Download the BYJU'S Exam Prep App for free IAS preparation videos & tests - Download the BYJU'S Exam Prep App for free IAS preparation videos & tests -

वन रैंक वन पेंशन या ओआरओपी

केंद्र सरकार ने साल 2014 में रिटायर सैनिकों के लिए वन रैंक वन पेंशन योजना लागू करने की घोषणा की थी। वन रैंक-वन पेंशन नीति के तहत अब अलग-अलग समय पर रिटायर हुए एक ही रैंक के सैनिकों की पेंशन राशि में ‍बड़ा अंतर नहीं होगा, चाहे वो कभी भी रिटायर हुए हों।  

वन रैंक वन पेंशन के पहले की स्थिति

इस नीति के लागूू होने से पहले, साल 2006 से पहले रिटायर हुए सैनिकों को कम पेंशन मिलती थी। यहां तक कि उन्हें अपने से छोटे ओहदे के अफसर से भी कम पेंशन मिलती थी, जिसे लेकर रिटायर सैनिकों में आक्रोश था और सभी रिटायर सैनिक लंबे समय से वन रैंक वन, वन पैंशन की नीति लागू करने की मांग करते आ रहे थे। पूरानी पैंशन व्यस्था से सिपाही, नायक, हवलदार और यहां तक कि मेजर जनरल से लेकर कर्नल तक सभी प्रभावित थे।

रिटायर सैनिकों की मांग

भारत में करीब 25 लाख रिटायर्ड सैनिक हैं। इन पूर्व सैनिकों ने साल 2008 में  इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमेंट (आइएसएम) नाम का एक संगठन बनाकर वन रैंक, वन पैंशन की नीति लागू करने के लिए दिल्ली के जंतर-मंतर पर लंबे समय तक संघर्ष और धरने-प्रदर्शन किए थे।

इन सैनिकों की मांग थी कि कम से कम 7 साल कर्नल की रैंक पर रहने वाले अफसरों को भी समान रूप से पेंशन मिले, इनकी पेंशन 10 साल तक कर्नल रहे अफसरों से कम नहीं होनी चाहिए, बल्कि उनके बराबर हो।

अन्य मांग

सैनिक अभी 33 साल में रिटायर हो जाते हैं। इसके बाद उन्हें पूरी उम्र पेंशन पर ही गुजारा करना पड़ता है, जबकि अन्य सरकारी कर्मियों कि रिटारमेंट 60 साल में होती है और उन्हें तब तक सैलरी मिलती है। इसलिए सैनिकों की मांग थी कि उन्हें भी 60 साल पर ही रिटायर किया जाए।

इस लेख में आपको वन रैंक वन पेंशन के बारे में विस्तार से जानकारी दी जा रही है। इससे उम्मीदवारों को आईएएस परीक्षा 2023 के साथ-साथ अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में भी मदद मिलेगी।

नोट – उम्मीदवार यूपीएससी 2023 परीक्षा की तैयारी शुरू करने से पहले नवीनतम UPSC Prelims Syllabus in Hindi का ठीक से अध्ययन कर लें। इसके बाद ही अपनी आईएएस परीक्षा की तैयारी की रणनीति बनाएं।

इस प्रणाली को समझाने के लिए, आइए एक उदाहरण लेते हैं। एक अधिकारी जो 15 वर्षों (1985 से 2000 तक) के लिए सेवा में रहा है, और 2000 में सेवानिवृत्त हुआ, उसे 2010 में सेवानिवृत्त होने वाले और 1995 से 2010 (15 वर्ष) तक सेवा में रहने वाले अधिकारी के समान पेंशन मिलेगी।

इस प्रणाली से पहले, कार्मिकों की पेंशन की गणना के लिए प्रचलित प्रणाली, अंतिम प्राप्त सैलरी पर आधारित थी।

यहां, सेवा की लंबाई मायने नहीं रखती थी और जो ध्यान में रखा गया था वह कर्मियों द्वारा प्राप्त अंतिम वेतन था।

इसमें समस्या यह थी कि 1995 में सेवानिवृत्त हुए एक लेफ्टिनेंट जनरल को 2006 के बाद सेवानिवृत्त होने वाले कर्नल की तुलना में लगभग 10% कम पेंशन प्राप्त होगी, भले ही उनकी सेवा की अवधि समान हो।

एक अन्य उदाहरण लेने के लिए, 1995 में सेवानिवृत्त होने वाले एक जवान को 2006 के बाद सेवानिवृत्त हुए अपने समकक्ष की तुलना में लगभग 80% कम पेंशन मिलेगी।

पूर्व सैनिकों द्वारा ओआरओपी की मांग पेंशन में इस असमानता से छुटकारा पाने के लिए थी।

भले ही सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त कर्मियों की यह मांग कई दशकों से चल रही है, राजनीतिक दलों द्वारा इसे अपने चुनाव घोषणापत्र में शामिल करने के कारण यह विषय मुख्यधारा में आ गया और मीडिया में इसे लेकर लंबे समय तक बहस हुई। 

‘वन रैंक वन पेंशन’ (OROP) नीति से जुड़े तथ्य –

‘वन रैंक, वन पेंशन’ (OROP) का मतलब सेवानिवृत्त होने की तारीख से इतर समान रैंक पर सेवानिवृत्त हुए और समान अवधि के लिए सेवा देने वाले सशस्त्र सैन्यकर्मियों को समान पेंशन दी जाएगी। 

इस नीति (वन रैंक, वन पेंशन’) के लागू होने से पहले से पहले, पूर्व सैनिकों को वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर पेंशन प्राप्त होती थी।

जो सशस्त्र बल कर्मी 30 जून, 2014 तक सेवानिवृत्त हुए हैं, वो सभी इस नीति के दायरे में आते हैं।

वन रैंक, वन पेंशन नीति का कार्यान्वयन भगत सिंह कोश्यारी की अध्यक्षता में गठित 10 सदस्यीय सर्वदलीय संसदीय पैनल, जिसे कोश्यारी समिति के नाम से जाना जाता है, की सिफारिश पर आधारित था।

नोट – वन रैंक, वन पेंशन नीति के लाभार्थियों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश और पंजाब में  है।

नोट: यूपूीएससी 2023 परीक्षा की तैयारी करने वाले उम्मीदवार खुद को नवीनतम UPSC Current Affairs in Hindi से अपडेट रखने के लिए BYJU’S के साथ जुडें, यहां हम प्रमुख जानकारियों को आसान तरीकों से समझाते हैं।

वन रैंक, वन पेंशन नीति के पक्ष में तर्क

नीचे वन रैंक, वन पेंशन नीति के पक्ष में दिए गए तर्कों पर चर्चा की जा रही है।

प्रत्येक वेतन आयोग के साथ, वर्तमान और पिछले पेंशनभोगियों के पेंशन के बीच का अंतर व्यापक हो गया है। दिग्गजों का तर्क है कि यह न्याय, इक्विटी, सम्मान और राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है। इसलिए इस पर तुरंत ध्यान दिया जाना चाहिए।

सुरक्षा विशेषज्ञों का तर्क था कि समकक्षों की तुलना में कम वेतन की स्थिति से सैन्य कर्मियों का मनोबल कम होता है। इसका असर सेवारत अधिकारियों और जवानों पर भी पड़ेगा।

सशस्त्र बलों के कर्मियों का आमतौर पर छोटा करियर होता है क्योंकि लगभग 80% सैनिक अनिवार्य रूप से 35 और 37 वर्ष की आयु के बीच सेवानिवृत्त हो जाते हैं। और, लगभग 12% सैनिक 40 से 54 वर्ष के बीच सेवानिवृत्त होते हैं। इसका मतलब है कि वे नागरिकों के मामले में सामान्य 60 साल की तुलना में बहुत कम उम्र में सेवानिवृत्त होते हैं। इसलिए, एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए सैन्य कर्मियों के लिए पर्याप्त धन और सरकार के सहयोग की आवश्यकता होती है।

वन रैंक, वन पेंशन नीति को युवा लोगों के लिए सशस्त्र बलों को करियर का एक आकर्षक विकल्प बनाने के संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए। यह योजना युवाओं को निजी उद्यमों और अन्य नागरिक सरकारी नौकरियों में लुभाने से रोकने में अहम भूमिका निभा सकती है।

इस योजना के पक्ष में एक अन्य तर्क यह भी है कि यह सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर देने वाले सशस्त्र बलों के जवानों और उनके परिवारों को समाज में अच्छा जीवन जीने के लिए आवश्यता की सभी चीजें उपलब्ध कराई जाए।

नोट: UPSC 2023 परीक्षा नजदीक आ रही है, इसलिए आप अपनी तैयारी को बढ़ाने के लिए BYJU’S के The Hindu Newspaper के दैनिक वीडियो विश्लेषण का उपयोग करें।

वन रैंक, वन पेंशन नीति अपनाने में देरी क्यों?

इस योजना के कार्यान्वयन से राजकोष पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा। इस योजना के क्रियान्वयन से वार्षिक वित्तीय बोझ 8000 से 10000 करोड़ के बीच रहने की उम्मीद है। और यह राशि वेतन के हर संशोधन के साथ बढ़ती जाएगी।

कुछ लोगों का तर्क है कि सैनिकों की नागरिकों के साथ तुलना सही नहीं है क्योंकि सशस्त्र बलों को कई अन्य भत्ते और सुविधाएं मिलती हैं जो नागरिकों को नहीं दिए जाते हैं। उन्हें सेना के समर्पित स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, रियायती भोजन और पेय पदार्थ, विश्वविद्यालयों और स्कूलों में बच्चों के लिए कोटा आदि मिलते हैं, जिसके समकक्ष नागरिकों को कुछ भी नहीं दिया जाता है।

सैनिकों के लिए वन रैंक, वन पैंशन नीति लागू होने के बाद इसी तरह की मांग अन्य अर्धसैनिक बलों जैसे सीएपीएफ, असम राइफल्स, एसएसबी आदि द्वारा भी की जा सकती है। पुलिस बलों ने भी इसी तरह की मांग करना शुरू कर दिया है क्योंकि उनकी सेवा की शर्तें भी अक्सर कठिन होती हैं।

दशकों पुराने अभिलेखों के अभाव में इस योजना का क्रियान्वयन एक प्रशासनिक चुनौती भी हो सकती है।

नोट – UPSC प्रीलिम्स और IAS परीक्षा 2023 की तैयारी करने वाले छात्रों को वन रैंक वन पेंशन और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों के बारें में अवश्य जानना चाहिए। 

वन रैंक वन पेंशन मुद्दे की शुरुआत

आजादी के बाद से सशस्त्र बलों के लिए पेंशन तय करने का मॉडल 26 वर्षों तक ‘वन रैंक वन पेंशन’ मॉडल रहा है। 

लेकिन बाद में साल 1973 में, इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार ने ‘वन रैंक वन पेंशन’ मॉडल को समाप्त कर दिया था।

इसके साथ ही, तीसरे वेतन आयोग ने नागरिकों की पेंशन में वृद्धि करते हुए सैनिकों की पेंशन कम कर दी थी।

बाद में साल 1986 में, राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने चौथे वेतन आयोग के मद्देनजर रैंक वेतन योजना लागू की। इसने सेना में सात अधिकारी रैंकों (और नौसेना और वायु सेना में उनके समकक्ष) के मूल वेतन को रैंक वेतन के रूप में निर्दिष्ट निश्चित राशि से कम कर दिया था।

इससे साल 1986 और इसके बाद के वर्षों में सशस्त्र बलों के कई कर्मियों के लिए पेंशन कम हो गई। इसके अलावा, इससे सशस्त्र बलों के अधिकारियों और भारतीय पुलिस बल (आईपीएस) में उनके समकक्ष अधिकारियों के वेतनमान में विषमता पैदा हो गई थी।

सरकार ने पूर्व सैनिकों की मांग पर विचार करते हुए कोश्यारी कमेटी का गठन किया। इसके बारे में नीचे जानकारी दी जा रही है –

  • यह समिति 10 सदस्यीय सर्वदलीय संसदीय पैनल थी।
  • इसकी अध्यक्षता भगत सिंह कोश्यारी ने की।
  • इस समिति ने साल 2011 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।

समिति ने पूर्व सैनिकों की ओआरओपी की मांग को स्वीकार कर लिया और कहा कि समान रैंक की समान अवधि की सेवा के लिए समान पेंशन का भुगतान किया जाना चाहिए, भले ही सेवानिवृत्ति की तारीख कुछ भी हो। साथ ही, पेंशन दर में भविष्य में किसी भी तरह की वृद्धि को स्वचालित रूप से पिछले पेंशनभोगियों को दिया जाना चाहिए।

भगत सिंह कोश्यारी कमेटी की सिफारिशों के बाद साल 2014 में, केंद्र सरकार ने ओआरओपी योजना के कार्यान्वयन का आदेश पारित किया था।

‘वन रैंक वन पेंशन’ नीति की वर्तमान स्थिति

  • सरकार के आदेशानुसार पूर्व पेंशनरों की पेंशन कैलेंडर वर्ष 2013 की पेंशन के आधार पर पुन: निर्धारित की जाएगी तथा यह लाभ जनवरी 2014 से प्रभावी होगा।
  • वर्ष 2013 में सेवानिवृत्त कार्मिकों (समान पद पर समान सेवाकाल में) के न्यूनतम एवं अधिकतम पेंशन के औसत के आधार पर पेंशन पुन: निर्धारित की जाएगी। औसत से ऊपर आहरित करने वाले कर्मियों की पेंशन बरकरार रहेगी।
  • हर पांच साल में पेंशन की समीक्षा की जाएगी।
  • स्वैच्छिक समयपूर्व सेवानिवृत्ति का विकल्प चुनने वाले कार्मिक ‘वन रैंक वन पेंशन’ योजना के लिए पात्र नहीं होंगे।
  • ‘वन रैंक वन पेंशन’ के कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाली किसी भी विसंगतियों को देखने के लिए सरकार ने एक सदस्यीय न्यायिक आयोग नियुक्त किया है।

भले ही इस योजना को शुरू हुए पांच साल हो गए हों, लेकिन पूर्व सैनिकों की अभी भी कुछ शिकायतें हैं, जिन्हें सरकार को पूरा करना है। 

  • पेंशन को अधिकतम और न्यूनतम पेंशन के औसत के रूप में तय करने के बजाय, पूर्व सैनिक चाहते हैं कि अधिकतम पेंशन पर विचार किया जाए।
  • वयोवृद्ध चाहते हैं कि न्यायिक आयोग एक बहु-सदस्यीय आयोग हो जिसमें पूर्व सैनिकों के साथ-साथ सशस्त्र बलों के सदस्यों को भी शामिल किया जाए ताकि वे समस्या की गंभीरता को समझ सकें।
  • पूर्व सैनिक भी चाहते हैं कि अजय विक्रम सिंह समिति (जिसने अधिकारियों की आयु प्रोफाइल में कमी की सिफारिश की थी) की सिफारिशों का हवाला देते हुए समय से पहले सेवानिवृत्ति लेने वालों के लिए भी ‘वन रैंक वन पेंशन’ नीति का विस्तार किया जाए।
  • हर पांच साल में समीक्षा के बजाय पूर्व सैनिक पेंशन की दर की हर साल समीक्षा करने की मांग करते हैं।

‘वन रैंक वन पेंशन’ नीति को लेकर आगे का रास्ता

कई पूर्व सैनिकों के लिए ‘वन रैंक, वन’ पेंशनएक बेहद भावनात्मक मुद्दा है। देश के सशस्त्र बलों और सरकार के बीच विश्वास बनाए रखने के लिए व्यवस्था और मांगों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन आवश्यक है। सरकार को कोई भी निर्णय लेते समय रक्षा कर्मियों के मनोबल और देश की वित्तीय स्थिति पर भी विचार करना चाहिए।

आईएएस परीक्षा 2023 की तैयारी करने वाले उम्मीदवार नीचे लिंक पर जाकर पाठ्यक्रम और अन्य महत्वपूर्ण विषयों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

यूपीएससी परीक्षा 2023 से संबंधित महत्वपूर्ण तैयारी सामग्री नीचे दिए गए लिंक्स के माध्यम से मिल जाएगी।

अन्य संबंधित लिंक्स :

Difference Between IAS And IPS in Hindi Daily News Analysis For UPSC in Hindi
UPSC History Optional Question Paper in Hindi PDF UPSC Political Science Optional Books in Hindi Medium
Shubham Kumar UPSC 2020 Biography in Hindi Deputy Speaker Of Lok Sabha in Hindi
Science And Technology Book For UPSC in Hindi Best Optional Subject For UPSC in Hindi Medium

 

 

Comments

Leave a Comment

Your Mobile number and Email id will not be published.

*

*