आजकल अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय फूलों की बहुत माँग है। बहुत से किसान साग-सब्ज़ी व अन्न उत्पादन छोड़ फूलों की खेती को ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसी मुद्दे को विषय बनाते हुए वाद-वाद प्रतियोगिता का आयोजन करें।
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समय बदल रहा है। अतः किसानों को भी उसके साथ बदलना पड़ रहा है। पहले किसान साग-सब्ज़ी व अन्न के उत्पादन को ही अपना सबकुछ मानता था। वे इसके जीवन के आधार थे। जीवन का आधार जीवन को सुचारू रूप से न चलाए पाएँ, तो वह किसी काम का नहीं है। आज का किसान साग-सब्ज़ी व अन्न का उत्पादन करके भी कुछ नहीं पाता है। उसका स्वयं का जीवन भी कठिनाई से चलता है। जो दूसरों का पेट पालता हो, वह स्वयं भूखा रह जाए तो यह विडंबना ही है। एक किसान स्वयं तो भूखा रह सकता है लेकिन अपने बच्चों को भूखा नहीं देख सकता। साग-सब्ज़ी व अन्न उसे वह नहीं दे रहे हैं, जो उसे फूलों की खेती दे रही है। इसके लिए मेहनत कम और फल अधिक मिलता है। इसी कारण उसके बच्चे अच्छी शिक्षा, भरपूर पेट भोजन और एक अच्छी जीवन शैली जी पा रहे हैं।
एक किसान जन्मदाता कहा जाता है। उसे ही रक्षक माना जाता है यदि रक्षक ही भक्षक बन जाए, तो बाकी लोगों का क्या होगा। ऐसा हर किसान वर्ग के साथ नहीं हो रहा है। इस प्रकार का नुकसान छोटे किसान भोग रहे हैं। एक संपन्नशाली किसान यदि साग-सब्ज़ी व अन्न को छोड़कर फूलों की खेती करेगा, तो देश तथा विश्व की जनता जीवित कैसी रहेगी। यह भावना उचित नहीं है।