'धर्म का रहस्य जानना वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों का ही काम है।' आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं? धर्म संबंधी अपने विचार व्यक्त कीजिए।
Open in App
Solution
यह बिलकुल भी सत्य नहीं है कि धर्म का रहस्य जानना वेदशास्त्रज्ञ धर्माचार्यों का ही काम है। धर्म बाहरी रूप से जितना जटिल दिखता है, वह उतना नहीं है। धर्म वेदशास्त्रों के माध्यम से नहीं समझा जा सकता है बल्कि उसे व्यवहार में प्रयोग लाने से समझा जा सकेगा। यह भी निर्भर करता है कि लोग उसे किस प्रकार से व्यवहार में लाए। लोग वर्त-पूजा, नमाज़-रोज़े इत्यादि को धर्म मान लेते हैं और सारी उम्र इन्हीं नियमों में पड़े रहते हैं। परन्तु धर्म की परिधि बहुत सरल है। अपनी आँखों के आगे गलत होते मत देखो, सत्य का आचरण करो, बड़ों की सेवा करो, दीन-दुखियों की सहायता करो, मुसीबत में पड़े व्यक्ति को उससे बाहर निकालो, अन्याय का विरोध करना, न्याय का साथ देना धर्म है। चोरी करना, किसी को धोखा देना, झूठ बोलना, अन्याय करना, किसी को मार देना, किसी का अधिकार हड़प लेना, अपने स्वार्थों के लिए लोगों पर अत्याचार करना इत्यादि अधर्म कहलाता है। महाभारत में श्रीकृष्ण ने पांडव का साथ देने को धर्म का कहा था। उनके अनुसार कौरवों ने पांडवों का अधिकार लेकर अधर्म किया था। वे उसके विरोध में खड़े हुए। उन्होंने कहा कि यदि धर्म की रक्षा के लिए भाई-भाई के विरूद्ध भी खड़ा हो, तो वह अधर्म नहीं कहलाएगा।