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Question

35. With reference to the proclamation of President’s rule, which of the following statements is/are not correct?
1. It can be questioned in a court of law
2. The legislative assembly of the state concerned cannot be dissolved without the approval of the parliament
3. It can be extended indefinitely with the periodic approval of the parliament Select the correct answer using the code given below:

राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा के संदर्भ में निम्नलिखित में कौन सा/से कथन सही नहीं है / हैं?
1. इसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
2. संसद के अनुमोदन के बिना संबंधित राज्य की विधान सभा को भंग नहीं किया जा सकता है।
3. इसे आवधिक संसदीय अनुमोदन द्वारा अनिश्चित काल तक बढ़ाया जा सकता है।
नीचे दिए गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनें:

A


1 and 2 only
केवल 1 और 2
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B


2 and 3 only
केवल 2 और 3
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C


1 and 3 only
केवल 1 और 3
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D


1, 2 and 3
1, 2 और 3
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Solution

The correct option is B

2 and 3 only
केवल 2 और 3
Statement 1 is correct
In SR Bommai and others vs UoI, 1994 case, the SC said that “advice given to President by CoM cannot be questioned in a CoL” is not a bar on the court to scrutinize whether the proclamation was issued on the basis of any valid material or whether the exercise was malafide.

Statement 2 is incorrect Parliamentary approval is not required to dissolve the legislative assembly of the state under President’s rule

Statement 3 is incorrect It can be extended only upto a maximum of 3 years

Extra information
In Bommai case (1994), the following propositions have been laid down by the Supreme Court on imposition of President’s Rule in a state under Article 356:
1. The presidential proclamation imposing President’s Rule is subject to judicial review.
2. The satisfaction of the President must be based on relevant material. The action of the president can be struck down by the court if it is based on irrelevant or extraneous grounds or if it was found to be malafide or perverse.
3. Burden lies on the Centre to prove that relevant material exist to justify the imposition of the President’s Rule.
4. The court cannot go into the correctness of the material or its adequacy but it can see whether it is relevant to the action
. 5. If the court holds the presidential proclamation to be unconstitutional and invalid, it has power to restore the dismissed state government and revive the state legislative assembly if it was suspended or dissolved.
6. The state legislative assembly should be dissolved only after the Parliament has approved the presidential proclamation. Until such approval is given, the president can only suspend the assembly. In case the Parliament fails to approve the proclamation, the assembly would get reactivated.
7. Secularism is one of the ‘basic features’ of the Constitution. Hence, a state government pursuing anti-secular politics is liable to action under Article 356.
8. The question of the state government losing the confidence of the legislative assembly should be decided on the floor of the House and until that is done the ministry should not be unseated.
9. Where a new political party assumes power at the Centre, it will not have the authority to dismiss ministries formed by other parties in the states.
10. The power under Article 356 is an exceptional power and should be used only occasionally to meet the requirements of special situations.

कथन 1 सही है
एसआर बोम्मई और अन्य बनाम यूओआई 1994 के मामले में सर्वोच्च न्यायलय ने कहा कि "सीओएम द्वारा राष्ट्रपति को दी गई सलाह पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है" यह जांचने के लिए अदालत पर कोई रोक नहीं है कि किसी वैध सामग्री के आधार पर उद्घोषणा जारी की गई थी या क्या यह केवल एक कवायद थी।

कथन 2 गलत है
राष्ट्रपति शासन के अंतर्गत राज्य की विधान सभा को भंग करने के लिए संसदीय स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती है

कथन 3 गलत है
इसे अधिकतम 3 साल तक ही बढ़ाया जा सकता है

अतिरिक्त जानकारी
बोम्मई मामले (1994) में अनुच्छेद 356 के अंतर्गत एक राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निम्नलिखित प्रस्ताव रखे गए हैं
1. राष्ट्रपति शासन लगाने वाली राष्ट्रपति उद्घोषणा न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
2. राष्ट्रपति की संतुष्टि संबंधित सामग्री पर आधारित होनी चाहिए। यदि राष्ट्रपति की कार्रवाई अप्रासंगिक या बाहरी आधार पर आधारित या यदि वह गलत या विकृत पाई गई है तो अदालत द्वारा वह रोकी जा सकती है ।
3. केंद्र पर यह जिम्मेदारी होती है कि प्रासंगिक सामग्री 'राष्ट्रपति शासन लागू करने का औचित्य साबित करने के लिए मौजूद है।
4. न्यायालय सामग्री या उसकी पर्याप्तता की शुद्धता पर जोर नहीं दे सकता है 'लेकिन यह देख सकता है कि यह कार्रवाई के लिए प्रासंगिक है या नहीं।
5. यदि न्यायालय राष्ट्रपति की घोषणा को असंवैधानिक और अमान्य करने का अधिकार रखता है,तो उसे निलंबित या भंग की गयी राज्य सरकार को बहाल करने और राज्य विधान सभा को पुनर्जीवित करने की शक्ति भी है ।
6. संसद द्वारा राष्ट्रपति घोषणा को मंजूरी दिए जाने के बाद ही राज्य विधान सभा को भंग कर दिया जाना चाहिए । जब तक ऐसी मंजूरी नहीं दी जाती है तब तक केवल राष्ट्रपति ही विधानसभा को निलंबित कर सकते हैं । यदि संसद घोषणा को मंजूरी देने में विफल रहती है तो विधानसभा पुनः सक्रिय हो जाती है ।
7. धर्मनिरपेक्षता संविधान की 'बुनियादी विशेषताओं' में से एक है। इसलिए धर्मनिरपेक्ष राजनीति का अनुसरण करने वाली राज्य सरकार अनुच्छेद 356 के अंतर्गत कार्रवाई के लिए जिम्मेदार है।
8. जहाँ तक राज्य सरकार द्वारा विधानसभा का विश्वास खोने का प्रश्न है उसे सदन के पटल पर तय किया जाना चाहिए और जब तक ऐसा नहीं किया जाता तब तक मंत्रालय को सत्ता से हटना नहीं चाहिए।
9. जब एक नया राजनीतिक दल केंद्र में सत्ता ग्रहण करता है तो उसे राज्यों में अन्य दलों द्वारा गठित मंत्रालयों को खारिज करने का आधिकार नहीं होगा।
10. अनुच्छेद 356 के अंतर्गत मिली शक्ति एक असाधारण शक्ति है और इसका उपयोग कभी-कभी विशेष परिस्थितियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जाना चाहिए।

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