29 सितंबर 2022 : समाचार विश्लेषण
A.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: राजव्यवस्था:
C.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: आंतरिक सुरक्षा:
D.सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E.सम्पादकीय: आपदा प्रबंधन:
भूगोल:
अर्थव्यवस्था:
F. प्रीलिम्स तथ्य:
G.महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : |
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
केंद्र ने PFI और उसके सहयोगियों पर प्रतिबंध लगाया:
आंतरिक सुरक्षा:
विषय: आंतरिक सुरक्षा की चुनौती से निपटने हेतु संस्थागत ढांचा।
मुख्य परीक्षा: गैरकानूनी संगठनों की बहुआयामी चुनौतियाँ।
संदर्भ:
- केंद्र सरकार ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India (PFI)) और इसके छात्र विंग, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (Campus Front of India (CFI)) सहित इसके प्रमुख संगठनों को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (Unlawful Activities (Prevention) Act (UAPA)) के तहत एक “गैरकानूनी संघ” घोषित किया हैं।
परिचय:
- हाल ही में, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (National Investigation Agency) ने देश भर में कई स्थानों पर छापेमारी की और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India (PFI)) संगठन से जुड़े कम से कम 45 लोगों को गिरफ्तार किया हैं।
- 28 सितंबर, 2022 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस संगठन की नापाक गतिविधियों पर अंकुश लगाना आवश्यक समझ कर विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 के प्रावधानों के अंतर्गत पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और उसके सहयोगी संगठनों या संबद्ध संस्थाओं या अग्रणी संगठनों को “विधिविरुद्ध संगठन” घोषित कर दिया है,जिनमें रिहैब इंडिया फाउंडेशन (RIF), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (AIIC), नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स आर्गेनाइजेशन (NCHRO), नेशनल विमेंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन, केरल शामिल हैं।
- पीएफआई की राजनीतिक शाखा एसडीपीआई (Social Democratic Party of India) पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया हैं।
- मंत्रालय ने एक और आदेश जारी किया हैं,जिसमें राज्यों को पीएफआई और उसके प्रमुख संगठनों से जुड़े स्थानों को अधिसूचित करने का अधिकार दिया गया जहां गैरकानूनी गतिविधि हो रही थी।
प्रतिबंध के पीछे के कारण:
- गृह मंत्रालय ने पीएफआई पर यह दावा करते हुए प्रतिबंध लगा दिया कि यह संघठन और उसके सहयोगी “देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा” हैं और आईएसआईएस (ISIS) जैसे आतंकवादी संगठनों से जुड़ा है।
- उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात की राज्य सरकारों ने पहले ही पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी।
- पिछले कुछ वर्षों में देश भर में पीएफआई और उसके सहयोगियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ 1,400 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं।
- प्रवर्तन एजेंसियों का आरोप है कि पीएफआई का फंडिंग स्रोत भी संदिग्ध है ।
- जांच के दौरान आयकर विभाग ने पाया कि पीएफआई के 85 बैंक खातों में से 36 के संबंध में जमा खाताधारकों के संबंधित वित्तीय खाते सम्बंधित धारकों से मेल नहीं खाते है।
- केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, सिमी (Students Islamic Movement of IndiaSIMI) और जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (Jamaat-ul-Mujahideen Bangladesh (JMB)), जो दोनों गैरकानूनी संगठन हैं, के नेता पीएफआई के संस्थापक सदस्यों में शामिल हैं।
- कई अवसरों पर देखा गया की पीएफआई के इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (Islamic State of Iraq and Syria (ISIS)) जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध थे।
- मंत्रालय ने कहा कि पीएफआई के सहयोगी उनके एक हब के रूप में कार्य करने और गैरकानूनी गतिविधियों के लिए अपनी क्षमता को मजबूत करने के लिए सम्बंधित सहयोगियों तक सामूहिक पहुंच और धन उगाहने के साथ एक ‘हब और स्पोक’ (‘hub and spoke) के तौर पर कार्य करते हैं साथ ही यह इन सहयोगियों के माध्यम से यह ‘जड़ और केशिका’ (roots and capillaries) के रूप में कार्य करता हैं,जिसे पीएफआई पोषित और मजबूत करता है।
- गृह मंत्रालय ने कहा हैं कि “पीएफआई और उसके सहयोगी सामाजिक-आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक संगठनों के रूप में खुले तौर पर काम करते हैं, लेकिन वे समाज के एक विशिष्ट वर्ग को कट्टरपंथी बनाने के लिए एक गुप्त एजेंडा चला रहे हैं, तथा लोकतंत्र की अवधारणा को कमजोर करने के लिए काम कर रहे हैं साथ ही संवैधानिक सत्ता और देश के संवैधानिक ढांचे का अनादर कर रहे हैं।
UAPA के तहत इस ‘प्रतिबंध’ का क्या मतलब है?
- मंत्रालय अब मामले की सुनवाई के लिए यूएपीए (UAPA) के तहत एक न्यायाधिकरण का गठन करेगा।
- पीएफआई और उसके सहयोगियों को “गैरकानूनी संघ” घोषित करने से कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ऐसे संगठनों के परिसरों की तलाशी लेने, सदस्यों को गिरफ्तार करने, उनके खातों की जांच करने, संपत्ति जब्त करने और खातों को फ्रीज करने का अधिकार मिल जाता है।
- यूएपीए की धारा 7 सरकार को “गैरकानूनी संघ” द्वारा “धन के उपयोग पर रोक लगाने” की शक्ति देती है।
- यूएपीए की धारा 8 केंद्र को “किसी भी स्थान को अधिसूचित करने का अधिकार देती है, जो उसकी राय में इस तरह के गैरकानूनी उद्देश्य के लिए उपयोग किया जाता है”।
- “स्थान” (Place) में एक घर या एक इमारत या उसका एक हिस्सा या यहाँ तक कि एक तम्बू या एक जलयान भी शामिल है।
चुनौतियां:
- पीएफआई अपने सदस्यों का रिकॉर्ड नहीं रखता है,जिससे अधिकारियों के लिए पीएफआई सदस्यों की पहचान करना और उनके खिलाफ कार्रवाई करना चुनौतीपूर्ण हो जाता हैं।
- ये गुमनाम सदस्य एनआईए या अन्य एजेंसियों से बचने का काम करते हैं, कुछ महीनों या वर्षों बाद एक नए अवतार और एक नए संगठन में फिर शामिल हो जाते हैं। ठीक वैसा ही जैसा सिमी पर प्रतिबंध के बाद हुआ था।
- प्रौद्योगिकी की सहायता से, ये गैर-कानूनी समूह और उनके सदस्य अपने प्रचार और कट्टरता के प्रयासों को अंजाम देने के लिए गुप्त रूप से काम करते हैं।
- एनआईए और अन्य एजेंसियों के लिए इन सभी समूहों और उनके सदस्यों की ऑनलाइन गतिविधि, विशेष रूप से गुमनाम सदस्यों की गतिविधियों की निगरानी करना मुश्किल होता है
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर कानून:
राजव्यवस्था:
विषय: मौलिक अधिकार एवं न्यायिक सक्रियता।
मुख्य परीक्षा: ‘स्वतंत्र भाषण/अभिव्यक्ति का अधिकार’ पर उचित प्रतिबंध।
संदर्भ:
- सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में 15 नवंबर, 2022 को सार्वजनिक पदाधिकारियों की भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की सीमा से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई शुरू करने का फैसला किया हैं।
परिचय:
- हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की 5-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने संकेत दिया हैं कि भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध, मामला-दर-मामले के आधार पर निर्धारित किए जायेंगे।
- सरकारी मंत्रियों, सांसदों, विधायकों या राजनीतिक दल के अध्यक्षों सहित सार्वजनिक नेताओं को सार्वजनिक रूप से अपमानजनक और आहत करने वाले बयान देने से प्रतिबंधित करने के लिए “अदृश्य या अस्तित्वहीन होने की स्थिति” (thin air) में सामान्य दिशानिर्देश तैयार करना “मुश्किल” है।
पृष्ठ्भूमि:
- यह मामला बुलंदशहर बलात्कार कांड से जुड़ा है, जिसमें तत्कालीन उत्तर प्रदेश के राज्य मंत्री आजम खान ने घटना को ‘राजनीतिक साजिश और कुछ नहीं’ बताकर इस कृत्य को तुच्छ बताया था।
- इसके बाद बचे लोगों ने खान के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की थी।
- श्री खान को बिना शर्त माफी मांगने का निर्देश देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मामला राज्य के दायित्व एवं भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए गंभीर चिंता पैदा करता है,जिसे एक संविधान पीठ को संदर्भित किया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय का अवलोकन:
- सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर “उचित प्रतिबंध” पहले से ही संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत लगाए गए हैं।
- और क्या यह न्यायालय की ओर से सही था कि वह अनुच्छेद 19(2) के तहत पहले से ही लगाए गए प्रतिबंधों के अलावा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक और कानून बनाए।
- सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि संविधान अनुच्छेद 19 (2) में उल्लिखित लोगों के अतिरिक्त भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति नहीं देता है।
- सॉलिसिटर जनरल श्री तुषार मेहता ने स्वीकार किया कि सार्वजनिक भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध की सीमा आम व्यक्ति के कार्यों की तुलना में बहुत अधिक होगी,लेकिन उन्होंने चिंता व्यक्त की कि संविधान के अनुच्छेद 19 (2) में उल्लिखित प्रतिबंधों से परे इस तरह के प्रतिबंधों की रूपरेखा को न्यायिक रूप से परिभाषित करना उचित नहीं होगा।
भावी कदम:
- लोगों के खिलाफ एक सार्वजनिक पदाधिकारी द्वारा बार-बार उल्लंघन के खिलाफ अन्य उपाय उपलब्ध हैं जैसे दीवानी / आपराधिक निषेधाज्ञा, अपकार, सामान्य कानून आदि।
- विदेशी क्षेत्राधिकार सार्वजनिक पदाधिकारियों के लिए “स्व-नियमन” दिशानिर्देशों का पालन करते हैं, इस तथ्य के प्रति सचेत रहते हैं कि उनके शब्दों का एक सामान्य व्यक्ति की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
- भारत उस मॉडल को उधार ले सकता है और दिशानिर्देश निर्धारित कर सकता है कि “एक सार्वजनिक अधिकारी को सार्वजनिक रूप से कैसे व्यवहार करना चाहिए”।
- सुप्रीम कोर्ट इस सवाल की जांच करेगा की क्या अनुच्छेद 19 (2) के तहत अनुमेय के अलावा कोई प्रतिबंध, अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत गारंटीकृत अधिकार पर इस आधार पर लगाया जा सकता है कि ऐसा भाषण किसी व्यक्ति के किसी अन्य मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
दया याचिका (Mercy Petition):
राजव्यवस्था:
विषय: भारतीय संविधान में नियंत्रण और संतुलन के प्रावधान।
मुख्य परीक्षा: राष्ट्रपति और राज्यपालों की क्षमादान शक्तियाँ।
संदर्भ:
- सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिका पर फैसला करने में सरकार की ओर से देरी की आलोचना की हैं।
पृष्ठ्भूमि:
- पंजाब पुलिस के एक पूर्व कांस्टेबल,बलवंत सिंह राजोआना को पंजाब सिविल सचिवालय के बाहर विस्फोट में उसकी भूमिका के लिए दोषी ठहराया गया था, जिसने 31 अगस्त, 1995 को बेअंत सिंह की हत्या कर दी थी।
- बमबारी में सोलह अन्य लोग भी मारे गए थे। जुलाई 2007 में उन्हें दोषी ठहराने वाली एक विशेष अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुनाई और अक्टूबर 2010 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इसे बरकरार रखा।
- राजोआना ने 2012 में दया याचिका दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा की जा रही देरी:
- वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने गुरु नानक देव की 550 वीं जयंती के उपलक्ष्य में उसे जीवन दान देने का फैसला किया।
- सुप्रीम कोर्ट ने 2 महीने का समय समाप्त होने के बावजूद देरी पर नाराजगी व्यक्त करते हुए 28 सितंबर 2022 को केंद्र सरकार को राजोआना के दया अनुरोध के संबंध में हुई प्रगति को रिकॉर्ड करने के लिए दो दिन का समय दिया हैं।
- वर्ष 2021 में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपराध में खालिस्तानी तत्वों की संलिप्तता के आरोपों को उजागर करते हुए मामले में तथ्यों की गंभीरता की ओर विशेष रूप से अदालत का ध्यान आकर्षित किया था। उन्होंने कहा था कि अन्य सह-आरोपियों की अपील शीर्ष अदालत में लंबित है।
- अदालत ने कहा था कि यह कानून तय हो गया है कि जब एक बार सरकार किसी व्यक्ति के लिए राष्ट्रपति की क्षमा की सिफारिश करने का फैसला करती हैं तो संविधान के अनुच्छेद 72 (राष्ट्रपति क्षमादान) के तहत उसके सह-अभियुक्तों की सर्वोच्च न्यायालय में लंबित अपील पर प्रक्रिया शुरू करने में देरी नहीं कर सकती हैं।
दया याचिका से सम्बंधित तथ्य:
- राष्ट्रपति के लिए दया याचिका (Mercy petition) अंतिम संवैधानिक उपाय है जिसे एक अपराधी तब ले सकता है जब उसे अदालत द्वारा सजा सुनाई जाती है।
- यह प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत किया गया है।
- इसी तरह, भारत के संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्यों के राज्यपालों को क्षमादान देने की शक्ति प्रदान की गई है।
- इससे पहले राज्यपाल के पास मौत की सजा को माफ करने की शक्ति नहीं थी। लेकिन 3 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने माना कि किसी राज्य के राज्यपाल कैदियों को क्षमा कर सकते हैं, जिनमें मृत्युदंड भी शामिल है, लेकिन जरूरी नहीं हैं की दया याचिका वाले कैदियों ने 14 साल की जेल की सजा काटी हों,वे उससे पहले भी याचिका दायर कर सकते हैं।
- क्षमा करने की राज्यपाल की शक्ति के बारे में हालिया निर्णय दंड प्रक्रिया संहिता (धारा 433 ए) के एक प्रावधान की अवहेलना करता है जो कहता है कि कैदी की सजा केवल 14 साल की जेल के बाद ही माफ की जा सकती है।
- राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों को केंद्र और राज्य सरकार की सलाह पर कार्य करना आवश्यक है। वे अनुच्छेद 72 और 161 के तहत अपनी शक्तियों के संबंध में अपने विवेक का प्रयोग नहीं कर सकते।
- राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार दया याचिका को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है।
- हालाँकि संविधान में दया याचिका को स्वीकार/अस्वीकार करने की समय सीमा का उल्लेख नहीं है।
- राष्ट्रपति की क्षमा/अस्वीकृति/विलंब भी न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
सारांश:
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- राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति पर अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Pardoning Power of the President
संपादकीय-द हिन्दू
सम्पादकीय:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 से संबंधित:
आपदा प्रबंधन:
प्रकृति की चेतावनी के संकेतों में, निचले तटवर्ती राज्यों के लिए एक कुहनी से हलका धक्का:
विषय: आपदा और आपदा प्रबंधन
मुख्य परीक्षा: बाढ़ का प्रभाव, बाढ़ के शमन से संबंधित प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय कानून और तटवर्ती राज्यों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता।
संदर्भ
दुनिया भर में बाढ़ की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर, इस लेख में सभी तटवर्ती राज्यों को एक साथ आने और इस मुद्दे का समाधान करने की आवश्यकता के बारे में बात की गई है।
पृष्ठभूमि
- हाल के दिनों में दुनिया भर में बाढ़ की तीव्रता में वृद्धि हुई है।
- हाल ही में आई बाढ़ के कारण, पाकिस्तान का लगभग एक तिहाई हिस्सा तबाह हो गया और संक्रामक रोगों के प्रसार और पीने योग्य पानी की भारी कमी हो गई है।
- जून 2022 में, असम राज्य में इतिहास की सबसे भीषण बाढ़ आई थी क्योंकि इसने राज्य के लगभग 30 जिलों को प्रभावित किया था
- इसके अतिरिक्त, असम और बिहार के कुछ हिस्सों में बार-बार बाढ़ आती है जो गरीबी उन्मूलन और सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों को प्राप्त में एक बाधा है।
- बाढ़ को दुनिया भर में एक प्राकृतिक घटना माना जाता है जिसे पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता है। हालांकि, तटवर्ती राज्यों के बीच जल विज्ञान संबंधी सूचनाओं को साझा करने में पारदर्शिता की कमी के कारण बाढ़ का प्रभाव बढ़ गया है।
- इसके अलावा, एक नदी तट राज्य द्वारा किय गए उपायों की जानकारी साझा करने का भी अभाव है।
भारत में बाढ़ के बारे में अधिक पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें –
https://byjus.com/free-ias-prep/flooding-in-india/
वर्तमान अंतरराष्ट्रीय कानून
- पारंपरिक अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार, “किसी भी राज्य को अपने क्षेत्र का उपयोग इस तरह से नहीं करना चाहिए जिससे साझा प्राकृतिक संसाधन के उपयोग से दूसरे राज्य को नुकसान हो।”
- यह सभी राज्यों का एक बाध्यकारी दायित्व है कि वे इस तरह से पानी न छोड़ें कि यह अन्य राज्यों में बाढ़ का कारण बने।
- यह दायित्व अन्य सम्मेलनों के लिए एक आधार के रूप में कार्य करता है जो बाढ़ के प्रबंधन को नियंत्रित करते है जैसे कि नियोजित उपायों की अधिसूचना, महत्वपूर्ण सूचनाओं का आदान-प्रदान, और सार्वजनिक भागीदारी में भी सहयोग करते है।
- उरुग्वे नदी पर पल्प मिल्स मामले, 2010 (अर्जेंटीना बनाम उरुग्वे) में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) ने इस बात को बरकरार रखा कि साझा जलकुंड पर परियोजनाओं का एक ट्रांसबाउंडरी एनवायर्नमेंटल इम्पैक्ट असेसमेंट (TEIA) करना प्रथागत अंतरराष्ट्रीय कानून का हिस्सा है।
- ICJ ने यह भी माना कि कार्यवाहक राज्य को प्रभावित पक्षों को TEIA के परिणामों के बारे में सूचित करना चाहिए ताकि सभी पक्ष यह सुनिश्चित करने की प्रक्रिया में भाग लें कि मूल्यांकन पूरा हो गया है, और परियोजना पर पूरी जानकारी के साथ विचार किया जा सके।
ब्रह्मपुत्र की बाढ़ और उससे जुड़ी चिंताएं
- ब्रह्मपुत्र नदी के मामले में, चीन एक ऊपरी तटवर्ती राज्य है और भारत व बांग्लादेश जैसे देश निचले तटवर्ती राज्यों हैं।
- माना जाता है कि चीन निचले तटवर्ती राज्यों की तुलना में कुछ हद तक फायदे में है।
- मानसून के मौसम के दौरान, असम और भारत के अन्य पूर्वोत्तर भागों में पिछले कई वर्षों से बाढ़ की समस्या बार-बार आती रही है।
- चीन द्वारा बड़े पैमाने पर बांधों के निर्माण के कारण भारत और बांग्लादेश जैसे निचले तटवर्ती राज्य बाढ़ का सामना कर रहे हैं।
- चीन के बांधों से पानी की अत्यधिक रिहाई जो पारंपरिक अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के खिलाफ है, भविष्य में भारत के कुछ हिस्सों में बाढ़ के प्रभाव को बढ़ाने की क्षमता रखती है।
- भारत की प्रमुख चिंता यह है कि ब्रह्मपुत्र के जल प्रबंधन के मुद्दे से निपटने के लिए कोई व्यापक उप-बेसिन या बेसिन-स्तरीय विनियमन या कानून नहीं है।
- इसके अलावा, भारत और चीन दोनों अंतर्राष्ट्रीय जलमार्गों के गैर-नौपरिवहन उपयोग (UNWC) 1997 के कानून और संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग यूरोप (UNECE) पर सीमावर्ती जलमार्गों और अंतर्राष्ट्रीय झीलों के संरक्षण और उपयोग 1992 ,जिसे जल सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है, के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का हिस्सा नहीं हैं।
- UNWC के अनुच्छेद 27 में कहा गया है कि “वाटरकोर्स स्टेट्स, व्यक्तिगत रूप से और, संयुक्त रूप से, उन स्थितियों को रोकने के लिए सभी उचित उपाय करेंगे, जो अन्य वाटरकोर्स राज्यों के लिए हानिकारक हो सकते हैं, चाहे वह प्राकृतिक कारणों या मानव आचरण, जैसे बाढ़ या बर्फ की स्थिति, जल जनित रोग, गाद, कटाव, खारे पानी की घुसपैठ, सूखा या मरुस्थलीकरण ” से उत्पन्न हो।
- इसके अलावा, भारत और चीन दोनों अंतर्राष्ट्रीय जलमार्गों के गैर-नौपरिवहन उपयोग (UNWC) 1997 के कानून और संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग यूरोप (UNECE) पर सीमावर्ती जलमार्गों और अंतर्राष्ट्रीय झीलों के संरक्षण और उपयोग 1992 ,जिसे जल सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है, के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का हिस्सा नहीं हैं।
- चूंकि कोई विनियमन या कानून नहीं है, भारत पूरी तरह से समझौता ज्ञापन (MoU) पर निर्भर है, जिस पर उसने चीन के साथ 2013 में बाढ़ के मौसम यानी जून से सितंबर के दौरान हाइड्रोलॉजिकल जानकारी साझा करने के उद्देश्य से हस्ताक्षर किए थे।
- हालाँकि, यह समझौता भारत को नदी बेसिन के चीनी किनारे पर शहरीकरण और वनों की कटाई के उपायों तक पहुँच की अनुमति नहीं देता है।
- इससे भारत के लिए UNWC या जल सम्मेलन का हिस्सा बनना महत्वपूर्ण हो जाता है जो भारत को ब्रह्मपुत्र पर एक द्विपक्षीय संधि करने में मदद कर सकता है और साथ ही ,भारत के लिए यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि विवाद निपटान तंत्र प्रावधान को सम्मिलित करने की कोई बाध्यता नहीं है।
भारत और नेपाल के बीच बाढ़ का मामला
- भारत और नेपाल की सांझी नदियों कोशी और गंडक में बार -बार बाढ़ आती है।
- बाढ़ की आवृत्ति हाल के दिनों में बढ़ी हुई मौसमी वर्षा और ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियरों के पिघलने और नेपाल (तराई) और बिहार की नदी घाटियों में भूमि उपयोग और भूमि कवर पैटर्न में परिवर्तन जैसे मानव-प्रेरित कारकों के कारण बढ़ी है।
- दोनों तटवर्ती राज्यों के लिए यह महसूस करना आवश्यक है कि नदी घाटियां एकल संस्थाएं हैं, जो बाढ़ जोखिम प्रबंधन में सुधार के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को सक्षम करने में मदद करती हैं।
- इस संदर्भ में, भारत-नेपाल कोशी समझौता 1954, जिसे 1966 में संशोधित किया गया था, का उद्देश्य बाढ़ के प्रभाव को कम करना था और संधि-आधारित संयुक्त निकायों ने बाढ़ पूर्वानुमान के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को परिष्कृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- हालाँकि, भारत अभी भी सीमा पार नदियों की जानकारी को वर्गीकृत जानकारी के रूप में मानता है, जो सीमा पार बाढ़ चेतावनी प्रणाली को मजबूत करने में एक प्रमुख बाधा बन गई है।
भारत-नेपाल बाढ़ प्रबंधन के बारे में और अधिक पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें –
https://byjus.com/free-ias-prep/upsc-exam-comprehensive-news-analysis-aug06-2021/
सारांश: जलवायु परिवर्तन और मानव-प्रेरित कारकों के कारण दुनिया भर में प्रलयकारी बाढ़ की बढ़ती घटनाओं के खिलाफ, सभी निचले तटवर्ती राज्यों का एक साथ आना और बाढ़ के प्रभाव को कम करने के लिए मानदंडों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। |
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-1 से संबंधित:
भूगोल:
बंगाल की खाड़ी को फिर से खोजना:
विषय: भौगोलिक विशेषताएं, स्थान-महत्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताओं में परिवर्तन और ऐसे परिवर्तनों के प्रभाव।
मुख्य परीक्षा: बंगाल की खाड़ी और CBS का महत्व, क्षेत्र में मौजूदा चुनौतियां और भावी कदम।
संदर्भ
इस लेख में बंगाल की खाड़ी के बढ़ते महत्व, इससे जुड़ी विभिन्न चुनौतियों और सेंटर फॉर बे ऑफ बंगाल स्टडीज (CBS) की भूमिका पर चर्चा की गई है।
बंगाल की खाड़ी का महत्व
चित्र स्रोत: WorldAtlas
- व्यापार और वाणिज्य: बंगाल की खाड़ी प्राचीन काल से हिंद महासागर क्षेत्र में व्यापार और वाणिज्य का एक प्रमुख केंद्र रही है।
- बंगाल की खाड़ी ने न केवल व्यापार के लिए बल्कि संस्कृति के आदान-प्रदान के लिए भी पूर्व और पश्चिम के बीच एक चैनल के रूप में काम किया है।
- भू-आर्थिक और भू-राजनीति: इंडो-पैसिफिक और एशिया पर वैश्विक आर्थिक और सैन्य शक्ति के बढ़ते फोकस, पुनर्रचना और पुनर्संरेखण ने बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के महत्व को और बढ़ा दिया है।
- आर्थिक महत्व: बंगाल की खाड़ी में संचार के प्रमुख समुद्री मार्ग हैं जो वैश्विक आर्थिक सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं और इस क्षेत्र के कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं को गति प्रदान करते हैं।
- समुद्री क्षेत्र: बंगाल की खाड़ी में समुद्री और ऊर्जा संसाधनों के पर्यावरण के अनुकूल अन्वेषण में अधिक क्षेत्रीय सहयोग की विशाल संभावना है।
- यह क्षेत्र एक जैवविविध समुद्री वातावरण और अद्वितीय भूवैज्ञानिक विशेषताओं का घर है क्योंकि यह आंशिक रूप से समुद्र से संलग्न है।
- बंगाल की खाड़ी को दुनिया की कुछ सबसे बड़ी और सबसे महत्वपूर्ण नदियों से भी पानी मिलता है।
- कई दुर्लभ और लुप्तप्राय समुद्री प्रजातियां और मैंग्रोव, जो पारिस्थितिकी के संरक्षण और विशेष रूप से मछली पकड़ने के क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं, इस क्षेत्र में पाए जाते हैं।
बंगाल की खाड़ी का अध्ययन केंद्र (CBS)
- भारत के प्रधान मंत्री ने 2018 में चौथे बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान नालंदा विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर बंगाल स्टडीज (CBS) की स्थापना की घोषणा की।
- CBS बंगाल की खाड़ी क्षेत्र की कुल क्षमता को अनलॉक करने के उद्देश्य से भू-अर्थशास्त्र, भू-राजनीति, पारिस्थितिकी, व्यापार और कनेक्टिविटी, समुद्री सुरक्षा, सांस्कृतिक विरासत और नीली अर्थव्यवस्था सहित कई क्षेत्रों में सहयोग के द्वार खोलती है।
- CBS समुद्री जुड़ाव के लिए भारत के समग्र ढांचे को मजबूत करने में भी मदद करेगा जो निकट समुद्री संबंधों को आगे बढ़ाकर सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
- CBS की स्थापना ने इस क्षेत्र में साझा हित वाले सभी लोगों के लिए सहयोग को बढ़ावा देने और मंच स्थापित करके रचनात्मक एजेंडा को बढ़ावा देने की भारत की प्रतिबद्धता को भी प्रदर्शित किया है।
बंगाल की खाड़ी क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियाँ
- गैर-परंपरागत खतरे जैसे आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाली चुनौतियाँ बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में अधिक हैं।
- इसके अलावा, इस क्षेत्र के समुद्री वातावरण में तेजी से परिवर्तन हुआ है क्योंकि प्रमुख शक्तियों ने इस क्षेत्र पर अपने आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाया है।
- इस क्षेत्र में राजनीतिक और सांस्कृतिक जुड़ाव के साथ-साथ देशों के बीच आर्थिक प्रतिस्पर्धा ने नए आयाम स्थापित हुए हैं।
- व्यापक शोषण के कारण क्षेत्र में संकटग्रस्त प्रजातियों के बड़े पैमाने पर विलुप्त होने का कारण बन रहा है जिसका क्षेत्र की जैव विविधता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
- जलवायु परिवर्तन के कारण जनसंख्या वृद्धि, भूमि उपयोग पैटर्न में परिवर्तन, संसाधनों का अत्यधिक दोहन, पानी का लवणीकरण और समुद्र के स्तर में वृद्धि जैसी चुनौतियां क्षेत्र के पर्यावरण पर अधिक दबाव डाल रही हैं।
- इसके अलावा, हाल के दिनों में, छोटे और मध्यम फीडर जहाजों से परिचालन निर्वहन, शिपिंग टकराव, अनजाने में तेल रिसाव, औद्योगिक अपशिष्ट प्रदूषण और गैर-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक कचरे के संचय जैसी नई चुनौतियां भी इस क्षेत्र में संकट को बढ़ा रही हैं।
- उपर्युक्त सभी कारणों से क्षेत्र में एक मृत क्षेत्र का निर्माण हुआ हैजिससे क्षेत्र में मैंग्रोव पेड़ो जो विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं जैसे चक्रवात और सूनामी से रक्षा करते हैं ,को नुक्सान पहुँच रहा है।
भावी कदम
- विभिन्न मौजूदा चुनौतियों को समझने और क्षेत्र के सतत विकास को सुनिश्चित करने के लिए रणनीति व केंद्रित और अंतःविषय अध्ययन करने के लिए CBS जैसे प्लेटफॉर्म स्थापित करने की आवश्यकता है।
- सभी पड़ोसी देशों को कौशल-निर्माण, अनुसंधान और प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के लिए धन जुटाना चाहिए।
- इसके अलावा, पड़ोसी देशों के लिए एक साथ आना, साझेदारी विकसित करना और सहयोग करना महत्वपूर्ण है क्योंकि समुद्री क्षेत्र परस्पर संबंधित, अन्योन्याश्रित और प्रकृति में अंतरराष्ट्रीय है जिसके लिए विविध सरकारों और संगठनों की भागीदारी की आवश्यकता होती है।
- समुद्री सुरक्षा और संपर्क और अवैध रूप से मछली पकड़ने से संबंधित मुद्दों को तुरंत संबोधित करने की आवश्यकता है।
- इसके अलावा, समुद्री संपर्क क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने और सभी हितधारकों के बीच डेटा साझाकरण को मानकीकृत करने की आवश्यकता है।
- क्षेत्रीय समुद्री संस्थाओं को राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न अवसरों और लक्ष्यों को संतुलित करने की दिशा में काम करना चाहिए।
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 से संबंधित:
अर्थव्यवस्था:
स्वचालन ने बैंकों में निचले स्तर की नौकरियों को प्रभावित किया है:
विषय:भारतीय अर्थव्यवस्था और रोजगार से संबंधित मुद्दे।
मुख्य परीक्षा: बैंकिंग क्षेत्र में भर्ती पर आधुनिक तकनीकों का प्रभाव।
संदर्भ
हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रमुखों से बैंकों में कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने की योजना बनाने को कहा है।
विवरण
- विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, हाल के वर्षों में बैंकों में लिपिक पदों की रिक्तियों में काफी कमी आई है।
- अध्ययनों से यह भी संकेत मिलता है कि बैंक नौकरियों के प्रति रुचि में कमी आई है।
- मार्च 2022 में, अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ ने कर्मचारियों की भर्ती में वृद्धि की मांग करते हुए हड़ताल की।
- हड़तालें और रिपोर्टें साबित करती हैं कि देश के बैंकों में कर्मचारियों की कमी है और यह प्रवृत्ति सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) के साथ-साथ निजी क्षेत्र के बैंकों (PVBs) दोनों में है।
जनशक्ति में कमी के कारण
अध्ययनों से पता चलता है कि ATMs और ऑनलाइन और मोबाइल लेनदेन के उपयोग में वृद्धि के परिणामस्वरूप बैंक शाखाओं की संख्या में कमी आई है जिससे लिपिक कर्मचारियों की संख्या कम हो गई है।
- चार्ट 1A PSBs और PVBs में कर्मचारियों की भर्ती के बदलते रुझानों के बारे में एक विचार प्रदान करता है।
- चार्ट 1B PSBs के प्रत्येक कार्यकारी कार्यालय में कार्यरत अधिकारियों, क्लर्कों और उप-स्टाफ की संख्या में कमी को दर्शाता है।
- चार्ट 1c PVB में क्लर्कों और उप-स्टाफ के बीच गिरावट की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
- चार्ट 1b और 1c साबित करते हैं कि अधिकारियों की संख्या स्थिर बनी हुई है। हालांकि, यह उच्च अधिकारी अनुपात लिपिक और अधिकारी पदों के बीच असमानता पैदा कर रहा है।
- चार्ट 2A PSBs और PVBs में डेबिट कार्ड का उपयोग करके ATM से निकासी की संख्या को दर्शाता है।
- 2020 में कोविड-19 महामारी के प्रकोप के बाद ATM से निकासी के बढ़ते उपयोग से बैंक निकासी में तेज गिरावट आई है।
- हालांकि, महामारी के बाद भी निकासी पूर्व-महामारी के स्तर तक पहुंचने में विफल रही है।
- ATM के माध्यम से निकासी की संख्या में कमी का कारण चार्ट 2B के साथ समझाया जा सकता है जो दर्शाता है कि महामारी के दौरान अन्य प्रकार के ऑनलाइन लेनदेन में वृद्धि के साथ-साथ UPI लेनदेन में कई गुना वृद्धि हुई है।
- चार्ट 2C 2016 के बाद PSB और PVB दोनों के बीच खोली गई नई बैंक शाखाओं की संख्या में कमी को दर्शाया गया है।
सारांश:
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प्रीलिम्स तथ्य:
1.बांधवगढ़ बाघ अभ्यारण में बौद्ध गुफाएं:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित:
विषय: कला एवं संस्कृतिव बौद्ध धर्म।
प्रारंभिक परीक्षा: बौद्ध गुफा वास्तुकला।
संदर्भ:
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ( Archaeological Survey of India (ASI) ) ने इस साल की शुरुआत में मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ बाघ अभ्यारण/टाइगर रिजर्व में बौद्ध गुफाओं, स्तूपों और हिंदू मंदिरों की खोज की थी।
मुख्य विवरण:
- एएसआई (ASI) ने 26 बौद्ध गुफाओं एवं स्तूपों और ब्राह्मी शिलालेखों की खोज की, जो दूसरी शताब्दी के हैं और 9वीं-11वीं शताब्दी के हिंदू मंदिर भी हैं, संभवतः दुनिया की सबसे बड़ी वराह मूर्तिकला भी इसी अवधि की है।
- वराह की मूर्ति एएसआई द्वारा खोजी गई भगवान विष्णु के 10 अवतारों की कई अखंड मूर्तियों में से एक है।
Image Source: Indian Express
- यहां 1938 से 84 साल के बाद पहली बार इस तरह की खोज हुई है ।
- गुफाओं और उनके कुछ अवशेषों में महायान बौद्ध स्थलों के विशिष्ट चैत्य [गोल] दरवाजे और पत्थर के बिस्तर हैं ।
- एएसआई (ASI) को ब्राह्मी लिपि में 24 शिलालेख भी मिले, जो सभी दूसरी से पांचवीं शताब्दी के हैं।
- शिलालेखों में मथुरा (Mathura ),कौशाम्बी (Kaushambi), पावता (Pavata), वेजबरदा (Vejabharada) और सपतनैरिका (Sapatanaairikaa) जैसे स्थलों का उल्लेख है।
- शिलालेखों में भीमसेना (Bhimsena), पोथासिरी (Pothasiri) और भट्टदेव (Bhattadeva) जैसे राजाओं का भी उल्लेख है।
- 26 मंदिरों के अवशेष 9वीं और 11वीं शताब्दी के कलचुरी काल के हैं। इसके अलावा, दो शैव मठों का भी दस्तावेजीकरण किया गया है।
- कलचुरी राजवंश, जो गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में फैला है, सबसे पुराने एलोरा और एलीफेंटा गुफा (Elephanta cave ) स्मारकों से भी जुड़ा है।
- गुप्त काल (Gupta period) के कुछ अवशेष, जैसे दरवाजे की चौखट और गुफाओं में नक्काशी भी मिले हैं।
- भारत में बौद्ध और जैन वास्तुकला के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Buddhist and Jain Architecture in India
महत्वपूर्ण तथ्य:
1. भारत के राष्ट्रीय खेल 2022:
- वर्ष 2022 के भारत के राष्ट्रीय खेलों का 36 वां संस्करण आयोजित किया जा रहा हैं जो 29 सितंबर से 12 अक्टूबर 2022 के बीच गुजरात के अहमदाबाद, गांधीनगर, सूरत, वडोदरा, राजकोट और भावनगर में आयोजित किये जाएंगे।
- राष्ट्रीय खेलों का आधिकारिक शुभंकर ‘सावज एशियाई शेर’ (Savaj the asiatic lion) है।
- इन खेलों का आधिकारिक आदर्श वाक्य “खेल के माध्यम से एकता का जश्न मनाना” (“Celebrating unity through sports”) है।
- वर्ष 2015 के केरल संस्करण और गोवा संस्करण के रद्द होने बाद, इन राष्ट्रीय खेलों का आयोजन सात वर्षों की लम्बी अवधि के बाद किया जा रहा हैं।
- 36 इकाइयों (राज्य और सेवा खेल नियंत्रण बोर्ड) के एथलीट 35 खेल प्रतियोगिताओं में प्रतिस्पर्धा करेंगे।
- स्वदेशी खेलों पर जोर देने के साथ इन राष्ट्रीय खेलों में मल्लखंभा और योगासन का भी खेल की प्रतियोगिता के तौर पर पदार्पण होगा।
- इस राष्ट्रीय खेलों का आयोजन लाहौर में वर्ष 1924 में भारतीय ओलंपिक खेलों के रूप में शुरू किया गया था, स्वतंत्रता पूर्व 12 संस्करणों में यह आयोजित किया गया था, जिसे राष्ट्रीय खेलों के रूप में फिर से शुरू किया गया था, जिसका पहला संस्करण वर्ष 1948 में लखनऊ में आयोजित किया गया था।
2. भारत का महान्यायवादी (Attorney General for India):
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता आर वेंकटरमणि (R Venkataramani) को हाल ही में 1 अक्टूबर, 2022 से तीन साल की अवधि के लिए भारत का महान्यायवादी/अटॉर्नी जनरल (Attorney General for India) के रूप में नियुक्त किया गया हैं।
- वह के के वेणुगोपाल का स्थान लेंगे, जिनका कार्यकाल 30 सितंबर 2022 को समाप्त होगा।
- भारतीय संविधान के भाग-V के तहत संविधान का अनुच्छेद 76 भारत के महान्यायवादी से संबंधित है।
- भारत के महान्यायवादी के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए: Attorney General for India
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. भारत के महान्यायवादी के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर-सरल)
- भारत का महान्यायवादी (AG) संघ की कार्यकारिणी का एक अंग है।
- भारत के महान्यायवादी को हटाने की प्रक्रिया और आधार का संविधान में कोई उल्लेख नहीं है।
- भारत का महान्यायवादी निजी तौर पर वकालत नहीं कर सकता है।
उपर्युक्त कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1
(c) केवल 2 और 3
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: भारत का महान्यायवादी (AG) संघ की कार्यकारिणी का एक अंग है। वह देश का सर्वोच्च कानून अधिकारी होता हैं। वह भारतीय क्षेत्र में किसी भी अदालत की कार्यवाही में भाग ले सकता है।
- कथन 2 सही है: भारत के महान्यायवादी के कार्यकाल की अवधि निश्चित नहीं है। भारत के संविधान में अटॉर्नी जनरल के किसी निर्दिष्ट कार्यकाल का भी उल्लेख नहीं किया गया है। इसी तरह, संविधान में भी उन्हें हटाने की प्रक्रिया और आधार का उल्लेख नहीं है।
- कथन 3 गलत है: उन्हें सरकारी सेवक नहीं माना जाता है। वह निजी तौर पर भी वकालत कर सकते है अतः उन्हें निजी कानूनी अभ्यास से वंचित नहीं किया गया है।
प्रश्न 2. भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर-सरल)
- जब यह अनुसूची भारतीय संविधान का हिस्सा बनी तब राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री थे।
- पीठासीन अधिकारी द्वारा दलबदल मामले का फैसला करने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गयी है।
- कानून के तहत अयोग्य घोषित सदस्य उसी सीट पर फिर से चुनाव नहीं लड़ सकते हैं जिस सीट का अयोग्य घोषित होने से पहले उन्होंने प्रतिनिधित्व किया था।
उपर्युक्त कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 2
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर: c
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची (10th Schedule) जिसे लोकप्रिय रूप से ‘दल-बदल विरोधी कानून’ के रूप में जाना जाता है, को संविधान में 52वें संशोधन (1985) द्वारा सम्मिलित किया गया था।
- श्री राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री थे जब 10वीं अनुसूची भारतीय संविधान का हिस्सा बनाई गई। उन्होंने वर्ष 1984 से 1989 तक भारत के छठे प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया।
- कथन 2 सही है: 10वीं अनुसूची के अनुसार इसकी कोई समय सीमा निश्चित नहीं की गई है जिसके भीतर पीठासीन अधिकारियों को दलबदल के कारण अयोग्यता के लिए एक याचिका पर निर्णय लेना चाहिए।
- कथन 3 गलत है: 10वीं अनुसूची में कानून के तहत अयोग्य घोषित सदस्यों को उसी सीट से फिर से चुनाव के लिए खड़े होने से रोकने के लिए किसी प्रावधान का उल्लेख नहीं है, जिसका वे अयोग्यता से पहले प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
प्रश्न 3. भारत में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (Chief of Defence Staff) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (स्तर-मध्यम)
1. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS को सैन्य मामलों के विभाग के भीतर सचिव के समक्ष/बराबर प्राप्त है।
2. सेवानिवृत्त सेना प्रमुख इस पद को धारण करने के पात्र नहीं हैं।
3. CDS के पद के लिए सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष है।
उपर्युक्त कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर: c
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (Chief of Defence Staff) भारतीय सशस्त्र बलों का प्रमुख और सर्वोच्च पद का अधिकारी होता है। सीडीएस को बराबरी के मांमले में प्रथम स्थान दिया जाता है, उसे सैन्य मामलों के विभाग में सचिव के समक्ष पद मिलता/प्राप्त है।
- कथन 02 गलत है: भारत सरकार ने जून 2022 में सशस्त्र बलों के सेवा नियमों में संशोधन किया जिसके अनुसार 62 वर्ष से कम आयु के सभी सेवारत और हाल ही में सेवानिवृत्त थ्री-स्टार अधिकारियों – लेफ्टिनेंट जनरल, एयर मार्शल और वाइस एडमिरल इस पद के लिए पात्र हैं।
- नए नियमों से तातपर्य है कि 62 वर्ष की सीमा से ऊपर की आयु के कारण हाल ही में सेवानिवृत प्रमुखों पर इस पद के लिए विचार नहीं किया जाएगा।
- कथन 3 सही है: सीडीएस के पद के लिए अधिकतम आयु सीमा 65 वर्ष है जिसका कोई निश्चित कार्यकाल परिभाषित नहीं किया गया है, सेवा प्रमुख के विपरीत जो तीन वर्ष का कार्यकाल या 62 वर्ष की आयु है।
प्रश्न 4. निम्नलिखित में से कौन सा 2022 भारतीय राष्ट्रीय खेलों का आदर्श वाक्य है? (स्तर – कठिन)
(a) खेलने के लिए तैयार हो जाओ।
(b) खेलोगे कुदोगे बनोगे लाजवाब।
(c) खेल के माध्यम से एकता का जश्न।
(d) तेज, उच्च, मजबूत – एक साथ।
उत्तर: c
व्याख्या:
- भारत का 2022 का राष्ट्रीय खेल भारत के राष्ट्रीय खेलों का 36 वां संस्करण होगा और खेलों का आधिकारिक आदर्श वाक्य “खेल के माध्यम से एकता का जश्न” (Celebrating unity through sports) है।
प्रश्न 5. सेवा क्षेत्र उपागम किसके कार्यक्षेत्र के अधीन कार्यान्वित किया गया था? (PYQ-2019) (स्तर – कठिन)
(a) एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम।
(b) अग्रणी बैंक योजना (लीड बैंक स्कीम)।
(c) महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना।
(d) राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन।
उत्तर: b
व्याख्या:
- सेवा क्षेत्र दृष्टिकोण (Service area approach (SAA)) अग्रणी बैंक योजना के ‘क्षेत्र दृष्टिकोण’ संरचना का एक विकसित संस्करण है।
- एसएए योजना के तहत ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्र में प्रत्येक वाणिज्यिक बैंक/आरआरबी शाखा को क्षेत्रों के नियोजित और व्यवस्थित विकास के लिए 15 से 25 गांवों की सेवा के लिए नामित किया गया है।
- लीड बैंक योजना 1969 में शुरू की गई एक योजना है जिसका उद्देश्य ‘सेवा क्षेत्र दृष्टिकोण’ के माध्यम से ग्रामीणों को ऋण प्रदान करना है।
- योजना के तहत, ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के नियोजित और व्यवस्थित विकास के लिए 1989 में सेवा क्षेत्र दृष्टिकोण पेश किया गया था।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
प्रश्न 1. जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों के कारण दुनिया भर के तटवर्ती राज्यों को ‘कोई नुकसान नहीं के नियम’ के अनुसार सभी प्रक्रियात्मक कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।कथन का परीक्षण कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द) (GS II -अंतर्राष्ट्रीय संबंध)
प्रश्न 2. तकनीकी विकास,जिसने बैंकिंग को आसान बना दिया है, के कारण बैंकों में कर्मचारियों की भर्ती में भी मंदी आई है। कथन की पुष्टि कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द) (GSIII-अर्थव्यवस्था)
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