भाव स्पष्ट कीजिए -
(क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
(ख) माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
(क) भाव यह है कि रसखान जी ब्रज की काँटेदार झाड़ियों व कुंजन पर सोने के महलों का सुख न्योछावर कर देना चाहते हैं। अर्थात् जो सुख ब्रज की प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने में है वह सुख सांसारिक वस्तुओं को निहारने में दूर-दूर तक नहीं है।
(ख) भाव यह है कि श्री कृष्ण की मुस्कान इतनी मोहनी व अद्भुत है कि गोपियाँ स्वयं को संभाल नहीं पाती। अर्थात् उनकी मुस्कान में वे इस तरह से मोहित हो जाती हैं कि लोक-लाज का भय उनके मन में रहता ही नहीं है और वह श्री कृष्ण की तरफ़ खींचती जाती हैं।