Dr. Ambedkar firmly believed that political democracy cannot succeed without social and economic democracy. In his talk given on the Voice of America he argued that: “Democracy could not be equated with either republic or parliamentary form of government. The roots of democracy lay not in the form of government, parliamentary or otherwise. A democracy is a model of associated living. The roots of democracy are to be searched in social relationship, in terms of the associated life between the people who form the society.”
He was against coercive centralised institutional authority that Hobbesian Philosophy maintains.
Associated life is consensual expression of shared experience, aspirations and values. If a small section of the society is allowed to manipulate the cultured symbols of the society that process becomes undemocratic and destructive.
For him political democracy is not an end in itself, but the most powerful means to achieve the social and economic ideals in society. State socialism within the framework of parliamentary democracy can defeat dictatorship. Fundamental rights without economic security are of no use to the have-nots. “Social and economic democracy are tissue and the fibre of a political democracy.”
Q According to the passage, Dr. Ambedkar is against coercive centralized Institutional Authority because
डॉ. अंबेडकर का यह दृढ़ विश्वास था कि राजनैतिक लोकतंत्र सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र के बिना सफल नहीं हो सकता। वाइस ऑफ अमेरिका से की गई अपनी चर्चा में उन्होंने तर्क दिया किः ‘‘लोकतंत्र की तुलना गणतंत्र या सरकार के संसदीय स्वरूप से नहीं की जा सकती। लोकतंत्र की जड़ें सरकार के संसदीय या किसी अन्य स्वरूप में निहित नहीं हैं। लोकतंत्र सहयोगपूर्वक जीने का एक प्रतिदर्श है। लोकतंत्र की जड़ों को समाज को निर्मित करने वाले लोगों के बीच सहयोगपूर्ण जीवन के संदर्भ में सामाजिक संबंधों में खोजा जाना चाहिए।’’
वे होबेसियन दर्शन द्वारा प्रस्तावित उत्पीड़क केन्द्रीकृत संस्थागत प्राधिकरण के विरूद्ध थे। सहयोगपूर्ण जीवन साझा अनुभवों, आकांक्षाओं और मूल्यों की सहमतिजन्य अभिव्यक्ति है। यदि समाज के एक छोटे भाग को समाज के सांस्कृतिक प्रतीकों का मानमाना उपयोग करने की अनुमति प्रदान की जाती है तो वह प्रक्रिया अलोकतांत्रिक तथा विनाशकारी हो जाती है।
उनकी दृष्टि से राजनीतिक लोकतंत्र स्वयं साध्य नहीं है, वरन् यह समाज में सामाजिक और आर्थिक आदर्शां को प्राप्त करने का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है। संसदीय लोकतंत्र की अवसंरचना के अंतर्गत संचालित राज्य समाजवाद निरंकुशता को पराजित कर सकता है। आर्थिक सुरक्षा के बिना भूलभूत अधिकारों का वंचित वर्गां हेतु कोई उपयोग नहीं है। ‘‘सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र राजनीतिक लोकतंत्र की बुनियाद हैं।’’
परिच्छेद के अनुसार, डॉ. अंबेडकर उत्पीड़क केन्द्रीकृत संस्थागत प्राधिकरण के विरूद्ध हैं, क्योंकि-
It results in a minority controlling the cultural symbols of the society
इसका परिणाम अल्पसंख्यकों द्वारा समाज के सांस्कृतिक प्रतीकों का नियंत्रण होता है।
2nd Paragraph talks about the coercive centralized institutional authority. It says that if a small section of society is allowed to control the cultural symbols then democracy becomes destructive.
Hence, Option (c) is correct.
Option (a) is incorrect as the process becomes destructive and not that cultural symbols are destroyed. Option (b) is not found in the paragraph.
Option (d) is also close but it does not explain the reason why Ambedkar was against such authority
दूसरा अनुच्छेद उत्पीड़क केंद्रीकृत संस्थागत प्राधिकरण के संबंध में चर्चा करता है। यह कहता है कि यदि समाज के एक छोटे भाग को सांस्कृति प्रतीकों का नियंत्रण करने की अनुमति प्रदान की जाती है तो लोकंत्र विनाशकारी हो जाता है। इसलिए, विकल्प (c) सही है।
विकल्प (a)गलत है क्योंकि परिच्छेद में यह उल्लिखित है कि - वह प्रक्रिया विनाशकारी बन जाती है-न कि सांस्कृतिक प्रतीक विनष्ट हो जाते हैं।
विकल्प (b) का अनुच्छेद में उल्लेख नहीं है।
विकल्प (d) भी सत्यता के निकट है किन्तु इसके द्वारा इस कारण की व्याख्या नहीं होती है कि अंबेडकर इस प्रकार के प्राधिकरण के विरोध में क्यों थे।