अंतरिक्ष में किसी भी सैटलाइट को भेजने के लिए ‘लॉन्चिंग व्हीकल’ (Launching Vehicle)/ प्रक्षेपण यान का इस्तेमाल किया जाता है । ये एक तरह के रॉकेट होते हैं जिनकी मदद से सैटलाइट लॉन्च किए जाते हैं।
ऐसे ‘लॉन्चिंग व्हीकल’ (Launching Vehicle)/ प्रक्षेपण यान मुख्य रूप से 2 प्रकार के होते हैं – पोलर सैटलाइट लॉन्चिंग व्हीकल (PSLV) और जियोसिंक्रनाइज लॉन्चिग व्हीकल (GSLV) ।
PSLV की मदद से ज्यादातर ऐसे सैटलाइट भेजे जाते हैं जिनकी मदद से निगरानी करनी होती है या तस्वीर खींची जाती है । ये सैटलाइट पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं और पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों को कवर कर सूचनाएं देते हैं ।
भारत में PSLV का इस्तेमाल सबसे पहले 1994 में हुआ था । PSLV इसरो द्वारा उपयोग किया जाने वाला अब तक का सबसे विश्वसनीय प्रक्षेपण वाहन है । PSLV का उपयोग भारत के दो सबसे महत्त्वपूर्ण मिशनों (वर्ष 2008 के चंद्रयान-I और वर्ष 2013 के मार्स ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट) के लिये भी किया गया था ।
जबकि GSLV का मतलब है भू- समकालिक (जियोसिंक्रोनस) प्रक्षेपण वाहन । जैसे-जैसे पृथ्वी घूमती है वैसे-वैसे ही ये सैटलाइट घूमते हैं । इसी वजह से ये सैटलाइट हमेशा एक जगह पर रुके हुए से लगते हैं । इसी वजह से कम्यूनिकेशन सैटलाइट, टेलीविजन सैटलाइट और कई अन्य सैटलाइट GSLV से ही भेजे जाते हैं । जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) एक अधिक शक्तिशाली रॉकेट है, जो भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में अधिक ऊँचाई तक ले जाने में सक्षम है ।यह 10,000 कि.ग्रा. के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा तक ले जा सकता है, जबकि PSLV 2500 से 3000 कि.ग्रा तक ।
नोट: हाल ही में भारत ने छोटे सैटलाइट भेजने के लिए एक SSLV (स्मॉल सैटलाइट लॉन्चिंग व्हीकल) भी बनाया है । SSLV का लक्ष्य छोटे एवं सूक्ष्म उपग्रहों को लॉन्च करना है । यह 500 कि.ग्रा. तक के उपग्रहों को अंतरिक्ष तक ले जा सकता है ।
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