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Question

दारोगा वंशीधर गैरकानूनी कार्यों की वजह से पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है, लेकिन कहानी के अंत में इसी पंडित अलोपीदीन की सहायता से मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता है। आपके विचार से क्या वंशीधर का ऐसा करना उचित था? आप उसकी जगह होते तो क्या करते?

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Solution

मेरे विचार से वंशीधर ने जो किया वह बिलकुल उचित था। उसने पहले भी अपने कर्तव्य का पालन किया था। उसने ईमानदारी से अपना कार्य किया मगर उसे उसके स्थान पर प्रताड़ना, शर्मिंदी तथा नौकरी से निकाला ही मिला। जहाँ उसे इस कार्य के लिए मान-सम्मान और पुरस्कार मिलना चाहिए था, वहाँ अपमान मिला। अलोपीदीन ने उसके गुण को समझा। अलोपीदीन की लड़ाई वंशीधर से नहीं थी, वह तो स्वयं को बचाने का प्रयास कर रहा था।
वंशीधर जानता था कि उसकी बुरी दशा अलोपीदीन द्वारा हुई थी। इन दोनों के मध्य जो लड़ाई थी, वह धर्म की लड़ाई थी। एक अपनी नौकरी के प्रति ईमानदार था और एक समाज के प्रति अपनी छवि को लेकर ईमानदार था। अलोपीदीन ने जब यह अच्छी तरह जान लिया कि वंशीधर उसके लिए सही है, तो उसने बिना किसी की परवाह किए वंशीधर को अपनी सारी संपत्ति की देख-रेख का अधिकारी बना दिया। वंशीधर भी यह बात जान गया था कि अलोपीदीन ने उसके आदर्श, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी को समझा है। उसे वह व्यक्ति मिल गया जिसके साथ रहकर वह अपने धर्म की रक्षा कर सकता था। वंशीधर के लिए ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा उसका धर्म था। वंशीधर ने उसे अपने पास रखकर उसे अपने अनुसार जीने तथा कार्य करने की आज़ादी दी। इसमें दोनों का ही हित था। अतः वंशीधर ने जो किया वह उचित था।

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