'धर्म का रहस्य जानना सिर्फ़ धर्माचार्यों का काम नहीं, कोई भी व्यक्ति अपने स्तर पर उस रहस्य को जानने की कोशिश कर सकता है, अपनी राय दे सकता है'- टिप्पणी कीजिए।
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'धर्म का रहस्य जानना सिर्फ़ धर्माचार्यों का काम नहीं, कोई भी व्यक्ति अपने स्तर पर उस रहस्य को जानने की कोशिश कर सकता है, अपनी राय दे सकता है।'- यह कथन बिलकुल सही है। धर्म इतना रहस्यमय नहीं है कि इसे साधारण जन समझने में असमर्थ हो। धर्म की बहुत सीधी सी परिभाषा है। इसे धर्माचार्यों ने जटिल बना दिया है। इसकी कहानियों को गलत अर्थ देकर वे लोगों को भ्रमित करते हैं। इस तरह साधारण जन समझ लेते हैं कि धर्म उनके समझने के लिए नहीं बना है। अतः धर्म को समझने के लिए वे धर्माचार्यों या धर्मगुरूओं का सहारा लेते हैं।
इसके विपरीत धर्म बहुत ही सरल है। मानवता धर्म की सही परिभाषा है। मनुष्य का कार्य है कि वह प्रत्येक जीव-जन्तु, सभी प्राणियों के लिए दया भाव रखे, किसी को अपने स्वार्थ के लिए दुखी न करे, यही धर्म है। महाभारत में इसकी बहुत ही सरल व्याख्या मिलती है। कृष्ण ने दुर्योधन को अधर्मी कहा है और पांडवों को धर्म का रक्षक कहा है। यदि हम दुर्योधन के कार्यों पर दृष्टि डालें तो उसने जितने भी कार्य किए वे मानवता के नाम पर कलंक थे। अतः यह कहानी हमें धर्म की सरल परिभाषा प्रदान करती है। फिर हम क्यों धर्म को समझने के लिए किसी का सहारा लेते हैं। हमें स्वयं इसे समझना चाहिए। हमें स्वयं इसे जानना चाहिए। उसके बाद जो सत्य सामने आएगा, वह हमारे लिए महत्वपूर्ण है।