पदमाकर की रचनाएँ-
1. घूंघट की धूम के सुझूम के जवाहिर के
झिलमिल झालर की भूमि लौं झुलत जात
कहैं पदमाकर सुधाकर मुखी के हीर।
हारन मे तारन के तोम से तुलत जात
मंद मंद मैकल मतँग लौं चलेई भले
भुजन समेत भुज भूसन डुलत जात
घांघरे झकोरन चहूंधा खोर खोरन मे
खूब खसबोई के खजाने से खुलत जात
2. दाहन ते दूनी, तेज तिगुनी त्रिसूल हूं ते,
चिल्लिन ते चौगुनी, चालाक चक्रवाती मैं।
कहैं पद्माकर महीप, रघुनाथ राव,
ऐसी समसेर सेर शत्रुन पै छाली तैं।
पांच गुनी पब्ज तैं, पचीस गुनी पावक तैं,
प्रकट पचास गुनी, प्रलय प्रनाली तैं।
सत गुनी सेस तैं, सहसगुनी स्रापन तैं,
लाख गुनी लूक तैं, करोरगुनी काली तैं॥