उपनिषदों में बार-बार कहा गया है कि - "शरीर स्वस्थ हो, मन स्वच्छ हो और तन-मन दोनों अनुशासन में रहें।" आप अपने दैनिक क्रिया-कलापों में इसे कितना लागू कर पाते हैं? लिखिए।
इसका तात्पर्य यह है कि यदि मन स्वच्छ हो और तन स्वच्छ हो तो मनुष्य प्रगतिपथ पर स्वयं को अग्रसर कर सकता है। इसके लिए उसे तन और मन की स्वच्छता के साथ-साथ उनको अनुशासन में रखना आवश्यक होता है और ये हम तभी कर सकते हैं जब अपने मन को स्वच्छ बनाने के लिए उच्च विचारों का मनन करें, चिंताओं और परेशानियों को ज़्यादा अहमियत ना देकर अपने को प्रसन्नचित रखें। शरीर को (तन) स्वच्छ रखने के लिए प्रात: काल उठकर नित्य व्यायाम करें, लंबी सैर पर जाएँ और ये सब बड़े अनुशासन पूर्वक करें। यदि हम दैनिक दिनचर्या में इस प्रणाली को क्रियान्वित करते हैं तो हम एक उच्च व आदर्श जीवन को पा सकते हैं। एक स्वस्थ मन स्वस्थ विचारों को जन्म देता है जो हमारे जीवन पर अच्छा प्रभाव डालते हैं हमारी सोच को सकारात्मक दिशा देते हैं और जीवन की धारा ही बदल देते हैं। स्वस्थ शरीर (तन) उस सकारात्मक दिशा के साथ तालमेल बिठाता है और हम निरोग जीवन व्यतीत करते हैं। आज के समय में मनुष्य के पास जिसकी कमी है वह है समय, इस समय के अभाव ने उसकी दिनचर्या को मशीनी-मानव की तरह बना दिया है। यहाँ कार्य ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया। उसके पास स्वयं के लिए समय नहीं है इसलिए हम अपने मन व तन की स्वच्छता से अनभिज्ञ हैं और इसी कारणवश अनेकों मानसिक व शारीरिक बीमारियों से ग्रस्त हैं। हमें चाहिए कि हम अनुशासन को अपने जीवन में स्थान दें प्रात: काल उठें, व्यायाम करें, सैर पर जाएँ। उच्च विचारों का मनन करें, अच्छी पुस्तकें पढ़ें तो हम स्वयं विभिन्न बीमारियों से बच सकते हैं।