करने वालों पर कराधान, और LGBTQ समुदाय का समावेश शामिल है।
  • पार्टी आगे तर्क देती है कि यूके भविष्य में ब्रेक्सिट जैसे अन्य एकतरफा निर्णय ले सकता है जो स्कॉटिश हितों को कमजोर कर सकते हैं।
  • इसके अलावा, स्कॉटिश आबादी का एक बड़ा प्रतिशत यूके से स्वतंत्रता को आत्मनिर्णय और पहचान के मामले के रूप में देखता है।

यूके का रुख:

  • ब्रिटिश सरकार ने कहा है कि SNP ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि एक स्वतंत्र स्कॉटलैंड में पेंशन और स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित मुद्दे कैसे काम करेंगे।
  • इसके अलावा ब्रिटिश सरकार ने स्कॉटलैंड को चेतावनी दी है कि यदि वह यूरोपीय संघ में फिर से शामिल होता है, तो इससे स्कॉटलैंड और ब्रिटेन के बीच एक कठोर सीमा का निर्माण होगा।
  • वेस्टमिंस्टर की आर्थिक मामलों की समिति ने कहा कि स्कॉटलैंड के लिए यूके के सार्वजनिक ऋण में अपना हिस्सा ग्रहण करना मुश्किल होगा जो अरबों में है, और उत्तरी सागर तेल के डीकमीशनिंग का ब्रिटेन पर आर्थिक और व्यापारिक प्रभाव पड़ेगा।
  • यू.के. के विशेषज्ञों का मानना है कि स्कॉटलैंड के संघ छोड़ने का सबसे बड़ा निहितार्थ अंग्रेजों के बीच “अंग्रेजियत” की धारणाओं, जो यू.के. की आबादी का लगभग 85% हिस्सा हैं, और दुनिया के लिए “एक राष्ट्रीय पहचान के रूप में अंग्रेजियत के प्रदर्शन” पर होगा।

भावी कदम:

  • जैसा कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने स्कॉटलैंड की स्वतंत्रता के लिए दूसरा जनमत संग्रह कराने के विचार को खारिज कर दिया है, श्री हमजा यूसुफ के सामने अब पार्टी की स्वतंत्रता के एक केंद्रीय दृष्टिकोण को साकार करने का कठिन कार्य करना है।
  • श्री हमज़ा यूसुफ ने अतीत में दोहराया है कि उनका ध्यान मुख्य रूप से “वास्तविक जनमत संग्रह” के विचार पर केंद्रित नहीं है, बल्कि उनकी प्राथमिकता पहले स्कॉटिश आबादी के बीच स्वतंत्रता के लिए समर्थन हासिल करना है।
  • हाल की रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि देश में एक स्वतंत्र स्कॉटलैंड के लिए समर्थन घटकर 39% हो गया है जो 2014 के जनमत संग्रह के मुकाबले कम है।

सारांश:

  • एक स्वतंत्र स्कॉटलैंड वास्तव में ब्रिटिश सहायता के बिना कैसे कार्य करेगा, इस पर प्रचलित चिंताओं के बावजूद होलीरूड (स्कॉटिश संसद) में स्कॉटिश नेशनल पार्टी के उदय ने यूके से स्कॉटलैंड की स्वतंत्रता की मांगों को गति प्रदान की है।

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

मानहानि कानून: भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक झटका

राजव्यवस्था:

विषय: भारत का संविधान-ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएं, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी ढांचा।

प्रारंभिक परीक्षा: भारत में मानहानि कानून से संबंधित जानकारी।

मुख्य परीक्षा: मानहानि कानून पर सर्वोच्च न्यायालय के विचार और इसका समालोचनात्मक मूल्यांकन।

प्रसंग:

  • हाल ही में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को 2019 के मानहानि के एक मामले में दो साल की जेल की सजा सुनाई गई।
  • राहुल गांधी की दोषसिद्धि से संबंधित विषय पर अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:Rahul Gandhi’s Conviction

भारत में मानहानि कानून का विकास:

  • 17 वीं शताब्दी की शुरुआत में, अक्सर सार्वजनिक अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होती रहती थी क्योंकि व्यक्तिगत अपमान का बदला लेने के लिए अंग्रेज अक्सर एक-दूसरे को हिंसक द्वंद्वयुद्ध की चुनौती देते थे।
  • एक आपराधिक अपराध के रूप में इसने अधिकारियों को हस्तक्षेप करने और मानहानि का मुकदमा चलाने के लिए मजबूर किया और यह “आपराधिक परिवाद” का मूल स्रोत था।
  • लोगों ने यह कहते हुए “आपराधिक परिवाद” की आलोचना की थी कि “सत्य जितना बड़ा होगा, परिवाद उतना ही बड़ा होगा।”
  • 1860 में अंग्रेजों ने नए तैयार किए गए भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code (IPC)) में आपराधिक परिवाद के विचार को उधार लिया था।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499, जानबूझकर दिए गए अपमानजनक बयानों को आपराधिक बनाती है।
  • इस तरह के अपमानजनक बयानों को केवल तभी छूट दी गई थी जब वे “सार्वजनिक कल्याण” के लिए किए गए हों।
  • भारत में मानहानि कानून से संबंधित अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए: Defamation law in India

मानहानि कानून पर सर्वोच्च न्यायालय के विचार:

  • वर्ष 2016 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि “प्रतिष्ठा का अधिकार” संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत विस्तारित है, जो “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार” की गारंटी देता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह घोषित किया की अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत गारंटीकृत “स्वतंत्र भाषण का अधिकार” को अनुच्छेद 21 के तहत “प्रतिष्ठा के अधिकार” के खिलाफ “संतुलित” किया जाना चाहिए था।
  • हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने यह नहीं बताया कि इन दोनों अधिकारों को कैसे संतुलित किया जाना चाहिए।
  • इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना कि आपराधिक मानहानि कानून ने समाज के सदस्यों के बीच “बंधुत्व या एकजुटता” की भावना की रक्षा की है।

सर्वोच्च न्यायालय के विचारों का आलोचनात्मक मूल्यांकन:

  • आलोचक ऐसा मानते हैं की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणियों में “प्रतिष्ठा” को एक मौलिक अधिकार के स्तर तक विस्तारित करना शामिल है, और इसे मुक्त भाषण पर तरजीह देने के लिए, मूल संविधान या संविधान की संरचना में कोई आधार या समर्थन प्राप्त नहीं है।
  • इसके अलावा, आलोचक इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि अदालत ने अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार” के दायरे का मौलिक रूप से विस्तार किया है और इस विस्तारित परिभाषा का उपयोग राज्य को नागरिकों के लाभ के लिए विभिन्न सामाजिक और कल्याणकारी उपाय करने के लिए मजबूर करने के लिए किया है।
  • हालांकि, मानहानि कानून के मामले में, अदालत ने राज्य के उत्पीड़न के खिलाफ व्यक्ति की रक्षा के लिए अनुच्छेद 21 को ढाल के रूप में उपयोग करने के बजाय इसे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को कम करने के लिए उपयोग किया है।
  • विशेषज्ञों ने कहा है कि अदालत द्वारा लागू “संवैधानिक बंधुत्व” का सिद्धांत संविधान के अनुच्छेद 19 (2) का हिस्सा नहीं है, जिसमें राज्य द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए जा सकने वाले उचित प्रतिबंधों का उल्लेख किया गया है।
  • आलोचकों ने यह भी तर्क दिया है कि संविधान की प्रस्तावना (Constitution’s Preamble) में वर्णित “बंधुत्व” शब्द नागरिक अधिकारों के पूरक के रूप में है, न कि उन्हें नष्ट करने के लिए।
  • इस प्रकार आलोचकों ने सवाल उठाया है कि संवैधानिक बंधुत्व के सिद्धांत को लागू करके मुक्त भाषण को किस प्रकार प्रतिबंधित किया जा सकता है।
  • मानहानि के खिलाफ बचाव के रूप में “अनजाने में हुई गलती” की अनुमति नहीं देने पर IPC की धारा 499 पर अदालत की चुप्पी पर भी आलोचना हुई है।

सारांश:

  • बड़ी संख्या में पत्रकारों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देश की अदालतों में कई छोटे-मोटे मानहानि के मामलों का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए भारत में मानहानि पर औपनिवेशिक युग के कानूनों पर फिर से विचार करने की मांग की जा रही है क्योंकि उन्हें बोलने की स्वतंत्रता और सार्वजनिक हितों के लिए एक बाधा के रूप में देखा जाता है।

संपादकीय-द हिन्दू

संपादकीय:

कार्बन उत्सर्जन पर मूल्य आरोपित करने का समय:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण:

विषय: पर्यावरणीय निम्नीकरण।

मुख्य परीक्षा: कार्बन मूल्य निर्धारण और कार्बन उत्सर्जन में कमी।

प्रारंभिक परीक्षा: कार्बन मूल्य निर्धारण।

विवरण:

  • कीमत चुकाए बिना प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण पर्यावरणीय विनाश हुआ है।
  • नतीजतन, निरंतर कार्बन उत्सर्जन के कारण द्रुत गति से जलवायु परिवर्तन (climate change) हो रहा है।
  • यह सुझाव दिया जाता है कि G20 देशों जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को कार्बन उत्सर्जनों का मूल्य निर्धारण शुरू कर देना चाहिए। वर्ष 2023 के लिए G20 की अध्यक्षता करने वाला भारत इस संबंध में नेतृत्व कर सकता है।

यह भी पढ़ें: India Takes Over Presidency Of G20 | 17th G20 Summit- Indonesia

कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र:

  • कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र के तीन प्रमुख प्रकार हैं:
    • सिंगापुर और कोरिया की तरह घरेलू स्तर पर कार्बन कर निर्धारित किया जा सकता है।
    • यूरोपीय संघ (EU) और चीन उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETS) का उपयोग करते हैं।
    • यूरोपीय संघ ने कार्बन सामग्री पर आयात शुल्क लगाने का भी प्रस्ताव दिया है।
  • लगभग 46 देश कार्बन का मूल्य निर्धारित करते हैं। हालांकि, यह केवल 6 डॉलर प्रति टन कार्बन की औसत कीमत पर वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन का केवल 30% कवर करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और भारत के लिए कार्बन की न्यूनतम कीमत क्रमशः $75, $50, और $25 प्रति टन प्रस्तावित की है। यह 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन में 23% की कमी हासिल करने में मदद कर सकता है।
  • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कार्बन मूल्य निर्धारण सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश को प्रोत्साहित करता है।

यह भी पढ़ें: Carbon Price Explained. Main Types of Carbon Pricing. UPSC GS3 Notes.

भारत पर प्रभाव:

  • भारत में कार्बन कर (carbon tax) के लाभ:
    • यह अधिक आकर्षक है क्योंकि यह जीवाश्म ईंधन को हतोत्साहित करता है।
    • इससे राजस्व में वृद्धि होगी जिसे आगे ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों में निवेश किया जा सकता है।
    • यह पेट्रोलियम करों की अक्षम योजना को प्रतिस्थापित करेगा जो सीधे उत्सर्जन के लिए लक्षित नहीं हैं।
  • भारत सहित कई देशों ने अपनी राजकोषीय नीति में कार्बन टैक्स को लागू करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की स्थापना की है। हालांकि, नीति निर्माताओं को कर की दर का चयन करना चाहिए जो $2.65 प्रति टन CO2 (जापान में) से लेकर $165 प्रति टन (डेनमार्क द्वारा 2030 के लिए निर्धारित) तक हो सकती है।
    • भारत IMF द्वारा निर्धारित दर – 25 डॉलर प्रति टन – के साथ शुरुआत कर सकता है।

संबद्ध चिंताएं:

  • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कार्बन मूल्य निर्धारण को कड़े राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए:
    • ऑस्ट्रेलिया ने 2012 के कर को पेश किए जाने के दो साल बाद ही निरस्त कर दिया।
    • यूरोपीय संघ में ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के कारण लाखों उत्सर्जन परमिटों की बिक्री हुई। इससे कार्बन की कीमतों में 10% की गिरावट आई।
  • इस संबंध में प्रमुख मुद्दों में से एक यह है कि औद्योगिक कंपनियां कम कार्बन कीमतों वाले देशों के निर्यातकों के लिए अपना प्रतिस्पर्धात्मक लाभ खो सकती हैं।

भावी कदम:

  • एक ही ब्रैकेट (उच्च, मध्यम और निम्न-आय) वाले देशों के लिए एक समान दर निर्धारित की जानी चाहिए।
  • इसके अलावा, कंपनियों को उनके कर योग्य उत्सर्जन के एक निश्चित प्रतिशत तक ऑफसेट करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले अंतर्राष्ट्रीय कार्बन क्रेडिट का उपयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
  • दुनिया भर के देशों की सर्वोत्तम प्रथाएं:
    • यदि उच्च लागत सीधे उपभोक्ताओं पर डाली जाती है तो यूरोपीय संघ परिवहन को इससे बाहर कर देता है।
    • सिंगापुर में उपयोगिता मूल्य वृद्धि से प्रभावित उपभोक्ताओं को वाउचर प्रदान किए जाते हैं।
    • कैलिफोर्निया आंशिक रूप से इलेक्ट्रिक कारों की खरीद को सब्सिडी देने के लिए कार्बन परमिट की बिक्री से प्राप्त आय का उपयोग करता है।
    • स्वीडन ने राजकोषीय पैकेज के एक भाग के रूप में कार्बन कर पेश करके राजनीतिक बाधाओं को दूर किया जो अन्य करों को कम करता है और इसमें नए सामाजिक सुरक्षा आयाम शामिल हैं।
  • आउटपुट-आधारित छूट भी प्रदान की जा सकती है।
  • सामाजिक स्तर पर सफलता के विचार को पर्याप्त रूप से संप्रेषित किया जाना चाहिए।
  • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कार्बन कर लाभ की अवधारणा के रूप में, पहले पहल करने वाले सबसे अधिक प्रतिस्पर्धी बन जाएंगे। इस प्रकार, भारत को इस विचार को बढ़ावा देना चाहिए और जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए एक प्रमुख भूमिका निभानी चाहिए।

संबंधित लिंक:

Carbon Border Adjustment Mechanism [UPSC Notes]

सारांश:

  • कार्बन उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में एक उच्च कार्बन कर का उल्लेखनीय प्रभाव हो सकता है। फलस्वरूप यह जलवायु संकट को संबोधित करेगा। यह विकार्बनीकरण को विजयी विकास फॉर्मूला बनाने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने के लिए भारत को इस संदर्भ में एक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

भारत को अपने नमक के सेवन में कटौती क्यों करनी चाहिए?

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:

स्वास्थ्य:

विषय: स्वास्थ्य से संबंधित विषय।

मुख्य परीक्षा: आहार में नमक का सेवन कम करना।

प्रसंग:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘सोडियम सेवन में कमी पर वैश्विक रिपोर्ट’ प्रकाशित की है।

विवरण:

  • उच्च मात्रा में सोडियम का सेवन उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है। इसके खतरनाक नतीजे आहार विकल्पों पर तत्काल ध्यान देने और उनके पुनर्मूल्यांकन को आवश्यक बनाते हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वयस्कों के लिए रोजाना 5 ग्राम से कम नमक खाने की सलाह दी है। हालांकि, एक औसत भारतीय की सोडियम खपत शारीरिक आवश्यकता से दोगुनी (लगभग 11 ग्राम) से अधिक है।
  • WHO द्वारा प्रकाशित ‘सोडियम सेवन में कमी पर वैश्विक रिपोर्ट’ वर्ष 2025 तक जनसंख्या के सोडियम सेवन को 30% कम करने की दिशा में 194 देशों की प्रगति का विश्लेषण करती है।
  • यह पाया गया है कि इस संबंध में प्रगति बहुत धीमी है और समय सीमा को 2030 तक बढ़ाने का प्रस्ताव है।
  • WHO प्रत्येक सदस्य देश के लिए 1 (न्यूनतम कार्यान्वयन) से लेकर 4 (उच्चतम कार्यान्वयन) तक सोडियम स्कोर का उपयोग करता है, जो सोडियम में कमी और अन्य संबंधित उपायों के कार्यान्वयन जैसे कारकों पर आधारित होता है।
  • भारत का स्कोर 2 है जो दर्शाता है कि भारत के पास कम से कम एक नीति है। हालाँकि, चिंता को दूर करने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।

सोडियम सेवन में कमी और इसका महत्व:

  • सोडियम के कम सेवन और रक्तचाप में कमी के बीच एक मजबूत संबंध है।
    • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि प्रति दिन 1 ग्राम (नमक का 2.5 ग्राम) सोडियम का सेवन कम करने से 55 वर्ष की आयु के व्यक्ति के लिए सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर (BP) में 5 mm Hg की कमी हो सकती है।
    • इससे स्ट्रोक की घटनाओं में 22% और मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन की घटनाओं में 16% की कमी आएगी।
    • इसका तात्पर्य है कि हृदय रोग को रोकने के लिए नमक की कमी एक व्यावहारिक दृष्टिकोण है।
  • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि हृदय रोग दुनिया में मृत्यु दर का प्रमुख कारण है। उदाहरण के लिए, 2001 में, वैश्विक स्तर पर लगभग 54% मरीज स्ट्रोक और 47% मरीज कोरोनरी हृदय रोग थे।
  • इसके अलावा, निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) पर हृदय रोग का उच्च प्रभाव है।
    • यह अनुमान लगाया गया है कि 2011 से 2025 के बीच, समय से पहले मृत्यु और विकलांगता के कारण LMIC में हृदय रोग का बोझ लगभग $3.7 ट्रिलियन (GDP का 2%) होगा।
    • विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने सुझाव दिया है कि 2012 और 2030 के बीच अकेले भारत को 2 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होगा।

भारत के लिए चुनौतियां:

उच्च रक्तचाप और हृदय रोग भारत के लिए विशेष रूप से चार प्रमुख कारणों से काफी चुनौतियां पेश करते हैं:

  • विशेष रूप से, हृदय रोग देश में मृत्यु दर और रुग्णता का एक प्रमुख कारण है (WHO, भारत के महापंजीयक और ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिज़ीज़ स्टडी के अनुसार)।
    • पिछले 25 वर्षों में आयु-समायोजित हृदय रोग मृत्यु दर में 31% की वृद्धि हुई है।
  • NFHS-5 के अनुसार, समान आयु वर्ग की महिलाओं की तुलना में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के पुरुषों में उच्च रक्तचाप अधिक प्रचलित है। यह दक्षिणी भारत और उत्तर में पंजाब और उत्तराखंड में अधिक आम है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर लगभग 38.5% महिलाएं और 49.2% पुरुष प्री-हाइपरटेंसिव हैं। उत्तरी राज्यों में इसका प्रचलन अधिक है।
    • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि प्री-हाइपरटेंसिव में हृदय रोग, स्ट्रोक और समय से पहले मृत्यु दर अपेक्षाकृत अधिक होती है।
    • अमेरिकी दिशा निर्देशों के मुताबिक कई प्री-हाइपरटेंसिव भारतीयों को नई परिभाषित स्टेज-1 हाइपरटेंशन श्रेणी में शामिल किया गया है।
  • मृत्यु के कारण के चिकित्सा प्रमाणन पर रिपोर्ट (2020) के अनुसार, संचार प्रणाली के रोग सभी दर्ज मौतों में से 32.1% के लिए जिम्मेदार है, जिसमें उच्च रक्तचाप एक प्रमुख जोखिम कारक है।

सरकार द्वारा किए गए उपाय:

  • ईट राइट इंडिया अभियान:
    • भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) सभी के लिए सुरक्षित, स्वस्थ और स्थायी पोषण सुनिश्चित करने हेतु देश की खाद्य प्रणाली को बदलने के उद्देश्य से अभियान को लागू कर रहा है।
  • आज से थोड़ा कम:
    • यह एक सोशल मीडिया अभियान (FSSAI द्वारा शुरू किया गया) है जो खाने में सुरक्षित और स्वस्थ भोजन को शामिल करने के माध्यम से निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर केंद्रित है।

यह भी पढ़ें: Eat Right India Movement | FSSAI & GoI Initiative – UPSC Notes

भावी कदम:

  • नमक की खपत को कम करने के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय रणनीति की आवश्यकता है।
  • उपभोक्ताओं, उद्योग और सरकार की भागीदारी के साथ एक बहु-आयामी दृष्टिकोण समय की आवश्यकता है।
  • इसके अतिरिक्त, WHO के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए राज्य और केंद्र सरकारों के बीच सहयोग भी आवश्यक है।

संबंधित लिंक:

TRANS-FATS [UPSC Notes GS III]

सारांश:

  • अत्यधिक नमक के सेवन से मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है जो उच्च रक्तचाप और हृदय रोगों के जोखिम को काफी बढ़ा देता है। सभी हितधारकों को आगे आना चाहिए तथा सुरक्षित और स्वस्थ भोजन खाने जैसे निवारक और सुधारात्मक उपाय करके संभावित स्वास्थ्य खतरे को दूर करने के लिए सहयोग करना चाहिए।

प्रीलिम्स तथ्य:

1.कोप इंडिया अभ्यास/एक्सरसाइज:

सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:

सुरक्षा:

विषय : विभिन्न सुरक्षा बल और एजेंसियां और उनके अधिदेश।

प्रारंभिक परीक्षा: कोप इंडिया अभ्यास (Cope India Exercise)।

प्रसंग:

  • कोप इंडिया अभ्यास के 10 अप्रैल से 21 अप्रैल तक पश्चिम बंगाल के कलाईकुंडा एयरबेस पर आयोजित होने की उम्मीद है।

कोप इंडिया एक्सरसाइज:

  • भारत और अमेरिका की वायु सेनाएं पश्चिम बंगाल के कलाईकुंडा एयरबेस में जापान (एक पर्यवेक्षक के रूप में) के साथ कोप इंडिया अभ्यास आयोजित करने के लिए तैयार हैं।
  • कोप इंडिया अभ्यास 2004 में वायु स्टेशन ग्वालियर, भारत में आयोजित एक लड़ाकू प्रशिक्षण अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था।
  • कोप इंडिया अभ्यास विषय विशेषज्ञों के आदान-प्रदान, वायु गतिशीलता प्रशिक्षण, एयरड्रॉप प्रशिक्षण और लार्ज-फ़ोर्स अभ्यास एवं लड़ाकू-प्रशिक्षण अभ्यास को शामिल करने के लिए विकसित हुआ है।
  • इस अभ्यास में इंटरऑपरेबिलिटी में सुधार लाने के उद्देश्य से गहन वायु युद्धाभ्यास किया गया।
  • यह अभ्यास एक मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए अमेरिका और भारत के प्रयासों और प्रतिबद्धता पर प्रकाश डालता है।
  • वर्ष 2023 के इस अभ्यास के संस्करण में, भारतीय वायु सेना (IAF) अपने फ्रंटलाइन फाइटर्स SU-30MKI, राफेल और स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के साथ फोर्स मल्टीप्लायरों को तैनात करेगी, जबकि अमेरिकी वायु सेना अपने F-15 फाइटर जेट्स को तैनात करेगी।
  • भारत-यू.एस. द्विपक्षीय मालाबार नौसैनिक अभ्यास (Malabar naval exercise) वर्ष 2015 में जापान के शामिल होने के साथ त्रिपक्षीय अभ्यास बन गया और इसके अलावा क्वाड के सभी भागीदारों ने वर्ष 2020 में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने के साथ अभ्यास में एक साथ भाग लिया था।
  • इसके अलावा, जनवरी 2023 में, भारत और जापान ने JASDF द्वारा आयोजित अपने पहले हवाई अभ्यास वीर गार्जियन (Veer Guardian) का आयोजन किया था।

महत्वपूर्ण तथ्य:

1.पीएम स्वनिधि के तहत ‘अल्पसंख्यक समुदायों’ के वेंडरों को केवल 9.3% ऋण दिया गया’:

  • आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के अनुसार, पीएम स्वनिधि (PM SVANidhi) योजना के तहत स्ट्रीट वेंडर्स को लगभग 5,152.37 करोड़ रुपये के 42.7 लाख से अधिक ऋण वितरित किए गए हैं।
  • हालाँकि, कुल ऋणों में से केवल लगभग 3.98 लाख, या 9.3%,ऋण अल्पसंख्यक समुदायों के फेरीवालों (वेंडरों) को दिए गए थे।
  • पीएम स्वनिधि 2020 में शुरू की गई एक माइक्रो-क्रेडिट योजना है, जिसका उद्देश्य महामारी से प्रेरित आर्थिक तनाव से निपटने के लिए स्ट्रीट वेंडर्स को समर्थन देना है।
  • यह योजना ₹10,000 के संपार्श्विक-मुक्त ऋण की सुविधा प्रदान करती है, इसके बाद में ₹20,000 और ₹50,000 के ऋण के साथ 7% की ब्याज सब्सिडी प्रदान करती है।
  • मंत्रालय द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार,अल्पसंख्यक समुदायों के रेहड़ी-पटरी वालों को ऋण की हिस्सेदारी में वर्ष 2020-21 में 10.23%, 2021-22 में 9.25% और 2022-23 में 7.76% की गिरावट आई है।
  • कुछ रिपोर्टों के अनुसार, देश की कुल आबादी का केवल 20% अल्पसंख्यक होने के बावजूद, स्ट्रीट वेंडर्स के बीच उनका प्रतिनिधित्व मुख्य रूप से विभिन्न सामाजिक-आर्थिक कारणों से कई गुना बताया जाता है।

2. फिलीपींस ने अमेरिकी सैनिकों को 4 और सैन्य ठिकाने आवंटित किए:

चित्र स्रोत: The New York Times

  • फिलीपींस ने अमेरिकी सैनिकों द्वारा उपयोग किए जाने के लिए चार और सैन्य ठिकानों के स्थान देने की घोषणा की है, जिनमें से एक दक्षिण चीन सागर के पास और दूसरा ताइवान के करीब है।
  • वर्ष 2014 के संवर्धित रक्षा सहयोग समझौते (EDCA) ने अमेरिका को फिलीपींस में पांच ठिकानों तक पहुंच प्रदान की थी और संधि सहयोगी फरवरी 2023 में “रणनीतिक क्षेत्रों” में सहयोग का विस्तार करने के लिए सहमत हुए थे।
  • अमेरिका और फिलीपींस के बीच “रणनीतिक क्षेत्रों” में सहयोग का विस्तार स्व-शासित ताइवान पर चीन की बढ़ती मुखरता और दक्षिण चीन सागर में चीनी ठिकानों के निर्माण का मुकाबला करने के उद्देश्य से किया गया है।
  • फिलीपीन सेना द्वारा चार स्थलों का मूल्यांकन किया गया है और “उपयुक्त और पारस्परिक रूप से लाभकारी” माना गया है तथा आपदाओं के दौरान मानवीय और राहत कार्यों के लिए भी इन ठिकानों का उपयोग किया जाएगा।

3. ओपेक+ द्वारा आश्चर्यजनक रूप से तेल उत्पादन में कटौती ने बाजारों को हिला दिया:

  • हाल ही में तेल की कीमतों में वृद्धि हुई है और लगभग एक साल में सबसे बड़ी दैनिक वृद्धि हुई है, क्योंकि ओपेक+ के सदस्यों ने घोषणा की कि वे तेल का उत्पादन कम करेंगे।
  • पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (Organization of the Petroleum Exporting Countries) और रूस सहित उनके सहयोगियों की घोषणा ने बाजारों को हिलाकर रख दिया।
  • मुख्य तेल उत्पादक समूह, जिसे ओपेक+ के रूप में जाना जाता है, से अपेक्षा की गई थी कि वह अपनी मासिक बैठक में दिसंबर तक उत्पादन में 2 मिलियन bpd कटौती करने के अपने पहले के निर्णय को बनाए रखेगा।
  • OPEC+ का गठन तब हुआ जब OPEC देशों ने 2016 में 10 अन्य तेल उत्पादक देशों के साथ हाथ मिलाया, जब तेल की कीमतें गिर गई थीं।
  • OPEC+ 23 तेल निर्यातक देशों का एक समूह है जो नियमित रूप से यह तय करने के लिए बैठक करता है कि विश्व बाजार में कितना कच्चा तेल बेचा जाए।

UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. जल शोधन तकनीकों के संबंध में इनमें से कौन-से कथन सत्य हैं? (स्तर – कठिन)

  1. RO तकनीक पानी की कठोरता को दूर करने में मदद करती है।
  2. UV तकनीक जीवाणु और विषाणुओं को मारने में मदद करती है लेकिन RO तकनीक की तरह उन्हें बाहर नहीं करती है।
  3. UF तकनीक को कार्य करने के लिए बिजली की आवश्यकता नहीं होती है, जबकि UV और RO तकनीकों को इसकी आवश्यकता होती है।

विकल्प:

  1. 1 और 2
  2. 2 और 3
  3. 1 और 3
  4. 1, 2 और 3

उत्तर: d

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है: रिवर्स ऑस्मोसिस (RO) प्रक्रिया कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे घुलित खनिजों को प्रभावी ढंग से हटा सकती है, जिसके परिणामस्वरूप पानी मृदु हो जाता है।
  • कथन 2 सही है: UV (पराबैंगनी) तकनीक जीवाणु और विषाणुओं को मारने में मदद करती है, लेकिन RO जल शोधक के विपरीत UV तकनीक उन जीवाणुओं को खत्म या बाहर नहीं कर सकती है जिन्हें विकिरणों द्वारा मार दिया जाता है।
    • पीने के पानी में मृत जीव मौजूद रहते हैं।
  • कथन 3 सही है: UF (अल्ट्राफिल्ट्रेशन) तकनीक को कार्य करने के लिए बिजली की आवश्यकता नहीं होती है, जबकि UV और RO तकनीकों को इसकी आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2. चुनावी बॉन्ड के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कितने सत्य है/हैं? (स्तर – सरल)

  1. इन्हें केवल सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा जारी किया जा सकता है।
  2. कोई भी राजनीतिक दल इन बॉन्डों से धन प्राप्त कर सकता है।
  3. भारत का कोई भी नागरिक इन बॉन्डों को खरीद सकता है और अपनी पसंद के राजनीतिक दल को दान कर सकता है।

विकल्प:

  1. केवल एक कथन
  2. केवल दो कथन
  3. सभी तीनों कथन
  4. कोई भी कथन नहीं

उत्तर: a

व्याख्या:

  • कथन 1 गलत है: केवल भारतीय स्टेट बैंक चुनावी बॉन्ड जारी करने और भुनाने के लिए अधिकृत है।
  • कथन 2 गलत है: केवल वे राजनीतिक दल जो भारत के चुनाव आयोग के साथ पंजीकृत हैं और लोक सभा या विधान सभा के पिछले आम चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत मत प्राप्त कर चुके हैं, वे ही इन बॉन्डों से धन प्राप्त करने के पात्र हैं।
  • कथन 3 सही है: एक चुनावी बॉन्ड भारत के किसी भी नागरिक या भारत में निगमित निकाय द्वारा खरीदा जा सकता है और उन्हें अपनी पसंद के राजनीतिक दल को दान किया सकता है।

प्रश्न 3. क्रय प्रबंधक सूचकांक के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही नहीं है? (स्तर – कठिन)

  1. यह किसी देश के आर्थिक रुझानों में बदलाव का अनुमान लगाने में मदद करता है।
  2. भारत के लिए, इसकी गणना आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा की जाती है।
  3. इसकी गणना सेवा और विनिर्माण क्षेत्र दोनों के लिए की जा सकती है।
  4. यह एक अवधारणात्मक विश्लेषण है, जो केवल निजी क्षेत्र के लिए किया जाता है।

उत्तर: b

व्याख्या:

  • क्रय प्रबंधक का सूचकांक (PMI) निजी क्षेत्र की कंपनियों के मासिक सर्वेक्षण से प्राप्त एक आर्थिक संकेतक है।
  • PMI का उद्देश्य कंपनी के निर्णयकर्ताओं, विश्लेषकों और निवेशकों को व्यवसाय की वर्तमान और भविष्य की स्थितियों के बारे में जानकारी प्रदान करना है।
  • PMI या क्रय प्रबंधक का सूचकांक (PMI) विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों दोनों में व्यावसायिक गतिविधि का एक संकेतक है।
  • PMI सूचकांक भारत में IHS मार्किट (IHS Markit) द्वारा संकलित किया जाता है।

प्रश्न 4. आइस मेमोरी परियोजना के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सत्य है? (स्तर – मध्यम)

  1. यह लंबी अंतरिक्ष उड़ानों के दौरान मानव शरीर को संरक्षित करने के लिए क्रायोजेनिक तकनीकों को विकसित करने की एक पहल है।
  2. यह हिम-युग के पशु नमूनों को संरक्षित करने के लिए जीवाश्म विज्ञानियों का एक सहयोग है।
  3. यह “जॉम्बी वायरस” का गहन अध्ययन करने की एक पहल है जो बर्फ में संरक्षित किया गया था और अब ग्लोबल वार्मिंग के कारण फिर से सामने आ रहा है।
  4. यह जलवायु परिवर्तन के कारण पिघलने से पहले प्राचीन बर्फ के नमूनों को विश्लेषण के लिए सहेजने की एक पहल है।

उत्तर: d

व्याख्या:

  • “आइस मेमोरी परियोजना” का उद्देश्य आने वाली पीढ़ियों के लिए इस अमूल्य वैज्ञानिक विरासत को संरक्षित करने के लिए संग्रहीत ग्लेशियर बर्फ की पहली विश्व लाइब्रेरी स्थापित करना है, जब भविष्य की तकनीकें इन नमूनों से और भी अधिक डेटा प्राप्त कर सकेंगी।
  • “आइस मेमोरी” पहल के तहत, आर्कटिक वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के कारण जमी हुई परतों के पिघलने से पहले विश्लेषण के लिए प्राचीन बर्फ के नमूनों को बचाने के लिए ड्रिलिंग कर रहे हैं।

प्रश्न 5. ‘गोल्डीलॉक्स ज़ोन (Goldilocks Zone)’ शब्द निम्नलिखित में से किसके संदर्भ में अक्सर समाचारों में देखा जाता है? PYQ 2020 (स्तर – मध्यम)

  1. भूपृष्ठ के ऊपर वाययोग्य मण्डल की सीमाएँ
  2. पृथ्वी के अन्दर का वह क्षेत्र, जिसमें शेल गैस उपलब्ध है
  3. बाह्य अंतरिक्ष में पृथ्वी जैसे ग्रहों की खोज
  4. मूल्यवान धातुओं से युक्त उल्कापिंडों (मीटिओराइट्स) की खोज

उत्तर: c

व्याख्या:

  • गोल्डीलॉक्स ज़ोन एक तारे के चारों ओर वासयोग्य क्षेत्र को संदर्भित करता है जहाँ तापमान तरल पानी के ग्रह पर मौजूद होने के लिए बिल्कुल सही होता है – न ज्यादा गर्म और न ज्यादा ठंडा।
  • गोल्डीलॉक्स ज़ोन में ग्रहों की खोज एक ऐसा तरीका है जो वैज्ञानिकों को पृथ्वी जैसे ग्रहों की खोज में मदद करता है जिनमें जीवन हो सकता है।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न 1. कार्बन कर क्या है? क्या आपको लगता है कि कार्बन कर भारत में वायु प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकता है? भारत में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कुछ उपाय सुझाइए।

(250 शब्द; 15 अंक) [जीएस-3; पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण]

प्रश्न 2. क्या महिला स्वयं सहायता समूहों के सूक्ष्मवित्तीयन के माध्यम से लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुष्चक्र को तोड़ा जा सकता है? उदाहरण सहित समझाइए।

(250 शब्द; 15 अंक) [जीएस-2; सामाजिक न्याय]