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हबल

हबल टेलीस्कोप संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A) की अंतरिक्ष अन्वेषी संस्था “नासा” (नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) द्वारा  अंतरिक्ष में स्थापित की जाने वाली पहली प्रमुख “ऑप्टिकल टेलीस्कोप” (दूरबीन ) है । यह 1990 में प्रक्षेपित किया गया था । इस टेलीस्कोप का नाम खगोलशास्त्री एडविन हबल के नाम पर रखा गया है।

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नोट : यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू करने से पहले अभ्यर्थियों को सलाह दी जाती है कि वे  UPSC Prelims Syllabus in Hindi का अच्छी तरह से अध्ययन कर लें, और इसके बाद ही  अपनी तैयारी की योजना बनाएं।

हबल टेलीस्कोप नासा के “ग्रेट ऑब्ज़र्वेटरीज़” प्रोग्राम का एक हिस्सा है, जिसमें कुल चार अंतरिक्ष -आधारित वेधशालाओं का एक समूह है; जो हैं -हबल टेलीस्कोप – दृश्य एवं पराबैंगनी किरण पर आधारित (1990), कॉम्पटन –गामा रे पर आधारित  (1991 -2000), चंद्रा –X -रे  पर आधारित (1999), एवं स्पिट्जर –इन्फ्रारेड  पर आधारित (2003 -2020) । 1990 में हबल स्पेस टेलीस्कोप ने पता लगाया कि ब्रह्मांड का विस्तार तेज़ी से हो रहा  है । इसने ब्रह्मांड के बारे में लोगों की समझ को एक नया आकार दिया है । सृष्टि के आरंभ और उम्र के बारे में हबल ने अनेक तथ्यों से हमें अवगत कराया है । 

हबल के बाद “जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप” (James Webb Space Telescope- JWST) को दिसंबर 2021 में लॉन्च किया गया था है ।यह टेलीस्कोप अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA , यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी का एक संयुक्त प्रयास  है। यह अब तक का सबसे बड़ा, सबसे शक्तिशाली अवरक्त किरण (इन्फ्रारेड) स्पेस टेलीस्कोप है । हालाँकि बीच में तकनिकी खराबी की वजह से इसने काम करना बंद कर दिया था और इसे “सेफ मोड” में रखा गया था । हबल इससे 575 कि.मी. की ऊँचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करता है । जबकि वेब टेलीस्कोप पृथ्वी की परिक्रमा नहीं करेगा । यह पृथ्वी से 1.5 मिलियन कि.मी. दूर सूर्य की परिक्रमा करेगा । जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप अंतरिक्ष में भेजी जाने वाली अब तक की सबसे बड़ी टेलिस्कोप है । इस वेब के अवरक्त कैमरे इतने अधिक संवेदनशील हैं कि वे सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा से आने वाले प्रकाश तक को रोकने में सक्षम हैं । इसका नामकरण नासा विज्ञान मिशनों के दूसरे व्यवस्थापक जेम्स वेब के नाम पर किया गया है । पहले  जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को “एनजीएसटी” (New Generation Space Telescope – N.G.S.T) के नाम से जाना जाता था लेकिन सितम्बर 2002 में इसका नाम बदलकर जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप कर दिया गया ।

हबल की विशेषता यह है कि यह हमें बादलों,  प्रदूषण और मौसमी घटनाओं से मुक्त, ब्रह्मांड का एक स्पष्ट दृश्य उपलब्ध कराता है । वैज्ञानिकों ने हबल का उपयोग अब तक खोजे गए कुछ सबसे दूर के तारों और आकाशगंगाओं के साथ -साथ हमारे सौर मंडल के ग्रहों को देखने के लिए किया है । हबल पराबैंगनी (UVR) से दृश्य किरण (जिन्हें हमारी आंखें देखती हैं) और निकट- अवरक्त (near infrared) तक विस्तृत है । इस विस्तार ने हबल को सितारों, आकाशगंगाओं और अन्य खगोलीय पिंडों की दुर्लभ छवियां प्रदान करने की क्षमता दी है, जिन्होंने ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ को और परिपक्व किया है । हबल ने अपने जीवनकाल में 1.5 मिलियन से अधिक अवलोकन किए हैं ।

हबल टेलिस्कोप : एक नजर में
1.नियामक संस्था नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) , कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी एवं Space Telescope Science Institute (STScI)
2.प्रक्षेपण तिथि  April 24, 1990
3.प्रक्षेपक यंत्र  अंतरिक्ष शटल डिस्कवरी (STS-31)
4.मिशन अंतराल  32 वर्ष, 5 महीने और 7 दिन
5.भार 11,110 कि.ग्रा. (24,490 पौंड)
6.लंबाई 13.2 मी॰ (43 फीट)
7.व्यास  2.4 मी॰ (7.9 फीट)
8.कक्षा (ऑर्बिट) सर्कुलर लो अर्थ ऑर्बिट के निकट 
9.कक्षा की उंचाई 559 कि.मी. (347 मील)
10.गति 27,000 K.M.P.H (7,500 मी/से) 
11.फोकल दूरी 57.6 मी॰ (189 फीट)
PSLV और GSLV क्या हैं?

अंतरिक्ष में किसी भी सैटलाइट को भेजने के लिए ‘लॉन्चिंग व्हीकल’ (Launching Vehicle)/ प्रक्षेपण यान  का इस्तेमाल किया जाता है । ये एक तरह के रॉकेट होते हैं जिनकी मदद से सैटलाइट लॉन्च किए जाते हैं। 

ऐसे ‘लॉन्चिंग व्हीकल’ (Launching Vehicle)/ प्रक्षेपण यान मुख्य रूप से 2 प्रकार के होते हैं – पोलर सैटलाइट लॉन्चिंग व्हीकल (PSLV) और जियोसिंक्रनाइज लॉन्चिग व्हीकल (GSLV) । 

PSLV की मदद से ज्यादातर ऐसे सैटलाइट भेजे जाते हैं जिनकी मदद से निगरानी करनी होती है या तस्वीर खींची जाती है । ये सैटलाइट पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं और पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों को कवर कर सूचनाएं देते हैं ।  

भारत में PSLV का इस्तेमाल सबसे पहले 1994 में हुआ था । PSLV इसरो द्वारा उपयोग किया जाने वाला अब तक का सबसे विश्वसनीय प्रक्षेपण वाहन है । PSLV का उपयोग भारत के दो सबसे महत्त्वपूर्ण मिशनों (वर्ष 2008 के चंद्रयान-I और वर्ष 2013 के मार्स ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट) के लिये भी किया गया था ।

जबकि GSLV का मतलब है भू- समकालिक (जियोसिंक्रोनस) प्रक्षेपण वाहन । जैसे-जैसे पृथ्वी घूमती है वैसे-वैसे ही ये सैटलाइट घूमते हैं । इसी वजह से ये सैटलाइट हमेशा एक जगह पर रुके हुए से लगते हैं । इसी वजह से कम्यूनिकेशन सैटलाइट, टेलीविजन सैटलाइट और कई अन्य सैटलाइट GSLV से ही भेजे जाते हैं । जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) एक अधिक शक्तिशाली रॉकेट है, जो भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में अधिक ऊँचाई तक ले जाने में सक्षम है ।यह 10,000 कि.ग्रा. के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा तक ले जा सकता है, जबकि PSLV 2500 से 3000 कि.ग्रा तक ।

नोट: हाल ही में  भारत ने छोटे सैटलाइट भेजने के लिए एक SSLV (स्मॉल सैटलाइट लॉन्चिंग व्हीकल) भी बनाया  है । SSLV का लक्ष्य छोटे एवं सूक्ष्म उपग्रहों को लॉन्च करना है । यह 500 कि.ग्रा. तक के उपग्रहों को अंतरिक्ष तक ले जा सकता है । 

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