चैप्लिन ने न सिर्फ़ फ़िल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। इस पंक्ति में लोकतांत्रिक बनाने का और वर्ण-व्यवस्था तोड़ने का क्या अभिप्राय है? क्या आप इससे सहमत हैं?
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Solution
चैप्लिन की फ़िल्में ऐसी थीं, जो हर वर्ग को ध्यान में रखकर बनाई गईं और हर दर्शक की पहुँच उस फ़िल्म तक संभव थी। जिस कारण इनकी फिल्मों से हर वर्ग जुड़ता चला गया। इसमें गरीब, मज़दूरों तथा निम्नवर्गों के लोगों को केंद्रित किया गया। उनकी समस्याओं, दुखों, खुशियों इत्यादि को इन फ़िल्मों में स्थान मिला। इस तरह फ़िल्म उच्चवर्ग का मनोरंजन का साधन मात्र नहीं रह गई थी। इसने आम जनता को भी मिलाया और लोकतंत्र स्थापित करने का प्रयास किया। इनकी फ़िल्मों ने वर्ण व्यवस्था को हटाने का पूरा प्रयास किया। अतः हम कह सकते हैं कि इनकी फ़िल्में लोकतांत्रिक बनाने और वर्ण-व्यवस्था को तोड़ने में सफल रही थी। यदि ऐसी फ़िल्में नहीं बनती तो आज भी समाज में असमानता कायम रहती। ये ऐसी सफल फ़िल्में थी, जिनसे उच्चवर्ग, मध्यमवर्ण तथा निम्नवर्ग को सोचने पर विवश किया। समाज में व्याप्त असमानता, विसंगतियों, भेदभावों पर प्रहार कर समाज में लोकतंत्र स्थापित किया और उसे जीने योग्य बनाया।