आशय स्पष्ट कीजिए -
(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।
(क) आज का समाज उपभोक्तावादी समाज है जो विज्ञापन से प्रभावित हो रहा है। आज लोग केवल अपनी सुख-सुविधा के लिए उत्पाद नहीं खरीदते बल्कि उत्पाद खरीदने के पीछे उनका मकसद समाज में अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को कायम रखना है। उदाहरण के लिए पहले केवल तेल-साबुन तथा क्रीम से हमारा काम चल जाता था लेकिन आज प्रतिष्ठित बनने की होड़ में लोग सबसे कीमती साबुन, फेस-वॉश का इस्तेमाल कर रहे हैं।
(ख) उपभोक्तावाद के बढ़ते प्रभाव ने मनुष्य को सुविधाभोगी बना दिया। परन्तु आज सुख-सुविधा का दायरा बढ़कर, समाज में प्रतिष्ठिता बढ़ाने का साधन बन गया है। स्वयं को समाज में प्रतिष्ठित बनाने के लिए लोग कभी-कभी हँसी के पात्र बन जाते हैं। यूरोप के कुछ देशों में मरने से पहले लोग अपनी कब्र के आस-पास सदा हरी घास, मन चाहे फूल लगवाने के लिए पैसे देते हैं। भारत में भी यह संभव हो सकता है। ऐसी उपभोक्तावादी इच्छा हास्यापद ही है।