20 दिसंबर 2022 : समाचार विश्लेषण
A. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। B. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। C. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित: पर्यावरण:
D. सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4 से संबंधित: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। E. संपादकीय: भारतीय अर्थव्यवस्था:
सामाजिक न्याय:
शासन:
पर्यावरण:
F. प्रीलिम्स तथ्य: आज इससे संबंधित कुछ नहीं है। G. महत्वपूर्ण तथ्य:
H. UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: I. UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न: |
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
COP-15 शिखर सम्मेलन में ऐतिहासिक जैव विविधता समझौते को अपनाया गया:
पर्यावरण:
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण।
प्रारंभिक परीक्षा: जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCBD) और कुनमिंग-मॉन्ट्रियल समझौता।
मुख्य परीक्षा: कुनमिंग-मॉन्ट्रियल समझौते का महत्वपूर्ण मूल्यांकन।
संदर्भ:
- जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UN Convention on Biological Diversity (UNCBD) ) के पक्षकार देशों के 15वें सम्मेलन (COP15) का आयोजन मॉन्ट्रियल, कनाडा में किया जा रहा है, जिसमें कुनमिंग-मॉन्ट्रियल समझौते को अपनाया गया है।
कुनमिंग-मॉन्ट्रियल समझौता:
- कुनमिंग-मॉन्ट्रियल समझौते में 23 लक्ष्यों को शामिल किया गया हैं जिन्हें दुनिया भर के देशों को वर्ष 2030 तक हासिल करना होगा।
- चीन-ब्रोकेड सौदे का उद्देश्य वैश्विक जैव विविधता को होने वाले खतरनाक नुकसान से रक्षा करना, साथ ही भूमि, महासागरों और प्रजातियों को प्रदूषण, गिरावट और जलवायु परिवर्तन से सुरक्षित रखना है।
- इस सौदे को कई विशेषज्ञों द्वारा पेरिस समझौते (Paris Agreement) के तहत ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की एक ऐतिहासिक योजना के रूप में माना जाता है।
कुनमिंग-मॉन्ट्रियल समझौते द्वारा निर्धारित प्रमुख लक्ष्य:
चित्र स्रोत: The Hindu
- “30 तक 30 लक्ष्य” (30 by 30 goal): यह लक्ष्य इस समझौते द्वारा निर्धारित सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक पृथ्वी की 30% भूमि, महासागरों, तटीय क्षेत्रों और अंतर्देशीय जल की रक्षा करना है।
- वित्त (Finance): वर्ष 2030 तक सार्वजनिक और निजी सहित सभी स्रोतों से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता से संबंधित वित्त पोषण हेतु कम से कम $200 बिलियन प्रति वर्ष जुटाना।
- वर्ष 2025 तक विकसित से विकासशील और कम विकसित देशों में कम से कम $20 बिलियन प्रति वर्ष और वर्ष 2030 तक कम से कम $30 बिलियन प्रति वर्ष तक के वित्तीय प्रवाह में वृद्धि करना।
- स्वदेशी अधिकार (Indigenous rights): समझौते ने अपने बयान में कई बार स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों का संदर्भ दिया है और उनकी संस्कृतियों और भूमि, क्षेत्रों, संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान पर उनके अधिकारों का सम्मान करने की बात की है।
- महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण (Conservation of critical ecosystems): समझौते का उद्देश्य उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्रों और उच्च पारिस्थितिक अखंडता वाले पारिस्थितिक तंत्रों के नुकसान को लगभग शून्य तक कम करना है।
- बड़ी कंपनियों के प्रति उत्तरदायित्व (Responsibilities to big companies): यह सौदा बड़ी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को उनके संचालन के कारण जैव विविधता पर जोखिमों, निर्भरताओं और प्रभावों की निगरानी, आकलन और खुलासा करने के लिए बाध्य करता है।
- हानिकारक सब्सिडी (Harmful subsidies): यह समझौता 2030 तक कम से कम $500 बिलियन प्रति वर्ष तक जैव विविधता को प्रभावित करने वाली सब्सिडी को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने या उसमें सुधार करने और जैव विविधता के संरक्षण और टिकाऊ उपयोग के लिए सकारात्मक प्रोत्साहन देने की बात करता है।
- आक्रामक प्रजातियां (Invasive species): आक्रामक विदेशी प्रजातियों की शुरूआत को रोकें, और अन्य संभावित आक्रामक विदेशी प्रजातियों की शुरूआत को कम से कम आधा कम करें।
- खतरनाक रसायन (Hazardous chemicals):सौदे के प्रमुख लक्ष्यों में से एक अतिरिक्त पोषक तत्वों और कीटनाशकों और अत्यधिक खतरनाक रसायनों द्वारा उत्पन्न जोखिम को कम से कम 50% तक कम करना है।
समझौते के पक्ष में तर्क:
- भारत के केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने कहा कि समझौता भारत के संबंध में काफी हद तक सकारात्मक था और ऐसे समझौतों द्वारा निर्धारित लक्ष्य महत्वाकांक्षी होने के साथ-साथ यथार्थवादी और व्यावहारिक होने चाहिए।
- कनाडा के पर्यावरण मंत्री ने यह भी कहा कि दुनिया ने जैव विविधता के नुकसान को रोकने और उलटने, बहाली की दिशा में काम करने और कीटनाशकों के उपयोग को कम करने के उद्देश्य से एक समझौते पर सहमति बनाकर जबरदस्त प्रगति की है।
- फ्रांस का प्रतिनिधित्व करने वाले एक मंत्री ने भी इसे एक ऐतिहासिक सौदा बताया क्योंकि इसमें बहुत सटीक और परिमाणित उद्देश्य शामिल हैं।
- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme (UNDP) ) ने भी इस समझौते का यह कहते हुए स्वागत किया है कि इस समझौते से दुनिया को जैव विविधता के नुकसान को रोकने और कम करने के लिए वास्तविक प्रगति की उम्मीद में मदद मिलेगी।
समझौते के खिलाफ तर्क:
- विश्व स्तर पर संरक्षण के प्रयासों में सहायता के लिए वित्त पैकेज का विस्तार करना सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक था क्योंकि कई विकासशील देश जैव विविधता के लिए एक नए फंड का निर्माण करना चाहते थे।
- कांगो ने इस सौदे का विरोध तब किया जब यह पारित होने वाला था क्योंकि सौदा एक विशेष जैव विविधता कोष स्थापित करने में विफल रहा जो विकासशील देशों को वर्ष 2030 तक 100 अरब डॉलर प्रदान करेगा।
- इसके अलावा, विभिन्न वन्यजीव संरक्षण सोसायटी और अन्य पर्यावरण विशेषज्ञ ऐसा महसूस करते हैं कि यह समयरेखा पर्याप्त महत्वाकांक्षी नहीं है और इस पर चिंता जताई जा रही है कि यह समझौता प्रजातियों के विलुप्त होने को रोकने और वर्ष 2050 तक पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित करने के लक्ष्यों को रोक देता है।
- कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि इस समझौते में हानिकारक सब्सिडी पर कड़े प्रावधान शामिल होने चाहिए थे जो कई देशों में भोजन और ईंधन को सस्ता बनाते हैं।
- आलोचकों का यह भी मानना है कि कृषि, मत्स्य पालन और बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में जैव विविधता के नुकसान को कम करने के मामले में 10 साल पहले निर्धारित लक्ष्यों से आगे बढ़ाने में समझौता विफल रहा है।
सारांश:
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सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
कार्बन बाज़ार क्या हैं और ये कैसे काम करते हैं?
पर्यावरण:
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण।
मुख्य परीक्षा: ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 और कार्बन बाजारों से सम्बंधित महत्वपूर्ण विवरण।
संदर्भ:
- विरोध और संसदीय समिति द्वारा जांच की मांग के बावजूद ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 संसद में पारित हो गया।
ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022:
- इस विधेयक का उदेश्य ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 (Energy Conservation Act, 2001) में संशोधन करना है।
विधेयक के निम्न लक्ष्य हैं:
- ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता का दायरा बढ़ाना।
- जुर्माने के प्रावधानों में बदलाव करना।
- ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (ऊर्जा दक्षता ब्यूरो) की गवर्निंग काउंसिल/कार्यकारी परिषद् में सदस्यों की संख्या बढ़ाना।
- अपने कार्यों के सुचारू निर्वहन के लिए राज्य विद्युत नियामक आयोगों को नियम बनाने के लिए सशक्त बनाना।
- इसके अलावा यह संशोधित विधेयक सरकार को भारत में कार्बन बाजार स्थापित करने और कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है।
- इस विधेयक के अनुसार केंद्र सरकार या किसी भी अधिकृत एजेंसी को कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार होगा जो प्रकृति में व्यापार योग्य होगा।
कार्बन बाजार क्या हैं?
- पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के अनुसार देश अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय कार्बन बाजारों का उपयोग कर सकते हैं जो 2 डिग्री सेल्सियस के तहत ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में मदद करते हैं।
- कार्बन बाजार मूल रूप से ऐसे प्रमुख प्लेटफॉर्म हैं,जो व्यापार प्रणालियों की स्थापना करके कार्बन उत्सर्जन पर कीमत लगाने में मदद करते है अर्थात जहां कार्बन क्रेडिट का व्यापार किया जा सकता है यानी खरीदा और बेचा जा सकता है।
- कार्बन क्रेडिट विभिन्न गतिविधियों द्वारा निर्मित या तैयार किये जाते हैं,जो हवा से कार्बन डाइऑक्साइड को कम करते हैं, जैसे वनीकरण करना।
कार्बन बाजारों को मुख्य रूप से दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:
- स्वैच्छिक बाजार:
- ये बाजार वे हैं जिनमें उत्सर्जक जैसे निगम, निजी व्यक्ति और अन्य एक टन CO2 या समतुल्य ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को ऑफसेट (समायोजित करने) करने के लिए कार्बन क्रेडिट खरीदते हैं।
- ऐसे बाजारों में एक उत्सर्जक अपने अपरिहार्य उत्सर्जन के लिए किसी अन्य इकाई से कार्बन क्रेडिट खरीदकर क्षतिपूर्ति करता है जो उत्सर्जन को कम करने वाली परियोजनाओं में खुद को शामिल करता है।
- अनुपालन बाजार:
- दूसरी ओर ये बाजार राष्ट्रीय, क्षेत्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नीतियों द्वारा स्थापित किए जाते हैं और आधिकारिक तौर पर विनियमित होते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के अनुसार दुनिया भर में कार्बन बाजारों में रुचि बढ़ रही है क्योंकि देशों द्वारा प्रस्तुत लगभग 83% NDC ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार इस तंत्र का उपयोग करने के अपने इरादे के बारे में बात करते हैं।
कार्बन बाजारों के लिए प्रमुख चुनौतियां:
- UNDP ने कार्बन बाजारों से संबंधित गंभीर चिंताओं पर प्रकाश डाला है जिनमें निम्न शामिल हैं:
- ग्रीनहाउस गैस कटौती की दोहरी गणना करना।
- क्रेडिट उत्पन्न करने वाली जलवायु परियोजनाओं की गुणवत्ता का अभाव।
- जलवायु परियोजनाओं के संबंध में प्रामाणिकता और पारदर्शिता का अभाव।
- इसके अतिरिक्त, “ग्रीनवाशिंग” (Greenwashing) के बारे में भी चिंताएं हैं,जिसमें संस्थाएं क्रेडिट खरीद सकती हैं, अपने समग्र उत्सर्जन को कम करने के बजाय बस कार्बन फुटप्रिंट्स को ऑफसेट (बदल) कर सकती हैं।
ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 से संबंधित चिंताएं:
- विपक्षी सदस्यों ने चिंता व्यक्त की है कि बिल कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्रों के व्यापार के लिए उपयोग किए जाने वाले तंत्र पर स्पष्टता प्रदान करने में विफल रहा है।
- आलोचकों ने पर्यावरण मंत्रालय के बजाय बिजली मंत्रालय द्वारा इस तरह का कानून बनाने पर भी सवाल उठाए हैं जैसा कि अन्य देशों में किया जाता है।
- इसके अलावा, बिल यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि पहले से मौजूद योजनाओं जैसे नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र (REC) और ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र (ESC) के तहत प्रमाणपत्र भी कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्रों के साथ व्यापार योग्य होंगे या नहीं।
- ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 के बारे में अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए पढ़ें: Sansad TV Perspective: The Energy Conservation (Amendment) Bill, 2022
सारांश:
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संपादकीय-द हिन्दू
संपादकीय:
CTC में बचत के लिए कॉस्ट टू द कंट्री:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
भारतीय अर्थव्यवस्था:
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना से संबंधित मुद्दे, संसाधन जुटाना, वृद्धि, विकास और रोजगार
प्रारंभिक परीक्षा: ठेका श्रमिक और संबंधित प्रवृति।
मुख्य परीक्षा: संविदात्मक श्रम का महत्व और संबंधित मुद्दे।
पृष्ठभूमि से संबंधित विवरण:
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2021 के अनुसार, भारत में लगभग 100 मिलियन कैज़ुअल श्रमिक और 50 मिलियन वेतनभोगी श्रमिक बिना किसी लिखित अनुबंध वाली नौकरी में हैं। यह संख्या लगभग 150 मिलियन ठेका श्रमिक या देश में कुल श्रम शक्ति का लगभग 30% है।
- औद्योगिक रोजगार में अनुबंध रोजगार की कुल हिस्सेदारी 2004 में 24% से बढ़कर 2017 में 38% हो गई, जैसा कि उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण द्वारा उजागर किया गया है। ये गैर-पेरोल अनुबंध कर्मचारी तकनीशियन, ड्राइवर, कार्यालयों/वाणिज्यिक परिसरों में हाउसकीपिंग कर्मचारी, या कारखानों में अकुशल श्रमिक हैं।
- जैसे-जैसे आउटसोर्सिंग बढ़ी, देश में कई मैनपावर सप्लायर फर्में उभरीं।
- यहां तक कि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों ने भी 2001 के बाद कई रिक्तियों को आउटसोर्स किया। सार्वजनिक उद्यम सर्वेक्षण 2021 से पता चला है कि सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) में आकस्मिक/अनुबंध श्रमिकों की हिस्सेदारी धीरे-धीरे बढ़कर 2011-12 में 17.1%, 2015-16 में 19% तथा 2020-21 में लगभग 37.2% हो गई।
- 2021 में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSEs) में लगभग 4,81,395 संविदा कर्मचारी थे, जबकि 2011 में यह लगभग 2,68,815 था। यह कई स्थायी नौकरियों को संविदात्मक कार्य में बदलने का संकेत देता है।
PLFS पर अधिक जानकारी के लिए, यहां पढ़ें: Periodic Labour Force Survey 2019-20 Findings | UPSC Notes
संविदात्मक नौकरियों का महत्व:
- स्थायी रोजगार की तुलना में अनुबंध रोजगार के लिए कंपनी की लागत (CTC) अपेक्षाकृत कम है।
- कम CTC इंडिया इंक के मुनाफे में सुधार करता है। यह विदेशी निवेश को भी आकर्षित करता है, जिससे अर्थव्यवस्था को लाभ होता है। उल्लेखनीय है कि पाँच मानव संसाधन लागतें (cost) हैं, अर्थात् हायरिंग कॉस्ट, इंडक्शन कॉस्ट, कैरियर प्रोग्रेशन कॉस्ट, सेवेरेन्स कॉस्ट और सूपरैन्यूएशन कॉस्ट। यह जनशक्ति आपूर्तिकर्ताओं के माध्यम से लागत और समय दोनों को कुशल बनाता है।
- इसके अलावा, चूंकि ठेका श्रमिकों को न्यूनतम प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, इसलिए CTC को और कम कर दिया जाता है।
- ठेका मजदूर स्थायी कर्मचारियों की तरह उदार सवैतनिक अवकाश के हकदार नहीं हैं। इस प्रकार प्रबंधन के लिए उन्हें नौकरी पर रखना अधिक आकर्षक बनाता है।
- इसके अलावा, संविदा कर्मियों के लिए पदोन्नति या सेवानिवृत्ति के बाद के लाभों के प्रति कोई प्रतिबद्धता नहीं है।
- संविदा कर्मियों को नौकरी से निकालने के लचीलेपन को श्रम उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव माना जाता है।
भारत में श्रम क्षेत्र के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें: Labour Sector in India – An Overview of Classification, Laws, Issues
संविदात्मक श्रम के नुकसान:
- ठेकेदार श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी से कम भुगतान करते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि 150 मिलियन ठेका श्रमिकों में से अधिकांश को निर्धारित वेतन से कम भुगतान किया जाता है।
- कई प्लेटफॉर्म और टेक कंपनियों ने कर्मचारियों को बिजनेस पार्टनर के रूप में नामित करने (ऑनलाइन कैब बुकिंग और फूड डिलीवरी कंपनियों के मामले में) जैसे नए उपाय किए हैं और श्रम अधिनियमों के कानूनी प्रावधानों से बचने के लिए तकनीकी व्यवसाय (अधिकांश सेवा एग्रीगेटर्स के मामले में) के रूप में मुख्य गतिविधि को विभाजित किया है।
- कम मजदूरी के कारण कम खपत और बचत के कारण समग्र अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है।
- ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों के कौशल विकास और कौशल उन्नयन में कम निवेश के कारण अर्थव्यवस्था की समग्र उत्पादकता प्रभावित होती है।
- इसके अलावा, काम पर रखने और प्रशिक्षण लागत में कटौती के परिणामस्वरूप सेवा की गुणवत्ता में गिरावट आती है, जो दूसरे क्रम के नुकसान और कभी-कभी दुर्घटनाओं का कारण बनती है। उत्पाद और सेवाओं की खराब गुणवत्ता अर्थव्यवस्था की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करती है।
- चूंकि कम वेतन पाने वाले कर्मचारी अपने और अपने परिवार के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल का खर्च नहीं उठा सकते, इसलिए देश की समग्र मानव पूंजी में गिरावट आती है।
- द लैंसेट के एक अध्ययन से पता चला है कि इंग्लैंड में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में आउटसोर्स खर्च में 1% की वार्षिक वृद्धि 0.38% की उपचार योग्य मृत्यु दर में वृद्धि के साथ जुड़ी हुई है।
- अनुबंध रोजगार की शोषक प्रकृति का हानिकारक वितरणात्मक प्रभाव है जो स्थायी कर्मचारियों के वेतन को भी दबा देता है।
गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के बारे में अधिक जानकारी के लिए, यहां पढ़ें: Gig and Platform Workers – Meaning, Significance, Legal Framework Explained
निष्कर्ष:
- अनुबंध रोजगार द्वारा स्थायी नौकरियों को प्रतिस्थापित करने से देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है, क्योंकि लाखों श्रमिकों को कम वेतन मिलता है और स्वास्थ्य संबंधी खतरों के प्रति यह संवेदनशील सुभेद्य है।
- इसके बजाय सार्वजनिक क्षेत्र को स्थायी कर्मचारियों की दक्षता को पुरस्कृत करने के लिए अपने मूल्यांकन तंत्र में सुधार पर ध्यान देना चाहिए।
- और निजी क्षेत्र को यह महसूस करना चाहिए कि देश के लिए आउटसोर्सिंग लागत दीर्घावधि में कंपनी की लागत से कहीं अधिक है।
संबंधित लिंक:
Labour Reforms – Labour Codes Explained for UPSC Exam. Download PDF.
सारांश:
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सहमतिपूर्ण संबंधों का अपराधीकरण:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
सामाजिक न्याय:
विषय: बच्चों से संबंधित मुद्दे।
मुख्य परीक्षा: POCSO अधिनियम और इसका दुरुपयोग।
प्रारंभिक परीक्षा: POCSO अधिनियम।
विवरण:
- दुनिया में किशोर आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा भारत में है।
- National Family Health Surveys से पता चला है कि भारतीय किशोरों का एक महत्वपूर्ण अनुपात यौन रूप से सक्रिय है
POCSO और इसका दुरुपयोग:
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम का उद्देश्य 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से बचाना है।
- हालांकि, यह तर्क दिया जाता है कि किशोर लड़कियों के माता-पिता द्वारा यौन अभिव्यक्ति को कम करने और “पारिवारिक सम्मान की रक्षा” करने के लिए इसका दुरुपयोग किया गया है।
- यह भी कहा जाता है कि POCSO अनपेक्षित प्रभाव है जिसमें आपराधिक मुकदमा और सहमतिपूर्ण संबंधों में युवा लोगों की स्वतंत्रता का अभाव शामिल है। आपराधिक जांच, सुनवाई और साथ-साथ पूछताछ किशोरों के विकास, शिक्षा, रोजगार, आत्म-सम्मान, सामाजिक प्रतिष्ठा और पारिवारिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
- किशोर लड़कों को डिफ़ॉल्ट रूप से कानून के साथ संघर्ष करने वाले बच्चों के रूप में माना जाता है और उन पर वयस्कों के रूप में भी मुकदमा चलाया जा सकता है। इसके अलावा, वैधानिक बलात्कार के लिए सजा के दीर्घकालिक परिणाम यौन अपराधियों की रजिस्ट्री में क़ैद और समावेशन हैं।
- जबकि, किशोर लड़कियों को “पीड़ित” के रूप में माना जाता है और उन्हें बेजुबान बना दिया जाता है।
- एनफोल्ड प्रोएक्टिव हेल्थ ट्रस्ट के एक विश्लेषण के अनुसार, ‘रोमांटिक मामले’ (लड़कियों, उनके परिवार के सदस्यों या अदालत के अनुसार जहां संबंध सहमति से बनाए गए थे) 2016 से 2020 तक असम, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में विशेष अदालतों द्वारा POCSO अधिनियम के तहत पंजीकृत और निपटाए गए कुल मामलों का लगभग 24.3% था।
- सहमतिपूर्ण यौन कृत्यों का व्यापक अपराधीकरण यौन विकास, शारीरिक स्वायत्तता की घोर निगरानी है। यह आगे चलकर किशोरों के जीवन (right to life) निजता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करता है।
- दंडात्मक प्रावधान राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत मान्यता प्राप्त यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं और सूचनाओं तक बाधा मुक्त पहुंच के उनके अधिकार को भी बाधित करते हैं।
- पार्टनर के पुलिस में रिपोर्ट किए जाने का डर लड़कियों को चिकित्सा सेवाओं का लाभ उठाने से रोकता है और उन्हें असुरक्षित गर्भपात की ओर धकेलता है।
- सहमति और गैर-शोषणकारी कृत्यों को शामिल करने से POCSO अधिनियम के उद्देश्य से विचलित होता है और यौन हिंसा और शोषण के वास्तविक मामलों की जांच और परीक्षण से समय और संसाधनों को हटा देता है।
- यह पाया गया कि प्राथमिकी दर्ज करने और इस तरह के रोमांटिक मामलों के निपटान के बीच औसत समय असम में 1.4 साल और महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में 2.3 साल था।
- ऐसे रोमांटिक मामलों में बरी होने की दर भी उच्च (93.8%) थी।
- 81.5% मामलों में, लड़की ने आरोपी के खिलाफ कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।
- इसके अलावा, 46.5% मामलों में, पीड़ितों की शादी आरोपी से हुई थी। इन मामलों में बरी होने की दर 98.1% थी, क्योंकि अदालतें युगल के वैवाहिक जीवन को परेशान नहीं करना चाहती थीं।
- POCSO अधिनियम के तहत लगभग 92.6% मामले 2021 में लंबित थे, जैसा कि भारत में अपराध द्वारा उजागर किया गया है। इस प्रकार आम सहमति के मामले आपराधिक न्याय प्रणाली पर भारी पड़ रहे हैं।
- कई उच्च न्यायालयों ने माना है कि किशोर संबंध सामान्य हैं और इस तरह के कृत्यों का अपराधीकरण दोनों पक्षों को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, विजयलक्ष्मी बनाम राज्य (2021) में मद्रास उच्च न्यायालय।
- संयुक्त राष्ट्र समिति (United Nations Committee on the Rights of the Child (CRC)) ने सामान्य टिप्पणी संख्या 20 में राष्ट्रों से आग्रह किया कि वे यौन शोषण और दुर्व्यवहार से बच्चों की सुरक्षा को उनकी विकसित स्वायत्तता के संबंध में संतुलित करें।
- 2019 में, इसने राज्यों से हैसियत संबंधी अपराधों को हटाने के लिए कहा, जो किशोरों को आपराधिक बनाते हैं जो एक दूसरे के साथ सहमति से यौन कृत्यों में संलग्न होते हैं।
भावी कदम:
- किशोरों को सूचित निर्णय लेने और उनके स्वास्थ्य और गरिमा के महत्व का एहसास कराने के लिए ज्ञान अंतराल को पाटने और सकारात्मक कौशल और दृष्टिकोण बनाने के लिए व्यापक यौन शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
- विकलांग बच्चों या स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों जैसे कमजोर समूहों को भी उचित ज्ञान और कौशल प्रदान किया जाना चाहिए।
- POCSO अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) जो 16 वर्ष से ऊपर के किशोरों से जुड़े सहमतिपूर्ण कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है, पर भी विचार किया जाना चाहिए। हालांकि, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि 16-18 आयु वर्ग के लोग गैर-सहमति वाले कृत्यों से सुरक्षित हैं।
- इसके अलावा, ऐसे कृत्यों के अपराधीकरण को पहचानने वाला एक प्रावधान शामिल किया जाना चाहिए जिसमें मृत्यु या चोट, नशे के डर से सहमति शामिल है, या यदि अभियुक्त अधिकार की स्थिति में है, तो उसे शामिल किया जाना चाहिए।
- जब तक इस तरह के संशोधन किए जाते हैं तब तक कानून प्रवर्तन एजेंसियां, बाल कल्याण समितियां और किशोर न्याय बोर्ड बच्चों के सर्वोत्तम हित में अपने विवेक का प्रयोग कर सकते हैं।
संबंधित लिंक:
The POCSO (Amendment) Act, 2019 [UPSC Notes for GS II]
सारांश:
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बिहार की शराबबंदी नीति काम नहीं कर रही है:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2 से संबंधित:
शासन:
विषय: सरकार की नीतियां और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप और उनके डिजाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।
मुख्य परीक्षा: बिहार में शराब के सेवन के खिलाफ कानून और इससे जुड़े विभिन्न मुद्दे एवं चिंताएं।
संदर्भ:
- बिहार में जहरीली शराब त्रासदी।
विवरण:
- बिहार में ताजा जहरीली शराब (अवैध शराब) त्रासदी के कारण 38 से अधिक लोगों की मौत हो गई है और कई लोग अपनी दृष्टि खो बैठे हैं और गंभीर रूप से बीमार हो गए हैं।
- बिहार मद्य निषेध और उत्पाद (संशोधन) अधिनियम वर्ष 2016 में लागू किया गया था।
- हालांकि यह आरोप लगाया जाता है कि अधिनियम के बावजूद, राज्य में शराब आसानी से उपलब्ध हो जाती है और प्रीमियम कीमत पर घर पर भी पहुंचाई जा सकती है।
- इसके अलावा गरीब देशी शराब पर निर्भर रहने को विवश हैं, जो कई बार उनके लिए घातक साबित हुई है।
- उदाहरण के लिए वर्ष 2016 के बाद से राज्य भर में कई घटनाओं में लगभग 200 लोग मारे गए हैं।
- पिछले 6 साल (2016-2022) की अवधि में, राज्य पुलिस और आबकारी विभाग द्वारा अधिनियम के उल्लंघन के लगभग 4 लाख मामले दर्ज किए गए हैं और लगभग 4.5 लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
- हालांकि इसमें केवल 1,300 लोगों (1% से कम) को ही दोषी ठहराया गया है। बाकी को “पुष्टिकारक सबूतों की कमी” के कारण छोड़ दिया गया था।
केस स्टडी:
- अगस्त 2016 में गोपालगंज जिले के खजुरबन्नी मोहल्ले में अवैध शराब पीने से 19 लोगों की मौत हो गई थी।
- गोपालगंज की निचली अदालत ने सम्बंधित मामले में आरोपी सभी 13 लोगों को दोषी करार दिया था।
- लेकिन जुलाई 2022 में पटना उच्च न्यायालय ने उन सभी लोगों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि “वे देश के कानूनों में परिकल्पित निष्पक्ष परीक्षण के मापदंडों को पास नहीं कर सके”।
- राज्य सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
निषेध के परिणाम:
- सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार बिहार में अप्रैल 2016 से अब तक प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा की गई लगभग 74,000 छापेमारी में लगभग 80,000 लीटर देशी शराब सहित 2 करोड़ लीटर से अधिक शराब जब्त की गई है।
- जब्ती/बरामदगी की मात्रा से चिंतित,सामुदायिक जुर्माना आदि जैसे कई प्रावधानों को कमजोर करने के लिए कानून में तीन बार संशोधन किया गया।
- भारी मात्रा में अवैध शराब पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल से लाई जाती है और प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा जब्त की जाती है।
- इसके परिणामस्वरूप जेलों में व्यापारियों और शराब के उपभोक्ताओं की अत्यधिक भीड़ हो गई है।
- दिसंबर 2021 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India), न्यायमूर्ति एन.वी. रमना ने कानून की “दूरदर्शिता की कमी” के बारे में चिंता जताई, जिसके कारण “राज्य में अदालतों का काम ठप” हो गया है।
- अक्टूबर 2022 में पटना उच्च न्यायालय ने भी इस बात पर प्रकाश डाला कि शराबबंदी ने राज्य में एक नई ड्रग संस्कृति को जन्म दिया है।
- राज्य विधानसभा में कई दलों ने (निजी तौर पर) स्वीकार किया है कि खराब कार्यान्वयन के कारण कानून विफल हो गया है।
सरकार का रुख:
- शराबबंदी की नीति को जारी रखने के लिए राज्य सरकार कृतसंकल्प है। आलोचक इस निरंतरता के निम्नलिखित कारणों की ओर इशारा करते हैं:
- महिलाओं का जाति-तटस्थ वोट बैंक, क्योंकि वे अपने परिवारों में पुरुष सदस्यों की शराब पीने की आदत के कारण सबसे ज्यादा पीड़ित हैं।
- एक ऐसे मुद्दे पर पकड़ बनाना जो राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं में मदद कर सके।
- ऐसी नीति के रोलबैक (वापस लेने) को कमजोरी और विफलता के संकेत के रूप में भी देखा जाता है।
- इस विषय से संबंधित अधिक जानकारी के लिए 30 जुलाई, 2022 का यूपीएससी परीक्षा विस्तृत समाचार विश्लेषण देखें।
सारांश:
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संकट में ग्रह:
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 से संबंधित:
पर्यावरण:
विषय: जैव विविधता संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय समझौता।
प्रारंभिक परीक्षा: जैव विविधता COP 15 पर सम्मेलन।
मुख्य परीक्षा: जैव विविधता COP 15 पर सम्मेलन का महत्व।
संदर्भ:
- CBD COP 15 मॉन्ट्रियल, कनाडा में आयोजित किया जा रहा है।
विवरण:
- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन और जैविक विविधता पर कन्वेंशन (CBD) की उत्पत्ति 1992 के रियो शिखर सम्मेलन से हुई हैं।
- इसके अधिक सफल नहीं होने पर यह तर्क दिया जाता है कि CBD ने UNFCCC COP27 (UNFCCC COP27) की तरह मीडिया का ध्यान नहीं खींचा हैं,क्योंकि विश्व के किसी भी नेता और राष्ट्र प्रमुख ने इसमें कोई महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता नहीं जताई हैं।
- ऐसा इसलिए भी है क्योंकि COP के विपरीत CBD को बड़े पैमाने पर ‘पर्यावरणविद्’ चिंता के रूप में तैयार किया जाना अभी भी जारी है,जिसका उपयोग पूंजीवाद की ताकतों द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विचार को सामने रखने के लिए किया गया था जिसमें कुछ उद्यमियों को लाभ पहुंचाने की क्षमता है।
- इसके अलावा, चक्रवात और पिघलते ग्लेशियर जलवायु संकट को स्पष्ट करते हैं। हालाँकि, जैव विविधता का नुकसान काफी हद तक अदृश्य बना हुआ है।
- सदस्य देशों ने वर्ष 2024 तक ठोस रोड मैप तैयार करने पर सहमति व्यक्त की है और अमीर देशों ने वर्ष 2030 तक सालाना 30 अरब डॉलर देने का वादा किया है।
- सीबीडी के बारे में अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:United Nations Convention on Biological Diversity (UNCBD) – UPSC International Organizations
जैव विविधता की स्थिति:
- संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के एक अध्ययन के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 34,000 पौधे और 5,200 पशु प्रजातियां, जिनमें दुनिया की आठ पक्षी प्रजातियों में से एक प्रजाति शामिल है, विलुप्त होने के जोखिम का सामना कर रही हैं।
- इसी तरह मुख्य कृषि पशु प्रजातियों की 30% से अधिक नस्लों के विलुप्त होने का उच्च जोखिम बना है।
- ग्रह के मूल वनों का लगभग 45% पहले ही साफ हो चुका है।
भारत का रुख:
- कई आलोचकों द्वारा यह सुझाव दिया गया है कि जैव विविधता, भूमि और समुद्र पर इसके प्रभाव के बावजूद भारत कीटनाशकों के उपयोग को कम करने के लिए तैयार नहीं है।
- यह कई लोगों के लिए कालानुक्रमिक प्रतीत होता है, खासकर जब भारत को प्रकृति के संरक्षण और सद्भाव में रहने का चैंपियन माना जाता है।
- भारत ने तर्क दिया है कि विभिन्न देशों की जैव विविधता संरक्षण के प्रति अलग-अलग स्तर की जिम्मेदारी है (जिसके लिए अमीर देशों को वैश्विक संरक्षण प्रयासों के अधिक उदार तरीके से वित्त पोषण करने की आवश्यकता है)।
- इस विषय से संबंधित अधिक जानकारी के लिए 19 दिसंबर, 2022 का यूपीएससी परीक्षा विस्तृत समाचार विश्लेषण पढ़ें।
सारांश:
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प्रीलिम्स तथ्य:
आज इससे संबंधित कुछ नहीं है।
महत्वपूर्ण तथ्य:
1. पूर्वोत्तर में उग्रवाद से संबंधित हिंसा में 80% की गिरावट: मंत्री
- सूचना और प्रसारण मंत्री ने कहा हैं कि केंद्र सरकार के लगातार प्रयासों से जम्मू-कश्मीर में हिंसा और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद से संबंधित हिंसा में उल्लेखनीय कमी आई है।
- मंत्री ने कहा कि गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (Unlawful Activities Prevention Act (UAPA)) और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को मजबूत करने जैसे उपायों के सामूहिक प्रभाव ने आतंकवाद के पारिस्थितिकी तंत्र को कमजोर कर दिया है।
- मंत्री ने आगे कहा कि सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (Armed Forces Special Powers Act (AFSPA)) को भी पूरे त्रिपुरा और मेघालय सहित पूर्वोत्तर के बड़े हिस्सों से हटा दिया गया है।
- मंत्री के अनुसार पूर्वोत्तर क्षेत्र में शांति का युग शुरू हो गया है, क्योंकि उग्रवाद से संबंधित हिंसा में तेजी से गिरावट देखी गई है और नागरिकों की मृत्यु में लगभग 89% की कमी आई है।
2.पर्स सीन फिशिंग पर तटीय राज्यों द्वारा लगाया गया प्रतिबंध उचित नहीं:केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा
- केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया है कि कुछ तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों जैसे तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी, ओडिशा, दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव, तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह द्वारा पर्स सीन फिशिंग पर लगाया गया प्रतिबंध सही या न्यायोचित नहीं है।
- पर्स सीन फिशिंग (Purse seine fishing) मछली पकड़ने का एक तरीका है जिसमें न केवल लक्षित मछली बल्कि कछुओं जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों को भी आकर्षित करने के लिए (पकड़ने के लिए) एक विस्तृत जाल का उपयोग किया जाता है।
- केंद्र सरकार के मत्स्य विभाग ने एक विशेषज्ञ समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर पर्स सीन मछली पकड़ने पर लगे प्रतिबंध को हटाने की सिफारिश की है, जिसमें यह टिप्पणी की गई है कि उपलब्ध साक्ष्यों के अनुसार मछली पकड़ने के इस तरीके से किसी गंभीर संसाधनों में कमी नहीं आई है।
- समिति ने यह भी सिफारिश की कि पर्स सीनर को प्रादेशिक जल और भारतीय विशेष आर्थिक क्षेत्र ( Exclusive Economic Zone (EEZ)) में मछली पकड़ने की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन यह कुछ शर्तों के अधीन हो सकती है।
3. श्रम संकट के बीच भारतीय नर्सों, तकनीकी कर्मचारियों के लिए फ़िनलैंड की राह:
- बड़े पैमाने पर कुशल श्रम की कमी के बीच, फ़िनलैंड की सरकार वर्ष 2030 तक देश में प्रवेश करने वाले कार्य आप्रवासियों की संख्या को दोगुना करने और अंतर्राष्ट्रीय छात्र प्लेसमेंट को तिगुना करने की योजना बना रही है।
- फिनलैंड के आर्थिक मामलों और रोजगार मंत्री ने अपनी भारत यात्रा के दौरान भारत के विदेश राज्य मंत्री के साथ “प्रवास और गतिशीलता पर इरादे की संयुक्त घोषणा” पर हस्ताक्षर किए हैं।
- इस संयुक्त घोषणा से छात्रों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, व्यापारियों और पेशेवरों की गतिशीलता को वहां सुगम बनाने और अनियमित प्रवासन के मुद्दों को हल किये जाने की उम्मीद है।
- भारत ने हाल के दिनों में जर्मनी और ब्रिटेन के साथ भी इसी तरह के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
- फिनलैंड के मंत्री ने कहा कि फ़िनलैंड प्रौद्योगिकी एवं सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) क्षेत्रों में श्रमिकों और भारत से नर्सों को भी आकर्षित करने (रोजगार देने) की उम्मीद करता है।
- कुशल भारतीय जनशक्ति में फ़िनलैंड की रुचि ऐसे समय में देखने को मिली है जब यूरोप में बड़े पैमाने पर श्रम संकट देखा जा रहा है, क्योंकि व्यवसाय COVID-19 के नुकसान से उबर रहे हैं और सीमा पर लॉकडाउन का प्रवर्तन/दबाव देखा जा रहा हैं।
- फ़िनलैंड लगभग 5.5 मिलियन की आबादी वाला देश है, लेकिन कार्यबल में केवल लगभग 2.5 मिलियन व्यक्ति शामिल है, साथ ही सेवानिवृत्ति की बढ़ती दर भी देखी जा रही है।
UPSC प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. भारत इनमें से कितने अंतर्राष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों का हस्ताक्षरकर्ता देश है, जिनका उद्देश्य नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खतरे का मुकाबला करना है: (स्तर-कठिन)
1.नारकोटिक ड्रग्स पर संयुक्त राष्ट्र (UN) कन्वेंशन (1961)
2. साइकोट्रोपिक पदार्थों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन(1971)
3. नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक पदार्थों के अवैध यातायात के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1988)
4. अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNTOC) (2000)
विकल्प:
(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) केवल तीन
(d) सभी चारों
उत्तर: d
व्याख्या:
भारत निम्न समझौतों का हस्ताक्षरकर्ता देश है:
- संयुक्त राष्ट्र (UN) एकल कन्वेंशन ऑन नारकोटिक ड्रग्स (1961)
- साइकोट्रोपिक पदार्थों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1971)
- नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक पदार्थों के अवैध यातायात के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1988)
- ट्रांसनेशनल क्राइम के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन/अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNTOC) 2000
प्रश्न 2. सृजन (SRIJAN) पोर्टल को निम्न में किस प्रयोजन हेतु लॉन्च किया गया था: (स्तर-मध्यम)
(a) रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (DPSUs) के स्वदेशीकरण के प्रयासों में निजी क्षेत्र को भागीदार बनाने हेतु।
(b) सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) और सम्पूर्ण भारत के अन्य उद्योगों की आवश्यकताओं की तुलना में श्रमिकों के कौशल के मैपिंग हेतु।
(c) आदिवासी कारीगरों और संग्राहकों को अपनी उत्कृष्ट कृतियों को रखने और उनकी बिक्री हेतु उत्पादन करने के लिए एक मंच प्रदान करना।
(d) रक्षा उत्पादन विभाग द्वारा आवेदन जमा करने, प्रसंस्करण और निर्यात प्राधिकरण जारी करने के लिए एकल खिड़की प्रदान करने हेतु।
उत्तर: a
व्याख्या:
- SRIJAN रक्षा मंत्रालय का पोर्टल है जो वन-स्टॉप-शॉप ऑनलाइन पोर्टल के रूप में कार्य करता है जो विक्रेताओं को उन वस्तुओं को लेने के लिए पहुँच प्रदान करता है जिन्हें स्वदेशीकरण के लिए लिया जा सकता है।
- रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (DPSUs) के स्वदेशीकरण प्रयासों में निजी क्षेत्र को भागीदार बनाने के लिए SRIJAN पोर्टल लॉन्च किया गया था।
प्रश्न 3. अक्सर समाचारों में देखे जाने वाले ‘ग्रीनवॉशिंग’ शब्द का निम्नलिखित में से कौन सा कथन सबसे सटीक वर्णन करता है? (स्तर-मध्यम)
(a) माल के लिए पर्यावरण के अनुकूल, पुनर्नवीनीकरण-सामग्री-आधारित पैकेजिंग का इस्तेमाल करना।
(b) मुनाफे का एक हिस्सा कार्बन-ऑफ़सेट परियोजनाओं या नवीकरणीय ऊर्जा में आरक्षित करना।
(c) ऐसे निराधार दावे करना जो उपभोक्ताओं को यह विश्वास दिलाते हैं कि कंपनी के उत्पाद पर्यावरण के अधिक अनुकूल हैं।
(d) टिकाऊ व्यवसाय विधियों को लागू करना जो पर्यावरण के अनुकूल हों।
उत्तर: c
व्याख्या:
- ग्रीनवाशिंग एक देश या कंपनी द्वारा किया गया एक ऐसा कार्य है जो अपने दावों का समर्थन करने के लिए किसी भी सत्यापन योग्य और न्यायोचित डेटा के बिना अपने प्रयासों या अपने उत्पादों को जलवायु-अनुकूल के रूप में पेश करता है।
- ग्रीनवॉशिंग का अर्थ ऐसे निराधार दावे करना है जो उपभोक्ताओं को यह विश्वास दिलाते है कि कंपनी के उत्पाद पर्यावरण के अधिक अनुकूल हैं।
प्रश्न 4. दिए गए कथनों में से कितने गलत हैं/हैं? (स्तर-कठिन)
1. भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत शराब राज्य सूची का एक विषय है।
2. अनुच्छेद 47 राज्यों को यह निर्देश देता है कि वे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नशीले पेय और ड्रग्स पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रयास करें।
3. अनुच्छेद 47 को 42वें संविधान संशोधन, 1976 के द्वारा भारतीय संविधान में जोड़ा गया हैं।
विकल्प:
(a) केवल एक कथन
(b) केवल दो कथन
(c) तीनों कथन
(d) इनमे से कोई भी नहीं
उत्तर: a
व्याख्या:
- कथन 1 सही है: संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, शराब राज्य का विषय है:
- राज्य विधानसभाओं के पास नशीले शराब के उत्पादन, कब्जे, परिवहन, खरीद और बिक्री सहित शराब के संबंध में कानूनों का मसौदा तैयार करने का अधिकार और जिम्मेदारी है।
- कथन 2 सही है: अनुच्छेद 47 जो राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) का हिस्सा है, राज्यों को औषधीय उद्देश्यों को छोड़कर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नशीले पेय और दवाओं पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रयास करने का निर्देश देता है।
- कथन 3 गलत है: 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 ने सूची में चार नए निर्देशक सिद्धांत जोड़े:
- अनुच्छेद 39: बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए अवसरों को सुरक्षित करना।
- अनुच्छेद 39A: समान न्याय को बढ़ावा देना और गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना।
- अनुच्छेद 43A: उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाना।
- अनुच्छेद 48A: पर्यावरण की रक्षा एवं सुधार और वनों एवं वन्य जीवों की रक्षा करना।
प्रश्न 5. ‘INS अस्त्रधारिणी’ का, जिसका हाल ही में समाचारों में उल्लेख हुआ था, निम्नलिखित में से कौन-सा सर्वोतम वर्णन है? (स्तर-कठिन)
(a) उभयचर युद्धपोत
(b) नाभिकीय शक्ति-चालित पनडुब्बी
(c) टॉरपीडो प्रमोचन और पुनप्राप्ति जलयान
(d) नाभिकीय शक्ति-चालित विमान वाहक
उत्तर: c
व्याख्या:
- INS अस्त्रधारिणी भारत का पहला पूरी तरह से स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित टॉरपीडो प्रमोचन और पुनप्राप्ति जलयान है।
- 50 मीटर की दो पतवार वाली अस्त्रधारिणी युद्धपोत भी आयुध जुड़नार के साथ एक निजी यार्ड में बनाया जाने वाला पहला युद्धपोत है।
- अस्त्रधारिणी का डिजाइन नौसेना विज्ञान और तकनीकी प्रयोगशाला (NSTL), शॉफ्ट शिपयार्ड और IIT खड़गपुर का एक सहयोगात्मक प्रयास था।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न:
प्रश्न 1. यह बताएं कि कुनमिंग-मॉन्ट्रियल जैव विविधता समझौता किस प्रकार जैव विविधता पर वैश्विक कार्रवाई के लिए एक अच्छा आधार प्रदान करता है, जो जलवायु के लिए पेरिस समझौते का पूरक है। (10 अंक, 150 शब्द) (जीएस III – पर्यावरण और पारिस्थितिकी)
प्रश्न 2. किशोरों के बीच या उनके साथ सहमति से यौन कृत्यों का व्यापक अपराधीकरण उनके यौन विकास और शारीरिक अखंडता और स्वायत्तता की घोर चूक है। क्या आप इससे सहमत हैं? कथन की पुष्टि कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द) (जीएस II – राजव्यवस्था एवं शासन)