(क) इन पंक्तियों का भाव यह है कि कवि 1947 के बाद के भारत में बहुत से लोगों ने अनैतिकता तथा भ्रष्टाचार के तरीकों का सहारा लेकर अतुलनीय धन कमाया है। जब उनसे कोई इस धन के विषय में बातचीत करता है, तो उनका जवाब होता कि उन्होंने यह धन आत्मनिर्भर तथा गतिशील होकर कमाया है। अर्थात इस धन को कमाने के लिए उन्होंने स्वयं पर विश्वास रखते हुए निरंतर परिश्रम किया है, जिसका परिणाम है कि वे मालामाल और धनवान हो गए हैं। कवि को ये सब मात्र दिखावा लगता है। उसके अनुसार ऐसा तो सभी करते हैं, फिर क्यों सभी मालामाल और धनवान नहीं होते हैं।
(ख) भाव यह है कि भ्रष्ट लोगों को देखकर भी कवि कुछ नहीं कर पाता इसलिए वह स्वयं को लाचार मानता है। परन्तु यदि प्रयास करता तो शायद कुछ बदलाव हो सकता था। यही कारण है कि वह स्वयं को कामचोर कहने से नहीं हिचकिचाता। ईमानदार लोगों की दशा को अनदेखा करने के कारण स्वयं को धोखेबाज़ भी कह डालता है। लोगों के भ्रष्ट व्यवहार ने उसके हाथ बाँध दिए हैं। वह अपने सम्मुख एक ईमानदार व्यक्ति को हाथ फैलाते देखता है परन्तु हालात उसे विवश कर देते हैं। वह उसकी ऐसी दशा देखकर भी चुप है। यही कारण है कि वह स्वयं को इस प्रकार के नामों से पुकारता है।
(ग) भाव यह है कि कवि के अनुसार ईमानदार लोगों के समक्ष उसका कोई व्यक्तित्व नहीं है। उनके सम्मुख तो वह स्वयं को नंगा, लज्जा रहित तथा इच्छा रहित मानता है। वह किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा और टकराव की स्थिति से दूर रहना चाहता है।