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'और कविताएँ पढ़ते रहने से....आम बौर आवेंगे'- में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।

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Solution

प्रस्तुत पंक्ति में कवि द्वारा व्यंग्य किया गया है। उसके अनुसार सीमेंट के बने जंगलों में रहने वाले मनुष्य को प्रकृति की सुंदरता और उसमें होने वाले परिवर्तन के विषय में कोई जानकारी नहीं होती है। ऋतु के आगमन और उसकी समाप्ति का तो उसे पता ही क्या चलेगा। वह मात्र कविताओं के माध्यम से ऋतुओं में हो रहे परिवर्तन और उनके सौंदर्य के विषय में जान पाता है। प्राचीनकाल के कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से सभी ऋतुओं का सुंदर वर्णन किया है। वसंत ऋतु तो रसिक तथा सभी प्रकार के कवियों की मनभावन ऋतु रही है। इस ऋतु में पलाश के जंगल खिल उठते हैं, आमों के वृक्ष बौरों से भर जाते हैं। यह अनुपम दृश्य देखकर रसिकों के हृदय प्रेम से प्लवित होने लगते हैं। परन्तु विडंबना देखिए कि आज यह सब कविताओं के माध्यम से पता चलता है। अपनी आँखों से इन्हें देखने का सौभाग्य हमें प्राप्त नहीं है। बस इसकी सुंदरता का रसपान हम पढ़कर लेने का प्रयास करते हैं, जोकि मानव के लिए शोचनीय बात है।

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