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केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान (भरतपुर)

केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के भरतपुर में स्थित है। इसे पहले भरतपुर पक्षी विहार के नाम से जाना जाता था। यह उद्यान एक अद्भुत पर्यटन स्थल का केन्द्र है। इस विख्यात पक्षी अभयारण्य में हजारों दुर्लभ और संकटापन्न पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती है। इस राष्ट्रीय उद्यान में करीब 230 प्रजाति के पक्षियों ने अपना बसेरा बनाया है। यहां सर्दियों के मौसम में साईबेरिया से सारस आदि पक्षी भी आते हैं।

केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान में शीत ऋतु में बड़ी मात्रा में पक्षीविज्ञानी भी आते हैं। इसे साल 1971 में संरक्षित पक्षी अभयारण्य घोषित किया गया था। इसके बाद साल 1985 में इस उद्यान को विश्व धरोहर घोषित किया गया था। यहां गैर-प्रवासी प्रजनन पक्षी बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए यह एक महत्वपूर्ण पक्षी देखने का स्थल (बर्ड वाचिंग साइट) है। इस अभ्यारण में साइबेरिया और चीन जैसे देशों के साथ अफगानिस्तान और तुर्कमेनिस्तान से भी पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां हर साल आती हैं। इस उद्यान में गंभीर और बाणगंगा नदी बहती हैं।

केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान, IAS की प्रारंभिक और और मुख्य परीक्षा के GS पेपर 2 और GS पेपर 3 के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है। UPSC परीक्षा की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों को भारत के महत्वपूर्ण पक्षी अभयारण्यों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के बारे में आवश्यक तथ्य जान लेना चाहिए। साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के बीच अंतर को समझ लेना चाहिए।  

केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान खबरों में क्यों है?

पक्षियों की आवाजाही में मौसमी उतार-चढ़ाव को देखने और जांचने के लिए केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में 22 वर्षों की अवधि के बाद ओरिएंटल डार्टर्स के लिए रिंगिंग की व्यवस्था की गई है। इससे उनके द्वारा पहले इस्तेमाल किए गए घोंसलों पर उनके वापस आने की आदत का पता लगाने में मदद मिलेगी। साथ ही इससे ओरिएंटल डार्टर्स के संरक्षण में भी मदद मिलेगी। पहले ज्यादातर प्रवासी पक्षियों पर उनके उड़ान के मार्गों, स्टॉपओवर साइटों और प्रजनन क्षेत्रों का पता लगाने के लिए रिंगिंग की जाती थी।

केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान का इतिहास

केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान का नाम इस पक्षी विहार में स्थित केवलादेव (शिव) मंदिर के नाम पर रखा गया था। इसका निर्माण करीब 250 साल पहले हुआ था। इसकी भौगोलिक स्थित कुछ ऐसी है कि यहां अक्सर बाढ़ का खतरा बना रहता था। साल 1736 से 1763 के बीच भरतपुर के शासक महाराज सूरजमल ने यहां अजान बांध का निर्माण करवाया था। यह बांध दो नदियों गंभीर और बाणगंगा के संगम पर स्थित है।

केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान 1850 से पहले तक भरतपुर के महाराजाओं का पसंदीदा शिकारगाह स्थल हुआ करता था। यहां पर ब्रिटिश वायसराय के सम्मान में पक्षियों के सालाना शिकार का आयोजन किया जाता था। इस उद्यान में साल 1938 में भारत के गवर्नर जनरल लिनलिथगो के काल में केवल एक ही दिन में करीब 4273 पक्षियों का शिकार किया गया था। उस दौरान मेलोर्ड एवं टील जैसे पक्षी बहुतायत में मारे गए थे। जनरल लिनलिथगो ने अपने सहयोगी विक्टर होप के साथ इन पक्षियों का शिकार किया था। भारत की स्वतंत्रता के बाद भी साल 1972 तक भरतपुर के पूर्व राजा को इस उद्यान क्षेत्र में शिकार की अनुमति थी। बाद में साल 1982 में उद्यान से चारा लेने पर प्रतिबन्ध लगाने के बाद यहां के किसानों, गुर्जर समुदाय और सरकार के बीच हिंसक झड़प हुई थी।

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से जुड़े जरुरी तथ्य 

  • यह पहले महाराजाओं का बतख-शिकार रिजर्व था।
  • यह साल 1850 में कृत्रिम रूप से निर्मित और अनुरक्षित आर्द्रभूमि स्थल है।
  • 13 मार्च 1956 को इसे पक्षी अभयारण्य घोषित किया गया था।
  • साल 1981 में इसे रामसर कन्वेंशन (Ramsar Convention) के तहत इस अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि नामित किया गया था।
  • 10 मार्च 1982 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
  • 1985 में यूनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।
  • यह उद्यान 375 से अधिक पक्षी प्रजातियों का बसेरा है।
  • इस राष्ट्रीय उद्यान में सारस क्रेन, जलकाग, मोर, डार्टर, उल्लू, जलपक्षी, आम कूट, बैंगनी सनबर्ड देखे जा सकते हैं।
  • अन्य संकटग्रस्त एविफुना प्रजातियां जो यहां पाई जाती हैं, उनमें बेयर का पोचार्ड, डालमेटियन पेलिकन, लेजर और ग्रेटर एडजुटेंट, सिनेरियस गिद्ध, स्पॉट-बिल पेलिकन आदि शामिल हैं।
  • सियार, बंगाल फॉक्स, ब्लैकबक, चीतल, आम पाम सिवेट, हॉग डियर, सांभर जैसे जानवर भी यहां पाए जा सकते हैं।

नोट : आप अपनी IAS परीक्षा की तैयारी शुरू करने से पहले UPSC Prelims Syllabus in Hindi का अच्छी तरह से अध्ययन कर लें, इसके बाद अपनी तैयारी की योजना बनाएं। 

इस उद्यान से जुड़ी विशेष बातें

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, प्राकृतिक आर्द्रभूमि नहीं है। इसलिए इस पार्क में पानी की कमी एक समस्या है। यहां पानी का मुख्य स्रोत अजान बांध है। जिसे गंभीर नदी से पानी मिलता है। साल 2003-04 में गंभीर नदी पर बने पांचना बांध के निर्माण ने इस राष्ट्रीय उद्यान में पानी की समस्या को और बढ़ा दिया है।

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भारत का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है जो पूरी तरह से 2 मीटर ऊंची चारदीवारी से घिरा हुआ है। इसके चारो और दीवार बनाने का उद्देश्य अतिक्रमण, अवैध गतिविधियों और अन्य जैविक गड़बड़ी की संभावनाओं को कम करना है।

यह राष्ट्रीय उद्यान, भारतीय वन अधिनियम, 1927 और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत कानूनी रूप से संरक्षित है। इसका प्रबंधन राजस्थान वन विभाग द्वारा स्थानीय समुदायों, राष्ट्रीय संरक्षण संगठनों और अन्य अंतरराष्ट्रीय निकायों की मदद से किया जाता है।

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के लिए खतरा

ऐसे कई कारक हैं जो इस राष्ट्रीय उद्यान के आवास और प्रजातियों के लिए खतरा हैं। उनमें से कुछ कारक इस प्रकार हैं –

इस उद्यान में पानी की कमी (पानी का स्रोत, उसकी मात्रा और गुणवत्ता भी पार्क को प्रभावित करती है)।

आक्रामक वनस्पति (प्रोसोपिस, पासपालम, आइचोर्निया) भी इस उद्यान के प्रमुख खतरों में से एक है।

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पर्यावास में सुधार के लिए उठाए गए कदम

सरकार द्वारा स्थानीय ग्रामीणों की मदद से राष्ट्रीय उद्यान के आवास को बहाल करने और सुधारने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। जो इस प्रकार है –

आर्द्रभूमि किनारों की मरम्मत

डी-अवसादन (डिस्लिटिंग)

जल निकायों को गहरा करना

आक्रामक विदेशी प्रजातियों जैसे – प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा, अफ्रीकी कैटफिश को यहां से हटाना आदि।

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