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धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय में क्या-क्या बँधा है?

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धीरे-धीरे की इस सामूहिक लय में पूरा बनारस बंधा हुआ है। यह लय इस शहर को मजबूती प्रदान करती है। धीरे-धीरे की सामूहिक लय में यहाँ बदलाव नहीं हुए हैं और चीज़ें प्राचीनकाल से जहाँ विद्यमान थीं, वहीं पर स्थित हैं। गंगा के घाटों पर बंधी नाव आज भी वहीं बँधी रहती है, जहाँ सदियों से बँधी चली आ रही हैं। संत कवि तुलसीदास जी की खड़ाऊ भी सदियों से उसी स्थान पर सुसज्जित हैं। भाव यह है कि धीरे-धीरे की सामूहिक लय के कारण शहर बँधा ही नहीं है बल्कि वह इस कारण से मजबूत हो गया है। अपने आस-पास हो रहे बदलावों से यह शहर अछूता है। यहाँ कि प्राचीन परंपराएँ, संस्कृति, मान्ताएँ, धार्मिक आस्थाएँ, ऐतिहासिक विरासत वैसी की वैसी ही हैं। लोग आज वैसे ही गंगा को माता की संज्ञा देकर उसकी पूजा अर्चना करते हैं, उनमें आधुनिक सभ्यता का रंग नहीं चढ़ा है इसलिए यह शहर अपने पुराने स्वरूप को संभाले हुए बढ़ रहा है।

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