योग भारत के सबसे प्रमुख सांस्कृतिक निर्यातों में से एक है। यह सिर्फ पोज और ध्यान से कहीं अधिक है। इस लेख में, आप योग, इसके इतिहास, उपयोगों के बारे में सब कुछ जान सकेंगे। यूपीएससी के दृष्टिकोण से, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस लेख में आपको इसके बारे में भी जानकारी दी जाएगी कि, भारतीय प्रतिष्ठान द्वारा योग को एक सॉफ्ट पावर के रूप में कैसे उपयोग किया जाता है।
आईएएस परीक्षा 2024 की तैयारी करने वाले उम्मीदवार योग के बारे में अधिक जानने के लिए इस लेख को ध्यान से पढ़ें। इस लेख में हम आपको योग और उसकी विशेषताओं के बारे में विस्तार से बताएंगे। पेरिस समझौते के बारे में अंग्रेजी में पढ़ने के लिए Yoga पर क्लिक करें।
योग क्या है?
योग आध्यात्मिक, शारीरिक और मानसिक प्रथाओं का एक समूह है जिसकी उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई थी। योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना। योग शारीरिक व्यायाम, शारीरिक मुद्रा (आसन), ध्यान, सांस लेने की तकनीकों और व्यायाम को जोड़ता है।
इस शब्द का अर्थ ही ‘योग’ या भौतिक का स्वयं के भीतर आध्यात्मिक के साथ मिलन है। यह सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना के मिलन का भी प्रतीक है, जो मन और शरीर, मानव और प्रकृति के बीच एक पूर्ण सामंजस्य का संकेत देता है। योग के अभ्यास का उल्लेख ऋग्वेद और उपनिषदों में भी मिलता है।
पतंजलि का योगसूत्र (दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व), योग पर एक आधिकारिक ग्रंथ है और इसे शास्त्रीय योग दर्शन का एक मूलभूत ग्रंथ माना जाता है।
आधुनिक समय के दौरान और विशेष रूप से पश्चिम में, योग को बड़े पैमाने पर शारीरिक व्यायाम के साथ-साथ ध्यान और मुद्राओं के रुप में अपनाया जा रहा है। हालांकि, योग का उद्देश्य स्वस्थ मन और शरीर से परे है।
योग, हिंदू दर्शन के षड्दर्शन (छः दर्शन) में से एक है। ये 6 दर्शन – सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त के नाम से जाने जाते हैं। इन दर्शनों के प्रणेता पतंजलि, गौतम, कणाद, कपिल, जैमिनि और बादरायण माने जाते हैं। इन दर्शनों के आरंभिक संकेत उपनिषदों में भी मिलते हैं।
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योग की उत्पत्ति
योग की उत्पत्ति की सटीक समय अवधि पर कोई सहमति नहीं है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि इसकी उत्पत्ति सिंधु घाटी सभ्यता की अवधि के दौरान हुई, कुछ का कहना है कि यह योग, पूर्वी भारत में पूर्व-वैदिक युग से उत्पन्न हुआ था। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी उत्पत्ति वैदिक युग में हुई थी। फिर भी अन्य लोग श्रमण परंपराओं की ओर इशारा करते हैं। मोहनजोदड़ो से प्राप्त पशुपति मुहर से पता चलता है कि एक आकृति मूलबंधासन (योग में बैठने की मुद्रा) में बैठी हुई है, और इसलिए कुछ शोधकर्ता इसे सिंधु घाटी मूल के योग के प्रमाण के रूप में देते हैं। प्रारंभिक बौद्ध ग्रंथों, मध्य उपनिषदों, भगवद गीता आदि में योग की व्यवस्थित व्याख्या की गई है। आधुनिक युग में, रामकृष्ण परमहंस, परमहंस योगानंद, स्वामी विवेकानंद, रमण महर्षि आदि गुरुओं ने पूरे विश्व में योग के विकास और लोकप्रिय बनाने में योगदान दिया। योग शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ऋग्वेद के एक श्लोक में प्रात:काल में उगते हुए सूर्य देव के लिए हुआ है। हालांकि, ऋग्वेद में यह उल्लेख नहीं है कि यौगिक अभ्यास क्या थे। योग के अभ्यास के शुरुआती संदर्भों में से एक बृहदारण्यक उपनिषद में पाया जा सकता है, जो पहले उपनिषदों में से एक है। हालांकि, योग शब्द समकालीन समय के समान अर्थ के साथ कथा उपनिषद में पाया गया है।
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पतंजलि का योग सूत्र
योग सूत्र संस्कृत में लिखे गए लगभग 195 सूत्रों या सूक्तियों का संग्रह है। इसकी रचना ऋषि पतंजलि ने योग पर पिछले कार्यों और पुरानी परंपराओं पर चित्रण करते हुए की थी। इसकी रचना 500 ईसा पूर्व और 400 ई के बीच मानी जाती है। इस ग्रंथ में, पतंजलि ने योग को आठ अंगों (अष्टांग) के रूप में वर्णित किया है। वे यम (संयम), नियम (पालन), आसन (योग आसन), प्राणायाम (श्वास नियंत्रण), प्रत्याहार (इंद्रियों को वापस लेना), धारणा (एकाग्रता), ध्यान (ध्यान) और समाधि (अवशोषण) हैं। मध्ययुगीन काल के दौरान, इसका अनुवाद लगभग 40 भारतीय भाषाओं और अरबी और पुरानी जावानीस में भी किया गया था। योगसूत्र को आधुनिक समय में लगभग भुला दिया गया था जब तक कि स्वामी विवेकानंद ने इसे पुनर्जीवित नहीं किया और इसे पश्चिम में ले गए।
योग को लोकप्रिय बनाने में स्वामी विवेकानन्द की भूमिका
पिछले करीब 100 वर्षों में योग को वैश्विक स्तर पर एक विशिष्ट पहचान मिली है। और इसका पूरा श्रेय स्वामी विवेकानंद को दिया जाता है। विवेकानंद का राज योग को, योग का पश्चिमी देशों में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। स्वामी विवेकानंद के साथ, योगानंद, श्री अरबिंदो आदि ने भी योग को विदेशी धरती पर लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। स्वामी विवेकानंद, एक शानदार वक्ता होने के साथ-साथ आध्यात्म की भी गहन समझ रखते थे। उन्होंने पूर्व और पश्चिम के बीच सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाने के महत्वपूर्ण प्रयास किए। पतंजलि योग सूत्रों के भाष्य और अनुवाद करने वाले स्वामी पहले भारतीय आचार्यों में से एक थे। स्वामी विवेकानंद ने योग की विशालता को व्यक्त करते हुए राजयोग नामक पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा था, “भारतीय दर्शन की सभी रूढ़िवादी प्रणालियों का एक ही लक्ष्य, योग विधि द्वारा पूर्णता के माध्यम से आत्मा की मुक्ति है।” इसलिए पश्चिम परंपरा में आज भी विवेकानंद के योग प्रचार का गहरा असर दिखाई देता है। उन्होंने योग के प्रति लोगों को आकर्षित करने के साथ-साथ पश्चिमी लोगों में पतंजलि योग सूत्र सीखने के लिए गंभीर रूचि पैदा करने का काम किया था। |
पतञ्जलि योगसूत्र
पतञ्जलि योगसूत्र, योग दर्शन का मूल ग्रंथ माना जाता है। योगसूत्रों की रचना हजारो साल पहले पतंजलि ने की थी। पतञ्जलि योगसूत्र में चित्त को एकाग्र कर उसे ईश्वर में लीन करने का विधान है। पतंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियों को चंचल होने से रोकना (चित्तवृत्तिनिरोधः) ही योग है। इसका मतलब है कि मन को इधर-उधर भटकने न देना, केवल एक ही वस्तु में स्थिर रखना है। मध्यकाल में सर्वाधिक अनूदित किया गया प्राचीन भारतीय ग्रन्थ योगसूत्र ही है। जानकारी के मुताबिक योगसूत्र का करीब 40 भारतीय और विदेशी भाषाओं (इनमें प्राचीन जावा और अरबी भी शामिल है) में अनुवाद किया गया था। पतञ्जलि योगसूत्र 12वीं से लेकर 19वीं शताब्दी तक एक दम लुप्त हो गया था, लेकिन विवेकानंद और कुछ अन्य महापुरुषों की वजह से 19वीं- 20वीं और 21वीं शताब्दी में यह ग्रंथ पुनः प्रचलन में आया था। |
योग के प्रकार (Yoga Poses)
योग शारीरिक और मानसिक चेतना को बढ़ाने में मदद करता है। आधुनिक योग व्यायाम, शक्ति, लचीलापन और श्वास पर ध्यान देने के साथ विकसित हुआ तरीका है। आधुनिक योगी की कई शैलियां (Yoga Poses) हैं। योग की विभिन्न प्रकार और शैलियों के बारे में नीचे विस्तार से जानकारी दी जा रही है – अष्टांग योग – यह योग शैली पिछले कुछ दशकों के दौरान सर्वाधिक लोकप्रिय हुई थी। योग के इस प्रकार में, योग की प्राचीन शिक्षाओं का उपयोग किया जाता है। अष्टांग योग, तेजी से सांस लेने की प्रक्रिया को जोड़ता है। इसमें मुख्य रूप से 6 मुद्राओं का समन्वय है। विक्रम योग – विक्रम योग मुख्य रूप से एक कृत्रिम रूप से गर्म कमरे में किया जाता है। जहां का तापमान लगभग 105 डिग्री (105° फारेनहाइट) और 40 प्रतिशत आर्द्रता होती है। इसे हॉट योग (Hot Yoga) के नाम से भी जाना जाता है। इस योग में कुल 26 पोज होते हैं और दो सांस लेने के व्यायाम का क्रम होता है। हठ योग – यह किसी भी योग के लिए एक सामान्य शब्द है, जिसके द्वारा शारीरिक मुद्राएं सीखी जाती है। हठ योग, मूल योग मुद्राओं के परिचय के रूप में काम करता हैं। अयंगर योग – योग के इस प्रकार में विभिन्न प्रॉप्स (सहारा) जैसे कम्बल, तकिया, कुर्सी और गोल लम्बे तकिये इत्यादि का प्रयोग करके सभी मुद्राओं को किया जाता है। जीवामुक्ति योग – जीवामुक्ति का अर्थ है “जीवित रहते हुए मुक्ति।” योगा का यह फार्म साल 1984 के आस पास उभर कर सामने आया था। इसके बाद इसे आध्यात्मिक शिक्षा और योग प्रथाओं को इसमें शामिल किया गया था। जीवामुक्ति योग में किसी भी मुद्रा (पोज) पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय दो मुद्राओं के बीच की गति को बढ़ाने पर ध्यान दिया जाता है। इस ध्यान (फोकस) को विनयसा कहा जाता है। प्रत्येक कक्षा में एक विषय होता है, जिसे योग शास्त्र, जप, ध्यान, आसन, प्राणायाम और संगीत के माध्यम से खोजा जाता है। जीवामुक्ति योग में शारीरिक रूप से तीव्र क्रियाएं की जाती है। कृपालु योग – कृपालु योग, साधक को को उसके शरीर को जानने, उसे स्वीकार करने और सीखने की शिक्षा देता है। कृपालु योग के साधक आवक देख कर अपने स्तर का अभ्यास करना सीखते हैं। इसकी कक्षाएं श्वास अभ्यास और शरीर को धीरे- धीरे स्ट्रेच करने के साथ शुरू होती हैं। बाद में विश्राम की एक श्रृंखला भी होती है। कुंडलिनी योग – यहां कुंडलिनी का अर्थ, सांप की तरह कुंडलित होने से है। कुंडलिनी योग, ध्यान की एक प्रणाली है। इसके द्वारा दबी हुई आंतरिक ऊर्जा को बाहर लाने का काम किया जाता है। |
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हठ योग क्या है?
हठ योग मध्य युग (500 – 1500 CE) के दौरान उभरा था। इसी काल में योग की अनेक उप परम्पराओं का भी उदय हुआ था। हठ का अर्थ बल से है और आधुनिक समय में जो अभ्यास किया जाता है वह अनिवार्य रूप से योग का यही रूप है जिसमें शारीरिक व्यायाम, आसन और श्वास अभ्यास पर ध्यान दिया जाता है। हठ योग, योग की बिल्कुल प्रारंभिक प्रक्रिया है, ताकि शरीर ऊर्जा के उच्च स्तर को बनाए रखने में सक्षम हो सके। हठ योग का वर्णन करने वाला सबसे पुराना ग्रंथ अमृतसिद्धि (11वीं शताब्दी सीई) है।
साफ्ट पावर के रूप में योग
साल 2014 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को हर साल ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी। यह भारत द्वारा शुरू किया गया था और इसे भारत की सॉफ्ट पावर के प्रसार के रूप में देखा जाता है। भारत की इस पहल के बाद योग को दुनिया के कौने- कौने में प्रोत्साहन मिलने लगा। साथ ही इसमें भारत की अन्य सॉफ्ट पावर के पहलु जैसे भारतीय सिनेमा, आयुर्वेद, वेदांत, शास्त्रीय कला, भारतीय हस्तशिल्प और व्यंजन आदि भी जुड़ गए।
योग का प्रसार करने की भारत की ये मुहिम काफी हद तक सफल रही है जो इस तथ्य से परिलक्षित होती है कि भारत के योग दिवस के प्रस्ताव को दुनिया के 170 से अधिक देशों का समर्थन प्राप्त हुआ है।
भारत सरकार, स्वास्थ्य और कल्याण और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में दुनिया में भारत के योगदान को पेश करने के लिए योग की लोकप्रियता और इसके लाभों का उपयोग करने की कोशिश कर रही है।
योग दिवस, हमारे देश के लिए एक बड़ा पर्यटक प्रोत्साहन उत्सव भी हो सकता है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो विदेश में रहते हैं और अपने देश में योग सीखने और अभ्यास करने के लिए यहां आना चाहते हैं।
योग दिवस समारोह और इस दिशा में सरकार के प्रयासों के पीछे विचार यह है कि मानवता को योग – दुनिया को भारत का उपहार स्वीकार करना चाहिए और उसका जश्न मनाना चाहिए।
योग दिवस ने पूरी दुनिया में योग के प्राचीन भारतीय अभ्यास की लोकप्रियता को भी दुनिया के सामने दिखाया।
- वर्तमान में, दुनिया भर में योग के 300 मिलियन से अधिक अभ्यासी हैं।
- लगभग 50% चिकित्सक भारतीय मूल के हैं।
- योग, स्पेन, अमेरिका, पुर्तगाल, इंडोनेशिया, मोरक्को, यूके, कोस्टा रिका, इटली आदि जैसे विविध देशों में भी बेहद लोकप्रिय है।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस हर साल 21 जून को मनाया जाता है। आपको बता दें कि 21 जून का दिन साल का सबसे बड़ा दिन होता है और योग भी मनुष्य को दीर्घायु प्रदान करता है। इसलिए इस दिन, योग दिवस मनाया जाता है। पहला योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया था, जिसकी पहल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नें 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण से की थी। इसके बाद 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को, अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के रुप में मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी। भारत के पीएम के योग दिवस के प्रस्ताव को 90 दिनों के अन्दर ही पूर्ण बहुमत से पारित कर दिया गया था, जो संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी भी प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है। |
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