दुष्यंत की इस गज़ल का मिज़ाज बदलाव के पक्ष में है। इस कथन पर विचार करें।
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दुष्यंत की गज़ल पढ़कर पता चलता है कि उसकी गज़ल का मिज़ाज बदलाव के पक्ष में है। समय के अनुसार बदलाव की आवश्यकता भी है। बदलाव है, जो समाज तथा राजनीति के स्वरूप को संभाले हुए हैं। अन्यथा इनका विकृत रूप व्यक्ति का जीवन नष्ट कर दे। बदलाव की स्थिति हर कोई चाहता है। बदलाव में नवजीवन छिपा हुआ है। जहाँ बदलाव नहीं, वहाँ रहना संभव नहीं है।