बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में 'सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है' कैसे?
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Solution
यह सही है कि बात और भाषा आपस में जुड़े हुए हैं। जब हम किसी से बात करते हैं, तो भाषा ही वह माध्यम हैं, जिससे हम अपनी बात दूसरों को समझा सकते हैं। यदि भाषा नहीं है, तो हम बात नहीं कर सकते हैं। यदि हम किसी के साथ बात ही नहीं करेंगे, तो भाषा का प्रयोग नहीं होगा। अतः यह अटूट संबंध है। जब हम अपनी भाषा को सहजता से इस्तेमाल नहीं करते तो यह स्थिति आती है कि सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। हर शब्द की विशेषता है कि उसका अपना अलग अर्थ होता है। फिर चाहे वह देखने में किसी के समान अर्थ देने वाले क्यों न लगे। उदाहरण के लिए-
तुम्हारा आचार सड़ गया है।
इस वाक्य में 'आचार' शब्द का गलत प्रयोग किया गया है। इस शब्द का अर्थ व्यवहार है। यह अचार के समान लगता है। लेकिन वाक्य को ध्यानपूर्वक देखा जाए, तो यहाँ पर आम, गोभी से बनने वाले व्यंजन की बात की जा रही है। लेकिन गलत शब्द का प्रयोग करके हमने सीधी बात को टेढ़ा बना दिया है।