अशोक वृक्ष- भारतीय साहित्य में बहुचर्चित एक सदाबहार वृक्ष। इसके पत्ते आम के पत्तों से मिलते हैं। वसंत-ऋतु में इसके फूल लाल-लाल गुच्छों के रूप में आते हैं। इसे कामदेव के पाँच पुष्पवाणों में एक माना गया है। इसके फल सेम की तरह होते हैं। इसके सांस्कृतिक महत्त्व का अच्छा चित्रण हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने निबंध अशोक के फूल में किया है। भ्रमवश आज एक दूसरे वृक्ष को अशोक कहा जाता रहा है और मूल पेड़ (जिसका वानस्पतिक नाम सराका इंडिका है।) को लोक भूल गए हैं। इसकी एक जाति श्वेत फूलों वाली भी होती है।
अरिष्ठ वृक्ष- रीठा नामक वृक्ष। इसके पत्ते चमकीले हरे होते हैं। फल को सुखाकर उसके छिलके का चूर्ण बनाया जाता है, बाल धोने एवं कपड़े साफ करने के काम में आता है। पेड़ की डालियों व तने पर जगह-जगह काँटे उभरे होते हैं, जो बाल और कपड़े धोने के काम भी आता है।
आरग्वध वृक्ष- लोक में उसे अमलतास कहा जाता है। भीषण गरमी की दशा में जब इसका पड़े पत्रहीन ठूँठ सा हो जाता है, पर इस पर पीले-पीले पुष्प गुच्छे लटके हुए मनोहर दृश्य उपस्थित करते हैं। इसके फल लगभग एक डेढ़ फुट के बेलनाकार होते हैं जिसमें कठोर बीज होते हैं।
शिरीष वृक्ष- लोक में सिरिस नाम से मशूहर पर एक मैदानी इलाके का वृक्ष है। आकार में विशाल होता है पर पत्ते बहुत छोटे-छोटे होते हैं। इसके फूलों में पंखुड़ियों की जगह रेशे-रेशे होते हैं।