सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है।
सरकारी तंत्र के आलस्य का यहाँ पर वर्णन किया गया है। सरकारी तंत्र तभी होश में आता है जब बात गंभीरता का रूप धारण कर लेती है। वह अपने कर्तव्य को सही ढ़ग से न निभाते हुए मीटिग के हवाले समस्या को छोड़ देते हैं। अपनी ज़िम्मदारी को भली−भांति नहीं निभाते व ज़िम्मेदारी दूसरे विभाग पर डालते रहते हैं जिससे समस्या ज्यों की त्यों बनी रहती है। सलाह−मशवरा तो उचे पैमाने पर करने की कोशिश करते हैं पर बुद्धि के मामले पर समस्या को सुलझा नहीं पाते। वे अपनी समस्याओं का हल बाहर ढूँढने के स्थान पर जंग लगी फाइलों का सहारा लेते हैं परन्तु इन फाइलों की इतनी बेकदरी होती है कि वो भी बर्बाद हो जाते हैं।